कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्र
महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १२
में कामकला काली के सहस्र नाम पद्यात्मक और गद्यात्मक दोनों प्रकार का है।
पद्यात्मक सहस्रनाम के बाद गद्यात्मक का वर्णन कर अन्त में कहा गया कि पद्य एवं
गद्य दोनों नामों में से गद्यात्मक नामों का पाठ पद्यात्मक पाठ के आदि और अन्त
दोनों स्थितियों में करना चाहिये । यदि यह सम्भव न हो तो एक ही बार अन्त में पढ़े।
गद्यपाठ से पाठक स्तोत्रराज के पाठ का फल प्राप्त करता है । इसे कामकलाकाली संजीवन
गद्यस्तोत्र कहा जाता है।
कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्रम्
Kaam Kalaa Kaali Sanjivan Gadya stotra
कामकला काली संजीवन गद्य स्तोत्र
महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १२
- कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्रम्
महाकालसंहिता
कामकलाकाली खण्ड
द्वादशतमः पटल:
॥ अथ कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्रम् ॥
महाकाल उवाच-
अथ वक्ष्ये महेशानि महापातकनाशनम् ।
गद्यं सहस्त्रनाम्नस्तु सञ्जीवनतया
स्थितम् ॥ १ ॥
पठन् यत्सफलं कुर्य्यात्प्राक्तनं
सकलं प्रिये ।
अपठन् विफलं तत्तत्तद्वस्तु कथयामि
ते ॥ २ ॥
महाकाल ने कहा- हे महेशानि! अब मैं
सञ्जीवन के रूप में स्थित एवं महापापनाशक गद्य-सहस्रनाम को बतलाऊँगा जिसको पढ़ने
वाला व्यक्ति हे प्रिये! प्राक्तन समस्त (जन्मों) को सफल बना लेता तथा नहीं पढ़ने
वाले का समस्त (जन्मकर्म) विफल रहता है उस वस्तु को मैं तुमसे कह रहा हूँ- ॥ १-२ ॥
कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्रम्
ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि कपालिनि
सिद्धिकरालि सिद्धिविकरालि महाबलिनि त्रिशूलिनि नरमुण्डमालिनि शववाहिनि कात्यायनि
महाट्टहासिनि सृष्टि- स्थितिप्रलयकारिणि दितिदनुजमारिणि श्मशानचारिणि । महाघोररावे
अध्यासितदावे अपरिमितबलप्रभावे । भैरवीयोगिनीडाकिनीसहवासिनि जगद्धासिनि
स्वपदप्रकाशिनि । पापौघहारिणि आपदुद्धारिणि अपमृत्युवारिणि । बृहन्मद्यमानोदरि
सकलसिद्धिकरि चतुर्दशभुवनेश्वरि । गुणातीतपरमसदाशिवमोहिनि अपवर्गरसदोहिनि
रक्तार्णवलोहिनि । अष्टनागराजभूषितभुजदण्डे आकृष्टकोदण्डे परमप्रचण्डे ।
मनोवागगोचरे मखकोटि- मन्त्रमयकलेवरे महाभीषणतरे प्रचलजटाभार भास्वरे सजलजलदमेदुरे
जन्ममृत्युपाश- भिदुरे । सकलदैवतमयसिंहासनाधिरूढे
गुह्यातिगुह्यपरापरशक्तितत्त्वरूढे वाङ्मयी- कृतमूढे ।
प्रकृत्यपरशिवनिर्वाणसाक्षिणि त्रिलोकीरक्षाणि दैत्यदानवभक्षिणि । विकट-
