कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्र

कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्र

महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १२ में देवी ने कामकला काली के सहस्त्र नामों को सुनने की इच्छा व्यक्त की । इनमें कुछ नाम रूढ हैं और कुछ देवी के गुणों के कारण रखे गये हैं। ये नाम इष्टसिद्धि प्रदान करते हैं, रोग अकाल मृत्यु को दूर करते तथा पुरुषार्थचतुष्टय प्रदान करते हैं। इसके बाद इस काली के एक सहस्त्र नामों का उल्लेख है। इस सहस्त्रनाम के श्रवण का फल यह है कि ब्राह्मण वेदपारङ्गत, क्षत्रिय रिपुञ्जय, वैश्य धन-धान्यसमृद्ध और शूद्र समस्त कल्याण युक्त होता है। जो साधक निशीथ में इसका पाठ करता है उसके लिये कुछ भी असाध्य नहीं होता। यह पद्यात्मक सहस्र नाम है।

कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्र

कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्रम्

Kaam Kalaa Kaali Padyatmak Sahastra Naam stotra

कामकलाकाली पद्यात्मक सहस्रनाम स्तोत्र

कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्रराज

महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १२ - कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्रम्

महाकालसंहिता

कामकलाकाली खण्ड

द्वादशतमः पटल:

देव्युवाच-

त्वत्तः श्रुतं मया नाथ देवदेव जगत्पते ।

देव्याः कामकलाकाल्या विधानं सिद्धिदायकम् ॥ १ ॥

त्रैलोक्यविजयस्यापि विशेषेण श्रुतो मया ।

तत्प्रसङ्गेन चान्यासां मन्त्रध्याने तथा श्रुते ॥ २ ॥

इदानीं जायते नाथ शुश्रूषा मम भूयसी ।

नाम्नां सहस्त्रे त्रिविधमहापापौघहारिणि ॥ ३ ॥

श्रुतेन येन देवेश धन्या स्यां भाग्यवत्यपि ।

देवी ने कहा- हे देवाधिदेव ! हे नाथ! हे जगत् के स्वामी! आपसे मैंने देवी कामकलाकाली का सिद्धिदायक विधान सुना । त्रैलोक्यविजय का भी विधान विशेष- रूप से मेरे द्वारा सुना गया। उसी प्रसङ्ग में अन्य (देवियों) के मन्त्र और ध्यान मैंने सुने । हे नाथ! अब मेरे अन्दर त्रिविध महापापपुञ्ज का हरण करने वाले (काली) सहस्रनाम को सुनने की इच्छा है। हे देवेश जिसको सुनकर मैं भाग्यवती और धन्य हो जाऊँगी ॥ १-४ ॥

महाकाल उवाच-

भाग्यवत्यसि धन्यासि सन्देहो नात्र भाविनि ॥ ४ ॥

सहस्रनामश्रवणे यस्मात्ते निश्चितं मनः ।

तस्या नाम्नां तु लक्षाणि विद्यन्ते चाथ कोटयः ॥ ५ ॥

तान्यल्पायुर्मतित्वेन नृभिर्द्धारयितुं सदा ।

अशक्यानि वरारोहे पठितुं च दिने दिने ॥ ६ ॥

तेभ्यो नामसहस्राणि साराण्युद्धृत्य शम्भुना ।

अमृतानीव दुग्धाब्धेर्भूदेवेभ्यः समर्पितम् ॥ ७ ॥

महाकाल ने कहा- हे भव की पत्नी! तुम धन्य हो और भाग्यवती हो जो कि (काली) सहस्रनाम सुनने में तुम्हारा मन निश्चित हो गया है। उसके नाम तो लाखों हैं। किन्तु वे अल्प आयु और अल्पबुद्धि वाले मनुष्यों के द्वारा न तो याद रखे जा सकते और न प्रतिदिन पढ़े जा सकते हैं। जिस प्रकार क्षीरसागर से अमृत उसी प्रकार उन (लाखों नामों) में से सारभूत एक सहस्र नाम शम्भु ने उद्धृत कर ब्राह्मणों को दिया ।

कानिचित्तत्र गौणानि गदितानि शुचिस्मिते ।

रूढाण्याकारहीनत्वाद् गौणानि गुणयोगतः ॥ ८ ॥

राहित्याद्रूढिगुणयोस्तानि साङ्केतिकान्यपि ।

त्रिविधान्यपि नामानि पठितानि दिने दिने ॥ ९ ॥

राधयन्तीप्सितानर्थान्ददत्यमृतमव्ययम् ।

क्षपयन्त्यपमृत्युं च मारयन्ति द्विषोऽखिलान् ॥ १० ॥

घ्नन्ति रोगानथोत्पातान्मङ्गलं कुर्वतेऽन्वहम् ।

किमुतान्यत् सदा सन्निधापयत्यर्थिकामपि ॥ ११ ॥

हे शुचिस्मिते! उनमें से कुछ गौण हैं; कुछ आकारहीन होने से रूढ हैं। कुछ गुणों से युक्त होने के कारण गौण हैं। कुछ गुण और रूढ़ि दोनों से रहित होने से साङ्केतिक हैं। तीनों प्रकार के नाम प्रतिदिन पढ़े जाने इच्छित उद्देश्य को सिद्ध करते हैं; अव्यय अमृत देते हैं; अपमृत्यु को नष्ट करते हैं; समस्त शत्रुओं को मार देते हैं; रोगों और उत्पातों का घात करते हैं एवं प्रतिदिन मङ्गल करते हैं। यहाँ तक कि अर्थिका (द्रव्य समूह ? ) को सन्निधापित करते हैं ॥ ४ ११ ॥

त्रिपुरघ्नोऽप्यदो नामसहस्त्र पठति प्रिये ।

तदाज्ञयाप्यहमपि कीर्त्तयामि दिने दिने ॥ १२ ॥

भवत्यपीदमस्मत्तः शिक्षित्वा तु पठिष्यति ।

भविष्यति च निर्णीतं चतुर्वर्गस्य भाजनम् ॥ १३ ॥

मनोऽन्यतो निराकृत्य सावधाना निशामय ।

नाम्नां कामकलाकाल्याः सहस्रं मुक्तिदायकम् ॥ १४ ॥

हे प्रिये! त्रिपुरारि भी इस सहस्रनाम को पढ़ते हैं। उनकी आज्ञा से मैं भी इसका प्रतिदिन पाठ करता हूँ। तुम भी हमसे सुनकर इसका पाठ करोगी तो निश्चित रूप से चतुर्वर्ग को प्राप्त करोगी। कामकलाकाली का यह सहस्रनाम मुक्तिदायक है, मन को अन्यत्र से हटाकर सावधान होकर सुनो-

अथ कामकलाकालीसहस्रनाम स्तोत्र

विनियोगः ॐ अस्य श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रस्य श्रीत्रिपुरघ्नऋषिरनुष्टुप् छन्दस्त्रि-जगन्मयरूपिणी भगवती श्रीकामकलाकाली देवता क्लीं बीजं स्फ्रों शक्तिः हूं कीलकं क्षौं तत्त्वं श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रपाठे जपे विनियोगः ॐ तत्सत् ।

इस कामकलाकालीसहस्रनाम स्तोत्र के ऋषि त्रिपुरारि हैं । छन्द अनुष्टुप् हैं, त्रिजगन्मयरूपिणी भगवती श्रीकामकलाकाली देवता हैं; क्लीं बीज, स्फ्रों शक्ति, हूं कीलक, क्षौं तत्त्व है । सहस्रनाम स्तोत्र पाठ और जप के समय इसका विनियोग करना चाहिये ।

