ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम्

ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम्

मुण्डमालातन्त्र के अष्टम पटल के श्लोक ५-३४ में देवी एवं ईश्वर के संवाद में काली रहस्य में यह ककार रूप से ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् दिया गया है। इस स्तव-पाठ के द्वारा भूतल पर सब कुछ सिद्धि होता है। अणिमादि अष्ट-सिद्धियाँ भी प्राप्त होती हैं।

ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम्

ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम्

श्रीशिव उवाच-

कालिकायाः शतं नाम नाना तन्त्रे त्वया श्रुतम् ।

रहस्यं गोपनीयञ्च तत्रेऽस्मिन् जगदम्बिके ॥ १॥

नाना तन्त्रों में आपने कालिका के शतनाम का श्रवण किया है। हे जगदम्बिके ! इस तन्त्र में रहस्य गोपनीय है ।

॥अथ ककारादि काली शतनाम स्तोत्र॥

करालवदना काली कामिनी कमला कला ।

क्रियावती कोटराक्षी कामाक्ष्या कामसुन्दरी ॥ २ ॥

कपाला च कराला च काली कात्यायनी कुहुः ।

कङ्काला कालदमना करुणा कमलार्च्चिता ॥ ३ ॥

कादम्बरी कालहरा कौतुकी कारणप्रिया ।

कृष्णा कृष्णप्रिया कृष्णपूजिता कृष्णवल्लभा ॥ ४ ॥

कृष्णापराजिता कृष्णप्रिया च कृष्णरूपिनी ।

कालिका कालरात्रीश्च कुलजा कुलपण्डिता ॥ ५ ॥

कुलधर्मप्रिया कामा काम्यकर्मविभूषिता ।

कुलप्रिया कुलरता कुलीनपरिपूजिता ॥ ६ ॥

कुलज्ञा कमलापूज्या कैलासनगभूषिता ।

कूटजा केशिनी काम्या कामदा कामपण्डिता ॥ ७ ॥

करालास्या च कन्दर्पकामिनी रूपशोभिता ।

कोलम्बका कोलरता केशिनी केशभूषिता ॥ ८ ॥

केशवस्यप्रिया काशा काश्मीरा केशवार्च्चिता ।

कामेश्वरी कामरुपा कामदानविभूषिता ॥ ९ ॥

कालहन्त्री कूर्ममांसप्रिया कूर्मादिपूजिता ।

कोलिनी करकाकारा करकर्मनिषेविणी ॥ १० ॥

कटकेश्वरमध्यस्था कटकी कटकार्च्चिता ।

कटप्रिया कटरता कटकर्मनिषेविणी ॥ ११ ॥

कुमारीपूजनरता कुमारीगणसेविता ।

कुलाचारप्रिया कौलप्रिया कौलनिषेविणी ॥ १२ ॥

कुलीना कुलधर्मज्ञा कुलभीतिविमर्द्दिनी ।

कालधर्मप्रिया काम्य-नित्या कामस्वरूपिणी ॥ १३ ॥

कामरूपा कामहरा काममन्दिरपूजिता ।

कामागारस्वरूपा च कालाख्या कालभूषिता ॥ १४ ॥

क्रियाभक्तिरता काम्यानाञ्चैव कामदायिनी ।

कोलपुष्पम्बरा कोला निकोला कालहान्तरा ॥ १५ ॥

कौषिकी केतकी कुन्ती कुन्तलादिविभूषिता ।

इत्येवं श्रृणु चार्वङ्गि रहस्यं सर्वमङ्गलम् ॥ १६ ॥

ककारादि काली शतनाम स्तोत्र भावार्थ

