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कर्मकाण्ड

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रुद्रयामल तंत्र पटल ८

रुद्रयामल तंत्र पटल ८    

रुद्रयामल तंत्र पटल ८ में आठवें पटल में कुमारी पूजन के अङ्गभूत जप एवं होम का विशद विवेचन है। घृताक्त बिल्व पत्र, श्वेत पुष्प, कुन्द पुष्प, करवीर पुष्प और घृताक्तचन्दन एवं अगुरु से मिश्रित हवनीय सामग्री से कुमारी पूजन में हवन का विधान है (१-५)। हवन के अन्त में भगवती के स्तोत्र और मन्त्र एवं फलश्रुति का प्रतिपादन है (१५-३४)। इसके बाद तर्पयामि" पद से नियोजित पद्य का विवेचन है। इन मन्त्रों को पढ़ते हुए मधुमिश्रित क्षीर एवं जल से भयवती का तर्पण करना चाहिए ।

रुद्रयामल तंत्र पटल ८

रुद्रयामल तंत्र पटल ८   

रुद्रयामल अष्टम: पटलः

रुद्रयामल आठवां पटल 

तंत्र शास्त्ररूद्रयामल  

कुमारीपूजाविधानम्

श्रीआनन्दभैरवी उवाच

अथ वक्ष्ये महादेव कुमार्या जपहोमकम् ।

लक्षसंख्यजपं कृत्वा मायां वा वाग्भवं रमाम् ॥१॥

कालीबीजं वापि नाथ मायां वा कामबीजकम् ।

सदाशिवेन पुटितं बिन्दुचन्द्रविभूषितम् ॥२॥

श्रीआनन्दभैरवी ने कहा --- हे महादेव ! अब इसके अनन्तर कुमारी के जप एवं होम का विधान कहती हूँ । माया (ह्रीं), अथवा वाग्भव (ऐं) रमा (श्रीं) काली बीज (क्ली), अथवा हे नाथ ! माया (ह्रीं), कामबीज (क्लीं), बिन्दु (विसर्ग) चन्द्र ( अनुस्वार ) से युक्त सदाशिव होम से सम्पुटित कुमारी मन्त्र का जप करें ॥१ - २॥

अथवा प्रनवेनापि पुटितं त्रिदशेश्वर ।

जपित्वा मूलमन्त्रञ्च लक्षसंख्याविधानतः ॥३॥

तद्‌दशांशं महाहोमं घृताक्तबिल्वपत्रकैः ।

अथवा श्वेतपुष्पैश्च कुन्दपुष्पैर्महाफलम् ॥४॥

अथवा हे त्रिदशेश्वर ! केवल प्रणव ( ॐ ) से सम्पुटित मूलमन्त्र का एक लाख की संख्या में विधानपूर्वक जप कर घृत में डुबोए गए बिल्व पत्रों से उसका दशांश होम करे अथवा श्वेत पुष्पों से अथवा कुन्द पुष्पों से तद्‍दशांश होम करे ॥३ - ४॥

एवं क्रमेण जुहुयात् करवीरप्रसूनकैः ।

घृताक्तैः कैवलैर्वापि चन्दनगुरुमिश्रितैः ॥५॥

हविष्याशी दिवाभागे रात्रै पूजापरो भवेत् ।

निजपूजावशेषैस्तु कुलद्रव्यैः प्रपूजयेत् ॥६॥

इसी क्रम से केवल घृताक्त करवीर पुष्पों से अथवा चन्दन और अगुरु से मिश्रित करवीर पुष्पों से हवन करना चाहिए । साधक दिन में हविष्यान्न भोजन कर रात्रि के समय कुमारी की पूजा करे , अपनी पूजा से अवशिष्ट कुल द्रव्यों से कुण्डलिनी का पूजन करना चाहिए ॥५ - ६॥