(इसके बाद कामकलाकाली के एक हजार नाम इस प्रकार हैं-)

कामकलाकालीसहस्रनाम स्तोत्रराज 

ॐ क्लीं कामकलाकाली कालरात्रिः कपालिनी ।

कात्यायनी च कल्याणी कालाकारा करालिनी ॥ १५ ॥

उग्रमूर्तिर्महाभीमा घोररावा भयङ्करा ।

भूतिदा भयहन्त्री च भवबन्धविमोचिनी ॥ १६ ॥

भव्या भवानी भोगाढ्या भुजङ्गपतिभूषणा ।

महामाया जगद्धात्री पावनी परमेश्वरी ॥ १७ ॥

योगमाता योगगम्या योगिनी योगिपूजिता ।

गौरी दुर्गा कालिका च महाकल्पान्तनर्त्तकी ॥ १८ ॥

अव्यया जगदादिश्च विधात्री कालमर्द्दिनी ।

नित्या वरेण्या विमला देवाराध्यामितप्रभा ॥ १९ ॥

भारुण्डा कोटरी शुद्धा चञ्चला चारुहासिनी ।

अग्राह्यातीन्द्रियाऽ गोत्रा चर्च्चरोर्ध्वशिरोरुहा ॥ २० ॥

क्लीं कामकलाकाली कालरात्रि कपालिनी कात्यायनी कल्याणि कालाकारा करालिनी उग्रमूर्ति महाभीमा घोररावा भयङ्करा भूतिदा भयहन्त्री भवबन्धविमोचिनी भव्या भवानी भोगाढ्या भुजङ्गपतिभूषणा महामाया जगद्धात्री पावनी परमेश्वरी योगमाता योगगम्या योगिनी योगिपूजिता गौरी दुर्गा कालिका महाकल्पान्तनर्त्तकी अव्यया जगदादि विधात्री कालमर्दिनी नित्या वरेण्या विमला देवाराध्या अमितप्रभा भारुण्डा कोटरी शुद्धा चञ्चला चारुहासिनी अग्राह्या अतीन्द्रिया अगोत्रा चर्चरा ऊर्ध्वशिरोरुहा ।। १५-२० ॥

कामुकी कमनीया च श्रीकण्ठमहिषी शिवा ।

मनोहरा माननीया मतिदा मणिभूषणा ॥ २१ ॥

श्मशाननिलया रौद्रा मुक्तकेश्यगृहासिनी ।

चामुण्डा चण्डिका चण्डी चार्वङ्गी चरितोज्ज्वला ॥ २२ ॥

घोरानना धूम्रशिखा कम्पना कम्पितानना ।

वेपमानतनुः भीदा निर्भया बाहुशालिनी ॥ २३ ॥

उल्मुकाक्षी सर्पकर्णी विशोका गिरिनन्दिनी ।

ज्योत्स्नामुखी हास्यपरा लिङ्गा लिङ्गधरा सती ॥ २४ ॥

अविकारा महाचित्रा चन्द्रवक्त्रा मनोजवा ।

अदर्शना पापहरा श्यामला मुण्डमेखला ॥ २५ ॥

मुण्डावतंसनी नीला प्रपन्नानन्ददायिनी ।

लघुस्तनी लम्बकुचा घूर्णमाना हराङ्गना ॥ २६ ॥

विश्वावासा शान्तिकरी दीर्घकेश्यरिखण्डिनी ।

रुचिरा सुन्दरी कम्रा मदोन्मत्ता मदोत्कटा ॥ २७ ॥

अयोमुखी वह्निमुखी क्रोधनाऽभयदेश्वरी ।

कुडम्बिका साहसिनी खङ्गकी रक्तलेहिनी ॥ २८ ॥

विदारिणी पानरता रुद्राणी मुण्डमालिनी ।

अनादिनिधना देवी दुर्निरीक्ष्या दिगम्बरा ॥ २९ ॥

विद्युज्जिह्वा महादंष्ट्रा वज्रतीक्ष्णा महास्वना ।

उदयार्क्कसमानाक्षी विन्ध्यशैलसमाकृतिः ॥ ३० ॥

कामुकी कमनीया श्रीकण्ठमहिषी शिवा मनोहरा माननीया मतिदा मणिभूषणा श्मशाननिलया रौद्रा मुक्तकेशी अट्टहासिनी चामुण्डा चण्डिका चण्डी चार्वङ्गी चरितोज्ज्वला घोरानना धूम्रशिखा कम्पना कम्पितानना वेपमानतनु भीदा निर्भया बाहुशालिनी उल्मुकाक्षी सर्पकर्णी विशोका गिरिनन्दिनी ज्योत्स्नामुखी हास्यपरा लिङ्गा लिङ्गधरा सती अविकारा महाचित्रा चन्द्रवक्त्रा मनोजवा अदर्शना पापहरा श्यामला मुण्डमेखला मुण्डावतंसिनी नीला प्रपन्नानन्ददायिनी लघुस्तनी लम्बकुचा घूर्णमाना हराङ्गना विश्वावासा शान्तिकरी दीर्घकेशी अरिखण्डिनी रुचिरा सुन्दरी कम्रा मदोन्मत्ता मदोत्करा अयोमुखी वह्निमुखी क्रोधना अभयदा ईश्वरी कुडम्बिका साहसिनी खड्गकी रक्तलेहिनी विदारिणी पानरता रुद्राणी मुण्डमालिनी अनादिनिधना देवी दुर्निरीक्ष्या दिगम्बरा विद्युज्जिह्वा महादंष्ट्रा वज्रतीक्ष्णा महास्वना उदयार्कसमानाक्षी विन्ध्यशैल समाकृति ॥ २१-३० ॥

