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- श्रीराधा स्तोत्रम्
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
श्रीसिद्धिविनायक अर्थात् सिद्धि देने वाले गणेशजी । अपने नाम के अनुरूप ही यह सिद्धिविनायक स्तोत्रम् सभी सिद्धि देने वाले हैं। धनहीन (दरिद्र) को धन, भाग्यहीन को सुख, अज्ञानी को उत्तम ज्ञान, संतानहीन को संतान प्राप्त होता है। इसके नित्य पाठ से भूतप्रेतादी बाधा दूर हो जाता है तथा सभी मनोकामना सिद्ध होता है ।
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
विघ्ननिवारकं सिद्धिविनायकस्तोत्रम्
श्री गणेशाय नमः ॥
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय
श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमङ्गलात्मन्
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
१ ॥
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्तिः
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुङ्कुमश्रीः
।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
२ ॥
पाशाङ्कुशाब्जपरशूंश्र्च
दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्र्च
शोणकुसुमस्त्रगुमाङ्गजातः ।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
३ ॥
कार्येषु विघ्नचयभीतविरञ्चिमुख्यैः
सम्पूजितः सुरवरैरपि मोदकाद्यैः ।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
४ ॥
शीघ्राञ्चनस्खलनतुङ्गरवोर्ध्वकण्ठ
स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसङ्घः ।
शूर्पश्रुतिश्र्च
पृथुवर्तुलङ्गतुन्दो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
५ ॥
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराजः ।
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
६ ॥
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीटः
कौस्तुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्रीः ।
सर्वत्र मङ्गलकरस्मरणप्रतापो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
७ ॥
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधनवरेण तमोऽपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥
८ ॥
इति मौद्गलोक्तं विघ्ननिवारकं
सिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय श्रीशङ्करात्मज
सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमङ्गलात्मन्
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ १॥
हे विघ्नेश ! हे सिद्धिविनायक !
आपका नाम विघ्न-समूह का खण्डन करनेवाला है । आप भगवान शंकर के सुपुत्र है । देवराज
इन्द्र आपके चरणों की वन्दना करते है । आप पार्वतीजी के महान् व्रत के उत्तम फल
एवं निखिल मङ्गलरुप है । आप मेरे विघ्न का निवारण करे ।
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्तिः
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुङ्कुमश्रीः ।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ २॥
हे सिद्धिविनायक ! आपके श्रीविग्रह
की कान्ति उत्तम पद्मरागमणि के समान अरुण वर्ण की है । श्रीसिद्धि और बुद्धि
देवियों ने अनुलेपन करके आपके श्रीअङ्कों मे कुङ्कुम की शोभा का विस्तार किया है ।
आपके दाहिने स्तन पर वलयाकार मुडा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पडता है । आप
मेरे विघ्न हर हर लीजिये ।
पाशाङ्कुशाब्जपरशूंश्च
दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्च शोणकुसुमस्रगुमाङ्गजातः ।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो विघ्नं
ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ३॥
हे सिद्धिविनायक ! आप आपके चार
हाथों में क्रमशः पाश, अङ्कुश, कमल और परशु धारण करते है, आप लाल फूलों की माला से
अलंकृत हैं और उमा के अङ्ग से उत्पन्न हुए है तथा आपके सिन्दूर शोभित ललाट में
चन्द्रमा का प्रकाश फैल रहा है, आप मेरे विघ्नों का अपहरण
कीजिये ।
कार्येषु विघ्नचयभीतविरञ्चिमुख्यैः
सम्पूजितः सुरवरैरपि मोदकाद्यैः ।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ४॥
हे सिद्धिविनायक ! सभी कार्यों मे
विघ्न समूह के आ पडने की आशङ्का से भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं ने भी
आपकी मोदक आदि मिष्टान्नों से भली-भॉंति पूजा की है । आप समस्त देवताओं मे सबसे
पहले ही पूजनीय हैं । आप मेरे विघ्न समूह का निवारण कीजिये ।
शीघ्राञ्चनस्खलनतुङ्गरवोर्ध्वकण्ठस्थूलोन्दुरुद्रवणहासितदेवसङ्घः
।
शूर्पश्रुतिश्च
पृथुवर्तुलतुङ्गतुन्दो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ५॥
