भद्रकाली अष्टकं
वैरिनाशक भद्रकाली अष्टकं माँ
भद्रकाली को समर्पित एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें देवी के सौम्य तथा भयानक
रूपों, शक्तियों और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। इसका
नियमित पाठ करने से अष्टसिद्धि और मुक्ति प्राप्त होता है।
भद्रकाली अष्टकम्
Bhadrakali ashtakam
श्रीभद्रकाल्यष्टकम्
भद्रकाली अष्टक
वैरिनाशक भद्रकाली अष्टकम्
घोरे संसारवह्नौ प्रलयमुपगते या हि
कृत्वा श्मशाने
नृत्यत्यन्यूनशक्तिर्जगदिदमखिलं
मुण्डमालाभिरामा ।
भिद्यद्ब्रह्माण्डभाण्डं
पटुतरनिनदैरट्टहासैरुदारैः
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा भद्रदा भद्रकाली ॥ १॥
भयंकर प्रलय अग्नि में जब सारा जगत नष्ट
हो जाता है, तब जो तीव्र गर्जनाओं से ब्रह्मांड
को चीरते हुए, अनंत शक्ति से श्मशान में नृत्य करने वाली और मुंडों की माला धारण
करने के कारण जो बहुत ही सुंदर लग रही है। वह कल्याण करने वाली माँ भद्रकाली हमारे
शत्रु वर्ग को तुरंत शांत करें।
मग्ने लोकेऽम्बुराशौ नलिनभवनुता
विष्णुना कारयित्वा
चक्रोत्कृत्तोरुकण्ठं मधुमपि भयदं
कैटभं चातिभीमम् ।
पद्मोत्पत्तेः प्रभूतं भयमुत
रिपुतोयाहरत्सानुकम्पा
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा भद्रदा भद्रकाली ॥ २॥
जब संसार जलप्रलय में डूब रहा था, तब
जिनकी प्रेरणा से भगवान विष्णु ने अत्यंत भीमकाय और भयावह मधु और कैटभ दैत्यों की
उरु (जांघ) और कंठ (गर्दन) चक्र द्वारा काटकर वध किया गया था,
ब्रह्माजी को भयमुक्त करने वाली, दैत्यों का नाश और भक्तों पर
अनुग्रह करने वाली, कल्याण करने वाली माँ भद्रकाली मेरे सारे शत्रुओं का नाश करें।
विश्वत्राणं विधातुं महिषमथ राणे
याऽसुरं भीमरूपं
शूलेनाहत्य वक्षस्यमरपतिनुता
पातयन्ती च भूमौ ।
तस्यासृग्वाहिनीभिर्जलनिधिमखिलं
शोणिताभं च चक्रे
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा
भद्रदा भद्रकाली ॥ ३॥
जगत् की रक्षा के लिए जिन्होंने महिषासुर
जैसे महाभयंकर असुर का शूल से ह्रदय विदीर्णकर मार डाला, जिनके रक्त वाहिकाओं से संपूर्ण जलकुंड
(समुद्र) को रक्त के समान लाल हो गया । दुष्टों को भय देनेवाली और सत्जनों को अभय
करनेवाली माँ भद्रकाली मेरे सारे शत्रुओं का शीघ्र ही नाश करें।
या देवी चण्डमुण्डौ
त्रिभुवननलिनीवारणौ देवशत्रू
दृष्ट्वा युद्धोत्सवे तौ
द्रुततरमभियातासिना कृत्तकण्ठौ ।
कृत्वा तद्रक्तपानोद्भवमदमुदिता
साट्टहासातिभीमा
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा भद्रदा भद्रकाली ॥ ४॥
त्रिभुवन को आनंद देने वाली, अपने
खड्ग से देवताओं के शत्रु चंड और मुंड राक्षसों का गर्दन काटकर वध करने वाली और उनके
रक्तपान से उत्पन्न मद से आनंदित, अट्टहास करती
हुई और अति भयंकर देवी भद्रकाली मेरे सारे शत्रुओं का शीघ्र ही नाश करें और कल्याण
करें।
