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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
मुण्डमालातन्त्र षष्ठ पटल
मुण्डमालातन्त्र षष्ठ पटल में मातृका
के विषय में कहा गया है।
मुण्डमालातन्त्रम् षष्ठः पटलः
मुंडमाला तन्त्र पटल ६
‘मुण्डमालातन्त्र'
अथ देवि ! प्रवक्ष्यामि गुप्तां
त्रिभुवनेश्वरीम् ।
यामाराध्य पुरा सर्वे भूतिभाजोऽभवन्
सुराः ।।1।।
हे देवि ! पूर्वकाल में समस्त
देवतागण जिनकी आराधना करके ऐश्वर्यशाली बने थे। अनन्तर उन गुप्ता त्रिभुवनेश्वरी
की कथा कहूँगा ।।1।।
ब्रह्मा रुद्रः सहस्राक्षो
रमा-शिव-मनोभवा ।
शक्तिर्माया महेशानि! विद्या
वस्वक्षरा मता ।।2।।
ब्रह्मा (ॐ),
रुद्र (ह), सहस्राक्ष (ल), रमा (श्रीं), शिव (ह), मनोभव
(क्लीं), शक्ति (क्लीं), माया (ह्रीं)-
हे महेशानि! यह विद्या आठ अक्षर की है- ऐसा कहा गया है ।।2।।
ऋषिर्ब्रह्या विराट् छन्दो देवता
लोकपावनी ।
महामायेति विख्याता बीजं लक्ष्मीः
प्रकीर्तिताः ।।3।।
इस मन्त्र के ऋषि हैं ब्रह्मा,
छन्द है विराट, देवता हैं लोकपावनी महामाया - ऐसा
प्रसिद्धि है। लक्ष्मी बीज हैं - ऐसी कही गयी है ।।3।।
माया शक्तिः कीलकञ्च
शैवदेहमुदाहृतम् ।
षडङ्गानि ततः कुर्याद् माया दीर्घेण
संयुता ।।4।।
माया शक्ति हैं एवं शैवदेह कीलक हैं
- ऐसा कहा गया है। उसके बाद दीर्घस्वरयुक्त माया के द्वारा षडङ्गन्यास करें
।।4।।
ध्यानं देवि! प्रवक्ष्यामि
सर्वैश्वर्य-फलप्रदम् ।
विद्युत् पुञ्जनिभां देवीं
रक्तपद्मासने स्थिताम् ।।5।।
त्रिनेत्रां दिग्भवावासां
पाणिविंशतिशोभिताम् ।
पीत-रक्त-श्वेत-कृष्ण-धूम्र-पाटल-मौक्तिकम्
।।6।।
नील-पीत-विचित्राणि वर्णानि कथितानि
वै ।
खड्ग-शूल-गदा-चक्र-शङ्ख-चाप शरानिति
।।7।।
लसत्परिघ-शस्त्राढ्य-मूषलं
दान-निर्भयम् ।
कर्तृमुद्रा तथायोगं मुदती दधतीं
करैः ।
शक्तिशूलधरां देवीं
सर्वसिद्धिफलप्रदाम् ।।8।।
हे देवि ! सर्वैश्वर्य-फल-प्रद
ध्यान को बता रहा हूँ। यह देवी विद्युतपुञ्ज के समान कान्ति-विशिष्टा,
रक्तपद्मासन पर उपविष्टा, त्रिनेत्रा, दिगम्बरी, विंशति बाहुओं के द्वारा शोभिता, रक्त, पीत, श्वेत, कृष्ण, धूम एवं पाटल मुक्ताओं से जटिल माला के
द्वारा विभूषिता हैं। इनका नील-पीत-विचित्र वर्णसमूह है-ऐसा कहा गया है। हस्तों
में खड्ग, शूल, गदा, चक्र, शङ्ख, चाप शर एवं उज्जवल
परिघ, शस्त्र-युक्त मूषल, वर, अभय, कर्तृमुद्रा एवं आयोग (माला)- धारिणी, शक्ति तथा शूल-धारिणी, ईषत् हास्यसयुक्ता, सर्वसिद्धि-फल-प्रदा देवी का ध्यान करें।।5-8।।
पूजायन्त्रं प्रवक्ष्यामि षट्कोणं
शक्तिसंयुतम् ।
षडष्टषोडशदलं पद्मं द्वारसमन्वितम्
।।9।।
इनके पूजायन्त्र को बता रहा
हूँ। शक्तियुक्त षट्कोण, द्वार-युक्त षड्दल,
अष्टदल एवं षोडशदल पद्म ही पूजा-यन्त्र है ।9।।
त्रिकोणे पूजयेद् देवीं मायावाणी
हरिप्रिया ।।
रीतिः प्रीतिः क्षमा पूज्या
पुष्टिस्तुतिर्मनोहराः ।10।।
