कुमारी सहस्रनाम स्तोत्र

कुमारी सहस्रनाम स्तोत्र

रुद्रयामल तंत्र दसवें पटल में महान्‌ पुण्यदायक कुमारी सहस्रनाम वर्णित है । इस स्तोत्र की फलश्रुति है कि जो इसे भोज पत्र पर लिखकर हाथ में धारण करता है उसे सभी संकटों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है। मन्त्रार्थ, मन्त्र चैतन्य एवं योनि मुद्रा के स्वरूप को जानकर सभी यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है। पुनः यहीं पर सहस्रनाम सम्बन्धी कवच का भी उल्लेख है। ६ महीने पाठ करने से साधक तीनों जगत्‌ को मोहित कर लेता है। १ वर्ष के पाठ से खेचरत्व प्राप्ति एवं योगसिद्धि प्राप्त होती है और नित्य पाठ से जलस्तम्भन, अग्नि स्तम्भन और वायु के समान वेग की प्राप्ति होती है। सहस्रनाम से हवन और हवनीय द्रव्य की गणना तथा हवन कर्म का फल अन्त में प्रतिपादित है ।

रुद्रयामल तंत्र पटल १० कुमारी सहस्त्रनाम स्तोत्र

रुद्रयामल तंत्र पटल १०   

रुद्रयामल दशम: पटलः

रुद्रयामल दसवां पटल 

तंत्र शास्त्ररूद्रयामल

दशमः पटलः - अष्टोत्तरसहस्त्रनामकवचम्

कुमार्या सहस्त्रनामानि स्तोत्रम्

गजान्तक कुमारी सहस्त्रनाम स्तोत्र

आनन्दभैरव उवाच

वद कान्ते सदानन्दस्वरुपानन्दवल्लभे ।

कुमार्या देवतामुख्याः परमानन्दवर्धनम् ॥१॥

अष्टोत्तरसहस्त्राख्यं नाम मङ्गलमद्भुतम् ।

यदि मे वर्तते विद्ये यदि स्नेहकलामला ॥२॥

तदा वदस्व कौमारीकृतकर्मफलप्रदम् ।

महास्तोत्रं कोटिकोटि कन्यादानफलं भवेत् ॥३॥

श्रीआनन्दभैरव ने कहा --- हे सदानन्द स्वरुपानान्द वल्लभे ! हे कान्ते ! आप देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कुमारी के, परमानन्द को बढ़ाने वाले, मङ्गल प्रदान करने वाले तथा अत्यन्त अदभुत एक हजार आठ नामों को कहिए । हे विद्ये ! यदि आपकी मुझ में स्वच्छ स्नेह की कला है तो कुमारी के लिए किए जाने वाले कर्म के फल को देने वाले उस महास्तोत्र को कहिए जिसके पाठ से करोड़ों - करोड़ कन्यादान का फल प्राप्त होता है ॥१ - ३॥

आनन्दभैरवी उवाच

महापुण्यप्रदं नाथ श्रृणु सर्वेश्वरप्रिय ।

अष्टोत्तरसहस्त्राख्यं कुमार्याः परमाद‌भुतम् ॥४॥

पठित्त्वा धारयित्त्वा वा नरो मुच्येत सङ्कटात् ।

सर्वत्र दुर्लभं धन्यं धन्यलोकनिषेवितम् ॥५॥

आनन्दभैरवी ने कहा --- हे सर्वेश्वर ! हे प्रिय ! कुमारी के अत्यन्त अदभुत, महान पुण्य देने वाले एक हजार आठ नामों का पाठ कर और उसको हृदय में धारण कर मनुष्य समस्त सङ्कटों से छुटकारा पा जाता है । यह सहस्त्रनाम सर्वत्र दुर्लभ है, धन्य है तथा धन्य लोगों से निषेवित है ॥४ - ५॥

