पूजन विधि, ज्योतिष, स्तोत्र संग्रह, व्रत कथाएँ, मुहूर्त, पुजन सामाग्री आदि

काली स्तोत्रम् परशुरामकृत

काली स्तोत्रम् परशुरामकृत

ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपतिखण्ड अध्याय ३६ श्लोक २९-३६ में वर्णित परशुरामकृत काली स्तोत्रम् देवी काली की स्तुति और उनसे कृपा की याचना के लिए है। इसके पाठ से भयंकर विपत्ति से भी छुटकारा मिल जाता है।

कालीस्तोत्रम् परशुरामकृतम्

कालिका स्तोत्रम्

kalika stotram

कालिकास्तोत्रं

कालीस्तोत्रम् परशुरामकृतम्

परशुराम उवाच ।

नमः शङ्करकान्तायै सारायै ते नमो नमः ।

नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नमः ॥ १॥

परशुराम बोले - आप शंकरजी की प्रियतमा पत्नी हैं, आपको नमस्कार है । सारस्वरूपा आपको बारंबार प्रणाम है। दुर्गतिनाशिनी को मेरा अभिवादन है । मायारूपा आपको मैं बारंबार सिर झुकाता हूँ।

नमो नमो जगद्धात्र्यै जगत्कर्त्र्यै नमो नमः ।

नमोऽस्तु ते जगन्मात्रे कारणायै नमो नमः ॥ २॥

जगद्धात्री को नमस्कार-नमस्कार । जगत्कर्त्री को पुनः-पुनः प्रणाम । जगज्जननी को मेरा नमस्कार प्राप्त हो । कारणरूपा आपको बारम्बार अभिवादन है।

प्रसीद जगतां मातः सृष्टिसंहारकारिणि ।

त्वत्पादौ शरणं यामि प्रतिज्ञां सार्थिकां कुरु ॥ ३॥

सृष्टि का संहार करनेवाली जगन्माता! प्रसन्न होइये । मैं आपके चरणों की शरण ग्रहण करता हूँ, मेरी प्रतिज्ञा सफल कीजिये ।

त्वयि मे विमुखायां च को मां रक्षितुमीश्वरः ।

त्वं प्रसन्ना भव शुभे मां भक्तं भक्तवत्सले ॥ ४॥

मेरे प्रति आपके विमुख हो जाने पर कौन मेरी रक्षा कर सकता है? भक्तवत्सले! शुभे! आप मुझभक्त पर कृपा कीजिये ।

युष्माभिः शिवलोके च मह्यं दत्तो वरः पुरा ।

तं वरं सफलं कर्तुं त्वमर्हसि वरानने ॥ ५॥

सुमुखि! पहले शिवलोक में आपलोगों ने मुझे जो वरदान दिया था, उस वर को आपको सफल करना चाहिये।

परशुरामकृत कालीस्तोत्र महात्म्यम्

जामदग्न्यस्तवं श्रुत्वा प्रसन्नभवदम्बिका ।

मा भैरित्येव्मुक्त्वा तु तत्रैवन्तर्धीयत ॥६।।

परशुराम द्वारा किये गये इस स्तवन को सुनकर अम्बिका का मन प्रसन्न हो गया और भय मत करो यों कहकर वे वहीं अन्तर्धान हो गयीं  ।

एतद् भृगुकृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् ।

महाभयात्समुत्तीर्णः स भवेदेव लीलया ॥ ७॥

जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस परशुरामकृत स्तोत्र का पाठ करता है, वह अनायास ही महान् भय से छूट जाता है  ।

स पूजितश्च त्रैलोक्ये तत्रैव विजयी भवेत् ।

ज्ञानिश्रेष्ठो भवेच्चैव वैरिपक्षविमर्दकः ॥ ८॥

वह त्रिलोकी में पूजित, त्रैलोक्यविजयी, ज्ञानियों में श्रेष्ठ और शत्रुपक्ष का विमर्दन करनेवाला हो जाता है ।

इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे श्रीपरशुरामकृतं कालीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Post a Comment

Previous Post Next Post