त्रिकोण में देवी की पूजा करें।
मनोहरा माया, वाणी, हरि-प्रिया,
रति, प्रीति, क्षमा,
पुष्टि एवं तुष्टि पूज्य हैं।।10।।
योगनिद्रा महानिद्रा महामाया
महासुरी ।
महामुद्रा महास्वप्ना षड्दले
पूजयेत् क्रमात् ।।11।।
षड्दलों में यथाक्रम से योगनिद्रा,
महानिद्रा, महामाया, महासुरी,
महानिद्रा एवं महास्वप्ना की पूजा करें ।।11।।
क्षेमङ्करी योगमुद्रा शरीराकर्षिणी
तथा ।
लज्जा शान्तिलक्षणा चपला शान्तिश्च
विग्रहा ॥12॥
क्षेमङ्करी,
योगमुद्रा, शरीराकर्षिणी, लज्जा, शान्ति लक्षणा, चपला
एवं शान्ति - ये सब उनके विग्रह (शक्ति) हैं ।।12।।
अष्टदले महेशानि! वामावर्तेन
पूजयेत् ।
विद्या च परमाविद्या महाविद्या
महाबला ।
सौम्या परमसौम्या च महासौम्या
महापरा ।।13।।
कालरात्रिर्महारात्रि गायत्री च
महाम्बिका ।
प्रकृतिर्विकृतिर्मेधा विश्वरूपाः
क्रमादिमाः ॥14॥
हे महेशानि ! अष्टदल में वामावर्त्त
में पूजा करें । विद्या, परमा विद्या,
महाविद्या, महाबला, सौम्या,
परमसौम्या, महासौम्या, महापरा,
कालरात्रि, महारात्रि, गायत्री, महाम्बिका, प्रकृति,
विकृति, मेधा एवं विश्वरूपा - ये सभी क्रमशः
पूज्य हैं ।।13-14।।
महातत्त्वा प्रमत्ता च उन्मदा
मन्दगामिनी ।
महाप्रल्लादा बगला पूजयेद् विधिना
तथा ॥15॥
महातत्त्वा,
प्रमत्ता, उन्मदा, मन्दगामिनी,
महाप्रह्लादा, बगला - इन सभी की विधि के अनुसार पूजा करें ।।15 ।
जयमुण्डां महोग्राञ्च भीमां
भीमकपालिकाम् ।
अट्टहासिनीं नित्यां हर्षेणविह्वलां
तथा ।16।
सर्वदा अट्टहासिनी आनन्द-विह्वला,
जयमुण्डा, महोग्रा, भीमा,
भीमकपालिका की पूजा करें ।।16।।
विकटा बहुरूपा च महारूपा महाप्रदा ।
घोररावा महानित्या महामञ्जुलभाषिणी ।
सर्वदा सुन्दरी पूज्या अपरतः
क्रमात् प्रिये ।।17।।
हे प्रिये ! वाम-क्रम से विकटा,
बहुरूपा, महारूपा, महा-प्रदा,
घोररावा, महानित्या, महामञ्जुलभाषिणी
एवं सुन्दरी की सर्वदा पूजा करें ।।117।।
इन्द्रादयस्ततः पूज्याः
पूर्वादिदिग्-विदिक्षु च ।
चतुरि ततः पूज्या भगक्लिन्ना
भगाक्षरा ।
भगदेवी भगाक्षी च विधिना वामवर्त्मना
॥18॥
पूर्वादि दिशा एवं विदिक्-समूह में
इन्द्रादि लोकपाल गणों की पूजा करें । उसके बाद,
चार द्वारों में, वामावर्त्त से विधि के
अनुसार भगक्लिन्ना, भगाक्षरा, भगदेवी
एवं भगाक्षी की पूजा करें ।।18।।
एवं संपूज्य तां देवीं चतुर्लक्षं
मनुं जपेत् ।
होमादि विधिना कुर्यात् दशांशात्
क्रमतः प्रिये ॥19॥
इस प्रकार उन देवी की पूजा कर,
चार लाख मन्त्र जप करें। हे प्रिये ! यथाक्रम से दशांश परिणाम से
विधिपूर्वक होमादि करें ।।19।।
अनया विद्यया देवि! महासिद्धीश्वरो
भवेत् ।
धनवान् पुत्रवान् राजा सुखी भोगी
महाबलः ॥20॥
हे देवि ! इस विद्या के द्वारा
महासिद्धि की अधिपति बन जाते हैं । धनवान्, पुत्रवान्,
सुखी, भोगी एवं महाबलशाली राजा बन जाते हैं ।।20।।
भुवनेशी भगवति वह्निजायान्तको मनुः
।
सप्तक्षारो महेशानि!