सद्यस्तं रक्तबीजं समरभुवि नता घोररूपानसङ्ख्यान्
राक्तोद्भूतैरसङ्ख्यैर्गजतुरगरथैस्सार्थमन्यांश्च
दैत्यान् ।
वक्त्रे निक्षिप्य दष्ट्वा
गुरुतरदशनैरापपौ शोणितौघं
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा
भद्रदा भद्रकाली ॥ ५॥
जिन्होंने युद्ध में रक्तबीज नामक राक्षस
का संहार किया, जिनके रक्तबूंद से उत्पन्न असंख्य
घोर रूपवाले हाथियों, घोड़ों और रथों सहित अन्य दानवों को
अपने मुख में समाहित कर लिया है और उनके रक्त को पी गई, कल्याण करने वाली वह माँ भद्रकाली
मेरे सारे शत्रुओं को शीघ्र शांत करें।
स्थानाद्भ्रष्टैश्च
देवैस्तुहिनगिरितटे सङ्गतैस्संस्तुता या
सङ्ख्याहीनैस्समेतं
त्रिदशरिपुगणैस्स्यन्दनेभाश्वयुक्तैः ।
युद्धे शुम्भं निशुम्भं
त्रिभुवनविपदं नाशयन्ती च जघ्ने
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा
भद्रदा भद्रकाली ॥ ६॥
स्वर्ग से निष्कासित देवताओं ने हिमालय
पर जिनकी स्तुति की, तब उन प्रसन्न देवी
ने युद्ध में रथों, हाथियों और घोड़ों से सुसज्जित शत्रुओं
की असंख्य सेनाएँ सहित शुम्भ और निशुम्भ का वध कर तीनों लोकों के संकट का नाश
किया। वह कल्याण करने वाली माँ भद्रकाली मेरे सारे शत्रुओं का शीघ्र ही नाश करें।
शम्भोर्नेत्रानले या जननमपि
जगत्त्राणहेतोरयासीत्
भूयस्तीक्ष्णातिधाराविदलितदनुजा दारुकं चापि
हत्वा ।
तस्यासृक्पानतुष्टा मुहुरपि
कृतवत्यट्टहासं कठोरं
सास्माकं वैरिवर्गं शमयतु तरसा
भद्रदा भद्रकाली ॥ ७॥
भगवान् शिव की तीसरी आँख से निकलने
वाली अग्नि ज्वाला से जगत की रक्षा के लिए जो शक्ति प्रगट हुई, जिन्होंने अपने अत्यंत
तीक्ष्ण शस्त्रों से अनेक राक्षसों और दारुक नामक राक्षस का वध किया और उनका रक्त
पीकर तृप्त होकर अत्यंत क्रूरता और कठोरता से हँसती हैं। वह देवी भद्रकाली मेरे
सारे शत्रुओं का शीघ्र ही नाश करें और मेरा कल्याण करें।
या देवी कालरात्री तुहिनगिरसुता लोकमाता
धरित्री
वणी निद्रा च मायामनसिजदयिता
घोररूपातिसौम्या ।
चामुण्डा खड्गहस्ता रिपुहननपरा
शोणितास्वादकामा
सा हन्याद्विश्ववन्द्या मम
रिपुनिवहा भद्रदा भद्रकाली ॥ ८॥
हे देवी कालरात्रि,
आप हिमालय की पुत्री, जगत की माता, पृथ्वी, वाणी, निद्रा, माया और कामदेव की प्रिया, चामुंडा, खड्गधारिणी, रक्त की प्यासी और शत्रु-विनाशिनी हैं, आप
भयंकर और सौम्य दोनों रूपों में पूजनीय हैं, शत्रुओं को भय
देनेवाली, कल्याण करने वाली वह देवी भद्रकाली मेरे सारे शत्रुओं का शीघ्र ही नाश करें।
भद्रकाली अष्टक फलश्रुति:
भद्रकाल्यष्टकं जप्यं
शत्रुसंक्षयकाङ्क्षिणा ।
स्वर्गापवर्गदं पुण्यं
दुष्टग्रहनिवारणम् ॥ ९॥
जो कोई भी इस भद्रकाल्यष्टक स्तोत्र
का जप करता है,उसके सारे शत्रुओं का नाश होता है।
यह स्तोत्र स्वर्ग, मोक्ष, पुण्य और
दुष्ट ग्रहों की शांति देनेवाला है।
इति श्रीभद्रकाल्यष्टकं सम्पूर्णम् ।

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