दीर्घदंष्ट्रसचूर्णितकोटिब्रह्मकपाले चन्द्रखण्डाङ्कितभाले देहप्रभाजितमेघजाले ।
नवपञ्च- चक्रनयिनि महाभीमषोडशशयिनि सकलकुलाकुलचक्रप्रवर्त्तिनि निखिलरिपुदल-
कर्त्तिनि महामारीभयनिवर्त्तिनि लेलिहानरसनाकरालिनि त्रिलोकीपालिनि त्रयस्त्रिंश-
त्कोटिशस्त्रास्त्रशालिनि । प्रज्वलप्रज्वलनलोचने भवभयमोचने निखिलागमादेशित
(सुष्ठु रोचने । प्रपञ्चातीतनिष्कलतुरीयाकारे अखण्डानन्दाधारे निगमागमसारे । महा-
खेचरीसिद्धिविधायिनि निजपदप्रदायिनि महामायिनि घोरागृहाससन्त्रासितत्रिभुवने
चरणकमलद्वयविन्यासखर्व्वीकृतावने विहितभक्तावने ।
ओं फ्रें जय जय कामकलाकालि (हाथ
में),
कपालवाली, सिद्धिकराली, सिद्धि-
विकराली, महाबलवाली, त्रिशूलिनी,
नरमुण्ड की माला पहनी हुई, शव पर आरूढ,
कतगोत्र में उत्पन्न, महा अट्टहास करने वाली,
सृष्टिस्थिति प्रलय करने वाली, दैत्यों और
दानवों को मारने वाली, श्मशान में सञ्चरण करने वाली, महाघोरशब्द करने वाली (अपने तेजोमय रूप से), दावाग्नि
का अध्यास कराने वाली, अपरिमित बल और अपरिमित प्रभाव वाली,
भैरवी योगिनी डाकिनी के साथ रहने वाली, जगत्
को प्रसन्न रखने वाली, अपने पद (=स्थान या पैर) को प्रकाशित
करने वाली, पापसमूह को दूर करने वाली, आपत्ति
से उद्धार करने वाली, अपमृत्यु को हटाने वाली, बड़े एवं मद्यमान (मद से पूर्ण) उदर वाली, समस्तसिद्धि
देने वाली, चौदह भुवनों की स्वामिनी, गुणातीत
परम सदाशिव को मुग्ध करने वाली, मुक्तिरस का दोहन करने वाली,
रक्तसमुद्र के समान रक्तवर्णवाली भुजाओं में आठ नागराज धारण की हुई,
धनुष खींचकर रखने वाली, परम, प्रचण्ड, मन-वाणी की अगोचर करोड़ों यज्ञ एवं
मन्त्रमय शरीर वाली, महाभीषण, चलती हुई
जटा के भार से भास्वर सजल बादल के समान काली, जन्म-मृत्यु
पाश का भेदन करने वाली, समस्त देवताओं से युक्त सिंहासन पर
बैठी हुई, गुह्य अतिगुह्य पर अपर शक्ति तत्त्व वाली मूर्ख को
वाग्मी बना देने वाली, प्रकृति एवं अपर शिव के निर्वाण की
साक्षी, त्रिलोक की रक्षा करने वाली, दैत्यदानव
का भक्षण करने वाली, विकट एवं लम्बे दाँतों से करोड़ों
ब्रह्मा के कपालों को चूर्णित करने वाली, भाल पर चन्द्रखण्ड
वाली देह की कान्ति से मेघमाला को पराजित करने वाली, चौदह
चक्र नव चक्र* और पाँच चक्र (=
मूलाधार-स्वाधिष्ठान-मणिपूर- अनाहत और शाकिनी [ विशुद्धि ]) की नायिका अर्थात्
अधिष्ठात्री, षोडश*
के शयन वाली, समस्त कुल-अकुल चक्र का प्रारम्भ करने वाली,
समस्त शत्रुसमूह का नाश करने वाली, महामारी के
भय को हटाने वाली, लपलपाती हुई जीभ के कारण भयङ्कर त्रिलोक