सर्वसिद्धफलप्रदः ।।21 ।।
हे महेमशानि! इन देवी की भूवनेशी
(ह्रीं) भगवति वह्निजायान्तक (अन्त में 'स्वाहा'
युक्त) - यह सप्ताक्षर मन्त्र सर्वसिद्धि-फलप्रदय है ।।21।।
स्वर्णपद्मनिभां देवीं
सर्वालङ्कार-भूषिताम् ।
क्षौमवासां त्रिनयनां
शैलसिंह-समाश्रिताम् ।।22।।
देवी को स्वर्णपद्म के समान
कान्ति-विशिष्टा, सर्वालङ्कारभूषिता,
क्षौमवस्त्रभूषिता, शैलसिंहसमासीना त्रिनयना
रूप में ध्यान करें ।।22।।
अथवा सिंहशैले च इन्द्रादिरथदेवताः
।
एवं ध्यात्वा जपेत् पूर्वं समस्तं
हि समासतः ॥23॥
अथवा, सिंहशैल पर इन्द्रादि रथ-देवतागणो का ध्यान करें। इस प्रकार ध्यान कर,
संक्षेप में, पहले के समान समस्त जप करें
।।23।।
सर्वकालन्तु तज्जप्यं मन्त्रं
सर्वसमृद्धिदम् ।
शिवो रामेण संयुक्तं श्रोत्रेण
द्वितयं प्रिये ॥24॥
हे प्रिये ! सर्वसमृद्धिप्रद,
सर्वकाल में जप्य उस मन्त्र का सर्वदा जप करें । शिव को राम
के साथ संयुक्त करें एवं श्रोत्र के साथ द्वितय को संयुक्त करें ।।24।।
ब्रह्म मुखेन संयुक्तो
द्विरावृत्तमनुक्रमात् ।
नयनेन समायुक्तः शत्रान्विततया गतः
।।25।।
ब्रह्ममुख के साथ संयुक्त है।
अनुक्रम से मन्त्र को द्विरावृत्त करें। नयन के द्वारा शत्रु अन्वित होवें ।।25।।
हृदा-युक्तो मनुश्यं
सर्व-विद्या-फलप्रदः ।
बीजं शक्तिः कीलकञ्च
आद्यन्त-मध्ययोगतः ।।26।।
हृत (नमः) के द्वारा युक्त होने पर
यह मन्त्र सर्वविद्याफलप्रद बन जाता है । आदि,
अन्त एवं मध्य में, बीज, शक्ति एवं कीलक न्यस्त होवें ।।26।।
एतावत्येव मातृका॥
मातृका इतनी ही है।
इति मुण्डमालातन्त्रे षष्ठः पटलः ।।6।।
मुण्डमालतन्त्र के षष्ठ पटल का अनुवाद
समाप्त ॥6॥
आगे जारी............. रसिक मोहन विरचित मुण्डमालातन्त्र प्रथम पटल
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