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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीदक्षिणकाली खड़्गमाला स्तोत्रम्
खड़्ग एक प्रकार का औजार है जो युद्ध
अर्थात् शत्रु संहार के काम आता है। ऐसा ही स्तोत्र है श्रीदक्षिणकाली खड़्गमाला
स्तोत्रम् । इसके पाठ से शत्रुओं का भय नहीं होता है और माँ दक्षिण काली स्वयं ही
अपने भक्त के सारे शत्रुओं का नाश कर देती है ।
माता कालिका के अनेक रूप हैं जिनमें से प्रमुख है- दक्षिण काली, शमशान काली, मातृ काली, महाकाली। इसके अलावा श्यामा काली, गुह्यकाली, अष्ट काली,कमाकलाकाली और भद्रकाली आदि अनेक रूप भी है। सभी रूपों की अलग अलग पूजा और उपासना पद्धतियां हैं।
अथ श्रीदक्षिणकाली खड़्गमाला स्तोत्रम्
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं ॐ
नमस्दक्षिणकालिके – हृदयदेवि शिरोदेवि
शिखादेवि कवचदेवि नेत्रदेवि अस्रदेवि सर्वसम्पतप्रदायकचक्रस्वामिनि जयासिद्धिमयि
अपराजितासिद्धिमयि नित्यासिद्धिमयि अघोरासिद्धिमयि सर्वमंगलमयचक्रस्वामिनि श्रीगुरुमयि
परमगुरुमयि परात्परगुरुमयि परमेष्ठिगुरुमयि सर्वसम्पतप्रदायकचक्रस्वामिनि
महादेव्याम्बामयि महदेवानन्दनाथमयि त्रिपुराम्बामयि त्रिपुरभैरवनाथमयि
ब्रह्मानन्दनाथमयि (पूर्वदेवानन्दनाथमयि चलाकिदानन्दनाथमयि लोचनानन्दनाथमयि
कुमारानन्दनाथमयि क्रोधानन्दनाथमयि वरदानानन्दनाथमयि स्मराद्विर्यानन्दनाथमयि
मायाम्बामयि मायावत्याम्बामयि विमलानन्दनाथमयि) कुशलानन्दनाथमयि भीमसुरानन्दनाथमयि
सुधाकरानन्दनाथमयि मीनानन्दनाथमयि गोरक्षकानन्दनाथमयि भोजदेवानन्दनाथमयि
देवानन्दनाथमयि प्रजापत्यानन्दनाथमयि मूलदेवानन्दनाथमयि ग्रन्थिदेवानन्दनाथमयि
विघ्नेश्वरानन्दनाथमयि हुताशनानन्दनाथमयि समरानन्दनाथमयि संतोषानन्दनाथमयि
सर्वसम्पतप्रदायकचक्रस्वामिनि कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले विरोधिनि
विप्रचित्ते उग्रे उग्रप्रभे दीप्ते नीले घने बलाके मात्रे मुद्रे मित्रे
सर्वेप्सितप्रदायकचक्रस्वमिनि ब्राह्मि नारायणि माहेश्वरि चामुण्डे कौमारि
अपराजिते वराहि नार्सिंहि त्रिलोक्यमोहनचक्रस्वमिनि असिताङ्गभैरवमयि रुरुभैरवमयि
चण्डभैरवमयि क्रोधभैरवमयि उन्मत्तभैरवमयि कपालिभैरवमयि भीषणभैरवमयि संहारभैरवमयि
सर्वसंक्षोभणचक्रस्वमिनि हेतुबटुकानन्दानाथमयि त्रिपुरान्तकबटुकानन्दानाथमयि
वेतालबटुकानन्दानाथमयि वह्निजिह्वबटुकानन्दानाथमयि कालबटुकानन्दानाथमयि
करालबटुकानन्दानाथमयि एकपादबटुकानन्दानाथमयि भीमबटुकानन्दानाथमयि
सर्वसौभग्यदायकचक्रस्वमिनि ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा
सिंहब्याघ्रमुखीयोगिनीदेवीमयि सर्पाखुमुखीयोगिनीदेवीमयि मृगमेषमुखीयोगिनीदेवीमयि
गजबाजिमुखीयोगिनीदेवीमयि क्रोष्टाखुमुखीयोगिनीदेवीमयि लम्बोदरीमुखीयोगिनीदेवीमयि
ह्रस्वजंघायोगिनीदेवीमयि तालजंघाप्रलमोष्ठीयोगिनीदेवीमयि सर्वार्थदायकचक्रस्वामिनि
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं इन्द्रमयि अग्निमयि यममयि निऋतिमयि वरुणमयि
वायुमयि कुबेरमयि ईशानमयि ब्रह्मामयि अनन्तमयि वज्रणि शक्तिनि दण्डिनि खड़्गिनि
पाशिनि अङ्कुशिनि गदिनि त्रिशुलिनि पद्मिनि चक्रिणि सर्वरक्षाकरचक्रस्वामिनि
खड़्गमयि मुण्डमयि वरमयि अभयमयि सर्वाशापरिपूरकचक्रस्वामिनि बटुकानन्दानाथमयि
योगिनिमयि क्षेत्रपालानन्दानाथमयि गणनाथानन्दानाथमयि सर्वभूतानन्दानाथमयि
सर्वसंक्षोभणचक्रस्वमिनि नमस्ते नमस्ते फट् स्वाहा ।
चतुरस्त्राद् बहिः सम्यक्
संस्थिताश्च समन्ततः। ते च सम्पूजिताः सन्तु देवाः देवि गृहे स्थिताः ॥ सिद्धाः
साध्या भैरवाः गन्धर्वाश्च वसवोऽश्विनो । मुनयो ग्रहा तुष्यन्तु विश्वेदेवाश्च
उष्मयाः ॥ रूद्रादित्याश्चपितरःपन्नगःयक्ष चारणाः । योगेश्वरोपासका ये तुष्यन्ति
नर किन्नराः ॥नागा वा दानवेन्द्राश्च भूत प्रेत पिशाचकाः । अस्त्राणि सर्व
शस्त्राणि मन्त्र यन्त्रार्चन क्रियाः ॥ शान्तिं कुरु महामाये सर्व सिद्धि
प्रदायिके । सर्व सिद्धि चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ॥ सर्वज्ञे सर्वशक्ते
सर्वार्थप्रदे शिवे । सर्वमंगलमये सर्वव्याधि विनाशिनि ॥ सर्वाधारस्वरूपे
सर्वमंगलदायकचक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते फट् स्वाहा ।
“ क्रीं ह्रीं हूं क्ष्यीं
महाकालाय, हौं महादेवाय, क्रीं
कालिकायै, हौं महादेव महाकाल सर्वसिद्धिप्रदायक देवी भगवती
चण्ड चण्डिका चण्ड चितात्मा प्रीणातु दक्षिणकलिकायै सर्वज्ञे सर्वशक्ते
श्रीमहाकालसहिते श्री दक्षिणकलिकायै नमस्ते नमस्ते फट् स्वाहा ॥ ह्रीं हूं क्रीं
श्रीं ह्रीं ऐं ॐ ॥
॥ इति
श्रीरूद्रयामलेदक्षिणकालिकाखड़्गमालास्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
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