Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2021
(800)
-
▼
April
(66)
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय ८
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय ७
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय ६
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय ५
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय ४
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय ३
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय २
- गरुडपुराण सारोद्धार अध्याय १
- गरुडपुराण सारोद्धार
- पंचक
- अन्त्येष्टि संस्कार
- परशुरामकल्पसूत्र द्वितीय भाग
- परशुरामकल्पसूत्र प्रथम भाग
- परशुराम
- परशुराम द्वादशनाम
- परशुराम सहस्रनाम स्तोत्रम्
- परशुरामतन्त्रम्
- परशुरामाष्टाविंशतिनामस्तोत्रम्
- परशुरामाष्टकम्
- काली माता
- राम तांडव स्तोत्रम्
- काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र
- कामराजकीलितोद्धारोपनिषत्
- कालिका स्तोत्रम्
- सुधाधाराकाली स्तोत्रम्
- काली सहस्रनाम स्तोत्रम्
- काली कवचम्
- ककारादिकालीसहस्रनामावली
- ककारादि कालीसहस्रनामस्तोत्रम्
- काली सहस्रनाम स्तोत्रम्
- कालीशतनामस्तोत्रम्
- ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम्
- कालिकाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
- आद्या कालिका शतनामस्तोत्रम्
- काली त्रैलोक्य विजय कवच
- कालीमेधादीक्षितोपनिषत्
- काली मन्त्र
- काली कीलकम्
- काली पटलम्
- कालिकाष्टकम्
- काली स्तव
- कालिका हृदयम्
- कालिका कवचम्
- कालीस्तोत्रम् परशुरामकृतम्
- काली स्तोत्रम्
- जगन्मंगल कालीकवचम्
- काली कर्पूरस्तोत्र
- दक्षिणकालिका कवचम्
- कालिकोपनिषत्
- काली पूजन विधि
- श्रीकालीताण्डवस्तोत्रम्
- श्रीदक्षिणकाली खड़्गमाला स्तोत्रम्
- भद्रकाली अष्टकम्
- श्रीभद्राम्बिकाष्टोत्तरशतनामावलि
- श्रीभद्रकाली कवचम्
- भद्रकाली सहस्रनाम स्तोत्रम्
- भद्रकाली स्तुति
- कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्रम्
- कामकलाकाली सहस्रनाम स्तोत्रम्
- कामकलाकाली भुजङ्ग प्रयात स्तोत्र
- कामकलाकाली साधना
- कामकलाकाली त्रैलोक्य मोहन कवच
- कामकलाकाली रहस्य
- कामकलाकाली
- गुह्यकाली सहस्रनामस्तोत्रम्
- गुह्यकाल्युपनिषत्
-
▼
April
(66)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
परशुराम द्वादशनाम
परशुराम जी का सहस्त्रों नामों का उल्लेख
शास्त्रों व धर्मग्रंथों में किया गया है अक्षय तृतीया भगवान श्री परशुराम जी
जन्मोत्सव के सुअवसर पर भगवान श्री परशुराम जी की कृपा प्राप्ति के लिए सर्व
मनोकामना सिद्ध परशुराम द्वादशनाम स्तोत्र जो की अग्निपुराण में वर्णित है, यहाँ
दिया जा रहा है। परशुराम जी का श्रीमद्भागवत महापुराण में भी वर्णन मिलाता है कि-
रेणुका के गर्भ से जमदग्नि ऋषि के
वसुमान आदि कई पुत्र हुए। उनमें सबसे छोटे परशुरामजी थे। उनका यश सारे संसार में
प्रसिद्ध है। कहते हैं कि हैहयवंश का अन्त करने के लिये स्वयं भगवान ने परशुराम के
रूप में अंशावतार ग्रहण किया था। उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियहीन कर
दिया। यद्यपि क्षत्रियों ने उनका थोड़ा-सा ही अपराध किया था-फिर भी वे लोग बड़े
दुष्ट,
ब्राह्मणों के अभक्त, रजोगुणी और विशेष करके
तमोगुणी हो रहे थे। यही कारण था कि वे पृथ्वी के भार हो गये थे और इसी के फलस्वरूप
भगवान परशुराम ने उनका नाश करके पृथ्वी का भार उतार दिया।
राजा परीक्षित ने पूछा- भगवन! अवश्य
ही उस समय के क्षत्रिय विषयलोलुप हो गये थे; परन्तु
उन्होंने परशुरामजी का ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया, जिसके कारण
उन्होंने बार-बार क्षत्रियों के वंश का संहार किया।
श्री शुकदेवजी कहने लगे- परीक्षित!