अणिमाद्यष्टसिद्धयङ्गं सर्वानन्दकरं परम् ।

मायामन्त्रनिरस्ताङ्गं मन्त्रसिद्धिप्रदे नृणाम् ॥६॥

यह अणिमादि अष्टसिद्धियों को देने वाला, सभी प्रकार के आनन्द को करने वाला तथा सर्वश्रेष्ठ है । माया निर्मित मन्त्रों को निरस्त करने वाला तथा मनुष्यों को मन्त्र की सिद्धि देने वाला है ॥६॥

न पूजा न जपं स्नानं पुरश्चर्याविधिश्च न ।

अकस्मात् सिद्धिमवाप्नोति सहस्त्रनामपाठतः ॥७॥

सर्वयज्ञफलं नाथ प्राप्नोति साधकः क्षणात् ।

मन्त्रार्थ मन्त्रचैतन्यं योनिमुद्रास्वरुपकम् ॥८॥

कुमारी सहस्त्र नाम के पाठ मात्र से साधक को अनायास सिद्धि प्राप्त होती है । इसमें पूजा, जप, स्नान तथा पुरश्चरण के विधि की आवश्यकता नहीं पड़ती । हे नाथ ! इसके पाठ से साधक क्षणमात्र में समस्त यज्ञों का फल प्राप्त कर लेता है । यह सभी मन्त्रों का अर्थ है । सभी मन्त्रों को चेतना प्रदान करता है तथा समस्त योनिमुद्रा का स्वरुप है ॥७ - ८॥

कोटिवर्षशतेनापि फलं वक्तुं न शक्यते ।

तथापि वक्तुमिच्छामि हिताय जगतां प्रभो ॥९॥

इसका फल सैकड़ों करोड़ वर्षों तक कहना संभव नहीं है । फिर भी, हे प्रभो ! मैं समस्त संसार के हित के लिए इस कुमारी सहस्त्रनाम को कहता हूँ ॥९॥

कुमारी अष्टोत्तरसहस्त्रनामकवच स्तोत्रम्

अस्याः श्रीकुमार्याः सहस्त्रनामकवचस्य वटुकभैरवऋषिरनुष्टुप्‌छन्दः,

कुमारीदेवता, सर्वमन्त्रसिद्धिसमृद्धये विनियोगः ॥१०॥

विनियोग --- इस कुमारी सहस्त्रनाम कवच के बटुक भैरव ऋषि हैं, अनुष्टुप् ‍छन्द है, कुमारी देवता हैं, सम्पूर्ण मन्त्रों की सिद्धि समृद्धि के लिए इसका विनियोग है ॥१०॥

रुद्रयामल तंत्र पटल १० कुमारी सहस्त्रनाम स्तोत्र

ॐ कुमारी कौशिकी काली कुरुकुल्ला कुलेश्वरी ।

कनकाभा काञ्चनाभा कमला कालकामिनी ॥११॥

कपालिनी कालरुपा कौमारी कुलपालिका ।

कान्ता कुमारकान्ता च कारणा करिगामिनी ॥१२॥

कन्धकान्ता कौलकान्ता कृतकर्मफलप्रदा ।

कार्याकार्यप्रिया कक्षा कंसहन्त्री कुरुक्षया ॥१३॥

कृष्णकान्ता कालरात्रिः कर्णेषुहारिणीकरा ।

कामहा कपिला काला कालिका कुरुकामिनी ॥१४॥

कुरुक्षेत्रप्रिया कौला कुन्ती कामातुरा कचा ।

कलञ्चभक्षा कैकेयी काकपुच्छध्वजा कला ॥१५॥

ॐ कुमारी , कौशिकी , काली , कुरुकुल्ला , कुलेश्वरी , कनकाभा , काञ्चनाभा , कमला , कालकामिनी , कपालिनी , कालरुपा , कौमारी , कुलपालिका , कान्ता , कुमारकान्ता , कारणा , करिगामिनी , कन्धकान्ता , कौलकान्ता, कृतकर्मफलप्रदा, कार्यकार्यप्रिया, कक्षा , कंसहन्त्री , कुरुक्षया , कृष्णकान्ता , कालरात्रि , कर्णेषुधारिणी , करा , कामहा, कपिला , काला , कालिका , कुरुकामिनी , कुरुक्षेत्रप्रिया , कौला , कुन्ती , कामातुरा , कचा , कलञ्जभक्षा , कैकेयी , काकपुच्छध्वजा , कला ( ४१ ) ॥११ - १५॥

