श्रीकृष्णः शरणं मम स्तोत्र

श्रीकृष्णः शरणं मम स्तोत्र

श्रीकृष्णलालजी द्विज द्वारा रचित इस पापनाशक 'श्रीकृष्णः शरणं मम' नामक स्तोत्र का पाठ करने से सभी आपत्तियों का नाश होता है और भगवान् श्रीकृष्णजी अविचल भक्ति व उनकी शरण प्राप्ति होती है ।

श्रीकृष्णः शरणं मम स्तोत्र

श्रीकृष्णः शरणं मम स्तोत्रम्

श्रीकृष्ण एव शरणं मम श्रीकृष्ण एव शरणम् ॥(ध्रुवपदम्)

गुणमय्येषा न यत्र माया न च जनुरपि मरणम् ।

यद्यतयः पश्यन्ति समाधौ परममुदाभरणम् ॥१॥

मेरे लिये श्रीकृष्ण ही शरण है, एकमात्र कृष्ण ही शरण है। जहाँ यह त्रिगुणमयी माया और जन्म-मृत्यु नहीं हैं तथा योगी लोग समाधि में जिस आनन्दमय का यहीं दर्शन करते हैं ॥ १॥

यद्धेतोर्निवहन्ति बुधा ये जगति सदाचरणम् ।

सर्वापद्भ्यो विहितं महतां येन समुद्धरणम् ॥ २॥

जिनकी प्राप्ति के लिये विद्वान् लोग संसार में अनेक धर्माचरण करते हैं और जिन्होंने सभी आपत्तियों से महात्माओं का उद्धार किया है ॥ २ ॥

भगवति यत्सन्मतिमुद्वहतां हृदयतमोहरणम् ।

हरिपरमा यद्भजन्ति सततं निषेव्य गुरुचरणम् ॥३॥

जो भगवान्में सबुद्धि रखनेवालों के हृदय का अज्ञानान्धकार नष्ट कर देते हैं और भगवद्भक्तजन गुरुचरणों की सेवा करके जिनका सदा भजन करते हैं ॥ ३ ॥

असुरकुलक्षतये कृतममरैर्यस्य सदादरणम् ।

भुवनतरुं धत्ते यन्निखिलं विविधविषयपर्णम् ॥४॥

असुरों के विनाश के लिये देवताओं ने जिनका सदा आदर किया है और जो अनेक विषयरूपी पत्रोंवाले इस संसार-वृक्ष को धारण किये हुए हैं ॥४॥

अवाप्य यद्भूयोऽच्युतभक्ता न यान्ति संसरणम् ।

कृष्णलालजीद्विजस्य भूयात्तदघहरस्मरणम् ॥५॥

जिनको प्राप्त करके भगवद्भक्त फिर आवागमन के चक्र में नहीं फँसते, उन्हीं की पापनाशक स्मृति कृष्णलालजी द्विज के हृदय में बनी रहे ।। ५ ॥

इति श्रीकृष्णलालजीद्विजविरचितं 'श्रीकृष्णः शरणं मम' नामक स्तोत्रं समाप्त।

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