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कर्मकाण्ड

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परशुराम

परशुराम

भगवान श्री परशुराम जी के जन्म के सन्दर्भ में पुराणों में कथा आती है कि-

परशुराम जन्म कथा- भृगु ने अपने पुत्र के विवाह के विषय में जाना तो बहुत प्रसन्न हुए तथा अपनी पुत्रवधू से वर माँगने को कहा। उनसे सत्यवती ने अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र जन्म की कामना की। भृगु ने उन दोनों को 'चरु' भक्षणार्थ दिये तथा कहा कि ऋतुकाल के उपरान्त स्नान करके सत्यवती गूलर के पेड़ तथा उसकी माता पीपल के पेड़ का आलिंगन करे तो दोनों को पुत्र प्राप्त होंगे। माँ-बेटी के चरु खाने में उलट-फेर हो गयी। दिव्य दृष्टि से देखकर भृगु पुनः वहाँ पधारे तथा उन्होंन सत्यवती से कहा कि तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणोचित व्यवहार करेगा तथा तुम्हारा बेटा ब्राह्मणोचित होकर भी क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला होगा। बहुत अनुनय-विनय करने पर भृगु ने मान लिया कि सत्यवती का बेटा ब्राह्मणोचित रहेगा किंतु पोता क्षत्रियों की तरह कार्य करने वाला होगा।

सत्यवती के पुत्र जमदग्नि मुनि हुए। उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया। रेणुका के पाँच पुत्र हुए

1.       रुमण्वान

2.       सुषेण

3.       वसु

4.       विश्वावसु तथा

5.       पाँचवें पुत्र का नाम परशुराम था।

वही क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला पुत्र था। एक बार सद्यस्नाता रेणुका राजा चित्ररथ पर मुग्ध हो गयी। उसके आश्रम पहुँचने पर मुनि को दिव्य ज्ञान से समस्त घटना ज्ञात हो गयी। उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों को माँ की हत्या करने का आदेश दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ। जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया। परशुराम ने तुरन्त पिता की आज्ञा का पालन किया। जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर माँगने के लिए कहा। परशुराम ने पहले वर से माँ का पुनर्जीवन माँगा और फिर अपने भाईयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम से कहा कि वो अमर रहेगा। एक दिन जब परशुराम बाहर गये थे तो कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आये। युद्ध के मद में उन्होंने रेणुका का अपमान किया तथा उसके बछड़ों का हरण करक चले गये। गाय रंभाती रह गयी। परशुराम को मालूम पड़ा तो क्रुद्ध होकर उन्होंने सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। हैहयराज के पुत्र ने आश्रम पर धावा बोला तथा परशुराम की अनुपस्थिति में मुनि जमदग्नि को मार डाला। परशुराम घर पहुँचे तो बहुत दुखी हुए तथा पृथ्वी का क्षत्रियहीन करने का संकल्प किया। अतः परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया। समंत पंचक क्षेत्र में पाँच रुधिर के कुंड भर दिये। क्षत्रियों के रुधिर से परशुराम ने अपने पितरों का तर्पण किया। उस समय ऋचीक साक्षात प्रकट हुए तथा उन्होंने परशुराम को ऐसा कार्य करने से रोका। ऋत्विजों को दक्षिणा में पृथ्वी प्रदान की। ब्राह्मणों ने कश्यप की आज्ञा से उस वेदी को खंड-खंड करके बाँट लिया, अतः वे ब्राह्मण जिन्होंने वेदी को परस्पर बाँट लिया था, खांडवायन कहलाये।

परशुराम

परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था अतः इस दिन व्रत रख सर्वकामना की सिद्धि हेतु  अष्टक, स्तुति, स्तवन व आरती आदि करना चाहिए। यह स्तुति महामारी से रक्षा करने में सक्षम है। यहाँ पाठकों के लाभार्थ भगवान श्री परशुराम जी स्तुति, स्तवन व आरती दिया जा रहा है।

परशुरामस्तुती


कुलाचला यस्य महीं द्विजेभ्यः प्रयच्छतः सोमदृषत्त्वमापुः ।

बभूवुरुत्सर्गजलं समुद्राः स रैणुकेयः श्रियमातनीतु ॥ १॥

नाशिष्यः किमभूद्भवः किपभवन्नापुत्रिणी रेणुका

नाभूद्विश्वमकार्मुकं किमिति यः प्रीणातु रामत्रपा ।

विप्राणां प्रतिमन्दिरं मणिगणोन्मिश्राणि दण्डाहतेर्नांब्धीनो

स मया यमोऽर्पि महिषेणाम्भांसि नोद्वाहितः ॥ २॥

पायाद्वो यमदग्निवंशतिलको वीरव्रतालङ्कृतो

रामो नाम मुनीश्वरो नृपवधे भास्वत्कुठारायुधः ।

येनाशेषहताहिताङ्गरुधिरैः सन्तर्पिताः पूर्वजा

भक्त्या चाश्वमखे समुद्रवसना भूर्हन्तकारीकृता ॥ ३॥

द्वारे कल्पतरुं गृहे सुरगवीं चिन्तामणीनङ्गदे पीयूषं

सरसीषु विप्रवदने विद्याश्चतस्रो दश ।

एव कर्तुमयं तपस्यति भृगोर्वंशावतंसो मुनिः

पायाद्वोऽखिलराजकक्षयकरो भूदेवभूषामणिः ॥ ४॥

॥ इति परशुराममस्तुतिः ॥


।।परशुराम स्तवन।।


जय परशुराम ललाम करूणाधाम दुखहर सुखकरं।

जय रेणुका नंदन सहस्त्रार्जुन निकंदन भृगुवरं॥

जय परशुराम...

जमदग्नि सुत बल बुद्घियुक्त, गुण ज्ञान शील सुधाकरं।

भृगुवंश चंदन,जगत वंदन, शौर्य तेज दिवाकरं॥

शोभित जटा, अद्भुत छटा, गल सूत्र माला सुंदरम्‌ ।

शिव परशु कर, भुज चाप शर, मद मोह माया तमहरं॥

जय परशुराम...

क्षत्रिय कुलान्तक, मातृजीवक मातृहा पितुवचधरं।

जय जगतकर्ता जगतभर्ता जगत हर जगदीश्वरं॥

जय क्रोधवीर, अधीर, जय रणधीर अरिबल मद हरं।

जय धर्म रक्षक, दुष्टघातक साधु संत अभयंकरं॥

जय परशुराम...

नित सत्यचित आनंद-कंद मुकुंद संतत शुभकरं।

जय निर्विकार अपार गुण आगार महिमा विस्तरं॥

अज अंतहीन प्रवीन आरत दीन हितकारी परं।

जय मोक्ष दाता, वर प्रदाता, सर्व विधि मंगलकरं॥

जय परशुराम...।


आरती श्री परशुराम की


  जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।

ॐ जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।

सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।। ॐ जय।।

जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।

मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ॐ जय।।

कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।

चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।। ॐ जय।।

ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।

सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।। ॐ जय।।

मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।

दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।। ॐ जय।।

कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।

कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ॐ जय।।

माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।

मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।। ॐ जय।।

अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।

पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।। ॐ जय।।

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