विनायक स्तुति

विनायक स्तुति 

विनायक स्तुति - घर में आने वाली बाधाओ, बच्चों के रोग के निवारण, सुख शांति, उन्नति, प्रगति तथा प्रत्येक क्षेत्र में इसका नियमित पाठ सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यहाँ भगवान् विनायक की दो स्तुति १. वाराह पुराण अध्याय २३(भावार्थ सहित) २. श्रृङ्गेरि श्रीजगद्गुरु श्रीसच्चिदानन्दशिवाभिनवनृसिंह-भारतीस्वामि विरचित विनायक स्तुति पाठकों के लाभार्थ दिया जा रहा है।  

विनायक स्तुति

श्रीविनायकस्तुतिः

वाराह पुराण अध्याय २३ राजा प्रजापाल ने महामुनि महातपा से गणेशजी (विनायक) की उत्पत्ति के विषय में पूछे जाने पर उत्पत्ति तथा श्रीविनायक स्तुति को कहा है।

श्रीविनायकस्तुतिः

देवा ऊचुः -

नमस्ते गजवक्त्राय नमस्ते गणनायक ।

विनायक नमस्तेऽस्तु नमस्ते चण्डविक्रम ॥ १॥

नमोऽस्तु ते विघ्नहर्त्रे नमस्ते सर्पमेखल ।

नमस्ते रुद्रवक्त्रोत्थ प्रलम्बजठराश्रित ॥ २॥

सर्वदेवनमस्कारादविघ्नं कुरु सर्वदा ॥ ३॥

॥ श्रीविनायकस्तुतिः फलश्रुतिः ॥

एवं स्तुतस्तदा देवैर्महात्मा गणनायकः ।

अभिषिक्तस्तु रुद्रेण सोमायाऽपत्यताङ्गतः ॥ ४॥

एतच्चतुर्थ्यां सम्पन्नं गणाध्यक्षस्य पार्थिवः ।

यतस्ततोऽयं महतिं तिथीनां परमा तिथिः ॥ ५॥

एतस्यां यस्तिलान् भुक्त्वा भक्त्या गणपतिं नृप ।

आराधयति तस्याशु तुष्यते नाऽत्र संशयः ॥ ६॥

यश्चैतत्पठते स्तोत्रं यश्चैतच्छृणुयात्सदा ।

न तस्य विघ्ना जायन्ते न पापं सर्वथा नृप ॥ ७॥

॥ इति श्रीवाराहमहापुराणे विनायकोत्पत्तिर्नाम त्रयोविंशोऽध्याये श्रीविनायकस्तुतिः समाप्ता ॥

श्रीविनायकस्तुतिः भावार्थ सहित

देवा ऊचुः -

नमस्ते गजवक्त्राय नमस्ते गणनायक ।

विनायक नमस्तेऽस्तु नमस्ते चण्डविक्रम ॥ १॥

देवता बोले-गजानन ! आप गणों के स्वामी हैं। आपका एक नाम विनायक है। आप प्रचण्ड पराक्रमी हैं। आपको हमारा निरन्तर नमस्कार है।

नमोऽस्तु ते विघ्नहर्त्रे नमस्ते सर्पमेखल ।

नमस्ते रुद्रवक्त्रोत्थ प्रलम्बजठराश्रित ॥ २॥

भगवन्! विघ्न दूर करना आपका स्वभाव है। आप सर्प की मेखला पहनते हैं। भगवान् शंकर के मुख से आपका प्रादुर्भाव हुआ है। लम्बे पेट से आपकी आकृति उद्भासित होती है।

सर्वदेवनमस्कारादविघ्नं कुरु सर्वदा ॥ ३॥

हम सम्पूर्ण देवता आपको प्रणाम करते हैं। आप हमारे सभी विघ्न सदा के लिये शान्त कर दें।

॥ श्रीविनायकस्तुति फलश्रुति ॥

एवं स्तुतस्तदा देवैर्महात्मा गणनायकः ।

अभिषिक्तस्तु रुद्रेण सोमायाऽपत्यताङ्गतः ॥ ४॥

राजन्! जब इस प्रकार भगवान् रुद्र ने महान् पुरुष श्रीगणेशजी का अभिषेक कर दिया और देवताओं द्वारा उनकी स्तुति सम्पन्न हो गयी, तब वे भगवती पार्वती के पुत्र के रूप में शोभा पाने लगे।

एतच्चतुर्थ्यां सम्पन्नं गणाध्यक्षस्य पार्थिवः ।

यतस्ततोऽयं महतिं तिथीनां परमा तिथिः ॥ ५॥

गणाध्यक्ष गणेशजी की (जन्म एवं अभिषेक आदि) सारी क्रियाएँ चतुर्थी तिथि के दिन ही सम्पन्न हुई थीं। अतएव तभी से यह तिथि समस्त तिथियों में परम श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त हुई।

एतस्यां यस्तिलान् भुक्त्वा भक्त्या गणपतिं नृप ।

आराधयति तस्याशु तुष्यते नाऽत्र संशयः ॥ ६॥

राजन्! जो भाग्यशाली मानव इस तिथि को तिलों का आहार कर भक्तिपूर्वक गणपति की आराधना करता है, उस पर वे अत्यन्त शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं इसमें कोई संशय नहीं है।

यश्चैतत्पठते स्तोत्रं यश्चैतच्छृणुयात्सदा ।

न तस्य विघ्ना जायन्ते न पापं सर्वथा नृप ॥ ७॥

महाराज! जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पठन अथवा श्रवण करता है, उसके पास विघ्न कभी नहीं फटकते और न उसके पास लेशमात्र पाप ही शेष रह जाता है।

॥ इति श्रीवाराहमहापुराणे विनायकोत्पत्तिर्नाम त्रयोविंशोऽध्याये श्रीविनायकस्तुतिः समाप्ता ॥

श्रीविनायक स्तुतिः

(श्रीकालटिक्षेत्रे)

अश्वत्थोऽयं प्रपञ्चो न हि खलु सुखलेशोऽप्यत्र तस्माज्जिहास्यो

लोका इत्यादरेण प्रणतभयहरो वारणाग्र्यास्य एषः ।

बोधायैव स्वयं किं वसति दृढतराश्वत्थमूले कृपालु-

र्नाहं जानामि यूयं वदत बुधवराः किं तथा वान्यथा वा ॥

इति श्रृङ्गेरि श्रीजगद्गुरु श्रीसच्चिदानन्दशिवाभिनवनृसिंह-

भारतीस्वामिभिः विरचिता विनायकस्तुतिः सम्पूर्णा ।

विनायक स्तुति समाप्त।

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