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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
भद्रकाली स्तुति
भगवती भद्रकाली का दर्शन करके परशुरामजी ने अपने सभी शस्त्र-अस्त्रों का परित्याग कर दिया था और देवी के चरणों में
प्रणाम करके फिर उसकी भली भांति स्तुति की थी।
भद्रकाली स्तवन
भद्रकाली स्तुति
परशु राम उवाच
नमोस्तु ते शङ्करवल्लभायै जगत्सवित्र्यै
समलङ्कृतायै ॥ २,३९.३५ ॥
परशु राम ने कहा-आप तो भगवान् शङ्कर
की प्रियबल्लभा हैं और इस सम्पूर्ण जगत् को जन्म देने वाली हैं। आपके लिए मेरा
नमस्कार है ।३५
नानाविभूषाभिरिभारिगायै
प्रपन्नरक्षाविहितोद्यमायै ।
दक्षप्रसूत्यै हिमवद्भवायै महेश्वरार्द्धङ्गसमास्थितायै
॥ २,३९.३६ ॥
आप विविध प्रकार के आभूषणों से
समलंकृता हैं और इभारि के द्वारा गान की गयी हैं। आपकी शरणागति में प्रपन्न हो
जाते हैं उनकी सुरक्षा के लिये आप उद्यम करने वाली हैं। आपने प्रजापति दक्ष के घर
में जन्म धारण किया है और हिमवान् के यहाँ भी आप समुत्पन्न हुई हैं। आप साक्षात्
महेश्वर की पाणिपरिणीता प्रिय पत्नी बनकर उनके अर्धाङ्ग में समास्थित हुई है।३६।
काल्यै कलानाथकलाधरायै भक्तप्रियायै
भुवनाधिपायै ।
ताराभिधायै शिवतत्परायै
गणेश्वराराधितपादुकायै ॥ २,३९.३७
॥
आप कला नाथ की कला के धारण करने
वाली है-अपने भक्तों की प्रिय काली हैं और समस्त भुवनों की स्वामिनी हैं। तारा
नाम वाली हैं-भगवान् शिव को सेवा में सर्वदा तत्पर रहा करती हैं और
विश्वेश्वर गणेश आपकी पादुकाओं का समाराधन किया करते हैं ।३७।
परात्परायै परमेष्ठिदायै
तापत्रयोन्मूलनचिन्तनायै ।
जगद्धितायास्तपुरत्रयायै बालादिकायै
त्रिपुराभिधायै ॥ २,३९.३८ ॥
आप पर से भी परा हैं-परमेष्ठी के पद
को प्रदान करने वाली हैं और आध्यात्मिक-आधिदैविक-आधिभौतिक-इन तीनों प्रकार के
तापों का उन्मूलन करने वाला आपका चिन्तन हुआ करता है इस जगत् के हित के लिए ही
आपने त्रिपुरासुर को निहत किया था। बाला से आदि लेकर अनेक आपके शुभ नाम हैं
तथा आपका परम शुभ त्रिपुरा-यह भी नाम है। ऐसी आपके लिये मेरा प्रणाम है
।३८।
समस्तविद्यासुविलासदायै जगज्जनन्यै
निहिताहितायै ।
बकाननायै बहुसाख्यदायै
विध्वस्तनानासुरदान्वायै ॥ २,३९.३९
॥
आप समस्त विद्याओं के सुविलास के
प्रदान करने वाली हैं-इस सम्पूर्ण जगत् के जनन देने वाली जननी हैं आप अहित करने
वाले शत्रुओं को निहत कर देने वाली हैं-आप बकानना है अर्थात् बगुलामुखी हैं
आपके अनेक असुरों और दानवों का निहनन किया है और अत्यधिक सौख्य प्रदान किया है ।३९।
वराभयालङ्कृतदोर्लतायै
समस्तगीर्वाणनमस्कृतायै ।
पीतांबरायै पवनाशुगायै शुभप्रदायै
शिवसंस्तुतायै ॥ २,३९.४० ॥