कमला कामलक्ष्मी च कमलाननकामिनी ।

कामधेनुस्वरुपा च कामहा काममर्दिनी ॥१६॥

कामदा कामपूज्या च कामातीता कलावती ।

भैरवी कारनावाढ्या च कैशोरी कुशलाङ्गला १७॥

कम्बुग्रीवा कृष्णनिभा कामराजप्रियाकृतिः ।

कङ्कणालङकृता कङ्का केवला काकिनी किरा ॥१८॥

किरातिनी काकभक्षा करालवदना कृशा ।

केशिनी केशिहा केशा कासाम्बष्ठा करिप्रिया ॥१९॥

कविनाथस्वरुपा च कटुवाणी कटुस्थिता ।

कोटरा कोटराक्षी च करनाटकवासिनी ॥२०॥

कमला , कामलक्ष्मी , कमलानन कामिनी , कामधेनुस्वरुपा , कामहा , काममर्दिनी , कामदा , कामपूज्या , कामतीता , कलावती , भैरवी , कारणाढया , कैशोरी , कुशलाङ्कला , कम्बुग्रीवा , कृष्णनिभा , कामराजप्रियाकृति , कङ्कणालङ्‍कृता , कङ्क , केवला , काकिनी , किरा , किरातिनी , काकभक्षा , करालवदना , कृशा , केशिना , केशिहा , केशा, कासाम्बष्ठा, करिप्रिया, कविनाथस्वरुपा , कटुवाणी , कटुस्थिता , कोटरा , कोटराक्षी , करनाटकवासिनी ( ३७ ) ॥१६ - २०॥

कटकस्था काष्ठसंस्था कन्दर्पा केतकी प्रिया ।

केलिप्रिया कम्बलस्था कालदैत्यविनाशिनी ॥२१॥

केतकीपुष्पशोभाढ्या कर्पूरपूर्णजिहिवका ।

कर्पूराकरकाकोला कैलासगिरिवासिनी ॥२२॥

कुशानसनस्था कादम्बा कुञ्जरेशी कुलानना ।

खर्बा खङ्‌गधरा खड्‌गा खलहा खलबुद्धिदा ॥२३॥

कटकस्था , काष्ठसंस्था , कन्दर्पा , केतकी , प्रिया , केलिप्रिया , कम्बलस्था , कालदेत्यविनाशिनी , केतकी पुष्प केतकी पुष्प शोभाढया , कर्पूरपूर्णजिहिवका , कर्पूराकर , काकोला , कैलासगिरिवासिनी , कुशासनस्था , कादम्बा , कुञ्जरेशी , कुलानना ( १६ ) ॥२१ - २३॥

