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ललितापञ्चकम्

ललितापञ्चकम्

शङ्कराचार्यजी के द्वारा रचित माता ललिता के अति सौभाग्यप्रद ललितापञ्चकम् अथवा ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र को जो पुरूष प्रात:काल पढ़ता है,उसे शीघ्र ही प्रसन्न होकर ललिता देवी विद्या, धन, निर्मल सुख और अनन्त कीर्ति देती हैं।

ललितापञ्चकम्

श्रीललितापंचकम् अथवा ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र

प्रात: स्मरामि ललिता-वदनारविन्दं

विम्बाधरं पृथुल-मौक्तिक-शोभिनासम् ।

आकर्णदीर्घनयनं मणिकुण्डलाढ्यं

मन्दस्मितं मृगमदोज्ज्वलभालदेशम् ॥१॥

प्रातःकाल ललितादेवी के उस मनोहर मुखकमल का स्मरण करता हूँ, जिनके बिम्बसमान रक्तवर्ण अधर, विशाल मौक्तिक(मोती के बुलाक) से सुशोभित नासिका और कर्णपर्यन्त फैले हुए विस्तीर्ण नयन हैं जो मणिमय कुण्डल और मन्द मुसकान से युक्त हैं तथा जिनका ललाट कस्तूरिकातिलक से सुशोभित है।

प्रातर्भजामि ललिताभुजकल्पवल्लीं

रक्ताङ्गुलीय-लसदङ्गुलि-पल्लवाढ्याम् ।

माणिक्यहेम-वलयाङ्गद-शोभमानां

पुण्ड्रेक्षुचाप-कुसुमेषु-सृणीदधानाम् ॥२॥

मैं श्रीललिता देवी की भुजारूपिणी कल्पलता का प्रातःकाल स्मरण करता हूँ जो लाल अंगूठी से सुशोभित सुकोमल अंगुलिरूप पल्लवों वाली तथा रत्नखचित सुवर्णकङ्कण और अङ्गदादि से भूषित है एवं जिन्होंने पुण्ड्र-ईख के धनुष, पुष्पमय बाण और अंकुश धारण किये हैं।

प्रातर्नमामि ललिताचरणारविन्दं

भक्तेष्टदाननिरतं भवसिन्धुपोतम् ।

पद्मासनादि-सुरनायकपूजनीयं

पद्माङ्कुश-ध्वज-सुदर्शन-लाञ्च्छनाढ्यम् ॥३॥

मैं श्रीललितादेवी के चरणकमलों को, जो भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले और संसारसागर के लिये सुदृढ़ जहाजरूप हैं तथा कमलासन श्रीब्रह्माजी आदि देवेश्वरों से पूजित और पद्म, अङ्कुश, ध्वज एवं सुदर्शनादि मङ्गलमय चिह्नों से युक्त हैं, प्रातःकाल नमस्कार करता हूँ।

प्रात: स्तुवे परशिवां ललितां भवानीं

त्रय्यन्त-वेद्यविभवां करुणानवद्याम् ।

विश्वस्य सृष्टिविलयस्थिति-हेतुभूतां

विद्येश्वरीं निगम-वाङ्गनसातिदूराम् ॥४॥

मैं प्रातःकाल परमकल्याणरूपिणी श्रीललिता भवानी की स्तुति करता हूँ जिनका वैभव वेदान्तवेद्य है जो करुणामयी होने से शुद्धस्वरूपा हैं, विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय की मुख्य हेतु हैं, विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा वेद, वाणी और मन की गति से अति दूर हैं।

प्रातर्वदामि ललिते तव पुण्यनाम

कामेश्वरीति कमलेति महेश्वरीति ।

श्रीशाम्भवीति जगतां जननी परेति

वाग्देवतेति वचसा त्रिपुरेश्वरीति ॥५॥

हे ललिते! मैं तेरे पुण्यनाम कामेश्वरी, कमला, महेश्वरी, शाम्भवी, जगज्जननी, परा, वाग्देवी तथा त्रिपुरेश्वरी आदि का प्रातःकाल अपनी वाणी द्वारा उच्चारण करता हूँ।

य: श्लोकपञ्चकमिदं ललिताम्बिकाया:

सौभाग्यदं सुललितं पठति प्रभाते ।

तस्मै ददाति ललिता झटिति प्रसन्ना

विद्यां श्रियं विमल-सौख्यमनन्तकीर्तिम् ॥६॥

माता ललिता के अति सौभाग्यप्रद और सुललित इन पाँच श्लोकों को जो पुरुष प्रातःकाल पढ़ता है उसे शीघ्र ही प्रसन्न होकर ललितादेवी विद्या, धन, निर्मल सुख और अनन्त कीर्ति देती हैं।

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं ललितापञ्चकं अथवा श्रीललितापञ्चरत्नम् सम्पूर्णम् ॥

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