भद्रकाली स्तुति
भद्र अर्थात् अच्छा या सभ्य या सज्जन । भद्रकाली अर्थात् काली माता का ऐसा स्वरूप जो सौम्य है, सरल है,जो पूर्ण सात्विक है । इससे पूर्व में आपने माता काली के रौद्र स्वरूप गुह्याकाली व कामकलाकाली के विषय में पढ़ा । अब यहाँ माँ काली के अति सौम्य माँ भद्रकाली की स्तुति दिया जा रहा है। इस स्तुति से साधक बड़ी आसानी से माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। किसी भी स्तुति या पाठ को यदि समझते हुए किया जाय तो शीघ्रता से लाभ होता है अतः पाठकों के लाभार्थ यहाँ हिन्दी भावार्थ सहित भद्रकाली स्तुति दिया जा रहा है।
अथ भद्रकाली स्तुति
ब्रह्मविष्णु
ऊचतुः -
नमामि त्वां
विश्वकर्त्रीं परेशीं
नित्यामाद्यां
सत्यविज्ञानरूपाम् ।
वाचातीतां
निर्गुणां चातिसूक्ष्मां
ज्ञानातीतां
शुद्धविज्ञानगम्याम् ॥ १॥
ब्रह्मा और विष्णु बोले--सर्वसृष्टिकारिणी, परमेश्वरी, सत्यविज्ञान- रूपा, नित्या, आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते हैं । आप वाणी से परे हैं, निर्गुण और अति सूक्ष्म हैं, ज्ञान से परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं ॥ १॥
पूर्णां
शुद्धां विश्वरूपां सुरूपां
देवीं
वन्द्यां विश्ववन्द्यामपि त्वाम् ।
सर्वान्तःस्थामुत्तमस्थानसंस्था-
मीडे कालीं
विश्वसम्पालयित्रीम् ॥ २॥
आप पूर्णा,
शुद्धा, विश्वरूपा, सुरूपा वन्दनीया तथा विश्ववन्द्या हैं । आप सबके अन्तःकरण में
वास करती हैं एवं सारे संसार का पालन करती हैं । दिव्य स्थाननिवासिनी आप भगवती
महाकाली को हमारा प्रणाम है ॥ २॥
मायातीतां
मायिनीं वापि मायां
भीमां श्यामां
भीमनेत्रां सुरेशीम् ।
विद्यां
सिद्धां सर्वभूताशयस्था-
मीडे कालीं
विश्वसंहारकर्त्रीम् ॥ ३॥
महामायास्वरूपा
आप मायामयी तथा माया से अतीत हैं, आप भीषण, श्यामवर्णवाली, भयंकर नेत्रों वाली परमेश्वरी हैं । आप सिद्धियों से
सम्पन्न,
विद्यास्वरूपा, समस्त प्राणियों के हृदयप्रदेश में निवास करनेवाली तथा
सृष्टि का संहार करनेवाली हैं, आप महाकाली को हमारा नमस्कार है ॥ ३॥
नो ते रूपं
वेत्ति शीलं न धाम
नो वा ध्यानं
नापि मन्त्रं महेशि ।
सत्तारूपे
त्वां प्रपद्ये शरण्ये
विश्वाराध्ये
सर्वलोकैकहेतुम् ॥ ४॥
महेश्वरी ! हम
आपके रूप,
शील, दिव्य धाम, ध्यान अथवा मन्त्र को नहीं जानते । शरण्ये ! विश्वाराध्ये! हम सारी सृष्टि की कारणभूता और
सत्तास्वरूपा आपकी शरण में हैं ॥ ४॥
द्यौस्ते
शीर्षं नाभिदेशो नभश्च
चक्षूंषि ते
चन्द्रसूर्यानलास्ते ।
उन्मेषास्ते
सुप्रबोधो दिवा च
रात्रिर्मातश्चक्षुषोस्ते
निमेषम् ॥ ५॥
मातः !
द्युलोक आपके सिर है, नभोमण्डल आपका नाभिप्रदेश है । चन्द्र,
सूर्य और अग्नि आपके त्रिनेत्र हैं,
आपका जगना ही सृष्टि के लिये दिन और जागरण का हेतु है और
आपका आँखें मूँद लेना ही सृष्टिके लिये रात्रि है ॥ ५॥
वाक्यं देवा
भूमिरेषा नितम्बं
पादौ गुल्फं
जानुजङ्घस्त्वधस्ते ।
प्रीतिर्धर्मोऽधर्मकार्यं
हि कोपः
सृष्टिर्बोधः
संहृतिस्ते तु निद्रा ॥ ६॥
देवता आपकी
वाणि हैं,
यह पृथ्वी आपका नितम्बप्रदेश तथा पाताल आदि नीचे के भाग
आपके जङ्घा, जानु,
गुल्फ और चरण हैं । धर्म आपकी प्रसन्नता और अधर्मकार्य आपके
कोप के लिये
अग्निर्जिह्वा
ब्राह्मणास्ते मुखाब्जं
सन्ध्ये द्वे
ते भ्रूयुगं विश्वमूर्तिः ।
श्वासो
वायुर्बाहवो लोकपालाः
क्रीडा सृष्टिः
संस्थितिः संहृतिस्ते ॥ ७॥
अग्नि आपकी
जिह्वा है, ब्राह्मण आपके मुखकमल हैं । दोनों सन्ध्याएँ आपकी दोनों भ्रूकुटियाँ हैं, आप विश्वरूपा हैं, वायु आपका श्वास है, लोकपाल आपके बाहु हैं और इस संसार की
एवंभूतां देवि
विश्वात्मिकां त्वां
कालीं वन्दे
ब्रह्मविद्यास्वरूपाम् ।
मातः पूर्णे
ब्रह्मविज्ञानगम्ये
दुर्गेऽपारे
साररूपे प्रसीद ॥ ८॥
पूर्णे! ऐसी
सर्वस्वरूपा आप महाकाली को हमारा प्रणाम है । आप
इति
श्रीमहाभागवते महापुराणे ब्रह्मविष्णुकृता भद्रकालीस्तुतिः सम्पूर्णा ।
इस प्रकार
श्रीमहाभागवतपुराण के अन्तर्गत ब्रह्मा और विष्णु द्वारा की गयी भद्रकाली स्तुति
सम्पूर्ण हुई।
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