करालवदना, काली, कामिनी, कमला, कला, क्रियावती, कोटराक्षी, कामाख्या, कामसुन्दरी, कापाला, कराला, काशी, कात्यायनी, कुहु, कङ्काला, कालदमना, करुणा, कमलार्चिता, कादम्बरी, कालहरा, कौतुकी, कारणप्रिया, कृष्णा, कृष्णप्रिया, कृष्णपूजिता, कृष्णवल्लभा, कृष्णपराजिता, कृष्ण प्रिया, कृष्णरूपिणी, कालिका, कालरात्रि, कुलजा, कुलपण्डिता, कुलधर्मप्रिया, कामा, काम्यकर्मविभूषिता, कुलप्रिया, कुलरता, कुलीनपरिपूजिता, कुलज्ञा, कमला, पूज्या, कैलासगण भूषिता, कूटजा, केशिनी, कामा, कामदा, कामपण्डिता, करालास्या, कन्दर्पा, कामिनी, कामदायिनी, कोलम्बका, कोलरता, केशिनी, केशभूषिता, केशवप्रिया, काशा, काश्मीरा, केशवार्चिता, कामेश्वरी, कामरूपा, कामदानविभूषिता, कालहन्त्री, कूर्ममांस-प्रिया, कूर्मादिपूजिता, केलिनी, करकाकारा, करकर्मनिषेविनी, कटकेशवमध्यस्था, कटकी, कटकार्चिता, कटप्रिया, कटरता, कटकर्मनिषेविनी, कुमारीपूजनरता, कुमारीगणसेविता, कुलाचार-प्रिया, कौलप्रिया, कुलनिषेविनी, कुलीना, कुलधर्मज्ञा, कुलभीति-विमर्दिनी, कामधर्म-प्रिया, काम्या, नित्यकाम्यस्वरूपिणी, कामरूपा, कामहरा, काममन्दिर-पूजिता, कामागार-स्वरूपा, कामाख्या, काम-भूषिता, क्रिया-भक्ति-रता, काम्या, कामिनी, कामदायिनी, कोलपुष्पाम्बरा, कोला, निकोला, कोलहन्तका, कौषिकी, केतकी, कुन्ती, कुन्तलादि-विभूषिता । हे चार्वङ्गि! सर्वमङ्गलरहस्य का इस प्रकार श्रवण करें ।

ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् फलश्रुति

यः पठेत् परया भक्त्या स शिवो नात्र संशयः ।

शतनामप्रसादेन किं न सिद्धति भूतले ॥ १७ ॥

जो परम भक्ति के साथ इसका पाठ करता है, वह शिव बन जाता है। इसमें कोई संशय नहीं है। इस भूतल पर शतनाम के प्रसाद से क्या नहीं सिद्ध होता है ? अर्थात् सब कुछ सिद्ध होता है ।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च वासवाद्या दिवौकसः ।

रहस्यपठनाद्देवि सर्वे च विगतज्वराः ॥ १८ ॥

हे देवि! ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, वासवादि देववृन्द ये सभी इस रहस्य के पाठ के द्वारा विगत-ज्वर बन चुके हैं ।

त्रिषु लोकेशु विश्वेशि सत्यं गोप्यमतः परम् ।

नास्ति नास्ति महामाये तन्त्रमध्ये कथञ्चन ॥१९ ॥

हे विश्वेशि ! हे महामाये ! इन तीनों लोकों में, तन्त्रों में, किसी भी प्रकार से इसकी अपेक्षा गोपनीय सत्य और कुछ नहीं है ।

क्रियया च विना देवि ! विना भक्त्या महेश्वरि !।

प्रसन्ना स्यात् करालास्या स्तवपाठाद् दिगम्बरी ॥ २० ॥

हे महेश्वरि ! हे देवि ! हे दिगम्बरि ! आराधना एवं भक्ति के बिना (मात्र) स्तव-पाठ के द्वारा करालास्या प्रसन्न बन जाती हैं ।

सत्यं वचि महेशानि नातःपरतरं प्रिये ।

न गोलोके न वैकुण्ठे न च कैलासमन्दिरे ॥ २१ ॥

हे महेशानि ! इस स्तवपाठ की अपेक्षा श्रेष्ठतर और कुछ नहीं है । गोलोक में भी नहीं है, वैकुण्ठ में भी नहीं है, कैलास मन्दिर में भी नहीं है। यह मैं सत्य बता रहा हूँ।