का पालन करने वाली, तैंतीस करोड़ शस्त्र-अस्त्र से शोभायमान,
जलती हुई अग्नि के समान नेत्रों वाली, भवभय से
मुक्त करने वाली, समस्त आगमों में रुचि रखने वाली, प्रपञ्च से परे निष्कल तुरीय आकार वाली, अखण्ड आनन्द
की आधार निगम और आगम की सार, महाखेचरी सिद्धि देने वाली,
अपना पद देने वाली, महामायाविनी, घोर अट्टहास से त्रिभुवन को सन्त्रस्त करने वाली, दोनों
चरणों के न्यास से पृथिवी को छोटी कर देने वाली, भक्तों की
रक्षा करने वाली ।
ॐ क्लीं क्रों स्क्रों हूँ ह्रीं
ह्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
हस हस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनि भगप्रिये भगातुरे भगाङ्किते भगरूपिणि भगप्रदे
भगलिङ्गद्राविणि । संहारभैरवसुरतरसलोलुपे व्योम- केशि पिङ्गकेशि महाशङ्खसमाकुले
खर्प्परविहस्तहस्ते रक्तार्णवद्वीपप्रिये मदनोन्मादिनि । शुष्कनरकपालमालाभरणे
विद्युत्कोटिसमप्रभे नरमांसखण्डकवलिनि । वर्मदग्निमुखि फेरुकोटिपरिवृते
करतालिकात्रासितत्रिविष्टपे । नृत्यप्रसारितपादाघातपरिवर्तित भूवलये ।
पदभारावनप्रीकृतकमठशेषाभोगे । कुरुकुल्ले कुञ्चतुण्डि रक्तमुखि यमघण्टे चर्च्चिके
दैत्यासुरदैत्यराक्षसदानवकुष्माण्डप्रेत भूतडाकिनीविनायकस्कन्दघोणक क्षेत्रपाल-पिशाचब्रह्मराक्षसवेतालगुह्यकसर्प्यनागग्रहनक्षत्रोत्पातचौराग्निस्वापदयुद्धवज्रोपलाश-
निवर्षविद्युन्मेघ विषोपविष कपटकृत्याभिचारद्वेषवशीकरणोच्चाटनोन्मादापस्मारभूतप्रेत-
पिशाचावेशनदनदी समुद्रावर्त्त कान्तारघोरान्धकार महामारीबालग्रहहिंस्त्रसर्वस्वापहारिमाया-विद्युद्दस्युवञ्चकदिवाचररात्रिञ्चरसंध्याचर
शृङ्गिनखिदंष्ट्रिविद्युदुल्कारण्य दरप्रान्तरादिनाना- विधमहोपद्रवभञ्जनि
सर्वमन्त्रतन्त्रयन्त्रकुप्रयोगप्रमर्द्दिनि षडाम्नायसमयविद्याप्रकाशिनि
श्मशानाध्यासिनि । निजबलप्रभावपराक्रमगुणवशीकृतकोटिब्रह्माण्डवर्तिभूतसङ्घ । विरारूपिणि
सर्वदेवमहेश्वरि सर्वजनमनोरञ्जनि सर्वपापप्रणाशिनि अध्यात्मिकाधि
दैविकाधिभौतिकादिविविधहृदयाधिनिर्द्दलिनि कैवल्यनिर्वाणबलिनि दक्षिणकालि भद्रकालि
चण्डकालि कामकलाकालि कौलाचारव्रतिनि कौलाचारकूजिनि कुल- धर्मसाधनि जगत्कारणकारिणि
महारौद्र रौद्रावतारे अबीजे नानाबीजे जगद्बीजे कालेश्वरि कालातीते त्रिकालस्थायिनि
महाभैरवे भैरवगृहिणि जननि जनजनन- निवर्त्तिनि प्रलयानलज्वालाजालजिह्वे विखवरु
फेरुपोतलालिनि मृत्युञ्जयहृदयानन्द- करि विलोलव्यालकुण्डलउलूकपक्षच्छत्रमहाडामरि
नियुतवक्त्रबाहुचरणे सर्वभूत- दमनि नीलाञ्जनसमप्रभे
योगीन्द्रहृदयाम्बुजासनस्थितनीलकण्ठदेहार्द्धहारिणि षोडश- कलान्तवासिनि
हकारार्द्धचारिणि कालसङ्कर्षिणि कपालहस्ते मदघूर्णितलोचने