हे सिद्धिविनायक ! आप जल्दी जल्दी
चलने,
लडखडाने, उच्चस्वर से शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होने से चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवता समुदाय को हँसाते रहते हैं । आपके कान सूप के
समान जान पडते हैं, आप मोटा गोलाकार और ऊँचा तुन्द धारण करते
हैं । आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिये ।
यज्ञोपवीतपदलंभितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराजः ।
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज विघ्नं
ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ६॥
आपने नागराज को यज्ञोपवित का स्थान
दे रखा है, आप बालचन्द्र को मस्तक पर धारण
कर दर्शनार्थियों को पुण्य प्रदान करते हैं । भक्तों को अभय देनेवाले दयाधाम
विघ्नराज ! सिद्धिविनायक ! आप मेरे विघ्नों को हर लीजिये ।
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीटः कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्रीः ।
सर्वत्रमङ्गलकरस्मरणप्रतापो विघ्नं
ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ७॥
आपका सुन्दर किरीट उत्तम रत्नों के
सार भागों की श्रेणियों से उद्दीप्त होता है । आप कुसुम्भी रंग के दो मनोहर वस्त्र
धारण करते हैं, आपकी शोभा कान्ति बहुत बढी-चढी
है और सर्वत्र आपके स्मरण का प्रताप सबका मङ्गल करनेवाला है । सिद्धिविनायक ! आप
मेरे विघ्न हरण करे ।
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधेनवरेण तमोपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेशु कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ८॥
सिद्धिविनायक ! आप देवान्तक आदि
असुरों से डरे हुए देवताओं की पीडा दूर करनेवाले तथा विज्ञानबोध के वरदान से सबके
अज्ञानान्धकार को हर लेनेवाले हैं । त्रिभुवनपति इन्द्रको आनन्दित करनेवाले
कुमारबन्धो ! आप मेरे विघ्नोंका निवारण कीजिये ।
॥ इति श्रीमुद्गलपुराणे
श्रीसिद्धिविनायक स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
श्रीसिद्धिविनायक स्तोत्रम्
जयोऽस्तु ते गणपते देहि मे विपुलां
मतिम् ।
स्तवनम् ते सदा कर्तुं स्फूर्ति
यच्छममानिशम् ॥ १॥
प्रभुं मंगलमूर्तिं त्वां
चन्द्रेन्द्रावपि ध्यायतः ।
यजतस्त्वां विष्णुशिवौ
ध्यायतश्चाव्ययं सदा ॥ २॥
विनायकं च प्राहुस्त्वां गजास्यं
शुभदायकम् ।
त्वन्नाम्ना विलयं यान्ति दोषाः
कलिमलान्तक ॥ ३॥
त्वत्पदाब्जाङ्कितश्चाहं नमामि चरणौ
तव ।
देवेशस्त्वं चैकदन्तो मद्विज्ञप्तिं
श्रृणु प्रभो ॥ ४॥
कुरु त्वं मयि वात्सल्यं रक्ष मां
सकलानिव ।
विघ्नेभ्यो रक्ष मां नित्यं कुरु मे
चाखिलाः क्रियाः ॥ ५॥
गौरिसुतस्त्वं गणेशः शॄणु विज्ञापनं
मम ।
त्वत्पादयोरनन्यार्थी याचे सर्वार्थ
रक्षणम् ॥ ६॥
त्वमेव माता च पिता देवस्त्वं च
ममाव्ययः ।
अनाथनाथस्त्वं देहि विभो मे वांछितं
फलम् ॥ ७॥
लम्बोदरस्वम् गजास्यो विभुः
सिद्धिविनायकः ।
हेरम्बः शिवपुत्रस्त्वं
विघ्नेशोऽनाथबांधवः ॥ ८॥
नागाननो भक्तपालो वरदस्त्वं दयां
कुरु ।
सिन्दूरवर्णः परशुहस्तस्त्वं
विघ्ननाशकः ॥ ९॥
विश्वास्यं मङ्गलाधीशं विघ्नेशं
परशूधरम् ।
दुरितारिं दीनबन्धूं सर्वेशं त्वां
जना जगुः ॥ १०॥
नमामि विघ्नहर्तारं वन्दे
श्रीप्रमथाधिपम् ।
नमामि एकदन्तं च दीनबन्धू नमाम्यहम्
॥ ११॥
नमनं शम्भुतनयं नमनं करुणालयम् ।
नमस्तेऽस्तु गणेशाय स्वामिने च
नमोऽस्तु ते ॥ १२॥
नमोऽस्तु देवराजाय वन्दे गौरीसुतं
पुनः ।
नमामि चरणौ
भक्त्या भालचन्द्रगणेशयोः ॥ १३॥
नैवास्त्याशा च मच्चित्ते
त्वद्भक्तेस्तवनस्यच ।
भवेत्येव तु मच्चित्ते ह्याशा च तव
दर्शने ॥ १४॥
अज्ञानश्चैव मूढोऽहं ध्यायामि चरणौ
तव ।
दर्शनं देहि मे शीघ्रं जगदीश कृपां
कुरु ॥ १५॥
बालकश्चाहमल्पज्ञः सर्वेषामसि
चेश्वरः ।
पालकः सर्वभक्तानां भवसि त्वं गजानन
॥ १६॥
दरिद्रोऽहं भाग्यहीनः मच्चित्तं
तेऽस्तु पादयोः ।
शरण्यं मामनन्यं ते कृपालो देहि
दर्शनम् ॥ १७॥
इदं गणपतेस्तोत्रं यः
पठेत्सुसमाहितः ।
गणेशकृपया ज्ञानसिध्धिं स लभते धनम्
॥ १८॥
पठेद्यः सिद्धिदं स्तोत्रं देवं
सम्पूज्य भक्तिमान् ।
कदापि बाध्यते भूतप्रेतादीनां न
पीडया ॥ १९॥
पठित्वा स्तौति यः स्तोत्रमिदं
सिद्धिविनायकम् ।
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति न भवेदनृतं
वचः
गणेशचरणौ नत्वा ब्रूते भक्तो
दिवाकरः ॥ २०॥
इति श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् ।
॥ श्रीसिद्धिविनायकार्पणमस्तु ॥
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