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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीगणपति स्तोत्र
भगवान श्री गणेश की कृपा यदि साधक
पर हो जाय तो हर बिगड़ी कार्य पल में ही हो जाता है क्योंकि वें संकटमोचक विघ्नहरण
कहलाते हैं अतः विनायक को प्रसन्न करने के लिए श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचित गणपतिस्तोत्रं का पाठ नित्य करें।
श्रीगणपतिस्तोत्रम् गीतिपूर्वं
सुमुख प्रथम स्वनामगायकपालक
सेवकमङ्गलकारक ।
कामसुपूरक मङ्गलकारक,
त्राहि विनायक भाविकतारक ॥ १॥
सिन्दूरलेपक मोदकभक्षक,
दुर्जनशिक्षक निजजनवीक्षक ।
अङ्कुशधारक जगदुद्धारक,
लोकविधारक संहारकारक ॥ २॥
अशेषकारक शक्तिविधारक,
मूषकवाहक सुरदरदाहक ।
कलौ सुतारक त्वं हि विनायक,
पालक सेवकमखिलाकहारक ॥ ३॥
करुणारससम्पूर्णकटाक्षामलवीक्षणैः ।
योऽनुगृह्णाति भक्तान्स प्रसन्नः
सुमुखः स्मृतः ॥ ४॥
ये परित्यज्य विहितं निषिद्धं
प्रचरन्ति ते ।
वक्रास्तानतुण्डत्येष वक्रतुण्डः
प्रकीर्तितः ॥ ५॥
प्रथमं मङ्गलायैव गणेशः स्मर्यते
बुधैः ।
सर्वदेवार्चितत्वात्स गणेशः प्रथमः
स्मृतः ॥ ६॥
स्मरणान्निजभक्तानां
सर्वविघ्नान्निवार्य यः ।
कामान् पूरयति क्षिप्रं गणेशः
कामपूरकः ॥ ७॥
निवार्यामङ्गलान्याशु
स्मरणाद्गणनायकः ।
करोति मङ्गलान्येष ततो मङ्गलकारकः ॥
८॥
इन्द्रादीनां तु देवानां विविधा
नायकाः खलु ।
न नायको गणेशस्य कोऽप्यतोऽसौ
विनायकः ॥ ९॥
इति श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं
गीतिपूर्वं गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
श्रीगणपति स्तोत्रम् २
द्विरदानन
विघ्नकाननज्वलन त्वं प्रथमेशनन्दन ।
मदनपतिमाखुवाहन
ज्वलनाभासितपिङ्गलोचन ॥ १॥
अहिबन्धन रक्तचन्दन
प्रियदूर्वाङ्कुरभारपूजन ।
शशिभूषण भक्तपालन ज्वलनाक्षाऽव
निजान्निजावन ॥ २॥
विविधामरमत्र्यनायकः प्रथितस्त्वं
भुवने विनायकः ।
तव कोऽपि हि नैव नायकस्तत एव त्वमजो
विनायक ॥ ३॥
बलिनिग्रह ईश
केशवस्त्रिपुराख्यासुरनिग्रहे शिवः ।
जगदुद्भवनेऽब्जसम्भवः सकलान्जेतुमहो
मनोभवः ॥ ४॥
महिषासुरनिग्रहे शिवा भवमुक्त्यै
मुनयो धृताशिवाः ।
यमपूजयदिष्टसिद्धये वरदो मे भव
चेष्टसिद्धये ॥ ५॥
गजकर्णक मूषकस्थिते वरदे त्वय्यभये
हृदि स्थिते ।
जयलाभरमेष्टसम्पदाः खलु सर्वत्र
कुतो वदापदाः ॥ ६॥
सङ्कल्पितं कार्यमविघ्नमीश द्राक्सिद्धिमायातु
ममाखिलेश ।
पापत्रयं मे हर सन्मतीश तापत्रयं मे
हर शान्त्यधीश ॥ ७॥
गणाधीशो धीशो हरिहरविधीशोऽभयकरो
गुणाधीशो धीशो विजयत उमाहृत्सुखकरः
।
बुधाधीशो नीशो निजभजकविघ्नौघहरको
मुदाधीशो पीशो यशस उभयर्धेश्च शरणम्
॥ ८॥
इति श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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