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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीगणपतिस्तोत्रम् समन्त्रकम्
इससे पूर्व आपने
श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचित
गणपतिस्तोत्रं पढ़ा। अब यहाँ श्रीवासुदेवानन्द सरस्वती विरचित ही भगवान श्री गणेश का मंत्रमय श्रीगणपतिस्तोत्रम्
समन्त्रकम् पढेंगे। इस स्तोत्र के पाठ से
श्री गणेश मन्त्र शीघ्र ही फल देता है।
श्रीगणपतिस्तोत्रम् समन्त्रकम्
नमो गणपतये तुभ्यं ज्येष्ठ
ज्येष्ठाय ते नमः ।
स्मरणाद्यस्य ते विघ्ना न तिष्ठन्ति
कदाचन ॥ १॥
देवानां चापि देवस्त्वं ज्येष्ठराज
इति श्रुतः ।
त्यक्त्वा त्वामिह कः कार्य-सिद्धिं
जन्तुर्गमिष्यति ॥ २॥
स त्वं गणपतिः प्रीतो भव
ब्रह्मादिपूजित ॥
चरणस्मरणात्तेऽपि ब्रह्माद्या
यशस्विनः ॥ ३॥
परा परब्रह्मदाता सुराणां त्वं सुरो
यतः ।
सन्मतिं देहि मे ब्रह्मपते
ब्रह्मसमीडित ॥ ४॥
उक्तं हस्तिमुखश्रुत्या त्वं ब्रह्म
परमित्यपि ।
कृतं वाहनमाखुस्ते कारणन्त्वत्र वेद
नो ॥ ५॥
इयं महेश ते लीला न पस्पर्श यतो
मतिः ।
त्वां न हेरम्ब कुत्रापि
परतन्त्रत्वमीश ते ॥ ६॥
स त्वं कवीनां च कविर्देव आद्यो
गणेश्वरः ।
अरविन्दाक्ष विद्येश प्रसन्नः
प्रार्थनां श्रृणु ॥ ७॥
त्वमेकदन्त विघ्नेश देव
श्रृण्वर्भकोक्तिवत् ।
सत्कवीनां मध्य एव नैकाण्वंश कविं
कुरु ॥ ८॥
श्रीविनायक ते दृष्ट्या कोऽपि नूनं
भवेत्कविः ।
तं त्वामुमासुतं नौमि सन्मतिप्रद
कामद ॥ ९॥
ममापराधः क्षन्तव्यो नतिभिः
सम्प्रसीद मे ।
न नमस्यविधिं जाने त्वं प्रसीदाद्य
केवलम् ॥ १०॥
न मे श्रद्धा न मे भक्तिर्न
त्वदर्चनपद्धतिः ।
ज्ञाता वदान्य ते स्मीति ब्रुवे
साधनवर्जितः ॥ ११॥
कर्तुं स्तवं च तेऽनीशः प्रसीद
कृपयोद्धर ।
प्रणामं कुर्वेऽतोऽनेन सदानन्द
प्रसीद मे ॥ १२॥
श्रीगणपतिस्तोत्रम् समन्त्रकम् मन्त्राद्याक्षरसहित
गणानां त्वा गणपतिर्ठ. हवामहे कविं
कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत
आ नः श्रृण्वन्नूतिभिस्सीद सादनम् ॥
नमो ग णपतये तुभ्यं ज्येष्ठ ज्ये
ष्ठाय ते नमः ।
स्मर णा द्यस्य ते विघ्ना न ति ष्ठ
न्ति कदाचन ॥ १॥
देवा नां चापि देवस्त्वं ज्येष्ठराज
इति श्रुतः ।
त्यक्त्वा त्वा मिह कः
कार्य-सिदिन्ध जं तुर्गमिष्यति ॥ २॥
स त्वं ग णपतिः प्रीतो भव ब्र
ह्मादिपूजित ।
चर ण स्मरणात्तेऽपि ब्र ह्मा द्या
यशस्विनः ॥ ३॥
परा प रब्रह्मदाता सुरा णां त्वं
सुरो यतः ।
सन्म तिं देहि मे ब्रह्मपते ब्र
ह्मसमीडित ॥ ४॥
उक्तं ह स्तिमुखश्रुत्या त्वं ब्र
ह्म परमित्यपि ।
कृतं वा हनमाखुस्ते कार ण न्त्वत्र
वेद नो ॥ ५॥
इयं म हेश ते लीला न प स्पर्श यतो
मतिः ।
त्वां न हे रम्ब कुत्रापि पर त
न्त्रत्वमीश ते ॥ ६॥
स त्वं क वीनां च कवि-र्देव आ द्यो
गणेश्वरः ।
अर विं दाक्ष विद्येश प्रसं नः
प्रार्थनां श्रृणु ॥ ७॥
त्वमे क दन्त विघ्नेश देव
श्रृण्वर्भकोक्तिवत् ।
सत्क वी नां मध्य एव नैका ण्वं श
कविं कुरु ॥ ८॥
श्रीवि ना यक ते दृष्ट्या कोऽपि नू
नं भवेत्कविः ।
तं त्वा मु मासुतं नौमि सन्म ति
प्रद कामद ॥ ९॥
ममा प राधः क्षन्तव्यो नति भिः
सम्प्रसीद मे ।
न न म स्यविधिं जाने त्वं प्र सी
दाद्य केवलम् ॥ १०॥
न मे श्र द्धा न मे भक्तिर्न त्व द
र्चनपद्धतिः ।
ज्ञाता व दान्य ते स्मीति ब्रुवे सा
धनवर्जितः ॥ ११॥
कर्तुं स्त वं च तेऽनीशः प्रसी द
कृपयोद्धर ।
प्रणा मं कुर्वेऽतोऽनेन सदा नं द
प्रसीद मे ॥ १२॥
इति श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं समन्त्रकं श्रीगणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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