नीलोत्पलदलश्यामा नागेन्द्राष्टक भूषिता ।

अग्निज्वालकृतावासा फेत्कारिण्यहिकुण्डला ॥ ३१ ॥

पापघ्नी पालिनी पद्मा पुण्या पुण्यप्रदा परा ।

कल्पान्ताम्भोदनिर्घोषा सहस्रार्कसमप्रभा ॥ ३२ ॥

सहस्त्रप्रेतराट्कोधा सहस्त्रेशपराक्रमा ।

सहस्त्रधनदैश्वर्य्या सहस्रांधिकराम्बिका ॥ ३३ ॥

सहस्त्रकालदुष्प्रेक्ष्या सहस्त्रेन्द्रियसञ्चया ।

सहस्त्रभूमिसदना सहस्राकाशविग्रहा ॥ ३४ ॥

सहस्रचन्द्रप्रतिमा सहस्त्रग्रहचारिणी ।

सहस्त्ररुद्रतेजस्का सहस्रब्रह्मसृष्टिकृत् ॥ ३५ ॥

सहस्त्रवायुवेगा च सहस्रफणकुण्डला ।

सहस्त्रयन्त्रमथिनी सहस्त्रोदधिसुस्थिरा ॥ ३६ ॥

सहस्रबुद्धकरुणा महाभागा तपस्विनी ।

त्रैलोक्यमोहिनी सर्वभूतदेववशङ्करी ॥ ३७ ॥

सुस्निग्धहृदया घण्टाकर्णा च व्योमचारिणी ।

शङ्खिनी चित्रिणीशानी कालसङ्कर्षिणी जया ॥ ३८ ॥

अपराजिता च विजया कमला कमलाप्रदा ।

जनयित्री जगद्योनिर्हेतुरूपा चिदात्मिका ॥ ३९ ॥

अप्रमेया दुराधर्षा ध्येया स्वच्छन्दचारिणी ।

शातोदरी शाम्भविनी पूज्या मानोन्नताऽमला ॥ ४० ॥

नीलोत्पलदलश्यामा नागेन्द्राष्टकभूषणा अग्निज्वालवृतावासा फेत्कारिणी अहि- कुण्डला पापघ्नी पालिनी पद्मा पुण्या पुण्यप्रदा परा कल्पान्ताम्भोदनिर्घोषा सहस्रार्क- समप्रभा सहस्रप्रेतराट्क्रोधा सहस्त्रेशपराक्रमा सहस्रघनदैश्वर्या सहस्रभूमिसदना सहस्रा- काशविग्रहा सहस्रचन्द्रप्रतिमा सहस्रग्रहचारिणी सहस्ररुद्रतेजस्का सहस्रब्रह्मसृष्टिकृत् सहस्रवायुवेगा सहस्रफणकुण्डला सहस्रयन्त्रमथिनी सहस्रोदधिसुस्थिरा सहस्रबुद्धकरुणा महाभागा तपस्विनी त्रैलोक्यमोहिनी सर्वभूतदेववशङ्करी सुस्निग्धहृदया घण्टाकर्णा व्योमचारिणी शङ्खिनी चित्रिणी ईशानी कालसङ्कर्षिणी जया अपराजिता विजया कमला कमलाप्रदा जनयित्री जगद्योनिहेतुरूपा चिदात्मिका अप्रमेया दुराधर्षा ध्येया स्वच्छन्द - चारिणी शातोदरी शाम्भविनी पूज्या मानोन्नता अमला ॥ ३१-४० ॥

ॐ काररूपिणी ताम्रा बालार्कसमतारका ।

चलज्जिह्वा च भीमाक्षी महाभैरवनादिनी ॥ ४१ ॥

सात्त्विकी राजसी चैव तामसी घर्घराऽचला ।

माहेश्वरी तथा ब्राह्मी कौमारी मानिनीश्वरा ॥ ४२ ॥

सौपर्णी वायवी चैन्द्री सावित्री नैर्ऋती कला ।

वारुणी शिवदूती च सौरी सौम्या प्रभावती ॥ ४३ ॥

वाराही नारसिंही च वैष्णवी ललिता स्वरा ।

मैत्र्यार्य्यम्णी च पौष्णी च त्वाष्ट्री वासव्युमारतिः ॥ ४४ ॥

राक्षसी पावनी रौद्री दास्त्री रोदस्युदुम्बरी ।

सुभगा दुर्भगा दीना चञ्चरीका यशस्विनी ॥ ४५ ॥

महानन्दा भगानन्दा पिच्छिला भगमालिनी ।

अरुणा रेवती रक्ता शकुनी श्येनतुण्डिका ॥ ४६ ॥

सुरभी नन्दिनी भद्रा बला चातिबलामला ।

उलूपी लम्बिका खेटा लेलिहानान्त्रमालिनी ॥ ४७ ॥

वैनायिकी च वेताली त्रिजटा भृकुटी सती ।

कुमारी युवती प्रौढा विदग्धा घस्मरा तथा ॥ ४८ ॥

जरती रोचना भीमा दोलमाला पिचिण्डिला ।

अलम्बाक्षी कुम्भकर्णी कालकर्णी महासुरी ॥ ४९ ॥

घण्टारवाथ गोकर्णी काकजङ्घा च मूषिका ।

महाहनुर्महाग्रीवा लोहिता लोहिताशनी ॥ ५० ॥

ॐ काररूपिणी ताम्रा बालार्कसमतारका चलज्जिह्वा भीमाक्षी महाभैरवनादिनी सात्त्विकी राजसी तामसी घर्घरा अचला माहेश्वरी ब्राह्मी कौमारी मानिनीश्वरा सौपणी वायवी ऐन्द्री सावित्री नैर्ऋती कला वारुणी शिवदूती सौरी सौम्या प्रभावती वाराही नारसिंही वैष्णवी ललिता स्वरा मैत्रार्यम्णी पौष्णी त्वाष्ट्री वासवी उमारति राक्षसी पावनी रौद्री दास्त्री रोदसी उदुम्बरी सुभगा दुर्भगा दीना चञ्चुरीका यशस्विनी महानन्दा भगानन्दा पिच्छिला भगमालिनी अरुणा रेवती रक्ता शकुनी श्येनतुण्डिका सुरभी नन्दिनी भद्रा बला अतिबला अमला अलूपी लम्बिका खेटा लेलिहाना अन्त्रमलिनी वैनायिकी वेताली त्रिजटा भृकुटी सती कुमारी युवती प्रौढा विदग्धा घस्मरा जरती रोचना भीमा दोलमाला पिचिण्डिला अलम्बाक्षी कुम्भकर्णी कालकर्णी महासुरी घण्टारवा गोकर्णी काकजङ्घा मूषिका महाहनु महाग्रीवा लोहिता लोहिताशनी ॥ ४१-५० ॥