निर्वाणदीक्षाप्रसादप्रदे निन्दानन्दाधिकारिणि मातृगणमध्यचारिणि
त्रयस्त्रिंशत्कोटि- त्रिदशतेजोमयविग्रहे प्रलयाग्निरोचिनि विश्वकर्त्रि
विश्वाराध्ये विश्वजननि विश्वसंहारिणि विश्वव्यापिके विश्वेश्वरि निरुपमे
निर्विकारे निरञ्जने निरीहे निस्तरङ्गे निराकारे परमेश्वरि परमानन्दे परापरे
प्रकृतिपुरुषात्मिके प्रत्ययगोचरे प्रमाणभूते प्रणवस्वरूपे संसारसारे सच्चिदानन्दे
सनातनि सकले सकलकलातीते सामरस्यसमयिनि केवले कैवल्यरूपे कल्पनातिगे काललोपिनि
कामरहिते कामकलाकालि भगवति-
ओं क्लीं क्रों स्फों हूं ह्रीं
ह्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
हस हस नृत्य नृत्य के छ भगमालिनि* भगप्रिये
भगातुरे भगाङ्किते भगरूपिणी भगप्रदे भग और लिङ्ग को द्रवित करने वाली,
संहारभैरव के साथ सुरत करने से उत्पन्न आनन्द की लोलुप शिव की पत्नी
पिङ्गकेश वाली महाशङ्ख (=नरकपाल) से घिरी हुई, खप्पर हाथ में
ली हुई, रक्तसमुद्र और रक्तद्वीप को चाहने वाली, मदन को उन्मत्त करने वाली, शुष्क नरकपाल की माला के
आभूषण को धारण करने वाली, करोड़ों बिजली के समान चमक वाली,
नरमांस के टुकड़ों को ग्रहण करने वाली, मुख से
अग्नि-वमन करने वाली, करोड़ श्रृंगालिनियों से परिवृत,
हाथ की ताली से स्वर्ग को त्रस्त कर देने वाली नृत्य के लिये फैलाये
गये पैर के आघात से पृथिवी को मोड़ देने वाली पैर के भार से कच्छप और शेषनाग के फण
को नत कर देने वाली; कुरुकुल्ले सङ्कुचित मुखवाली, रक्तपूर्ण मुख वाली, यमघण्टा चर्चिका दैत्य असुर
दैत्यराक्षस दानव कुष्माण्ड प्रेत भूत डाकिनी विनायक स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल पिशाच
ब्रह्मराक्षस वेताल गुह्यक सर्प नाग ग्रह-नक्षत्र के उत्पात चोर अग्नि स्वापद (=
जन्तु) से युद्ध वज्र उपल अशनि की वर्षा विद्युत् मेघ विष उपविष कपटकृत्य अभिचार
द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद अपस्मार (= मिर्गी) भूत-प्रेत-पिशाच का आवेश
नद-नदी-समुद्र के आवर्त कान्तार (=घने जंगल) अन्धकार- महामारी बालग्रह हिंसक
सर्वस्व का अपहरण करने वाले मायावी डाकू ठग दिवाचर (= लुटेरा) रात्रिञ्चर (=चोर)
सन्ध्याचर, सींग, नख दाँत वाले जीव,
विद्युत् उल्का अरण्य उसके समीप का स्थान आदि अनेक प्रकार के उपद्रव
का नाश करने वाली समस्त मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र के दुष्प्रयोग को नष्ट करने वाली,
(पूर्व-पश्चिम- उत्तर-दक्षिण ऊर्ध्व और अधः नामक) आम्नाय के
सिद्धान्त और ज्ञान का प्रकाश करने वाली, श्मशान में निवास