दिवासंख्यं जपेत्तत्र परमानन्दरुपधृक्‌ ।

जपान्ते जुहुयान्मत्री मदुक्तद्रव्यसंयुगैः ॥७॥

ततः प्राणात्मक वायुं शोधयित्वा पुनः पुनः ।

प्राणायामत्रयं कृत्वा चाष्टाङुं प्रणमेन्मुदा ॥८॥

अत्यन्त आनन्दमय स्वरुप धारण कर दिन में मनसोभिलषित संख्यानुसार जप करे । फिर जप पूर्ण हो जाने पर प्रथम मैने जैसा कहा है मन्त्रवेत्ता उन्हीं द्रव्यों से हवन करे । इसके बाद बारम्बार अपने प्राणात्मक वायु का संशोधन कर तीन प्राणायाम कर प्रसन्नतापूर्वक साष्टाङ्ग प्रणाम करे ॥७ - ८॥

प्रणामसमये नाथ इदं स्तोत्रं पठेत् यतिः ।

कवचञ्च तथा पाठ्यं कुमारीणामथापि वा ॥९॥

निजदेव्या महास्तोत्रं पठेद्धि कवचं ततः ।

कुमारीणां महादेव सहस्त्रनाम साष्टकम् ॥१०॥

हे नाथ ! प्रणाम करने समय नियमकर्ता साधक इस स्तोत्र का पाठ करे अथवा कुमारी कवच का पाठ करे । अथवा, अपनी इष्टदेवी के स्तोत्र का पाठ कर तदनन्तर कुमारी कवच का पाठ करें । तदनन्तर कुमारी अष्टोत्तर सहस्त्रनाम का पाठ करे ॥९ - १०॥

पठित्वा सिद्धिमाप्नोति पठित्वा साधकोत्तमः ।

अग्रे संस्थाप्य ताः सर्वा रत्नकोटिसुशीतलाः ॥११॥

ततः स्तोत्रं पठेद्धीमान् समाहितमना वशी ।  

महादिव्यचारसतो वीरभावोल्बणोऽपि वा ॥१२॥

इस प्रकार पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है तथा पाठकर्ता उत्तम साधक बन जाता है । करोड़ों रत्नों से सुशीतल उन देवियों को अपने आगे स्थापित कर महादिव्याचार में निरत हो कर अथवा वीरभाव से उत्तेजित होता हुआ बुद्धिमान् साधक स्थिरचित्त हो कर सर्व प्रथम स्तोत्र का पाठ करे ॥११ - १२॥

एवं क्रमेण प्रपठेद्‌ भक्तिभावपरायणः ।

महाविद्या महासेवा भक्तिश्रद्धाप्लुताप्रितः ॥१३॥

महाज्ञानी भवेत् क्षिप्रं वाञ्छासिद्धिमवाप्नुयात् ॥१४॥  

भक्ति भाव में परायण हो कर, महाविद्या की महतीसेवा में भक्ति और श्रद्धा से परिप्लुत हो कर इस स्त्रोत्र का पाठ करने से साधक महा ज्ञानी हो जाता है और अपने अभीष्ट की सिद्धि भी प्राप्त कर लेता है ॥१३ - १४॥

तंत्र शास्त्ररूद्रयामल अष्टम पटल में आगे श्लोक १५-३९ तक कुमारी स्तोत्र वर्णित है,इसे पढ़ने के लिए क्लीक करें-

कुमारी स्तोत्रम्

पुनः आगे श्लोक ४०-६७ में कुमारीतर्पण स्तोत्र वर्णित है,इसे पढ़ने के लिए क्लीक करें-

कुमारीतर्पणात्मक स्तोत्रम्

॥ इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे महातन्त्रोद्दीपने कुमार्युपचर्याविलासे सिद्धमन्त्रप्रकरण दिव्यभावनिर्णये अष्टमः पटलः ॥८॥

॥ इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के उत्तरतंत्र में महातंत्रोद्दीपन में कुमार्युपचर्याविलास में सिद्धमन्त्र प्रकरण में दिव्य भाव के निर्णय में आठवें पटल की डॅा० सुधाकर मालवीय कृत हिन्दी व्याख्या पूर्णं हुई ॥ ८ ॥

शेष जारी............रूद्रयामल तन्त्र नवम पटल  

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