कीर्त्तिः सरस्वती लक्ष्मीः श्रद्धा बुद्धिः क्रिया स्थितिः ।

चेतना विष्णुमाया च गुणातीता निरञ्जना ॥ ५१ ॥

निद्रा तन्द्रा स्मिता छाया जृम्भा क्षुदशनायिता ।

तृष्णा क्षुधा पिपासा च लालसा क्षान्तिरेव च ॥ ५२ ॥

विद्या प्रज्ञा स्मृतिः कान्तिरिच्छा मेधा प्रभा चितिः ।

धरित्री धरणी धन्या धोरणी धर्मसन्ततिः ॥ ५३ ॥

हालाप्रिया हाररतिहरिणी हरिणेक्षणा ।

चण्डयोगेश्वरी सिद्धिकराली परिडामरी ॥ ५४ ॥

जगदान्या जनानन्दा नित्यानन्दमयी स्थिरा ।

हिरण्यगर्भा कुण्डलिनी ज्ञानं धैर्य्यं च खेचरी ॥ ५५ ॥

नगात्मजा नागहारा जटाभारा प्रतर्द्दिनी ।

खङ्गिनी शूलिनी चक्रवती बाणवती क्षितिः ॥ ५६ ॥

घृणिधर्त्री नालिका च कर्त्री मत्यक्षमालिनी ।

पाशिनी पर्शुहस्ता च नागहस्ता धनुर्धरा ॥ ५७ ॥

महामुद्गरहस्ता च शिवापोतधरापि च ।

नारखर्प्परिणी लम्बत्कचमुण्डप्रधारिणी ॥ ५८ ॥

पद्मावत्यन्नपूर्णा च महालक्ष्मीः सरस्वती ।

दुर्गा च विजया घोरा तथा महिषमर्द्दिनी ॥ ५९ ॥

धनलक्ष्मी ( रलक्ष्मी) श्चाश्वारूढा जयभैरवी ।

शूलिनी राजमातङ्गी राजराजेश्वरी तथा ॥ ६० ॥

कीर्ति सरस्वती लक्ष्मी श्रद्धा बुद्धि क्रिया स्थिति चेतना विष्णु माया गुणातीता निरञ्जना निद्रा तन्द्रा स्मिता छाया जृम्भा क्षुत् अशनायिता तृष्णा क्षुधा पिपासा लालसा क्षान्ति विद्या प्रज्ञा स्मृति कान्ति इच्छा मेधा प्रभा चिति धरित्री धरणी धन्या धोरणी धर्मसन्तति हालाप्रिया हाररति हारिणी हरिणेक्षणा चण्डयोगेश्वरी सिद्धिकराली परिडामरी जगदान्या जनानन्दा नित्यानन्दमयी स्थिरा हिरण्यगर्भा कुण्डलिनी ज्ञान धैर्य खेचरी नगात्मजा नागहारा जटाभारा प्रतर्दिनी खङ्गिनी शूलिनी चक्रवती बाणवती क्षिति घृणि धर्त्री नालिका कर्त्री मत्यक्षमालिनी पाशिनी पर्शुहस्ता नागहस्ता धनुर्धरा महामुद्गरहस्ता शिवापोतधरा नारखर्परिणी लम्बत्कचमुण्डप्रधारिणी पद्मावती अन्नपूर्णा महालक्ष्मी सरस्वती दुर्गा विजया घोरा महिषमर्दिनी धनलक्ष्मी (अलक्ष्मी) अश्वारूढ जयभैरवी शूलिनी राजमातङ्गी राजराजेश्वरी ॥ ५१-६० ॥

त्रिपुटोच्छिष्टचाण्डाली अघोरा त्वरितापि च ।

राज्यलक्ष्मीर्जयमहाचण्डयोगेश्वरी तथा ॥ ६१ ॥

गुह्या महाभैरवी च विश्वलक्ष्मीररुन्धती ।

यन्त्रप्रमथिनी चण्डयोगेश्वर्य्यप्यलम्बुषा ॥ ६२ ॥

किराती महाचण्डभैरवी कल्पवल्लरी ।

त्रैलोक्यविजया सम्पत्प्रदा मन्थानभैरवी ॥ ६३ ॥

महामन्त्रेश्वरी वज्रप्रस्तारिण्यङ्गचर्पटा ।

जयलक्ष्मीश्चण्डरूपा जलेश्वरी कामदायिनी ॥ ६४ ॥

स्वर्णकूटेश्वरी रुण्डा मर्म्मरी बुद्धिवर्द्धिनी ।

वार्त्ताली चण्डवार्त्ताली जयवार्त्तालिका तथा ॥ ६५ ॥

उप्रचण्डा श्मशानोमा चण्डा वै रुद्रचण्डिका ।

अतिचण्डा चण्डवती प्रचण्डा चण्डनायिका ॥ ६६ ॥

चैतन्यभैरवी कृष्णा मण्डली तुम्बुरेश्वरी ।

वाग्वादिनी मुण्डमधुमत्यनर्ध्या पिशाचिनी ॥ ६७ ॥

मञ्जीरा रोहिणी कुल्या तुङ्गा पूर्णेश्वरी वरा ।

विशाला रक्तचामुण्डा अघोरा चण्डवारुणी ॥ ६८ ॥

धनदा त्रिपुरा वागीश्वरी च जयमङ्गला ।

दैगम्बरी कुब्जिका च कुडुक्का कालभैरवी ॥ ६९ ॥

कुक्कुटी सङ्कटा वीरा कर्पटा भ्रमराम्बिका ।

महार्णवेश्वरी भोगवती लङ्केश्वरी तथा ॥ ७० ॥

त्रिपुटा उच्छिष्टचाण्डालिनी अघोरा त्वरिता राज्यलक्ष्मी जय महाचण्डयोगेश्वरी गुह्या महाभैरवी विश्वलक्ष्मी अरुन्धती यन्त्रप्रमथिनी चण्डयोगेश्वरी अलम्बुषा किराती महाचण्डभैरवी कल्पवल्लरी त्रैलोक्यविजया सम्पत्प्रदा मन्थानभैरवी महामन्त्रेश्वरी वज्रप्रस्तारिणी अङ्गचर्पटा जयलक्ष्मी चण्डरूपा जलेश्वरी कामदायिनी स्वर्णकूटेश्वरी रुण्डा मर्मरी बुद्धिवर्धिनी वार्त्ताली चण्डवार्त्ताली जयवार्त्तालिका उग्रचण्डा श्मशानोग्रा चण्डा रुद्रचण्डिका अतिचण्डा चण्डवती प्रचण्डा चण्डनायिका चैतन्यभैरवी कृष्णा मण्डली तुम्बुरेश्वरी वाग्वादिनी मुण्डमधुमती अनर्ध्या पिशाचिनी मञ्जीरा रोहिणी कुल्या तुङ्गा पर्णेश्वरी वरा विशाला रक्तचामुण्डा अघोरा चण्डवारुणी धनदा त्रिपुरा वागीश्वरी जयमङ्गला दैगम्बरी कुब्जिका कुडुक्का कालभैरवी कुक्कुटी सङ्कटा वीरा कटा भ्रमराम्बिका महार्णवेश्वरी भोगवती लङ्केश्वरी ॥ ६१-७० ॥