उन दिनों हैहयवंश का अधिपति था अर्जुन। वह एक श्रेष्ठ क्षत्रिय था। उसने अनेकों
प्रकार की सेवा-शुश्रूषा करके भगवान नारायण के अंशावतार दत्तात्रेयजी को प्रसन्न
कर लिया और उनसे एक हज़ार भुजाएँ तथा कोई भी शत्रु युद्ध में पराजित न कर सके- यह
वरदान प्राप्त कर लिया। साथ ही इन्द्रियों का अबाध बल,
अतुल सम्पत्ति, तेजस्विता, वीरता, कीर्ति और शारीरिक बल भी उसने उनकी कृपा से
प्राप्त कर लिये थे। वह योगेश्वर हो गया था। उसमें ऐसा ऐश्वर्य था कि वह
सूक्ष्म-से-सूक्ष्म, स्थूल-से-स्थूल रूप धारण कर लेता। सभी
सिद्धियाँ उसे प्राप्त थीं। वह संसार में वायु की तरह सब जगह बेरोक-टोक विचरा
करता। एक बार गले में वैजयन्ती माला पहने सहस्त्रबाहु अर्जुन बहुत-सी सुन्दरी
स्त्रियों के साथ नर्मदा नदी में जल-विहार कर रहा था। उस समय मदोन्मत्त
सहस्त्रबाहु ने अपनी बाँहों से नदी का प्रवाह रोक दिया। दशमुख रावण का शिविर भी
वहीं कहीं पास में ही था। नदी की धारा उलटी बहने लगी, जिससे
उसका शिविर डूबने लगा। रावण अपने को बहुत बड़ा वीर तो मानता ही था, इसलिये सहस्त्रार्जुन का यह पराक्रम उससे सहन नहीं हुआ। जब रावण
सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास जाकर बुरा-भला कहने लगा, तब उसने
स्त्रियों के सामने ही खेल-खेल में रावण को पकड़ लिया और अपनी राजधानी माहिष्मती
में ले जाकर बंदर के समान कैद कर लिया। पीछे पुलस्त्यजी के कहने से सहस्त्रबाहु ने
रावण को छोड़ दिया।
कामधेनु के लिए संघर्ष
एक दिन सहस्त्रबाहु अर्जुन शिकार
खेलने के लिये बड़े घोर जंगल में निकल गया था। दैववश वह जमदग्नि मुनि के आश्रम पर
जा पहुँचा। परम तपस्वी जमदग्नि मुनि के आश्रम में कामधेनु रहती थी। उसके प्रताप से
उन्होंने सेना, मन्त्री और वाहनों के साथ
हैहयाधिपति का देखा कि जमदग्नि मुनि का ऐश्वर्य तो मुझसे भी बढ़ा-चढ़ा है। इसलिये
उसने उनके स्वागत-सत्कार को कुछ भी आदर न देकर कामधेनु को ही ले लेना चाहा। उसने
अभिमानवश जमदग्नि मुनि से माँगा भी नहीं, अपने सेवकों को
आज्ञा दी कि कामधेनु को छीन ले चलो। उसकी आज्ञा से उसके सेवक बछड़े के साथ 'बाँ-बाँ' डकराती हुई कामधेनु को बलपूर्वक
माहिष्मतीपुरी ले गये। जब वे सब चले गये, तब परशुरामजी आश्रम
पर आये और उसकी दुष्टता का वृत्तान्त सुनकर चोट खाये हुए साँप की तरह क्रोध से
तिलमिला उठे। वे अपना भयंकर फरसा, तरकस, ढाल एवं धनुष लेकर बड़े वेग से उसके पीछे दौड़े- जैसे कोई किसी से न दबने
वाला सिंह हाथी पर टूट पड़े।
सहस्त्रबाहु अर्जुन अभी अपने नगर
में प्रवेश कर ही रहा था कि उसने देखा परशुरामजी महाराज बड़े वेग से उसी की ओर
झपटे आ रहे हैं। उनकी बड़ी विलक्षण झाँकी थी। वे हाथ में धनुष-बाण और फरसा लिये
हुए थे,
शरीर पर काला मृगचर्म धारण किये हुए थे और उनकी जटाएँ सूर्य की
किरणों के समान चमक रही थीं। उन्हें देखते ही उसने गदा, खड्ग
