सदाशिव स्तोत्रम्

सदाशिव स्तोत्रम्         

शिव पुराण के लेख के अनुसार सदाशिवजी कहे है कि जो मुझमे और कैलाशपति शिव में भेद करेगा या हम दोनों को अलग मानेगा वो नर्क में गिरेगा । या फिर शिव और विष्णु में जो भेद करेगा वो नर्क में गिरेगा। वास्तव में मुझमे, ब्रह्मा, विष्णु और कैलाशपति शिव कोई भेद नहीं हम एक ही है। परंतु सृष्टि के कार्य के लिए हम अलग अलग रूप लेते है । भगवान सदाशिव को प्रसन्न करने के लिए सदाशिव को समर्पित श्री सदाशिव स्तोत्रम् का पाठ करें।यहाँ दो सदाशिव स्तोत्रम् दिया जा रहा है । 

सदाशिव स्तोत्रम्

श्रीसदाशिव स्तोत्रम्

पङ्कजोद्भव प्रपूजिताङ्घ्रि पङ्कजद्वयं

किङ्करिकृतमरोगमप्रमेयमव्ययम् ।

सङ्कटापहं समस्तलोकपालनोत्सुकं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ १॥

आगमान्तचारिणं निकृतमतवारणं

वागतीतमद्वयं विराजवाहनप्रियम् ।

नागभूषणं कुरङ्गधारिणं विरागिनं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ २॥

फालनेत्रदग्धमन्मथ प्रमुग्धविग्रहं

भालस्थिते भानुमौलिमाद्रिराजसायकम् ।

नीललोहितं निशीधिनीश निर्मलाङ्गकं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ३॥

पादयुग्मसार साश्रितद्वयपादपं

नादरूपमद्रिजा घनस्तनप्रमर्दिनम् ।

वेदवेद्यमादिदेवमुग्रमुक्शवाहनं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ४॥

देवनिम्नगा तरङ्ग शीखरोल्लसज्जटं

भावनाविधूरगं कपालिनं पिनाकिनम् ।

पावनं पुरातनं पुरात्रयप्रभञ्जनम्

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ५॥

शीतलचलात्मज हृदम्बुज भास्करं

वीतराग योगिवृन्द चिदारङ्गनर्तकम् ।

सारगं सनातनं समाधिकं सदानतं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ६॥

रामनाममन्त्र तत्त्वचिन्तनैकचेतसां

कामनाशनं कृषाणु लोचनं निरञ्जनम् ।

व्योमकेशमीश्वरं भवम्भवाब्धि तारकं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ७॥

बन्धहीन लोकबन्धु मन्दकान्तकं

सिन्दुरास्य बाहुलेय लालनलोलुपम् ।

दण्डिचर्मचेलमीहितार्थधं  सुखास्पदं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ८॥

सत्यचिद्घनं विकल्पहीनमक्शयं परं

नित्यमीश्वरं कृशाणुरेतसं निरागसम् ।

मृत्युभीतिभेदकं मृगेन्दुपुत्रपालकं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ९॥

विष्टपोद्भवस्थिति प्रनाशकारणं शिवं

दुष्टदैत्यसूदनं कपालशूलधारणम् ।

शिष्टपालनं गिरीशमष्टमूर्तिमन्वहं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ १०॥

भूतनायकं विभूतिभूषणं विषाशिनं

पाथगौकनाशनं पवित्रमस्थिमालिनम् ।

जाटरूपकान्तिकाम्यकेशपाशशोभिनं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ ११॥

तारकेश शेखरं तमालनील कन्धरं

तारकस्वरूपकं त्रिवर्गसिद्धिदायकम् ।

तारकारि तोषणैक तत्परं दिगम्बरं

चिन्तयामहे सदाशिवं शिवार्धविग्रहम् ॥ १२॥

स्तोत्रमेतदुत्तमं समस्तसूरिभावितं

गोत्रनन्दिनीपति प्रियङ्करं शिवङ्करम् ।

श्रोत्रसौख्यहेतुकं मुदा सदापि यः पठेद्-

सार्द्रया सुगीत पूतमच्युतं पदं लभेत् ॥ १३॥

इति श्रीसदाशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

 

सदाशिव स्तोत्रम् २

ॐ नमः परमकल्याण नमस्ते विश्वभावन

नमस्ते पार्वतीनाथ उमाकान्त नमोऽस्तु ते ॥ ४७-२३३॥

विश्वात्मने विचिन्त्याय गुणाय निर्गुणाय च ।

धर्माय ज्ञानमोक्षाय नमस्ते सर्वयोगिने ॥ ४७-२३४॥

नमस्ते कालरूपाय त्रैलोक्यरक्षणाय च ।

गोलोकघातकायैव चण्डेशाय नमोऽस्तु ते ॥ ४७-२३५॥

सद्योजाताय देवाय नमस्ते शूलधारिणे ।

कालान्ताय च कान्ताय चैतन्याय नमो नमः ॥ ४७-२३६॥

कुलात्मकाय कौलाय चन्द्रशेखर ते नमः ।

उमानाथ नमस्तुभ्यं योगीन्द्राय नमो नमः ॥ ४७-२३७॥

सर्वाय सर्वपूज्याय ध्यानस्थाय गुणात्मने ।

पार्वती प्राणनाथाय नमस्ते परमात्मने ॥ ४७-२३८॥

एतत्स्तोत्रं पठित्वा च स्तौति यः परमेश्वरम् ।

याति रुद्रकुलस्थानं मणिपूरं विभिद्यते ॥ ४७-२३९॥

एतत् स्तोत्रप्रपाठेन तुष्टो भवति शङ्करः ।

खेचरत्वं पदं नित्यं ददाति परमेश्वरः ॥ ४७-२४०॥

इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे सदाशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ ४७॥

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