पुलिन्दी शबरी म्लेच्छी पिङ्गला शबरेश्वरी ।

मोहिनी सिद्धिलक्ष्मीश्च बाला त्रिपुरसुन्दरी ॥ ७१ ॥

उग्रतारा चैकजटा महानीलसरस्वती ।

त्रिकण्टकी छिन्नमस्ता महिषघ्नी जयावहा ॥ ७२ ॥

हरसिद्धानङ्गमाला फेत्कारी लवणेश्वरी ।

चण्डेश्वरी नाकुली च हयग्रीवेश्वरी तथा ॥ ७३ ॥

कालिन्दी वज्रवाराही महानीलपताकिका ।

हंसेश्वरी मोक्षलक्ष्मीर्भूतिनी जातरेतसा ॥ ७४ ॥

शातकर्णा महानीला वामा गुह्येश्वरी भ्रमिः ।

एकानंशाऽभया तार्क्षी बाभ्रवी डामरी तथा ॥ ७५ ॥

कोरङ्गी चर्चिका विना संशिका ब्रह्मवादिनी ।

त्रिकालवेदिनी नीललोहिता रक्तदन्तिका ॥ ७६ ॥

क्षेमङ्करी विश्वरूपा कामाख्या कुलकुट्टनी ।

कामाङ्कुशा वेशिनी च मायूरी च कुलेश्वरी ॥ ७७ ॥

इभाक्षी घोणकी शार्ङ्ग भीमा देवी वरप्रदा ।

धूमावती महामारी मङ्गला हाटकेश्वरी ॥ ७८ ॥

किराती शक्तिसौपर्णी बान्धवी चण्डखेचरी ।

निस्तन्द्रा भवभूतिश्च ज्वालाघण्टाग्निमर्द्दिनी ॥ ७९ ॥

सुरङ्गा कौलिनी रम्या नटी नारायणी धृतिः।

अनन्ता पुञ्जिका जिह्या धर्माधर्मप्रवर्त्तिका ॥ ८० ॥

पुलिन्दी शबरी म्लेच्छी पिङ्गला शबरेश्वरी मोहिनी सिद्धिलक्ष्मी बाला त्रिपुरसुन्दरी उग्रतारा एकजटा महानीलसरस्वती त्रिकण्टकी छिन्नमस्ता महिषघ्नी जयावहा हरसिद्धा अनङ्गमाला फेत्कारी लवणेश्वरी चण्डेश्वरी नाकुली हयग्रीवेश्वरी कालिन्दी वज्रवाराही महानीलपताका हंसेश्वरी मोक्षलक्ष्मी भूतिनी जातरेतसा शातकर्णा महानीला वामा गुह्येश्वरी भ्रमि एका अनंशा अभया ताक्ष बाभ्र्वी डामरी कोरङ्गी चर्चिका विन्ना संशिका ब्रह्मवादिनी त्रिकालवेदिनी नीललोहिता रक्तदन्तिका क्षेमङ्करी विश्वरूपा कामाख्या कुलकुट्टनी कामाङ्कुशा वेशिनी मायूरी कुलेश्वरी इभाक्षी घोणकी शार्ङ्ग भीमा देवी वरप्रदा महामारी मङ्गला हाटकेश्वरी किराती शक्तिसौपर्णी बान्धवी चण्डखेचरी निस्तन्द्रा भवभूति ज्वालाघण्टा अग्निमर्दिनी सुरङ्गा कौलिनी रम्या नटी नारायणी धृति अनन्ता पुञ्जिका जिह्मा धर्माधर्मप्रवर्त्तिका ॥ ७१-८० ॥

वन्दिनी वन्दनीया च वेलाऽहस्करिणी सुधा ।

अरणी माधवी गोत्रा पताका वाङ्मयी श्रुतिः ॥ ८१ ॥

गूढा त्रिगूढा विस्पष्टा मृगाङ्का च निरिन्द्रिया ।

मेनानन्दकरी बोध्री त्रिनेत्रा वेदवाहना ॥ ८२ ॥

कलस्वना तारिणी च सत्यासत्यप्रियाऽजडा ।

एकवक्ता महावक्ता बहुवक्ता घनानना ॥ ८३ ॥

इन्दिरा काश्यपी ज्योत्स्ना शवारूढा तनूदरी ।

महाशङ्खधरा नागोपवीतिन्यक्षताशया ॥ ८४ ॥

निरिन्धना धराधारा व्याधिघ्नी कल्पकारिणी ।

विश्वेश्वरी विश्वधात्री विश्वेशी विश्ववन्दिता ।। ८५ ।।

विश्वा विश्वात्मिका विश्वव्यापिका विश्वतारिणी ।

विश्वसंहारिणी विश्वहस्ता विश्वोपकारिका ॥ ८६ ॥

विश्वमाता विश्वगता विश्वातीता विरोधिता ।

त्रैलोक्यत्राणकर्त्री च कूटाकारा कटङ्कटा ॥ ८७ ॥

क्षामोदरी च क्षेत्रज्ञा क्षयहीना क्षरवर्जिता ।

क्षपा क्षोभकरी क्षेम्याऽक्षोभ्या क्षेमदुघा क्षिया ॥ ८८ ॥

सुखदा सुमुखी सौम्या स्वङ्गा सुरपरा सुधीः ।

सर्वान्तर्यामिनी सर्वा सर्वाराध्या समाहिता ॥ ८९ ॥

तपिनी तापिनी तीव्रा तपनीया तु नाभिगा ।

हैमी हैमवती ऋद्धिर्वृद्धिर्ज्ञानप्रदा नरा ॥ ९० ॥

वन्दिनी वन्दनीया वेला अहस्करिणी सुधा अरणी माधवी गोत्रा पताका वाङ्मयी श्रुति गूढा त्रिगूढा विस्पष्टा मृगाङ्का निरिन्द्रिया 'मेना' आनन्दकरी बोधी त्रिनेत्रा वेदवाहना कलस्वना तारिणी सत्यप्रिया असत्यप्रिया अजडा एकवक्त्रा महावक्त्रा बहुवक्त्रा घनानना इन्दिरा काश्यपी ज्योत्स्ना शवारूढा तनूदरी महाशङ्खधरा नागोपवीतिनी अक्षताशया निरिन्धना धराधारा व्याधिघ्नी कल्पकारिणी विश्वेश्वरी विश्वधात्री विश्वेशी विश्ववन्दिता विश्वा विश्वात्मिका विश्वव्यापिका विश्वतारिणी विश्वसंहारिणी विश्वहस्ता विश्वोपकारिका विश्वमाता विश्वगता विश्वातीता विरोधिता त्रैलोक्यत्राणकर्त्री कूटाकारा कटङ्कटाक्षामोदरी क्षेत्रज्ञा क्षयहीना क्षरवर्जिता क्षपा क्षोभकरी क्षेम्या अक्षोभ्या क्षेमदुघा क्षिया सुखदा सुमुखी सौम्या स्वङ्गा सुरपरा सुधी सर्वान्तर्यामिनी सर्वा सर्वाराध्या समाहिता तपिनी तापिनी तीव्रा तपनीया नाभिगा हैमी हैमवती ऋद्धि वृद्धि ज्ञानप्रदा नरा ॥ ८१-९० ॥

महाजटा महापादा महाहस्ता महाहनुः ।

महाबला महारोषा महाधैर्य्या महाघृणा ॥ ९१ ॥

महाक्षमा पुण्यपापध्वजिनी घुघुरारवा ।

डाकिनी शाकिनी रम्या शक्तिः शक्तिस्वरूपिणी ॥ ९२ ॥

तमिस्रा गन्धरा शान्ता दान्ता क्षान्ता जितेन्द्रिया ।

महोदया ज्ञानिनीच्छा विरागा सुखिताकृतिः ॥ ९३ ॥

वासना वासनाहीना निवृत्तिर्निर्वृतिः कृतिः ।

अचला हेतुरुन्मुक्ता जयिनी संस्मृतिः च्युता ॥ ९४ ॥

कपर्द्दिनी मुकुटिनी मत्ता प्रकृतिरूर्जिता ।

सदसत्साक्षिणी स्फीता मुदिता करुणामयी ।। ९५ ।।

पूर्वोत्तरा पश्चिमा च दक्षिणा विदिगुद्गता ।

आत्मारामा शिवारामा रमणी शङ्करप्रिया ॥ ९६ ॥

वरेण्या वरदा वेणी स्तम्भिन्याकर्षिणी तथा ।

उच्चाटनी मारणी च द्वेषिणी वशिनी मही ॥ ९७ ॥

भ्रमणी भारती भामा विशोका शोकहारिणी ।

सिनीवाली कुहू राकानुमतिः पद्मिनीतिहृत् ॥ ९८ ॥

सावित्री वेदजननी गायत्र्याहुतिसाधिका ।

चण्डाट्टहासा तरुणी भूर्भुवः स्वः कलेवरा ॥ ९९ ॥

अतनुरतनुप्राणदात्री मातङ्गगामिनी ।

निगमाब्धिमणिः पृथ्वी जन्ममृत्युजरौषधी ॥ १०० ॥

महाजटा महापादा महाहस्ता महाहनु महाबला महाशेषा महाधैर्या महाघृणा महाक्षमा पुण्यपापध्वजिनी घुघुरावा डाकिनी शाकिनी रम्या शक्ति शक्तिस्वरूपिणी तमिस्रा गन्धरा शान्ता दान्ता क्षान्ता जितेन्द्रिया महोदया ज्ञानिनी इच्छा विरागा सुखिताकृति वासना वासनाहीना निवृत्ति र्निवृति कृति अचला हेतु उन्मुक्ता जयिनी संस्मृति च्युता कपर्द्दिनी मुकुटिनी मत्ता प्रकृति ऊर्जिता सदसत्साक्षिणी स्फीता मुदिता करुणामयी पूर्वा उत्तरा पश्चिमा दक्षिणा विदिगुद्गता आत्मारामा शिवारामा रमणी शङ्करप्रिया वरेण्या वरदा वेणी स्तम्भिनी आकर्षिणी उच्चाटनी मारणी द्वेषिणी वशिनी मही भ्रमणी भारती भामा विशोका शोकहारिणी सिनीवाली कुहू राका अनुमति पद्मिनी ईतिहृत् सावित्री वेदजननी गायत्री आहुति साधिका चण्डाट्टहासा तरुणी भूर्भुवस्व:- कलेवरा अतनु अतनुप्राणदात्री मातङ्गगामिनी निगमा अब्धिमणि पृथिवी जन्ममृत्यु- जरौषधी ।। ९१-१०० ॥

