कालिकाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
कालिकाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् या काली शतनाम स्तोत्रम् के विषय में भैरव ने देवी से उपदेश करते हुए कहा- हे वरानने! (अब मैं) काली के सौ नामों का जो तुमसे वर्णन कर रहा हूँ। जिसके पठनमात्र से ही मनुष्य बोलने में कुशल होकर समस्त स्थानों पर विजय को प्राप्त करता है। जो (मनुष्य) प्रातःकाल, मध्याह्नकाल, सायंकाल एवं आधी रात के समय भगवती महाकाली के इन एक सौ आठ नामों का पाठ करते हैं । (ऐसे साधकों के) घर में भगवती काली सदैव निवास करती है । शून्यागार, श्मशान, अत्यधिक घनघोर जंगल या जलाशय के मध्य में, अग्नि के बीच में, युद्ध में एवं प्राणों पर संकट आने पर भगवती महाकाली के इन एक सौ आठनामों का पाठ करनेवाला अथवा मन्त्र का जप करनेवाला (साधक) शुभ एवं कल्याण की प्राप्ति करता है। शास्त्रों के मतानुसार भगवती काली की स्थापना कर उक्त एक सौ आठ नामों द्वारा उनकी प्रार्थना करनेवाला, साधक, माता कालिका के प्रभाव से उत्तमोत्तम सिद्धि को प्राप्त करता है।
अथ कालिकाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
भैरव उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि कालिकाया
वरानने!।
यस्य प्रपठनाद् वाग्मी सर्वत्र
विजयी भवेत्॥१॥
काली कपालिनी कान्ता कामदा
कामसुन्दरी।
कालरात्रि कालिका च
कालभैरवपूजिता॥२॥
कुरुकुल्ला कामिनी च
कमनीयस्वभाविनी।
कुलीना कुलकर्त्री च
कुलवर्त्म-प्रकाशिनी॥ ३॥
कस्तूरीरसनीला च काम्या
कामस्वरूपिणी।
ककारवर्णनिलया कामधेनुः करालिका॥ ४॥
कुलकान्ता करालास्या कामार्ता च
कलावती।
कृशोदरी च कामाख्या कौमारी
कुलपालिनी॥ ५॥
कुलजा कुलकन्या च कलहा कुलपूजिता।
कामेश्वरी कामकान्ता
कुञ्जरेश्वरगामिनी॥ ६॥
कामदात्री कामहर्त्री कृष्णा चैव
कपर्दिनी।
कुमुदा कृष्णदेव च कालिन्दी
कुलपूजिता॥ ७॥
काश्यपी कृष्णमाता च कुलिशाङ्गी कला
तथा।
क्रींरूपा कुलगम्या च कमला
कृष्णपूजिता॥ ८॥
कृशाङ्गी किन्नरी कर्त्री कलकण्ठी च
कार्तिकी।
कम्बुकण्ठी कौलिनी च कुमुदा
कामजीविनी॥९॥
कुलस्त्री कीर्त्तिका कृत्या
कीर्तिश्च कुलपालिका।
कामदेवकला कल्पलता
कामाङ्गवर्धिनी॥१०॥
कुन्ती च कुमुदप्रीता
कदम्बकुसुमोत्सुका।।
कादम्बिनी कमलिनी
कृष्णानन्दप्रदायिनी॥११॥
कुमारीपूजनरता कुमारीगणशोभिता।
कुमारीरञ्चनरता
कुमारीव्रतधारिणी॥१२॥
कङ्काली कमनीया च
कामशास्त्र-विशारदा।
कपालकट्वाङ्गधरा कालभैरवरूपिणी॥१३॥
कोटरी कोटराक्षी च काशी
कैलाशवासिनी।
कात्यायिनी कार्यकरी
काव्यशास्त्रप्रमोदिनी॥१४॥
कामाकर्षणरूपा च कामपीठनिवासिनी।
कङ्गिनी काकिनी कुत्सिता
कलहप्रिया॥१५॥
कुण्डगोलोद्भवप्राणा कौशिकी
कीर्तिवर्द्धिनी।
कुम्भस्तनी कटाक्षा च काव्या
कोकनदप्रिया॥१६॥
कान्तारवासिनी कान्तिः कठिना
कृष्णवल्लभा।
इति ते कथितं देव! गुह्याद्
गुह्यतरं परम्॥१७॥
प्रपठेद् य इदं नित्यं
कालीनामशताष्टकम्।
त्रिषु लोकेषु देवेशि! तस्याऽसाध्यं
न विद्यते॥१८॥
प्रात:काले च मध्याह्ने सायाह्ने च
सदा निशि।
यः पठेत् परया भक्त्या
कालीनामशताष्टकम्॥१९॥
कालिका तस्य गेहे च संस्थानं कुरुते
सदा।
शून्यागारे श्मशाने वा प्रान्तरे
जलमध्यतः॥२०॥
वह्निमध्ये च संग्रामे तथा प्राणस्य
संशये।
शताष्टकं जपन्मन्त्री लभते
क्षेममुत्तमम्॥२१॥
कालीं संस्थाप्य विधिवत् स्तुत्वा
नामशताष्टकैः।
साधक: सिद्धिमाप्नोति कालिकायाः
प्रसादतः॥२२॥
कालिकाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
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