आपके कर कमलों में वरदान और अभयदान
रहते हैं और इनसे आपकी भुजलताएं भूषित रहा करती हैं-समस्त देवगणों के द्वारा आपके
चरण कमल वन्दित हैं-आप पीताम्बरा अर्थात् पीतवर्ण के वस्त्र धारण करने वाली हैं-आप
पवन के ही समान अपने भक्तों की पीड़ा दूर करने के लिये शीघ्र गमन करने वाली
हैं-आपका संस्तवन भगवान् शङ्कर भी किया करते हैं तथा आप आप सबको शुभ प्रदान करने
वाली हैं-ऐसी आपकी चरण सेवा में मेरा अनेक बार प्रणिपात है।४०।
नागारिगायै नवखण्डपायै नीलाचलाभां
गलसत्प्रभायै ।
लघुक्रमायै ललिताभिधायै लेखाधिपायै
लवणाकरायै ॥ २,३९.४१ ॥
आप नागारि के द्वारा गान की गयी
हैं-नब खण्डों वाले विश्व का पालन एवं रक्षण करने वाली हैं तथा नीलाचल की आभा वाले
अंगों की प्रभा से शोभित हैं। आप लधुक्रमा-ललिता नाम धारिणीलेखाधिपा और
लवणाकारा हैं-४१॥
लोलेक्षणायै लयवर्जितायै
लाक्षारसालङ्कृतपङ्कजायै ।
रमाभिधायै रतिसुप्रियायै रोगापहायै
रचिताखिलायै ॥ २,३९.४२ ॥
आपके नेत्र परमाधिक चञ्चल हैं आप लय
से वर्जित हैं और आपके चरणों में लाक्षारस लगा हुआ है जिससे आपके चरण कमल समलंकृत
हैं। आपका शुभ नाम रमा है-आप सुरति से प्यार करने वाली हैं-आप सभी रोगों का
अपहरण करने वाली हैं और आपने ही सबकी रचना की है-ऐसी आपके लिए मेरा प्रणाम निवेदित
है ।४२। l
राज्यप्रदायै रमणोत्सुकायै
रत्नप्रभायै रुचिरांबरायै ।
नमो नमस्ते परतः
पुरस्तात्पार्श्वाधरोर्ध्वं च नमो नमस्ते ॥ २,३९.४३ ॥
आप राज्य के प्रदान करने वाली हैं-
आप रमण करने के लिए परम समुत्सुक रहा करती है-आपकी रत्नों के सदृश प्रभा है और आप
रुचिर वस्त्रों के परिधान करने वाली हैं-ऐसी आपके लिए बारम्बार मेरा नमस्कार
है।४३।
सदा च सर्वत्र नमो नमस्ते नमो
नमस्तेऽखिलविग्रहायै ।
प्रसीद देवेशि मम प्रतिज्ञां पुरा
कृतां पालय भद्रकालि ॥ २,३९.४४ ॥
आपकी सेवा में मेरा सदा और सर्वत्र
अनेक बार नमस्कार है। आप समस्त प्रकार के शरीर को धारण करने वाली हैं। आपकी सेवा
में बारम्बार प्रणिपात है। हे देवेशि ! आप मेरे ऊपर अनुकम्पा करके प्रसन्न हो जाइए
और हे भद्रकालि ! मैंने जो समग्र भूमि को क्षत्रियों से हीन कर देने की पहिले
प्रतिज्ञा की है उसको परिपूर्ण करा दीजिए।४४।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
जगत्त्रयस्यापि नमो नमस्ते ।॥ २,३९.४५
॥
आप ही मेरी माता-पिता हैं और मेरी
ही क्या इन तीन जगतों की माता हैं और आप ही पिता हैं-ऐसी आपके चरणों में मेरा
बार-बार प्रणाम निवेदित है।
इति श्रीब्रह्माण्डे महापुराणे वायुप्रोक्ते मध्यभागे तृतीय उपोद्धातपादे भार्गवचरिते भद्रकाली स्तुति एकोनचत्वारिंशत्तमोऽध्यायः ॥ ३९॥
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