प्रतारिणी कलालापा वेद्या च्छेद्या वसुन्धरा ।

(अ) प्रक्षुण्णाऽवासिता कामधेनुर्वाञ्छितदायिनी ॥ १०१ ॥

सौदामिनी मेघमाला शर्वरी सर्वगोचरा ।

डमरुर्डमरुका च निःस्वरा परिनादिनी ॥ १०२ ॥

आहतात्मा हता चापि नादातीता बिलेशया ।

पराऽपरा च पश्यन्ती मध्यमा वैखरी तथा ॥ १०३ ॥

प्रथमा च जघन्या च मध्यस्थान्तविकासिनी ।

पृष्ठस्था च पुरःस्था च पार्श्वस्थोर्ध्वतलस्थिता ॥ १०४ ॥

नेदिष्ठा च दविष्ठा च बहिः ष्ठा च गुहाशया ।

अप्राप्या बृंहिता पूर्णा पुण्यैर्वेद्या ह्यनामया ॥ १०५ ॥

सुदर्शना च त्रिशिखा बृहती सन्ततिर्विभा ।

फेत्कारिणी दीर्घ (स)क्का भावना भववल्लभा ॥ १०६ ॥

भागीरथी जाह्नवी च कावेरी यमुनाह्वया ।

शिप्रा गोदावरी वेल्ला विपाशा नर्मदा धुनी ॥ १०७ ॥

त्रेता स्वाहा सामिधेनी स्रुक्स्रुवा च ध्रुवावसुः ।

गर्विता मानिनी मेना नन्दिता नन्दनन्दिनी ॥ १०८ ॥

नारायणी नारकघ्नी रुचिरा रणशालिनी ।

आधारणाधारतमा धर्माध्वन्या धनप्रदा ॥ १०९ ॥

अभिज्ञा पण्डिता मूका बालिशा वाग्वादिनी ।

ब्रह्मवल्ली मुक्तिवल्ली सिद्धिवल्ली विपह्नवी ॥ ११० ॥

प्रतारिणी कलालापा वेद्या छेद्या वसुन्धरा ( अ ) प्रक्षुणा ( अ ) वासिता कामधेनु वाञ्छितदायिनी सौदामिनी मेघमाला शर्वरी सर्वगोचरा डमरू डमरुका निःस्वरा परिनादिनी आहतात्मा नादातीता बिलेशया परा अपरा पश्यन्ती मध्यमा वैखरी प्रथमा जघन्या मध्यस्था अन्तविकासिनी पृष्ठस्था पुरःस्था पार्श्वस्था ऊर्ध्वतल स्थिता नेदिष्ठा दविष्ठा बहिष्ठा गुहाशया अप्राप्या बृंहिता पूर्णा पुण्यैवेंद्या अनामया सुदर्शना त्रिशिखा बृहती सन्तति विभा फेत्कारिणी दीर्घ (स) क्वा भावना भवल्लभा भागीरथी जाह्नवी कावेरी यमुना शिप्रा गोदावरी वेल्ला विपाशा नर्मदा धुनी त्रेता स्वाहा सामिधेनी खुक् स्रुवा ध्रुवावसु गर्विता मानिनी मेनानन्दिता नन्दनन्दिनी नारायणी नारकघ्नी रुचिरा रणशालिनी आधारणा आधारतमा धर्माध्वन्या धनप्रदा अभिज्ञा पण्डिता मूका बालिशा वाग्वादिनी ब्रह्मवल्ली मुक्तिवल्ली सिद्धिवल्ली विपह्नवी ॥ १०१-११० ॥

आह्लादिनी जितामित्रा साक्षिणी पुनराकृतिः ।

किर्म्मरी सर्वतोभद्रा स्वर्वेदी मुक्तिपद्धतिः ॥ १११ ॥

सुषमा चन्द्रिका वन्या कौमुदी कुमुदाकरा ।

त्रिसन्ध्याम्नायसेतुश्च चर्चाऽछपारिनैष्ठिकी ॥ ११२ ॥

कला काष्ठा तिथिस्तारा सङ्क्रान्तिर्विषुवत्तथा ।

मञ्जुनादा महावल्गु भग्नभेरीस्वनाऽरटा ॥ ११३ ॥

चिन्ता सुप्तिः सुषुप्तिश्च तुरीया तत्त्वधारणा ।

मृत्युञ्जया मृत्युहरी मृत्युमृत्युविधायिनी ॥ ११४ ॥

हंसी परमहंसी च बिन्दुनादान्तवासिनी ।

वैहायसी त्रैदशी च भैमी वासातनी तथा ॥ ११५ ॥

दीक्षा शिक्षा अनूढा च कङ्काली तैजसी तथा ।

सुरी दैत्या दानवी च नरी नाथा सुरीत्वरी ॥ ११६ ॥

माध्वा स्वना स्वरा रेखा निष्कला निर्ममा मृतिः ।

महती विपुला स्वल्पा क्रूरा क्रूराशयापि च ॥ ११७ ॥

उन्माथिनी धृतिमती वामनी कल्पचारिणी ।

वाडवी वडवाश्वोढा कोला पितृवनालया ॥ ११८ ॥

प्रसारिणी विशारा च दर्पिता दर्पणप्रिया ।

उत्तानाधोमुखी सुप्ता वञ्चन्याकुञ्चनी त्रुटि: ॥ ११९ ॥

क्रादिनी यातनादात्री दुर्गा दुर्गतिनाशिनी ।

धराधरसुता धीरा धराधरकृतालया ॥ १२० ॥

आह्लादिनी जितामित्रा साक्षिणी पुनराकृति किर्मरी सर्वतोभद्रा स्वर्वेदी मुक्तिपद्धति सुषमा चन्द्रिका वन्या कौमुदी कुमुदाकरा त्रिसन्ध्या आम्नायसेतु चर्चा ऋच्छा पारिनैष्ठिकी कला काष्ठा तिथि तारा सङ्क्रान्ति विषुवत् मञ्जुनादा महावल्गु भयभेरी-स्वना अरटा चिन्ता सुप्ति सुषुप्ति तुरीया तत्त्वधारणा मृत्युञ्जया मृत्युहरी मृत्युमृत्यु- विधायिनी हंसी परमहंसी बिन्दुनादान्तवासिनी वैहायसी त्रैदशी भैमी वासातनी दीक्षा शिक्षा अनूढा कङ्काली तैजसी सुरी दैत्या दानवी नरी नाथा सुरी इत्वरी माध्वी स्वना स्वरा रेखा निष्कला निर्ममा मृति महती विपुला स्वल्पा क्रूरा क्रूराशया उन्माथिनी धृतिमती वामनी कल्पचारिणी वाडवी वडवा अश्वोढा कोला पितृवनालया प्रसारिणी विशारा दर्पिता दर्पणप्रिया उत्ताना अधोमुखी सुप्ता वञ्चनी आकुञ्चनी त्रुटि क्रादिनी यातनादात्री दुग्र्गा दुर्गतिनाशिनी धराधरसुता धीरा धराधरकृतालया ॥ १११-१२० ॥