अतः परतरा विद्या स्तोत्रं कवचमेव च ।

त्रिषु लोकेषु विश्वेशि ! नास्ति नास्ति कदाचन ॥२२ ॥

हे विश्वेशि ! इस विद्या की अपेक्षा श्रेष्ठतर विद्या, स्तोत्र या कवच तीनों लोकों में कदापि नहीं है, नही है ।

रात्रावपि दिवाभागे निशाभागे सूरेश्वरि ।

प्रजपेद् भक्तिभावेन रहस्यं स्तवमुक्तमम् ॥ २३ ॥

हे सुरेश्वरि ! दिवाभाग में, निशाभाग में या रात्रि में भी भक्तिभाव से उत्तम रहस्य-स्तव का पाठ करें ।

शतनाम प्रसादेन मन्त्रसिद्धिः प्रजायते ।

कुजवारे चतुर्द्दश्यां निशाभागे जपेत्तु यः ॥ २४ ॥

जो व्यक्ति मंगलवार को चतुर्दशी में, निशाभाग में जप (पाठ) करता है, उसे शतनाम स्तोत्र के प्रसाद से मन्त्रसिद्धि प्राप्त होती है ।

स कृती सर्वशास्त्रज्ञः स कुलीनः सदा शुचिः ।

स कुलज्ञः स कालज्ञः स धर्मज्ञो महीतले ॥ २५ ॥

वह पृथिवी पर कृती एवं सर्वशास्त्रज्ञ है। वह कुलीन एवं सर्वदा शुचि है। वह कुलज्ञ है। वह कालज्ञ एवं वह धर्मज्ञ भी है ।

रहस्य पठनात् कोटि-पुरश्चरणजं फलम् ।

प्राप्नोति देवदेवेशि सत्यं परमसुन्दरी ॥ २६ ॥

हे देवि ! हे देवदेवेशि ! हे परम-सुन्दरि । रहस्य स्तव-पाठ के द्वारा पुरश्चरण-जनित फल की प्राप्ति होती है ।

स्तवपाठाद् वरारोहे किं न सिद्धति भूतले ।

अणिमाद्यष्टसिद्धिश्च भवेत्येव न संशयः ॥ २७ ॥

हे वरारोहे ! इस स्तव-पाठ के द्वारा भूतल पर क्या सिद्ध नहीं होता है अर्थात् सब कुछ सिद्धि होता है। अणिमादि अष्ट-सिद्धियाँ भी प्राप्त होती हैं। इसमें संशय नहीं है ।

रात्रौ बिल्वतलेऽश्वथ्थमूलेऽपराजितातले ।

प्रपठेत् कालिका-स्तोत्रं यथाशक्त्या महेश्वरी ॥ २८ ॥

हे महेश्वरि ! रात्रि में बिल्ववृक्ष के नीचे, अश्वत्थ-वृक्ष के मूल में एवं अपराजिता के नीचे यथाशक्ति कालिका के स्तोत्र का पाठ करें।

शतवार-प्रपठनान्-मन्त्रसिद्धिर्भवेद् ध्रुवम् ।

उपायो नास्ति देवेशि ! महामन्त्रस्य साधने ॥२९ ॥

शतबार स्तोत्र का पाठ करने पर अवश्य ही मन्त्र सिद्धि होती है। हे देवेशि ! महामन्त्र की सिद्धि के लिए अन्य उपाय नहीं है ।

अतः परतरं देवि ! नास्ति ब्रह्माण्ड-मण्डले ।

नानातन्त्रं श्रुतं देवि! मम वक्त्रात् सुरेश्वरि ! ॥ ३० ॥

हे देवि ! इस ब्रह्माण्ड-मण्डल में, इसकी अपेक्षा श्रेष्ठ कुछ नहीं है। हे देवि ! हे सुरेश्वरि ! मेरे मुख से नाना तन्त्रों को आपने सुना है ।

॥ इति मुण्डमालातन्त्रेऽष्टमपटले देवीश्वर संवादे ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

Post a Comment

0 Comments