करने वाली; अपने बल, प्रभाव, पराक्रम और गुणों के कारण कोटि (= असङ्ख्य ) ब्रह्माण्ड में रहने वाले
प्राणियों को वश में करनेवाली विराट रूप वाली, सम्पूर्ण
देवताओं की अधीश्वरी, सभी जनों का मनोरञ्जन करने वाली,
सबके पापों को नष्ट कर देने वाली, आध्यात्मिक,
आधिभौतिक, आधिदैविक आदि विविध हृदय की पीड़ा
का नाश करने वाली, कैवल्य निर्वाण प्रदान करने वाली
दक्षिणकाली, भद्रकाली, चण्डकाली,
कामकलाकाली, कौलाचारव्रत करने वाली, कौलाचार का प्रचार करने वाली, कुलधर्म की साधना करने
वाली, जगत् के कारण की कारण महारौद्री रौद्रावतार बीज रहित
(= स्वयम्भू) नानाबीज (= अनेक कार्यों की कारण), जगत् की
कारण भूता, काल की स्वामिनी, काल से
परे, त्रिकालस्थापिनी महाभैरव (= भयङ्कर), भैरव की गृहिणी, जननी मनुष्य के जन्मबन्धन को दूर
करने वाली, प्रलयाग्नि की ज्वाला के समूह के समान जिह्वा
वाली, छोटी जाँघ वाली, शृंगाल के शिशु
का पालन करने वाली, मृत्युञ्जय महादेव के हृदय को आनन्दित
करने वाली, चञ्चल सर्प का कुण्डल और उल्लू के पङ्ख का छत्र
धारण करने से महाभयङ्कर, नियुत ( = दश हजार करोड़) मुख -
बाहु और चरण वाली, समस्त भूतों का दमन करने वाली, नील अञ्जन के समान प्रभा वाली, योगिजनों के
हृदयकमलरूपी आसन पर स्थित नीलकण्ठ के अर्धदेह को धारण करने वाली. सोलह कलाओं के
अन्त (= अमृताकला) में निवास करने वाली, हकार के अर्ध ( =
विसर्ग - :) में सञ्चरण करने वाली, कालसङ्कर्षिणी, हाथ में कपाल धारण की हुई, मद से घूर्णित आँखों वाली,
निर्वाण दीक्षारूपी प्रसाद देने वाली, निन्दा
और आनन्द दोनों की अधिकारिणी, मातृसमूह के मध्य में विचरण
करने वाली, तैंतीस करोड़ देवताओं के तेज के शरीर वाली,
प्रलयकालीन अग्नि के समान कान्तिवाली, विश्व का
नाश करने वाली, विश्व के द्वारा आराध्य, विश्व की सृष्टि करने वाली, विश्व का संहार करने
वाली, विश्वव्यापिनी, विश्व की ईश्वरी,
उपमारहित विकारशून्य कलङ्कवर्जित इच्छारहित निस्तरङ्ग निराकार
परमेश्वरी परम आनन्दस्वरूपा परापरा प्रकृतिपुरुष स्वरूप ध्यान से ज्ञेय, प्रमाणस्वरूपा प्रणवस्वरूपा संसार की तत्त्वभूत सत् चित् आनन्दस्वरूपा
सनातनी कलायुक्त समस्त कलाओं से परे सामरस्य सिद्धान्तवाली, केवल
कैवल्यस्वरूपा कल्पनातीत काल का लोप करने वाली, कामरहित
कामकलाकाली भगवती-
ॐ ख्फ्रें ह्सौः सौः श्रीं ऐं ह्रीं
क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धिं देहि देहि मनोरथान् पूरय पूरय मुक्तिं नियोजय नियोजय
भवपाशं समुन्मूलय समुन्मूलय जन्ममृत्यू तारय तारय परविद्यां प्रकाशय प्रकाशय
