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कर्मकाण्ड

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मीनाक्षी पञ्चरत्नम्

मीनाक्षी पञ्चरत्नम्

इस मीनाक्षी पञ्चरत्नम् के नित्य पाठ से साधक को नाना प्रकार के भोग पदार्थों की प्राप्ति होती हैं, तथा सभी मनोकामना सिद्ध होता है।

मीनाक्षी पञ्चरत्नम्

मीनाक्षीपञ्चरत्नम्

      ॥ अथ मीनाक्षी पञ्चरत्नम् ॥

उद्यद्भानु सहस्रकोटिसदृशां केयूरहारोज्ज्वलां

बिम्बोष्ठीं स्मितदन्तपंक्तिरुचिरां पीताम्बरालंकृताम् ।

विष्णुब्रह्मसुरेन्द्रसेवितपदां तत्वस्वरूपां शिवां

मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ १॥

जो उदय होते हुए सहस्रकोटि सूर्यो के सदृश आभावाली हैं, केयूर और हार आदि आभूषणों से भव्य प्रतीत होती हैं, बिम्बाफल के समान अरुण ओठोंवाली हैं, मधुर मुस्कानयुक्त दन्तावलि से जो सुन्दरी मालुम होती हैं तथा पीताम्बर से अलंकृता हैं; ब्रह्मा, विष्णु आदि देवनायकों से सेवित चरणोंवाली उन तत्वस्वरूपिणी कल्याणकारिणी करूणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥१॥

मुक्ताहारलसत्किरीटरुचिरां पूर्णेन्दुवक्त्र प्रभां

शिञ्जन्नूपुरकिंकिणिमणिधरां पद्मप्रभाभासुराम् ।

सर्वाभीष्टफलप्रदां गिरिसुतां वाणीरमासेवितां

मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ २॥

जो मोती की लड़ियों से सुशोभित मुकुट धारण किये सुन्दर मालूम होती हैं, जिनके मुख की प्रभा पुर्णचन्द्र के समान है जो झनकारते हुए नूपुर (पायजेब), किंकिणी (करधनी) तथा अनेकों मणियाँ धारण किये हुए हैं, कमल की सी आभा से भासित होनेवाली, सबको अभीष्ट फल देनेवाली, सरस्वती और लक्ष्मी आदि से सेविता उन गिरिराजनन्दिनी करूणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥२॥

श्रीविद्यां शिववामभागनिलयां ह्रींकारमन्त्रोज्ज्वलां

श्रीचक्राङ्कित बिन्दुमध्यवसतिं श्रीमत्सभानायकीम् ।

श्रीमत्षण्मुखविघ्नराजजननीं श्रीमज्जगन्मोहिनीं

मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ ३॥

जो श्रीविद्या हैं, भगवान शंकर के वामभाग में विराजमान हैं, "ह्रीं' बीजमन्त्र से सुशोभिता हैं, श्रीचक्रांकित बिन्दु के मध्य में निवास करती हैं तथा देवसभा की अधिनेत्री हैं, उन श्रीस्वामी कार्तिकेय और गणेशजी की माता जगन्मोहिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥३॥

श्रीमत्सुन्दरनायकीं भयहरां ज्ञानप्रदां निर्मलां

श्यामाभां कमलासनार्चितपदां नारायणस्यानुजाम् ।

वीणावेणुमृदङ्गवाद्यरसिकां नानाविधामम्बिकां 

मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ ४॥

जो अति सुन्दर स्वामिनी हैं, भयहारिणी हैं, ज्ञानप्रदायिनी हैं, निर्मला और श्यामला हैं, कमलासन श्रीब्रह्माजी द्वारा जिनके चरणकमल पूजे गये हैं तथा श्रीनारायण (कृष्णचन्द्र)-की जो अनुजा ( छोटी बहन) हैं; बीणा, वेणु, मृदंगादि वाद्यों की रसिका उन विचित्र लीलाविहारिणी करणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥ ४॥

नानायोगिमुनीन्द्रहृन्निवसतीं नानार्थसिद्धिप्रदां

नानापुष्पविराजितांघ्रियुगलां नारायणेनार्चिताम् ।

नादब्रह्ममयीं परात्परतरां नानार्थतत्वात्मिकां

मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ ५॥

जो अनेकों योगिजन और मुनीश्वरों के हृदय में निवास करनेवाली तथा नाना प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति करानेवाली हैं, जिनके चरणयुगल विचित्र पुष्पों से सुशोभित हो रहे हैं, जो श्रीनारायण से पूजिता हैं तथा जो  नादब्रह्ममयी, परे से भी परे और नाना पदार्थों की तत्त्वस्वरूपा हैं, उन करणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ।५।।

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं मीनाक्षीपञ्चरत्नं सम्पूर्णम् ॥

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