सु (च) रित्री तथात्री च पूतना प्रेतमालिनी ।

रम्भोर्वशी मेनका च कलिहृत्कालकृत्कशा ॥ १२१ ॥

हरीष्टदेवी हेरम्बमाता हर्य्यक्षवाहना ।

शिखण्डिनी कोण्डपिनी वेतुण्डी मन्त्रमय्यपि ॥ १२२ ॥

वज्रेश्वरी लोहदण्डा दुर्विज्ञेया दुरासदा ।

जालिनी जालपा याज्या भगिनी भगवत्यपि ॥ १२३ ॥

भौजङ्गी तुर्वरा बभ्रु महनीया च मानवी ।

श्रीमती श्रीकरी गार्द्धा सदानन्दा गणेश्वरी ॥ १२४ ॥

असन्दिग्धा शाश्वता च सिद्धा सिद्धेश्वरीडिता ।

ज्येष्ठा श्रेष्ठा वरिष्ठा च कौशाम्बी भक्तवत्सला ॥ १२५ ॥

इन्द्रनीलनिभा नेत्री नायिका च त्रिलोचना ।

वार्हस्पत्या भार्गवी च आत्रेय्याङ्गिरसी तथा ॥ १२६ ॥

धुर्य्याधिहर्त्री धारित्री विकटा जन्ममोचिनी ।

आपदुत्तारिणी दृप्ता प्रमिता मितिवर्जिता ॥ १२७ ॥

चित्ररेखा चिदाकारा चञ्चलाक्षी चलत्पदा ।

वलाहकी पिङ्गसटा मूलभूता वनेचरी ॥ १२८ ॥

खगी करन्धमा ध्माक्ष्यी (क्षी) संहिता केररीन्धना ।

अपुनर्भविनी वान्तरिणी (च) यमगञ्जिनी ॥ १२९ ॥

वर्णातीताश्रमातीता मृडानी मृडवल्लभा ।

दयाकरी दमपरा दम्भहीनादृतिप्रिया ॥ १३० ॥

निर्वाणदा च निर्बन्धा भावाभावविधायिनी ।

नैःश्रेयसी निर्विकल्पा निर्बीजा सर्वबीजिका ॥ १३१ ॥

अनाद्यन्ता भेदहीना बन्धोन्मूलिन्यबाधिता ।

निराभासा मनोगम्या सायुज्यामृतदायिनी ॥ १३२ ॥

सुचरित्री तथात्री पूतना प्रेतमालिनी रम्भा उर्वशी मेनका कलिहत् कालकृत् कशा हरीष्टदेवी हेरम्बमाता हर्यक्षवाहना शिखण्डिनी कोण्डपिनी वेतुण्डी मन्त्रमयी वज्रेश्वरी लोहदण्डा दुर्विज्ञेया दुरासदा जालिनी जालपा याज्या भगिनी भगवती भौजङ्गी तुर्वरा बभ्रु महनीया मानवी श्रीमती श्रीकरी गार्द्धा सदानन्दा गणेश्वरी असन्दिग्धा शाश्वता सिद्धा सिद्धेश्वरीडिता ज्येष्ठा श्रेष्ठा वरिष्ठा कौशाम्बी भक्तवत्सला इन्द्रनीलनिभा नेत्री नायिका त्रिलोचना वार्हस्पत्या भार्गवी आत्रेयी आङ्गिरसी धुर्याधिहत्र धारित्री विकटा जन्ममोचिनी आपदुत्तारिणी दृप्ता प्रमिता मितिवर्जिता चित्ररेखा चिदाकारा चञ्चलाक्षी चलत्पदा वलाहकी पिङ्गसटा मूलभूता वनेचरी खगी करन्धमा ध्माक्षी संहिता केररीन्धना अपुनर्भविनी वान्तरिणी यमगञ्जिनी वर्णातीता आश्रमातीता मृडानी मृडवल्लभा दयाकरी दमपरा दम्भहीना आहृतिप्रिया निर्वाणदा निर्बन्धा भावा भावविधायिनी नैःश्रेयसी निर्विकल्पा निर्बीजा सर्वबीजिका अनाद्यन्ता भेदहीना बन्धोन्मूलिनी अबाधिता निराभासा मनोगम्या सायुज्या अमृतदायिनी ॥ १२१-१३२ ॥

कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्र महात्म्य

इतीदं नामसाहस्रं नामकोटिशताधिकम् ।

देव्याः कामकलाकाल्या मया ते प्रतिपादितम् ॥ १३३ ॥

नानेन सदृशं स्तोत्रं त्रिषु लोकेषु विद्यते ।

यद्यप्यमुष्य महिमा वर्णितुं नैव शक्यते ॥ १३४ ॥

प्ररोचनातया कश्चित्तथापि विनिगद्यते ।

देवी कामकलाकाली का यह सहस्रनाम जो कि (अन्य) सौ करोड़ (नामों) से अधिक (महत्त्व वाला) है मैंने तुमको बतला दिया। इसके सदृश स्तोत्र तीनों लोक में नहीं है । यद्यपि इस (स्तोत्र) की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता तथापि प्ररोचना के कारण कुछ बतला रहा हूँ।

प्रत्यहं य इदं देवि कीर्त्तयेद्वा शृणोति वा ॥ १३५ ॥

गुणाधिक्यमृते कोऽपि दोषो नैवोपजायते ।

अशुभानि क्षयं यान्ति जायन्ते मङ्गलान्यथ ॥ १३६ ॥

पारत्रिकामुष्मिकौ द्वौ लोकौ तेन प्रसाधितौ ।

हे देवि ! इसको जो प्रतिदिन पढ़ता या सुनता है गुणाधिक्य को छोड़कर उसमें कोई दोष नहीं उत्पन्न होता। अशुभ नष्ट हो जाते है; मङ्गल उपस्थित होते हैं। (जिसने इसका पाठ या श्रवण किया) उसने इस लोक और परलोक दोनों को सिद्ध कर लिया ।