बाण, ऋष्टि, शतघ्नी और शक्ति आदि
आयुधों से सुसज्जित एवं हाथी, घोड़े, रथ
तथा पदातियों से युक्त अत्यन्त भयंकर सत्रह अक्षौहिणी सेना भेजी। भगवान परशुराम ने
बात-की-बात में अकेले ही उस सारी सेना को नष्ट कर दिया। भगवान परशुरामजी की गति मन
और वायु के समान थी। बस, वे शत्रु की सेना काटते ही जा रहे
थे। जहाँ-जहाँ वे अपने फरसे का प्रहार करते, वहाँ-वहाँ सारथि
और वाहनों के साथ बड़े-बड़े वीरों की बाँहें, जाँघें और कंधे
कट-कटकर पृथ्वीपर गिरते जाते थे।
सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध
हैहयाधिपति अर्जुन ने देखा कि मेरी
सेना के सैनिक, उनके धनुष, ध्वजाएँ और ढाल भगवान परशुराम के फरसे और बाणों से कट-कटकर ख़ून से लथपथ
रणभूमि में गिर गये हैं, तब उसे बड़ा क्रोध आया और वह स्वयं
भिड़ने के लिये आ धमका। उसने एक साथ ही अपनी हज़ार भुजाओं से पाँच सौ धनुषों पर
बाण चढ़ाये और परशुरामजी पर छोड़े। परन्तु परशुराम जी तो समस्त शस्त्रधारियों के
शिरोमणि ठहरे। उन्होंने अपने एक धनुषपर छोड़े हुए बाणों से ही एक साथ सबको काट
डाला। अब हैहयाधिपति अपने हाथों से पहाड़ और पेड़ उखाड़कर बड़े वेग से युद्ध भूमि
में परशुरामजी की ओर झपटा। परन्तु परशुरामजी ने अपनी तीखी धारवाले फरसे से बड़ी
फुर्ती के साथ उसकी साँपों के समान भुजाओं को काट डाला। जब उसकी बाँहें कट गयीं,
तब उन्होंने पहाड़ की चोटी की तरह उसका ऊँचा सिर धड़ से अलग कर
दिया। पिता के मर जाने पर उसके दस हज़ार लड़के डरकर भग गये।
प्रायश्चित
परीक्षित! विपक्षी वीरों के नाशक
परशुरामजी ने बछड़े के साथ कामधेनु लौटा ली। वह बहुत ही दु:खी हो रही थी। उन्होंने
उसे अपने आश्रम पर लाकर पिताजी को सौंप दिया। और माहिष्मती में सहस्त्रबाहु ने तथा
उन्होंने जो कुछ किया था, सब अपने पिताजी तथा
भाइयों को कह सुनाया। सब कुछ सुनकर जमदग्नि मुनि ने कहा- 'हाय,
हाय, परशुराम! तुमने बड़ा पाप किया। राम,
राम! तुम बड़े वीर हो; परन्तु सर्वदेवमय नरदेव
का तुमने व्यर्थ ही वध किया। बेटा! हमलोग ब्राह्मण हैं। क्षमा के प्रभाव से ही हम
संसार में पूजनीय हुए हैं। और तो क्या, सबके दादा ब्रह्माजी
भी क्षमा के बल से ही ब्रह्मपद को प्राप्त हुए हैं। ब्राह्मणों की शोभा क्षमा के
द्वारा ही सूर्य की प्रभा के समान चमक उठती है। सर्वशक्तिमान भगवान श्रीहरि भी
क्षमावानों पर ही शीघ्र प्रसन्न होते हैं। बेटा! सार्वभौम राजा का वध ब्राह्मण की
हत्या से भी बढ़कर है। जाओ, भगवान का स्मरण करते हुए तीर्थों
का सेवन करके अपने पापों को धो डालो'।
अथ श्रीपरशुरामद्वादशनामानि
एकवीरात्मजो विष्णुर्जामदग्न्यः
प्रतापवान् ॥
सह्याद्रिवासी वीरश्च
क्षत्रजित्पृथिवीपतिः ।
इति द्वादशनामानि भार्गवस्य
महात्मनः ।
यस्त्रिकाले पठेन्नित्यं सर्वत्र
विजयी भवेत् ॥
श्रीपरशुराम द्वादशनाम सम्पूर्ण ॥
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: