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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
काली सहस्रनाम स्तोत्रम्
यह श्रीकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् श्रीकालिकाकुलसर्वस्व में शिव व परशुराम संवाद के रूप में वर्णित है। जिसमें कहा गया है कि- यह स्तोत्र अति गोपनीय है तथा सभी पापों का नाश करने वाला है। इसके पाठ से वन्ध्या, काकवन्ध्या व मृतवत्सा स्त्री को भी चिरजीवि पुत्र की प्राप्ति होती है। इसे लिखकर धारण करने से साधक की हर ईच्छा पूरी होती है।
श्रीकालीसहस्रनामस्तोत्रम्
कालिकाकुलसर्वस्वे
कथितोऽयं महामन्त्रः
सर्वमन्त्रोत्तमोत्तमः ।
यमासाद्य मया
प्राप्तमैश्वर्यपदमुत्तमम् ॥ १॥
संयुक्तः परया भक्त्या यथोक्तविधिना
भवान् ।
कुरुतामर्चनं देव्याः
त्रैलोक्यविजिगीषया ॥ २॥
श्रीपरशुराम उवाच
प्रसन्नो यदि मे देवः परमेशः
पुरातनः ।
रहस्यं परया देव्याः कृपया कथय
प्रभो ॥ ३॥
यथार्चनं विना होमं विना न्यासं
विनाबलिम् ।
विना गन्धं विना पुष्पं विना
नित्योदितक्रिया ॥ ४॥
प्राणायामं विना ध्यानं विना
भूतविशोधनम् ।
विना जाप्यं विना दानं विना काली
प्रसीदति ॥ ५॥
श्रीशङ्कर उवाच ।
पृष्टं त्वयोत्तमं प्राज्ञ
भृगुवंशविवर्धनम् ।
भक्तानामपि भक्तोऽसि त्वमेवं
साधयिष्यसि ॥ ६॥
देवीं दानवकोटिघ्नीं लीलया
रुधिरप्रियाम् ।
सदा स्तोत्रप्रियामुग्रां
कामकौतुकलालसाम् ॥ ७॥
सर्वदाऽऽनन्दहृदयां
वासव्यासक्तमानसाम् ।
माध्वीकमत्स्यमांसादिरागिणीं
रुधिरप्रियाम् ॥ ८॥
श्मशानवासिनीं
प्रेतगणनृत्यमहोत्सवाम् ।
योगप्रभां योगिनीशां योगीन्द्रहृदये
स्थितां ॥ ९॥
तामुग्रकालिकां राम
प्रसादयितुमर्हसि ।
तस्याः स्तोत्रं महापुण्यं स्वयं
काल्या प्रकाशितम् ॥ १०॥
तव तत्कथयिष्यामि श्रुत्वा
वत्सावधारय ।
गोपनीयं प्रयत्नेन पठनीयं परात्परम्
॥ ११॥
यस्यैककालपठनात्सर्वे विघ्नाः समाकुलाः
।
नश्यन्ति दहने दीप्ते पतङ्गा इव
सर्वतः ॥ १२॥
गद्यपद्यमयी वाणी तस्य
गङ्गाप्रवाहवत् ।
तस्य दर्शनमात्रेण वादिनो निष्प्रभा
मताः ॥ १३॥
राजानोऽपि च दासत्वं भजन्ति च परे
जनाः ।
तस्य हस्ते सदैवास्ति सर्वसिद्धिर्न
संशयः ॥ १४॥
निशीथे मुक्तये शम्भुर्नग्नः शक्तिसमन्वितः
।
मनसा चिन्तयेत्कालीं महाकालीति
लालिताम् ॥ १५॥
पठेत्सहस्रनामाख्यं
स्तोत्रं मोक्षस्य साधनम् ।
प्रसन्ना कालिका तस्य
पुत्रत्वेनानुकम्पते ॥ १६॥
वेधा ब्रह्मास्मृतेर्ब्रह्म कुसुमैः
पूजिता परा ।
प्रसीदति तथा काली यथानेन प्रसीदति
॥ १७॥
काली सहस्रनाम स्तोत्रम् विनियोगः
ॐ अस्य
श्रीकालिकासहस्रनामस्तोत्रमहामन्त्रस्य महाकालभैरव ऋषिःअनुष्टुप् छन्दः
श्मशानकालिका देवता महाकालिकाप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ध्यानम् ।
शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां
हसन्मुखीम् ।
चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां
शिवाम् ॥
मुण्डमालाधरां देवीं लोलज्जिह्वां
दिगम्बराम् ।
एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं
श्मशानालयवासिनीम् ॥
अथ काली सहस्रनाम स्तोत्रम्
ॐ क्रीं महाकाल्यै नमः ॥
ॐ श्मशानकालिका काली भद्रकाली
कपालिनी ।
गुह्यकाली महाकाली कुरुकुल्ला
विरोधिनी ॥ १८॥
कालिका कालरात्रिश्च
महाकालनितम्बिनी ।
कालभैरवभार्या च कुलवर्त्मप्रकाशिनी
॥ १९॥
कामदा कामिनी काम्या
कामनीयस्वभाविनी ।
कस्तूरीरसनीलाङ्गी
कुञ्जरेश्वरगामिनी ॥ २०॥
ककारवर्णसर्वाङ्गी कामिनी
कामसुन्दरी ।
कामार्ता कामरूपा च कामधेनुः कलावती
॥ २१॥
कान्ता कामस्वरूपा च कामाख्या
कुलपालिनी ।
कुलीना कुलवत्यम्बा दुर्गा
दुर्गार्तिनाशिनी ॥ २२॥
कौमारी कुलजा कृष्णा कृष्णदेहा
कृशोदरी ।
कृशाङ्गी कुलिशाङ्गी च क्रीङ्कारी
कमला कला ॥ २३॥
करालास्या कराली च
कुलकान्ताऽपराजिता ।
उग्रा चोग्रप्रभा दीप्ता
विप्रचित्ता महाबला ॥ २४॥
नीला घना बलाका च मात्रामुद्रापिताऽसिता
।
ब्राह्मी नारायणी भद्रा सुभद्रा
भक्तवत्सला ॥ २५॥
माहेश्वरी च चामुण्डा वाराही
नारसिंहिका ।
वज्राङ्गी वज्रकङ्काली
नृमुण्डस्रग्विणी शिवा ॥ २६॥
मालिनी नरमुण्डाली गलद्रक्तविभूषणा
।
रक्तचन्दनसिक्ताङ्गी
सिन्दूरारुणमस्तका ॥ २७॥
घोररूपा घोरदंष्ट्रा घोराघोरतरा
शुभा ।
महादंष्ट्रा महामाया सुदती
युगदन्तुरा ॥ २८॥
सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी
त्रिलोचना ।
शारदेन्दुप्रसन्नास्या
स्फुरत्स्मेराम्बुजेक्षणा ॥ २९॥
अट्टहासप्रसन्नास्या स्मेरवक्त्रा
सुभाषिणी ।
प्रसन्नपद्मवदना स्मितास्या
प्रियभाषिणि ॥ ३०॥
कोटराक्षी कुलश्रेष्ठा महती
बहुभाषिणी ।
सुमतिः कुमतिश्चण्डा
चण्डमुण्डातिवेगिनी ॥ ३१॥
प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चर्चिका
चण्डवेगिनी ।
सुकेशी मुक्तकेशी च दीर्घकेशी
महत्कचा ॥ ३२॥
प्रेतदेहा कर्णपूरा
प्रेतपाणिसुमेखला ।
प्रेतासना प्रियप्रेता
प्रेतभूमिकृतालया ॥ ३३॥
श्मशानवासिनी पुण्या पुण्यदा
कुलपण्डिता ।
पुण्यालया पुण्यदेहा पुण्यश्लोकी च
पावनी ॥ ३४॥
पुत्रा पवित्रा परमा
पुरापुण्यविभूषणा ।
पुण्यनाम्नी भीतिहरा वरदा
खड्गपाणिनी ॥ ३५॥
नृमुण्डहस्तशस्ता च छिन्नमस्ता
सुनासिका ।
दक्षिणा श्यामला श्यामा शान्ता
पीनोन्नतस्तनी ॥ ३६॥
दिगम्बरा घोररावा सृक्कान्ता
रक्तवाहिनी ।
घोररावा शिवा खड्गा विशङ्का
मदनातुरा ॥ ३७॥
मत्ता प्रमत्ता प्रमदा
सुधासिन्धुनिवासिनी ।
अतिमत्ता महामत्ता सर्वाकर्षणकारिणी
॥ ३८॥
गीतप्रिया वाद्यरता
प्रेतनृत्यपरायणा ।
चतुर्भुजा दशभुजा अष्टादशभुजा तथा ॥
३९॥
कात्यायनी जगन्माता जगती परमेश्वरी
।
जगद्बन्धुर्जगद्धात्री
जगदानन्दकारिणी ॥ ४०॥
जन्ममयी हैमवती महामाया महामहा ।
नागयज्ञोपवीताङ्गी नागिनी नागशायिनी
॥ ४१॥
नागकन्या देवकन्या गन्धर्वी
किन्नरेश्वरी ।
मोहरात्री महारात्री दारुणा
भासुराम्बरा ॥ ४२॥
विद्याधरी वसुमती यक्षिणी योगिनी
जरा ।
राक्षसी डाकिनी वेदमयी वेदविभूषणा ॥
४३॥
श्रुतिः स्मृतिर्महाविद्या
गुह्यविद्या पुरातनी ।
चिन्त्याऽचिन्त्या स्वधा स्वाहा
निद्रा तन्द्रा च पार्वती ॥ ४४॥
अपर्णा निश्चला लोला सर्वविद्या
तपस्विनी ।
गङ्गा काशी शची सीता सती सत्यपरायणा
॥ ४५॥
नीतिस्सुनीतिस्सुरुचिस्तुष्टिः
पुष्टिर्धृतिः क्षमा ।
वाणी
बुद्धिर्महालक्ष्मीर्लक्ष्मीर्नीलसरस्वती ॥ ४६॥
स्रोतस्वती सरस्वती मातङ्गी विजया
जया ।
नदी सिन्धुः सर्वमयी तारा
शून्यनिवासिनी ॥ ४७॥
शुद्धा तरङ्गिणी मेधा लाकिनी
बहुरूपिणी ।
स्थूला सूक्ष्मा सूक्ष्मतरा
भगवत्यनुरूपिणी ॥ ४८॥
परमाणुस्वरूपा च चिदानन्दस्वरूपिणी
।
सदानन्दमयी सत्या
सर्वानन्दस्वरूपिणी ॥ ४९॥
सुनन्दा नन्दिनी स्तुत्या
स्तवनीयस्वभाविनी ।
रङ्गिणी टङ्किनी चित्रा विचित्रा
चित्ररूपिणी ॥ ५०॥
पद्मा पद्मालया पद्ममुखी
पद्मविभूषणा ।
डाकिनी शाकिनी क्षान्ता राकिणी
रुधिरप्रिया ॥ ५१॥
भ्रान्तिर्भवानी रुद्राणी मृडानी
शत्रुमर्दिनी ।
उपेन्द्राणी महेन्द्राणी ज्योत्स्ना
चन्द्रस्वरूपिणी ॥ ५२॥
सूर्यात्मिका रुद्रपत्नी रौद्री
स्त्री प्रकृतिः पुमान् ।
शक्तिर्मुक्तिर्मतिर्माता
भक्तिर्मुक्तिः पतिव्रता ॥ ५३॥
सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी
हरवल्लभा ।
सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भव्या
भाव्या भयापहा ॥ ५४॥
कर्त्री हर्त्री पालयित्री शर्वरी
तामसी दया ।
तमिस्रा तामसी स्थाणुः स्थिरा धीरा
तपस्विनी ॥ ५५॥
चार्वङ्गी चञ्चला लोलजिह्वा
चारुचरित्रिणी ।
त्रपा त्रपावती लज्जा विलज्जा
हरयौवती (ह्री रजोवती) ॥ ५६॥
सत्यवती धर्मनिष्ठा श्रेष्ठा
निष्ठुरवादिनी ।
गरिष्ठा दुष्टसंहर्त्री विशिष्टा
श्रेयसी घृणा ॥ ५७॥
भीमा भयानका भीमनादिनी भीः प्रभावती
।
वागीश्वरी श्रीर्यमुना यज्ञकर्त्री
यजुःप्रिया ॥ ५८॥
ऋक्सामाथर्वनिलया रागिणी शोभना सुरा
।
कलकण्ठी कम्बुकण्ठी वेणुवीणापरायणा
॥ ५९॥
वंशिनी वैष्णवी स्वच्छा धात्री
त्रिजगदीश्वरी ।
मधुमती कुण्डलिनी ऋद्धिः शुद्धिः
शुचिस्मिता ॥ ६०॥
रम्भोर्वशी रती रामा रोहिणी रेवती
मखा ।
शङ्खिनी चक्रिणी कृष्णा गदिनी
पद्मिनी तथा ॥ ६१॥
शूलिनी परिघास्त्रा च पाशिनी
शार्ङ्गपाणिनी ।
पिनाकधारिणी धूम्रा सुरभी वनमालिनी
॥ ६२॥
रथिनी समरप्रीता वेगिनी रणपण्डिता ।
जटिनी वज्रिणी नीला
लावण्याम्बुदचन्द्रिका ॥ ६३॥
बलिप्रिया सदापूज्या
दैत्येन्द्रमथिनी तथा ।
महिषासुरसंहर्त्री कामिनी
रक्तदन्तिका ॥ ६४॥
रक्तपा रुधिराक्ताङ्गी
रक्तखर्परधारिणी ।
रक्तप्रिया
मांसरुचिर्वासवासक्तमानसा ॥ ६५॥
गलच्छोणितमुण्डाली कण्ठमालाविभूषणा
।
शवासना चितान्तस्था महेशी वृषवाहिनी
॥ ६६॥
व्याघ्रत्वगम्बरा चीनचैलिनी
सिंहवाहिनी ।
वामदेवी महादेवी गौरी सर्वज्ञभामिनी
॥ ६७॥
बालिका तरुणी वृद्धा वृद्धमाता
जरातुरा ।
सुभ्रूर्विलासिनी ब्रह्मवादिनी
ब्राह्मणी सती ॥ ६८॥
सुप्तवती चित्रलेखा लोपामुद्रा
सुरेश्वरी ।
अमोघाऽरुन्धती तीक्ष्णा
भोगवत्यनुरागिणी ॥ ६९॥
मन्दाकिनी मन्दहासा
ज्वालामुख्यऽसुरान्तका ।
मानदा मानिनी मान्या माननीया
मदातुरा ॥ ७०॥
मदिरामेदुरोन्मादा मेध्या साध्या
प्रसादिनी ।
सुमध्याऽनन्तगुणिनी
सर्वलोकोत्तमोत्तमा ॥ ७१॥
जयदा जित्वरी जैत्री
जयश्रीर्जयशालिनी ।
सुखदा शुभदा सत्या
सभासङ्क्षोभकारिणी ॥ ७२॥
शिवदूती भूतिमती विभूतिर्भूषणानना ।
कौमारी कुलजा कुन्ती कुलस्त्री
कुलपालिका ॥ ७३॥
कीर्तिर्यशस्विनी भूषा भूष्ठा
भूतपतिप्रिया ।
सुगुणा निर्गुणाऽधिष्ठा निष्ठा
काष्ठा प्रकाशिनी ॥ ७४॥
धनिष्ठा धनदा धान्या वसुधा
सुप्रकाशिनी ।
उर्वी गुर्वी गुरुश्रेष्ठा षड्गुणा
त्रिगुणात्मिका ॥ ७५॥
राज्ञामाज्ञा महाप्राज्ञा सुगुणा
निर्गुणात्मिका ।
महाकुलीना निष्कामा सकामा कामजीवना
॥ ७६॥
कामदेवकला रामाऽभिरामा शिवनर्तकी ।
चिन्तामणिः कल्पलता जाग्रती
दीनवत्सला ॥ ७७॥
कार्तिकी कृत्तिका कृत्या अयोध्या
विषमा समा ।
सुमन्त्रा मन्त्रिणी घूर्णा
ह्लादिनी क्लेशनाशिनी ॥ ७८॥
त्रैलोक्यजननी हृष्टा
निर्मांसामलरूपिणी ।
तडागनिम्नजठरा शुष्कमांसास्थिमालिनी
॥ ७९॥
अवन्ती मधुरा हृद्या
त्रैलोक्यापावनक्षमा ।
व्यक्ताऽव्यक्ताऽनेकमूर्ती शारभी
भीमनादिनी ॥ ८०॥
क्षेमङ्करी शाङ्करी च
सर्वसम्मोहकारिणी ।
ऊर्द्ध्वतेजस्विनी क्लिन्ना
महातेजस्विनी तथा ॥ ८१॥
अद्वैता योगिनी पूज्या सुरभी
सर्वमङ्गला ।
सर्वप्रियङ्करी भोग्या धनिनी
पिशिताशना ॥ ८२॥
भयङ्करी पापहरा निष्कलङ्का वशङ्करी
।
आशा तृष्णा चन्द्रकला निद्राणा
वायुवेगिनी ॥ ८३॥
सहस्रसूर्यसङ्काशा
चन्द्रकोटिसमप्रभा ।
निशुम्भशुम्भसंहर्त्री
रक्तबीजविनाशिनी ॥ ८४॥
मधुकैटभसंहर्त्री महिषासुरघातिनी ।
वह्निमण्डलमध्यस्था
सर्वसत्त्वप्रतिष्ठिता ॥ ८५॥
सर्वाचारवती सर्वदेवकन्याधिदेवता ।
दक्षकन्या दक्षयज्ञनाशिनी
दुर्गतारिणी ॥ ८६॥
इज्या पूज्या विभा भूतिः
सत्कीर्तिर्ब्रह्मचारिणी ।
रम्भोरूश्चतुरा राका जयन्ती वरुणा
कुहूः ॥ ८७॥
मनस्विनी देवमाता यशस्या
ब्रह्मवादिनी ।
सिद्धिदा वृद्धिदा वृद्धिः
सर्वाद्या सर्वदायिनी ॥ ८८॥
आधाररूपिणी ध्येया मूलाधारनिवासिनी
।
आज्ञा प्रज्ञा पूर्णमना
चन्द्रमुख्यनुकूलिनी ॥ ८९॥
वावदूका निम्ननाभिः सत्यसन्धा दृढव्रता
।
आन्वीक्षिकी दण्डनीतिस्त्रयी
त्रिदिवसुन्दरी ॥ ९०॥
ज्वालिनी ज्वलिनी शैलतनया
विन्ध्यवासिनी ।
प्रत्यया खेचरी धैर्या तुरीया
विमलाऽऽतुरा ॥ ९१॥
प्रगल्भा वारुणी क्षामा दर्शिनी
विस्फुलिङ्गिनी ।
भक्तिः सिद्धिः सदाप्राप्तिः
प्रकाम्या महिमाऽणिमा ॥ ९२॥
ईक्षासिद्धिर्वशित्वा च
ईशित्वोर्ध्वनिवासिनी ।
लघिमा चैव सावित्री गायत्री
भुवनेश्वरी ॥ ९३॥
मनोहरा चिता दिव्या देव्युदारा
मनोरमा ।
पिङ्गला कपिला जिह्वा रसज्ञा रसिका
रसा ॥ ९४॥
सुषुम्नेडा योगवती गान्धारी
नवकान्तका ।
पाञ्चाली रुक्मिणी राधा राध्या भामा
च राधिका ॥ ९५॥
अमृता तुलसी वृन्दा कैटभी कपटेश्वरी
।
उग्रचण्डेश्वरी वीरजननी वीरसुन्दरी
॥ ९६॥
उग्रतारा यशोदाख्या देवकी देवमानिता
।
निरञ्जना चित्रदेवी क्रोधिनी
कुलदीपिका ॥ ९७॥
कुलरागीश्वरी ज्वाला मात्रिका
द्राविणी द्रवा ।
योगीश्वरी महामारी भ्रामरी
बिन्दुरूपिणी ॥ ९८॥
दूती प्राणेश्वरी गुप्ता बहुला
डामरी प्रभा ।
कुब्जिका ज्ञानिनी ज्येष्ठा
भुशुण्डी प्रकटाकृतिः ॥ ९९॥
द्राविणी गोपिनी माया कामबीजेश्वरी
प्रिया ।
शाकम्भरी कोकनदा सुसत्या च
तिलोत्तमा ॥ १००॥
अमेया विक्रमा क्रूरा सम्यक्छीला
त्रिविक्रमा ।
स्वस्तिर्हव्यवहा प्रीतिरुक्मा
धूम्रार्चिरङ्गदा ॥ १०१॥
तपिनी तापिनी विश्वभोगदा धारिणी धरा
।
त्रिखण्डा रोधिनी वश्या सकला
शब्दरूपिणी ॥ १०२॥
बीजरूपा महामुद्रा वशिनी योगरूपिणी
।
अनङ्गकुसुमाऽनङ्गमेखलाऽनङ्गरूपिणी ॥
१०३॥
अनङ्गमदनाऽनङ्गरेखाऽनङ्गकुशेश्वरी ।
अनङ्गमालिनी कामेश्वरी
सर्वार्थसाधिका ॥ १०४॥
सर्वतन्त्रमयी
सर्वमोदिन्यानन्दरूपिणी ।
वज्रेश्वरी च जयिनी
सर्वदुःखक्षयङ्करी ॥ १०५॥
षडङ्गयुवती योगेयुक्ता
ज्वालांशुमालिनी ।
दुराशया दुराधारा दुर्जया
दुर्गरूपिणी ॥ १०६॥
दुरन्ता दुष्कृतिहरा दुर्ध्येया दुरतिक्रमा
।
हंसेश्वरी त्रिलोकस्था
शाकम्भर्यनुरागिणी ॥ १०७॥
त्रिकोणनिलया नित्या परमामृतरञ्जिता
।
महाविद्येश्वरी श्वेता भेरुण्डा
कुलसुन्दरी ॥ १०८॥
त्वरिता भक्तिसंयुक्ता भक्तिवश्या
सनातनी ।
भक्तानन्दमयी भक्तभाविता भक्तशङ्करी
॥ १०९॥
सर्वसौन्दर्यनिलया
सर्वसौभाग्यशालिनी ।
सर्वसम्भोगभवना सर्वसौख्यानुरूपिणी
॥ ११०॥
कुमारीपूजनरता कुमारीव्रतचारिणी ।
कुमारीभक्तिसुखिनी कुमारीरूपधारिणी
॥ १११॥
कुमारीपूजकप्रीता
कुमारीप्रीतिदप्रिया ।
कुमारीसेवकासङ्गा कुमारीसेवकालया ॥
११२॥
आनन्दभैरवी बालभैरवी बटुभैरवी ।
श्मशानभैरवी कालभैरवी पुरभैरवी ॥
११३॥
महाभैरवपत्नी च परमानन्दभैरवी ।
सुरानन्दभैरवी च उन्मादानन्दभैरवी ॥
११४॥
यज्ञानन्दभैरवी च तथा तरुणभैरवी ।
ज्ञानानन्दभैरवी च अमृतानन्दभैरवी ॥
११५॥
महाभयङ्करी तीव्रा तीव्रवेगा
तरस्विनी ।
त्रिपुरा परमेशानी सुन्दरी
पुरसुन्दरी ॥ ११६॥
त्रिपुरेशी पञ्चदशी पञ्चमी
पुरवासिनी ।
महासप्तदशी चैव षोडशी त्रिपुरेश्वरी
॥ ११७॥
महाङ्कुशस्वरूपा च महाचक्रेश्वरी
तथा ।
नवचक्रेश्वरी चक्रेश्वरी
त्रिपुरमालिनी ॥ ११८॥
राजचक्रेश्वरी राज्ञी
महात्रिपुरसुन्दरी ।
सिन्दूरपूररुचिरा श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी
॥ ११९॥
सर्वाङ्गसुन्दरी
रक्तारक्तवस्त्रोत्तरीयका ।
यवायावकसिन्दूररक्तचन्दनधारिणी ॥
१२०॥
यवायावकसिन्दूररक्तचन्दनरूपधृक् ।
चमरी बालकुटिला निर्मला श्यामकेशिनी
॥ १२१॥
वज्रमौक्तिकरत्नाढ्या
किरीटकुण्डलोज्ज्वला ।
रत्नकुण्डलसंयुक्ता
स्फुरद्गण्डमनोरमा ॥ १२२॥
कुञ्जरेश्वरकुम्भोत्थमुक्तारञ्जितनासिका
।
मुक्ताविद्रुममाणिक्यहाराद्यस्तनमण्डला
॥ १२३॥
सूर्यकान्तेन्दुकान्ताढ्या
स्पर्शाश्मगलभूषणा ।
बीजपूरस्फुरद्बीजदन्तपङ्क्तिरनुत्तमा
॥ १२४॥
कामकोदण्डकाभुग्नभ्रूकटाक्षप्रवर्षिणी
।
मातङ्गकुम्भवक्षोजा लसत्कनकदक्षिणा
॥ १२५॥
मनोज्ञशष्कुलीकर्णा
हंसीगतिविडम्बिनी ।
पद्मरागाङ्गदद्योतद्दोश्चतुष्कप्रकाशिनी
॥ १२६॥
कर्पूरागरुकस्तूरीकुङ्कुमद्रवलेपिता
।
विचित्ररत्नपृथिवीकल्पशाखितलस्थिता
॥ १२७॥
रत्नदीपस्फुरद्रत्नसिंहासननिवासिनी
।
षट्चक्रभेदनकरी परमानन्दरूपिणी ॥
१२८॥
सहस्रदलपद्मान्ता
चन्द्रमण्डलवर्तिनी ।
ब्रह्मरूपा शिवक्रोडा
नानासुखविलासिनी ॥ १२९॥
हरविष्णुविरिञ्चेन्द्रग्रहनायकसेविता
।
शिवा शैवा च रुद्राणी तथैव
शिवनादिनी ॥ १३०॥
महादेवप्रिया देवी तथैवानङ्गमेखला ।
डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता ॥
१३१॥
माहेश्वरी वैष्णवी च भ्रामरी
शिवरूपिणी ।
अलम्बुसा भोगवती क्रोधरूपा सुमेखला
॥ १३२॥
गान्धारी हस्तिजिह्वा च इडा चैव
शुभङ्करी ।
पिङ्गला दक्षसूत्री च सुषुम्ना चैव
गान्धिनी ॥ १३३॥
भगात्मिका भगाधारा भगेशी भगरूपिणी ।
लिङ्गाख्या चैव कामेशी त्रिपुरा
भैरवी तथा ॥ १३४॥
लिङ्गगीतिस्सुगीतिश्च लिङ्गस्था
लिङ्गरूपधृक् ।
लिङ्गमाला लिङ्गभवा लिङ्गालिङ्गा च
पावकी ॥ १३५॥
भगवती कौशिकी च प्रेमरूपा प्रियंवदा
।
गृध्ररूपी शिवारूपा चक्रेशी
चक्ररूपधृक् ॥ १३६॥
आत्मयोनिर्ब्रह्मयोनिर्जगद्योनिरयोनिजा
।
भगरूपा भगस्थात्री भगिनी भगमालिनी ॥
१३७॥
भगात्मिका भगाधारा रूपिणी भगशालिनी
।
लिङ्गाभिधायिनी लिङ्गप्रिया
लिङ्गनिवासिनी ॥ १३८॥
लिङ्गस्था लिङ्गिनी लिङ्गरूपिणी
लिङ्गसुन्दरी ।
लिङ्गगीतिर्महाप्रीतिर्भगगीतिर्महासुखा
॥ १३९॥
लिङ्गनामसदानन्दा भगनामसदारतिः ।
भगनामसदानन्दा लिङ्गनामसदारतिः ॥
१४०॥
लिङ्गमालकराभूषा भगमालाविभूषणा ।
भगलिङ्गामृतवृता भगलिङ्गामृतात्मिका
॥ १४१॥
भगलिङ्गार्चनप्रीता
भगलिङ्गस्वरूपिणी ।
भगलिङ्गस्वरूपा च भगलिङ्गसुखावहा ॥
१४२॥
स्वयम्भूकुसुमप्रीता स्वयम्भूकुसुमार्चिता
।
स्वयम्भूकुसुमप्राणा
स्वयम्भूकुसुमोत्थिता ॥ १४३॥
स्वयम्भूकुसुमस्नाता
स्वयम्भूपुष्पतर्पिता ।
स्वयम्भूपुष्पघटिता
स्वयम्भूपुष्पधारिणी ॥ १४४॥
स्वयम्भूपुष्पतिलका
स्वयम्भूपुष्पचर्चिता ।
स्वयम्भूपुष्पनिरता
स्वयम्भूकुसुमाग्रहा ॥ १४५॥
स्वयम्भूपुष्पयज्ञेशा
स्वयम्भूकुसुमालिका ।
स्वयम्भूपुष्पनिचिता
स्वयम्भूकुसुमार्चिता ॥ १४६॥
स्वयम्भूकुसुमादानलालसोन्मत्तमानसा
।
स्वयम्भूकुसुमानन्दलहरी
स्निग्धदेहिनी ॥ १४७॥
स्वयम्भूकुसुमाधारा
स्वयम्भूकुसुमाकुला ।
स्वयम्भूपुष्पनिलया स्वयम्भूपुष्पवासिनी
॥ १४८॥
स्वयम्भूकुसुमास्निग्धा
स्वयम्भूकुसुमात्मिका ।
स्वयम्भूपुष्पकरिणी
स्वयम्भूपुष्पमालिका ॥ १४९॥
स्वयम्भूकुसुमन्यासा
स्वयम्भूकुसुमप्रभा ।
स्वयम्भूकुसुमज्ञाना
स्वयम्भूपुष्पभोगिनी ॥ १५०॥
स्वयम्भूकुसुमोल्लासा
स्वयम्भूपुष्पवर्षिणी ।
स्वयम्भूकुसुमानन्दा
स्वयम्भूपुष्पपुष्पिणी ॥ १५१॥
स्वयम्भूकुसुमोत्साहा
स्वयम्भूपुष्परूपिणी ।
स्वयम्भूकुसुमोन्मादा
स्वयम्भूपुष्पसुन्दरी ॥ १५२॥
स्वयम्भूकुसुमाराध्या
स्वयम्भूकुसुमोद्भवा ।
स्वयम्भूकुसुमाव्यग्रा
स्वयम्भूपुष्पपूर्णिता ॥ १५३॥
स्वयम्भूपूजकप्राज्ञा
स्वयम्भूहोतृमात्रिका ।
स्वयम्भूदातृरक्षित्री
स्वयम्भूभक्तभाविका ॥ १५४॥
स्वयम्भूकुसुमप्रीता
स्वयम्भूपूजकप्रिया ।
स्वयम्भूवन्दकाधारा
स्वयम्भूनिन्दकान्तका ॥ १५५॥
स्वयम्भूप्रदसर्वस्वा
स्वयम्भूप्रदपुत्रिणी ।
स्वयम्भूप्रदसस्मेरा
स्वयम्भूतशरीरिणी ॥ १५६॥
सर्वलोकोद्भवप्रीता
सर्वकालोद्भवात्मिका ।
सर्वकालोद्भवोद्भावा
सर्वकालोद्भवोद्भवा ॥ १५७॥
कुन्दपुष्पसमाप्रीतिः
कुन्दपुष्पसमारतिः ।
कुन्दगोलोद्भवप्रीता
कुन्दगोलोद्भवात्मिका ॥ १५८॥
स्वयम्भूर्वा शिवा शक्ता पाविनी
लोकपाविनी ।
कीर्तिर्यशस्विनी मेधा विमेधा
सुरसुन्दरी ॥ १५९॥
अश्विनी कृत्तिका पुष्या तेजस्वी
चन्द्रमण्डला ।
सूक्ष्मा सूक्ष्मप्रदा
सूक्ष्मासूक्ष्मभयविनाशिनी ॥ १६०॥
वरदाऽभयदा चैव मुक्तिबन्धविनाशिनी ।
कामुकी कामदा क्षान्ता कामाख्या
कुलसुन्दरी ॥ १६१॥
सुखदा दुःखदा मोक्षा मोक्षदार्थप्रकाशिनी
।
दुष्टादुष्टमती चैव
सर्वकार्यविनाशिनी ॥ १६२॥
शुक्रधारा शुक्ररूपा
शुक्रसिन्धुनिवासिनी ।
शुक्रालया शुक्रभोगा शुक्रपूजा
सदारतिः ॥ १६३॥
शुक्रपूज्या शुक्रहोमसन्तुष्टा
शुक्रवत्सला ।
शुक्रमूर्तिः शुक्रदेहा
शुक्रपूजकपुत्रिणी ॥ १६४॥
शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्रसंस्पृहा
शुक्रसुन्दरी ।
शुक्रस्नाता शुक्रकरी
शुक्रसेव्यातिशुक्रिणी ॥ १६५॥
महाशुक्रा शुक्रभवा
शुक्रवृष्टिविधायिनी ।
शुक्राभिधेया शुक्रार्हा
शुक्रवन्दकवन्दिता ॥ १६६॥
शुक्रानन्दकरी शुक्रसदानन्दविधायिनी
।
शुक्रोत्साहा सदाशुक्रपूर्णा
शुक्रमनोरमा ॥ १६७॥
शुक्रपूजकसर्वस्था
शुक्रनिन्दकनाशिनी ।
शुक्रात्मिका
शुक्रसम्पच्छुक्राकर्षणकारिणी ॥ १६८॥
रक्ताशया रक्तभोगा रक्तपूजासदारतिः
।
रक्तपूज्या रक्तहोमा रक्तस्था
रक्तवत्सला ॥ १६९॥
रक्तपूर्णा रक्तदेहा
रक्तपूजकपुत्रिणी ।
रक्ताख्या रक्तिनी रक्तसंस्पृहा
रक्तसुन्दरी ॥ १७०॥
रक्ताभिदेहा रक्तार्हा
रक्तवन्दकवन्दिता ।
महारक्ता रक्तभवा
रक्तवृष्टिविधायिनी ॥ १७१॥
रक्तस्नाता रक्तप्रीता
रक्तसेव्यातिरक्तिनी ।
रक्तानन्दकरी रक्तसदानन्दविधायिनी ॥
१७२॥
रक्तारक्ता रक्तपूर्णा
रक्तसेव्यक्षिणीरमा ।
रक्तसेवकसर्वस्वा रक्तनिन्दकनाशिनी
॥ १७३॥
रक्तात्मिका रक्तरूपा
रक्ताकर्षणकारिणी ।
रक्तोत्साहा रक्तव्यग्रा
रक्तपानपरायणा ॥ १७४॥
शोणितानन्दजननी कल्लोलस्निग्धरूपिणी
।
साधकान्तर्गता देवी पार्वती पापनाशिनी
॥ १७५॥
साधूनां हृदिसंस्थात्री
साधकानन्दकारिणी ।
साधकानां च जननी साधकप्रियकारिणी ॥
१७६॥
साधकप्रचुरानन्दसम्पत्तिसुखदायिनी ।
साधका साधकप्राणा साधकासक्तमानसा ॥
१७७॥
साधकोत्तमसर्वस्वासाधका भक्तरक्तपा
।
साधकानन्दसन्तोषा साधकारिविनाशिनी ॥
१७८॥
आत्मविद्या ब्रह्मविद्या
परब्रह्मकुटुम्बिनी ।
त्रिकूटस्था पञ्चकूटा
सर्वकूटशरीरिणी ॥ १७९॥
सर्ववर्णमयी वर्णजपमालाविधायिनी ।
इति श्रीकालिकानाम्नां सहस्रं
शिवभाषितम् ॥ १८०॥
काली सहस्रनाम स्तोत्रम् फलश्रुतिः
गुह्यात् गुह्यतरं
साक्षान्महापातकनाशनम् ।
पूजाकाले निशीथे च सन्ध्ययोरुभयोरपि
॥ १॥
लभते गाणपत्यं स यः पठेत्साधकोत्तमः
।
यः पठेत्पाठयेद्वापि श्रृणोति
श्रावयेदपि ॥ २॥
सर्वपापविनिर्मुक्तः स याति
कालिकापदम् ।
श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि यः
कश्चिन्मानवः पठेत् ॥ ३॥
दुर्गाद्दुर्गतरं तीर्त्वा स याति
कालिकापदम् ।
वन्ध्या वा काकवन्ध्या वा मृतपुत्रा
च याङ्गना ॥ ४॥
श्रुत्वा स्तोत्रमिदं पुत्रान् लभते
चिरजीविनः ।
यं यं कामयते कामं पठन्
स्तोत्रमनुत्तमम् ॥ ५॥
देवीवरप्रदानेन तं तं प्राप्नोति
नित्यशः ।
स्वयम्भूकुसुमैः शुक्लैः
सुगन्धिकुसुमान्वितैः ॥ ६॥
गुरुविष्णुमहेशानामभेदेन महेश्वरी ।
समन्ताद्भावयेन्मन्त्री महेशो नात्र
संशयः ॥ ७॥
स शाक्तः शिवभक्तश्च स एव
वैष्णवोत्तमः ।
सम्पूज्य स्तौति यः
कालीमद्वैतभावमावहन् ॥ ८॥
देव्यानन्देन सानन्दो
देवीभक्त्यैकभक्तिमान् ।
स एव धन्यो यस्यार्थे महेशो
व्यग्रमानसः ॥ ९॥
कामयित्वा यथाकामं स्तवमेनमुदीरयेत्
।
सर्वरोगैः परित्यक्तो जायते मदनोपमः
॥ १०॥
चक्रं वा स्तवमेनं वा
धारयेदङ्गसङ्गतम् ।
विलिख्य विधिवत्साधुः स एव
कालिकातनुः ॥ ११॥
देव्यै निवेदितं यद्यत्तस्यांशं
भक्षयेन्नरः ।
दिव्यदेहधरो भूत्वा देव्याः
पार्श्वधरो भवेत् ॥ १२॥
नैवेद्यनिन्दकं दृष्ट्वा नृत्यन्ति
योगिनीगणाः ।
रक्तपानोद्यतास्सर्वा
मांसास्थिचर्वणोद्यताः ॥ १३॥
तस्मान्निवेदितं देव्यै दृष्ट्वा
श्रुत्वा च मानवः ।
न निन्देन्मनसा वाचा
कुष्ठव्याधिपराङ्मुखः ॥ १४॥
आत्मानं कालिकात्मानं भावयन् स्तौति
यः शिवाम् ।
शिवोपमं गुरुं ध्यात्वा स एव
श्रीसदाशिवः ॥ १५॥
यस्यालये तिष्ठति नूनमेतत्स्तोत्रं
भवान्या लिखितं विधिज्ञैः ।
गोरोचनालक्तककुङ्कुमाक्तकर्पूरसिन्दूरमधुद्रवेण
॥ १६॥
न तत्र चोरस्य भयं न हास्यो न
वैरिभिर्नाऽशनिवह्निभीतिः ।
उत्पातवायोरपि नाऽत्रशङ्का लक्ष्मीः
स्वयं तत्र वसेदलोला ॥ १७॥
स्तोत्रं पठेत्तदनन्तपुण्यं
देवीपदाम्भोजपरो मनुष्यः ।
विधानपूजाफलमेव सम्यक् प्राप्नोति
सम्पूर्णमनोरथोऽसौ ॥ १८॥
मुक्ताः श्रीचरणारविन्दनिरताः
स्वर्गामिनो भोगिनो
ब्रह्मोपेन्द्रशिवात्मकार्चनरता
लोकेऽपि संलेभिरे ।
श्रीमच्छङ्करभक्तिपूर्वकमहादेवीपदध्यायिनो
मुक्तिर्भुक्तिमतिः स्वयं
स्तुतिपराभक्तिः करस्थायिनी ॥ १९॥
इति श्रीकालिकाकुलसर्वस्वे
हरपरशुरामसंवादे
श्रीकालिकासहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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