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कालिका स्तोत्रं

कालिका स्तोत्रं

कालिका स्तोत्रं देवी काली की महिमा का वर्णन करने वाला एक स्तुति है। यह स्तोत्र देवी काली के विभिन्न रूपों और गुणों का जैसे उग्र और सुंदर रूप का एक साथ वर्णन करता है और भक्तों को उनसे आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। इस स्तोत्र में भक्त देवी काली से प्रार्थना कर रहा है कि जगत् को धारण करने वाली काली माँ मेरे मन में निवास करें ।

कालिकास्तोत्रम्

कालिका स्तोत्रम्

kalika stotram

कालिकास्तोत्रं

दधन्नैरन्तर्यादपि मलिनचर्यां सपदि यत्

सपर्यां पश्यन्सन् विशतु सुरपुर्यां नरपशुः ।

भटान्वर्यान् वीर्यासमहरदसूर्यान् समिति या

जगद्धुर्या काली मम मनसि कुर्यान्निवसतिम् ॥ १॥

हे माँ काली जो व्यक्ति निरंतर मलिन आचरण में लिप्त है, वह भी यदि आपकी पूजा-अर्चना देखले शीघ्र ही स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है । जो देवी 'जगद्धुर्या' (दुनिया का बोझ उठाने वाली), 'भटान्वर्यान्' (वीरों में श्रेष्ठ) और 'असूर्यान्' (सूर्य के समान तेजस्वी) है, वह मुझे सूर्य के समान शक्ति प्रदान करे और मेरे ह्रदय में वास करे।

लसन्नासामुक्ता निजचरणभक्तावनविधौ

समुद्युक्ता रक्ताम्बुरुहदृगलक्ताधरपुटा ।

अपि व्यक्ताऽव्यक्तायमनियमसक्ताशयशया

जगद्धुर्या काली मम मनसि कुर्यान्निवसतिम् ॥ २॥

जो [देवी] चमकते मोतियों से सजी हुई हैं, अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सदा उद्यत रहनेवाली, जिनके होंठ लाल कमल के समान हैं, जो व्यक्त और अव्यक्त, नियम और अनियम में समान रूप से विद्यमान है, जगत को धारण करने वाली हे माँ काली आप मेरे ह्रदय में सदा वास करे।

रणत्सन्मञ्जीरा खलदमनधीराऽतिरुचिर-

स्फुरद्विद्युच्चीरा सुजनझषनीरायिततनुः ।

विराजत्कोटीरा विमलतरहीरा भरणभृत्

जगद्धुर्या काली मम मनसि कुर्यान्निवसतिम् ॥ ३॥

रणक्रीड़ा करती हुई मञ्जीरों (घुंघरू) को धारण करनेवाली, दुर्जनों का दमन करने में अति गंभीर, अत्यंत सुंदर, चमकती हुई बिजली के समान वस्त्र वाली, मछली जैसी देहवाली, सिर पर एक सुंदर मुकुट धारणवाली, शुद्ध मोती से बनी आभूषणों से सुसज्जित, जगत् को धारण करने वाली, काली माँ मेरे ह्रदय में सदा वास करे।

वसाना कौशेयं कमलनयना चन्द्रवदना

दधाना कारुण्यं विपुलजघना कुन्दरदना ।

पुनाना पापाद्या सपदि विधुनाना भवभयं

जगद्धुर्या काली मम मनसि कुर्यान्निवसतिम् ॥ ४॥

रेशमी वस्त्र धारण करनेवाली, कमल जैसी आँखों वाली, चंद्रमा जैसी सुंदर, करुणा की प्रतिमूर्ति, विशाल नितंबों वाली, कुंद पुष्प जैसे दाँतों वाली, पापों को नष्ट करनेवाली, भय दूर करने वाली, मृत्यु के भय और ब्रह्मांड के अंधकार को दूर करनेवाली माँ काली मेरे ह्रदय में सदा वास करे।

रधूत्तंसप्रेक्षारणरणिकया मेरुशिखरात्

समागाद्या रागाज्झटिति यमुनागाधिपमसौ ।

नगादीशप्रेष्ठा नगपतिसुता निर्जरनुता

जगद्धुर्या काली मम मनसि कुर्यान्निवसतिम् ॥ ५॥

जैसे देवताओं द्वारा प्रशंसित पर्वतराज की प्रिय पुत्री यमुना जो मेरु पर्वत के शिखर से रघुकुल के गौरव को धारण करने वाले स्वामी के पास प्रेम से शीघ्र ही पास आ गई। वैसे ही जगत का भार वहन करने वाली माँ काली मेरे ह्रदय में सदा वास करे।

विलसन्नवरत्नमालिका कुटिलश्यामलकुन्तलालिका ।

नवकुङ्कुमभव्यभालिकाऽवतु सा मां सुखकृद्धि कालिका ॥ ६॥

सुंदर रत्नों की माला जिनके गले में शोभा पा रही है और सुंदर घुंघराले काले जिनके केश हैं माथे पर कुमकुम केसर का तिलक धारण करने वाली जो अत्यंत सुंदर है, सुख की देवी माँ काली मेरी रक्षा करें।

यमुनाचलद्दमुना दुःखदवस्य देहिनाम् ।

अमुना यदि वीक्षिता सकृच्छमु नानाविधमातनोत्यहो ॥ ७॥

यमुना के किनारे रहने वाली, दुखों को हरने वाली, प्राणियों को सुख देने वाली देवी कालिका को जो कोई भी एक बार देख लेता है, उसे विभिन्न प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।

अनुभूति सतीप्राणपरित्राणपरायणा ।

देवैः कृतसपर्या सा काली कुर्याच्छुभानि नः ॥ ८॥

अनुभव, सत्य, और जीवन के रक्षा के लिए देवताओं द्वारा पूजी गई देवी काली हमें शुभ आशीर्वाद प्रदान करें।

कालिका स्तोत्र फलश्रुति:

य इदं कालिकास्तोत्रं पठेत्तु प्रयतः शुचिः ।

देवीसायुज्यभुक् चेह सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥ ९॥

जो कोई भी पवित्र और श्रद्धा से इस कालिका स्तोत्र का पाठ करता है, वह देवी के सायुज्य पाता है और इस जीवन में अपनी सभी इच्छाओं को प्राप्त करता है।

इति कालिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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