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काली तांडव स्तोत्रं

काली तांडव स्तोत्रं

काली ताण्डव स्तोत्रं देवी काली को समर्पित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो देवी के भयानक, विध्वंसक, प्रलयकारी, शक्तिमय और दिव्य परम स्वरूप को दर्शाता है, जो उनके तांडव नृत्य से जुड़ी हैं। यह स्तोत्र देवी के विभिन्न रूपों और शक्तियों का वर्णन करता है। जिसमें वे ब्रह्मांड के संहारक और भक्तों की रक्षक हैं।

काली तांडव स्तोत्र

श्रीकाली ताण्डव स्तोत्रम्

ताण्डव का एक अर्थ उद्धत उग्र संहारात्मक क्रिया भी है। सामान्य रूप से तांडव को भगवान शिव का संहार नृत्य माना जाता है परंतु हिन्दू धर्मग्रंथों में दुर्गा, गणेश, काली, भैरव, हनुमानराम आदि के तांडवीय स्वरूपों का वर्णन भी मिलता है।

काली ताण्डव स्तोत्र

देवी काली विकराल और शक्तिस्वरूपा है, जो कि सभी के लिए कल्याणकारी माँ के रूप में प्रकट होती हैं। काली तांडव स्तोत्र में माँ से सुख-समृद्धि और मोक्ष प्रदान करने की प्रार्थना की गई है।

कालीतांडवस्तोत्र

Kali Tandav stotra

अथ  श्रीकाली ताण्डव स्तोत्रम्

हुंहुंकारे शवारूढे नीलनीरजलोचने ।

त्रैलोक्यैकमुखे दिव्ये कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ १॥

हुंकार ध्वनि वाली, जो शव पर आरूढ़ हैं, जिनके कमल जैसे नीले नेत्र हैं, जो तीनों लोकों की एकमात्र सत्ता हैं, जिसका मुख सभी प्राणियों के लिए एक समान हैं, उन दिव्य रूप धारण करने वाली काली को मेरा प्रणाम है।

प्रत्यालीढपदे घोरे मुण्डमालाप्रलम्बिते ।

खर्वे लम्बोदरे भीमे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ २॥

जिनके पद 'प्रत्यालीढ' (एक पैर आगे और एक पीछे की ओर) हैं, जो भयानक हैं, जिनके गले में मुण्डमाला (कपालों की माला) लटकी हुई है, जो छोटे कद की (खर्व) हैं, जिनका पेट बड़ा (लम्बोदर) है, और जो भीमाकार (भयानक) हैं, उन देवी काली को नमस्कार है।

नवयौवनसम्पन्ने गजकुम्भोपमस्तनी ।

वागीश्वरी शिवे शान्ते कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ३॥

जो नवयौवन से परिपूर्ण हैं, जिनका स्थूल और सुडौल वक्षस्थल हाथी के कुम्भ (मस्त) के समान हैं, और जो वागीश्वरी(वाणी पर नियंत्रण रखने वाली), शिवे (शिव स्वरूपिणी), और जो शांत स्वभाव वाली हैं, उन देवी काली को मेरा नमस्कार है।

लोलजिह्वे दुरारोहे नेत्रत्रयविभूषिते ।

घोरहास्यत्करे देवी कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ४॥

लपलपाती जिह्वा वाली, दुर्जेय (जिसे प्राप्त करना बहुत कठिन है) स्वरूपवाली, तीन नेत्रों से विभूषित और भयावह हास्य करने वाली, उन देवी काली को मेरा नमस्कार है।

व्याघ्रचर्म्माम्बरधरे खड्गकर्त्तृकरे धरे ।

कपालेन्दीवरे वामे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ५॥

बाघ का चर्म पहनने वाली, एक हाथ में खड्ग (तलवार) और दूसरे में कपाल धारण करने वाली, और इंदिवर (नीला कमल) धारण करने वाली, देवी काली को मेरा प्रणाम है।

नीलोत्पलजटाभारे सिन्दुरेन्दुमुखोदरे ।

स्फुरद्वक्त्रोष्टदशने कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ६॥

नीले कमल के समान जटाओं से शोभायमान, सिंदूर और चंद्रमा के समान मुख वाली, चमकती हुई जीभ, होंठ और दांतों वाली देवी काली को मेरा प्रणाम है।

प्रलयानलधूम्राभे चन्द्रसूर्याग्निलोचने ।

शैलवासे शुभे मातः कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ७॥

प्रलयकारी अग्नि की तरह धुएँ के रंग जैसी, चंद्रमा, सूर्य और अग्नि के समान नेत्रों वाली, पर्वतों में निवास करने वाली शुभता का प्रतिक देवी कालिका को मेरा प्रणाम है।

ब्रह्मशम्भुजलौघे च शवमध्ये प्रसंस्थिते ।

प्रेतकोटिसमायुक्ते कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ८॥

जो ब्रह्म और शिव के जल-प्रवाह के मध्य शव के ऊपर विराजमान हैं और लाखों प्रेतों से घिरी हुई हैं, उन माँ काली को मेरा प्रणाम है।

कृपामयि हरे मातः सर्वाशापरिपुरिते ।

वरदे भोगदे मोक्षे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ९॥

कृपादृष्टि से सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली, वर देने वाली, भोग (सुख-समृद्धि) देने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली, माँ काली को मैं प्रणाम करता हूँ।

इत्युत्तरतन्त्रार्गतमं श्रीकालीताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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