ब्राह्मणो जायते वाग्मी वेदवेदाङ्गपारगः ॥ १३७ ॥

ख्यातः सर्वासु विद्यासु धनवान् कविपण्डितः ।

युद्धे जयी क्षत्रियः स्याद् दाता भोक्ता रिपुञ्जयः ॥ १३८ ॥

आहर्ता चाश्वमेधस्य भाजनं परमायुषाम् ।

समृद्धो धनधान्येन वैश्यो भवति तत्क्षणात् ॥ १३९ ॥

नानाविधपशूनां हि समृद्ध्या स समृद्धते ।

शूद्रः समस्तकल्याणमाप्नोति श्रुतिकीर्तनात् ॥ १४० ॥

भुङ्गे सुखानि सुचिरं रोगशोकौ परित्यजन् ।

ब्राह्मण (यदि श्रवण पठन करता है तो वह) वाग्मी और वेदवेदाङ्ग का पारदृश्वा हो जाता है। वह समस्त विद्याओं में ख्यात, धनवान् कवि और पण्डित हो जाता है। क्षत्रिय युद्ध में विजयी, दाता भोक्ता रिपुञ्जय, अश्वमेध का फल प्राप्त करने वाला परमायु का पात्र होता है। वैश्य तत्क्षण धन-धान्य से समृद्ध होता है। एवं अनेक प्रकार के पशुओं की वृद्धि से समृद्ध होता है। शूद्र श्रवण और कीर्तन से समस्त कल्याण प्राप्त करता है एवं रोग-शोक से रहित हुआ बहुत काल तक सुख भोग करता है ॥ १३३-१४१ ॥

एवं नार्य्यपि सौभाग्यं भर्तृहार्दं सुतानपि ॥ १४१ ॥

प्राप्नोति श्रवणादस्य कीर्तनादपि पार्वति ।

स्वस्वाभीष्टमथान्येऽपि लभन्तेऽस्य प्रसादतः ॥ १४२ ॥

आप्नोति धार्मिको धर्मानर्थानाप्नोति दुर्गतः ।

मोक्षार्थिनस्तथा मोक्षं कामुकाः कामिनीं वराम् ॥ १४३ ॥

हे पार्वति ! इसी प्रकार नारी भी इसके श्रवण और कीर्तन से सौभाग्य, पति का प्रेम एवं पुत्र प्राप्त करती है । अन्यलोग भी इसकी कृपा से अपने-अपने अभीष्ट प्राप्त करते हैं। धार्मिक धर्म प्राप्त करता है दरिद्र धन पाता है। मोक्षार्थी जन मोक्ष और कामुक लोग सुन्दर कामिनी प्राप्त करते हैं ।

युद्धे जयं नृपाः क्षीणाः कुमार्य्यः सत्पतिं तथा ।

आरोग्यं रोगिणश्चापि तथा वंशार्थिनः सुतान् ॥ १४४ ॥

जयं विवादे कलिकृत् सिद्धी सिद्धीच्छुरुत्तमाः ।

वियुक्ता बन्धुभिः सङ्गं गतायुश्चायुषाञ्चयम् ॥ १४५ ॥

हारे हुए राजा युद्ध में विजय, कुमारियाँ उत्तम पति, रोगी लोग आरोग्य तथा वंश चाहने वाले पुत्र प्राप्त करते हैं। कलह करने वाला पुरुष विवाद में विजय, सिद्धि चाहने वाला उत्तम सिद्धियाँ, बन्धुओं से वियुक्त व्यक्ति उनका साथ और गतायु पुरुष आयुष्य प्राप्त करता है ।

सदा य एतत्पठति निशीथे भक्तिभावितः ।

तस्यासाध्यमथाप्राप्यं त्रैलोक्ये नैव विद्यते ॥ १४६ ॥

कीर्त्तिं भोगान् स्त्रियः पुत्रान् धनं धान्यं हयान् गजान् ।

ज्ञातिश्रेष्ठ्यं पशून् भूमिं राजवश्यं च मान्यताम् ॥ १४७ ॥

लभते प्रेयसि क्षुद्रजातिरप्यस्य कीर्त्तनात् ।

नास्य भीतिर्न दौर्भाग्यं नाल्पायुष्यं न रोगिता ॥ १४८ ॥

न प्रेतभूताभिभवो न दोषो ग्रहजस्तथा ।

जायते पतितो नैव क्वचिदप्येष सङ्कटे ॥ १४९ ॥

जो व्यक्ति इसको भक्तिभाव से सदा आधीरात को पढ़ता है उसके लिये त्रैलोक्य में कुछ भी असाध्य और अप्राप्य नहीं है। हे प्रेयसि। छोटी जाति वाला भी इस (स्तोत्र ) के कीर्त्तन से कीर्ति, भोग, स्त्री, पुत्र, भूति, राजवश्यता और सम्मान प्राप्त करता है । इसको न तो (किसी से) भय, न दुर्भाग्य, न अल्पायु न रोग, न भूत प्रेत से बाधा, न ग्रह दोष होता है । यह कभी भी सङ्कट में नहीं पड़ता ॥ १४१-१४९ ॥

यदीच्छसि परं श्रेयस्ततुं सङ्कटमेव च ।

पठान्वहमिदं स्तोत्रं सत्यं सत्यं सुरेश्वरि ॥ १५० ॥

न सास्ति भूतले सिद्धिः कीर्त्तनाद् या न जायते ।

हे सुरेश्वरि ! यदि तुम परम श्रेयस् (= मोक्ष) चाहती हो और सङ्कट से पार जाना चाहती हो तो इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करो। यह सत्यवचन है। भूतल पर कोई भी ऐसी सिद्धि नहीं है जो (इसके) कीर्तन से प्राप्त न होती हो।

शृणु चान्यद्वरारोहे कीर्त्यमानं वचो मम ॥ १५१ ॥

महाभूतानि पञ्चापि खान्येकादश यानि च ।

तन्मात्राणि च जीवात्मा परमात्मा तथैव च ।। १५२ ॥

सप्तार्णवाः सप्तलोका भुवनानि चतुर्दश ।

नक्षत्राणि दिशः सर्वाः ग्रहाः पातालसप्तकम् ॥ १५३ ॥

सप्तद्वीपवती पृथ्वी जङ्गमाजङ्गमं जगत् ।

चराचरं त्रिभुवनं विद्याश्चापि चतुर्दश ॥ १५४ ॥

सांख्यं योगस्तथा ज्ञानं चेतना कर्मवासना ।

भगवत्यां स्थितं सर्वं सूक्ष्मरूपेण बीजवत् ॥ १५५ ॥

सा चास्मिन् नामसाहस्त्रे स्तोत्रे तिष्ठति बद्धवत् ।

पठनीयं विदित्वैवं स्तोत्रमेतत् सुदुर्लभम् ॥ १५६ ॥

हे वरारोहे! अब मेरा दूसरा वचन सुनोपाँच महाभूत, ग्यारह इन्द्रियाँ, तन्मात्रायें, जीवात्मा, परमात्मा, सातसमुद्र, सातलोक, चौदह भुवन, नक्षत्र, सभी दिशायें, ग्रह, सात पाताल, सात द्वीप वाली पृथिवी, चराचर जगत्, चराचर त्रिभुवन, चौदह विद्यायें, सांख्य, योग, ज्ञान, चेतना, कर्मवासना सब कुछ इस भगवती में बीज के समान सूक्ष्मरूप से स्थित है और वह (बीज) इस सहस्रनामस्तोत्र में बद्ध की भाँति स्थित है। ऐसा समझकर सुदुर्लभ इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये ।

देवी कामकलाकाली भजन्तः सिद्धिदायिनीम् ।

स्तोत्रं चादः पठन्तो हि साधयन्तीप्सितान् स्वकान् ॥ १५७ ॥

सिद्धिदायिनी देवी कामकलाकाली की सेवा करने वाले तथा इस स्तोत्र का पाठ करने वाले लोग अपना इष्ट सिद्ध कर लेते हैं ॥। १५०-१५७ ॥

॥ इति महाकालसहितायां कामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

शेष आगे जारी ........ महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल 12

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