अपवर्गं निर्माहि निर्माहि संसारदुःखं यातनां विच्छेदय विच्छेदय पापानि संशमय
संशमय चतुर्वर्गं साधय साधय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं यान् वयं द्विष्मो ये
चास्मान् विद्विषन्ति तान् सर्वान् विनाशय विनाशय मारय मारय शोषय शोषय क्षोभय
क्षोभय मयि कृपां निवेशय निवेशय फ्रें ख्फ्रें हस्फ्रें हसख्फ्रें हूं स्फों क्लीं
ह्रीं जय जय चराचरात्मकब्रह्माण्डोदरवर्त्तिभूतसङ्गाराधिते प्रसीद प्रसीद तुभ्यं
देवि नमस्ते नमस्ते नमस्ते ।
(उक्त मन्त्र का अर्थ स्पष्ट है अतः
अनुवाद आवश्यक नहीं है )
कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्र
महात्म्य
इतीदं गद्यमुदितं मन्त्ररूपं वरानने
।
सहस्त्रनामस्तोत्रस्य आदावन्ते च
योजयेत् ॥ ३ ॥
हे वरानने ! इस प्रकार यह मन्त्ररूप
गद्य कहा गया। इसे सहस्रनामस्तोत्र के आदि और अन्त में जोड़ देना चाहिये।
अशक्नुवानौ द्वौ वारौ पठेच्छेष इमं
स्तवम् ।
सहस्त्रनामस्तोत्रस्य तदैव
प्राप्यते फलम् ॥ ४ ॥
यदि कोई दो बार (इस गद्य मन्त्र का)
पाठ न कर सके तो अन्त में इस स्तोत्र को पढ़े। उसी समय सहस्रनाम स्तोत्र का फल
प्राप्त हो जाता है।
अपठन् गद्यमेतत्तु तत्फलं न
समाप्नुयात् ।
यत्फलं स्तोत्रराजस्य पाठेनाप्नोति
साधकः ॥ ५ ॥
तत्फलं गद्यपाठेन लभते नात्र संशयः
॥
जो पुरुष इस गद्य का पाठ नहीं करता
वह उस (सहस्रनामस्तोत्र पाठ) का फल नहीं प्राप्त करता। साधक स्तोत्रराज के पाठ का
जो फल प्राप्त करता हैं गद्यपाठ से भी उस फल को प्राप्त करता है इसमें सन्देह नहीं
है ।। ३-६ ॥
*१. नव चक्र की चर्चा योगिनीहृदय में द्रष्टव्य है ।
*२. षोडश शब्द षोडशमातृका का वाचक है । कामकलाकाली षोडश मातृकाओं की
आधारभूता है अथवा षोडश मातृकाओं के अन्दर तत्त्वरूप में रहने वाली है।
*३. भग शब्द के दो अर्थ है- १. स्त्रीजननेन्द्रिय २. समप्रऐश्वर्य वीर्य, यश, श्री ज्ञान और वैराग्य-
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य
वीर्यस्य यशसः श्रियः ।
ज्ञानवैराग्ययोश्चैव
षण्णां भग इतीरणा ॥
॥ इत्यादिनाथविरचितायां
पञ्चशतसाहस्त्र्यां महाकालसंहितायां गद्यकथनं नाम द्वादशतमः पटलः ॥ १२ ॥
॥ इस प्रकार श्रीमद् आदिनाथविरचित पचास हजार श्लोकों वाली महाकालसंहिता के कामकलाकाली खण्ड के गद्यकथन (कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्र)नामक द्वादश पटल की आचार्य राधेश्यामचतुर्वेदी कृत 'ज्ञानवती' हिन्दी व्याख्या सम्पूर्ण हुई ॥ १२ ॥
शेष आगे जारी ........ महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल 13
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