काली ताण्डव स्तोत्रम्
काली ताण्डव स्तोत्रम् - ताण्डव
का एक अर्थ उद्धत उग्र संहारात्मक क्रिया भी है। सामान्य रूप से तांडव को भगवान शिव का संहार नृत्य माना जाता है परंतु हिन्दू धर्मग्रंथों में दुर्गा,
गणेश, काली, भैरव,
हनुमान, महाविष्णु आदि के तांडवीय स्वरूपों का
वर्णन भी मिलता है।
अथ श्रीकाली ताण्डव स्तोत्रम्
हुंहुंकारे शवारूढे नीलनीरजलोचने ।
त्रैलोक्यैकमुखे दिव्ये कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ १॥
प्रत्यालीढपदे घोरे
मुण्डमालाप्रलम्बिते ।
खर्वे लम्बोदरे भीमे कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ २॥
नवयौवनसम्पन्ने गजकुम्भोपमस्तनी ।
वागीश्वरी शिवे शान्ते कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ ३॥
लोलजिह्वे दुरारोहे (लोलजिह्वे
हरालोके) नेत्रत्रयविभूषिते ।
घोरहास्यत्करे (घोरहास्यत्कटा कारे)
देवी कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ४॥
व्याघ्रचर्म्माम्बरधरे
खड्गकर्त्तृकरे धरे ।
कपालेन्दीवरे वामे कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ ५॥
नीलोत्पलजटाभारे
सिन्दुरेन्दुमुखोदरे ।
स्फुरद्वक्त्रोष्टदशने कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ ६॥
प्रलयानलधूम्राभे
चन्द्रसूर्याग्निलोचने ।
शैलवासे शुभे मातः कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ ७॥
ब्रह्मशम्भुजलौघे च शवमध्ये
प्रसंस्थिते ।
प्रेतकोटिसमायुक्ते कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ ८॥
कृपामयि हरे मातः सर्वाशापरिपुरिते
।
वरदे भोगदे मोक्षे कालिकायै
नमोऽस्तुते ॥ ९॥
इत्युत्तरतन्त्रार्गतमं
श्रीकालीताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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