खञ्जना खररुपा च क्षाराम्लतिक्तमध्यगा ।

खेलना खेटककरा खरवाक्या खरोत्कटा ॥२४॥

खद्योतञ्चला खेला खद्योता खगवाहिनी ।

खेटकस्था खलाखस्था खेचरी खेचरप्रिया ॥२५॥

खचरा खरप्रेमा खलाढ्या खचरानना ।

खेचरेशी खरोग्रा च खेचरप्रियभाषिणी ॥२६॥

खर्जूरासवसंमत्ता खर्जूरफलभोगिनी ।

खातमध्यस्थिता खाता खाताम्बुपरिपूरिणी ॥२७॥

ख्यातिः ख्यातजलानन्दा खुलना खञ्जनागतिः ।

खल्वा खलतरा खारी खरोद्वेगनिकृन्तनी ॥२८॥

खर्बा, खड्‍गधरा, खड्‍गा, खलहा, खलबुद्धिदा, खञ्जना, खररुपा, क्षाराम्लतिक्तमध्यगा, खेलना, खेटककरा, खरवाक्या, खरोत्कटा, खद्योतचञ्चला, खेला, खद्योता, खगवाहिनी, खेटकस्था, खलाखस्था, खेचरी, खेचरप्रिया, खचरा, खरप्रेमा, खलाढया, खचरानना, खेचरेशी, खरोग्रा, खेचरप्रियभाषिणी, खर्जूरासवसंमत्ता, खर्जूफलभोगिनी , खातमध्यस्थिता , खाता , खाताम्बुपरिपूरिणी , ख्याति , ख्यातजलानन्दा , खुलना , खञ्जनागति , खल्वा , खलतरा , खारी , खरोद्वेगनिकृन्तनी ( ४० ) ॥२३ - २८॥

गगनस्था च भीता च गभीरनादिनी गया ।

गङ्गा गभीरा गौरी च गणनाथ प्रिया गतिः ॥२९॥

गुरुभक्ता ग्वालिहीना गेहिनी गोपिनी गिरा ।

गोगणस्था गाणपत्या गिरिजा गिरिपूजिता ॥३०॥

गगनस्था, भीता, गभीरनादिनी, गया गङ्गा, गभीरा , गौरी , गणनाथ , प्रिया , गति , गुरुभक्त, ग्वालिहीना, गेहिनी , गोपिनी , गिरा , गोगणस्था , गाणपत्या , गिरिजा , गिरिपूजिता ( १९ ) ॥२९ - ३०॥

गिरिकान्ता गणस्था च गिरिकन्या गणेश्वरी ।

गाधिराजसुता ग्रीवा गुर्वी गुर्व्यम्बशाङ्करी ॥३१॥

गन्धर्व्वकामिनी गीता गायत्री गुणदा गुणा ।

गुग्गुलुस्था गुरोः पूज्या गीतानन्दप्रकाशिनी ॥३२॥

गयासुरप्रियागेहा गवाक्षजालमध्यगा ।

गुरुकन्या गुरोः पत्नी गहना गुरुनागिनी ॥३३॥

गुल्फवायुस्थिता गुल्फा गर्द्दभा गर्द्दभप्रिया ।

गुह्या गुह्यगणस्था च गरिमा गौरिका गुदा ॥३४॥

गुदोर्ध्वस्था च गलिता गणिका गोलका गला ।

गान्धर्वी गाननगरी गन्धर्वगणपूजिता ॥३५॥

गिरिकान्ता , गणस्था , गिरिकन्या , गणेश्वरी , गाधिराजसुता , ग्रीवा , गुर्वी , गुर्व्यम्बशाङ्करी , गन्धर्व्वकामिनी , गीता , गायत्री , गुणदा , गुणा , गुग्गुलुस्था , गुरो पूज्या , गीतानन्दप्रकाशिनी , गयासुरप्रियागेहा , गवाक्षजालमध्यगा , गुरुकन्या , गुरो पत्नी , गहना , गुरुनागिनी , गुल्फवायुस्थिता , गुल्फा , गर्द्दभा , गर्द्दभप्रिया , गुह्या , गुह्मगणस्था , गरिमा, गौरिका, गुदा, गुदोर्ध्वस्था, गलिता , गणिका , गोलका , गला , गान्धर्वी , गाननगरी , गन्धर्वगणपूजिता (४१) ॥३१ - ३५॥

घोरनादा घोरमुखी घोरा घर्मनिवारिणी ।

घनदा घनवर्णा च घनवाहनवाहना ॥३६॥

घर्घरध्वनिचपला घटाघटपटाघटा ।

घटिता घटना घोना घनरुप घनेश्वरी ॥३७॥

घुण्यातीता घर्घरा च घोराननविमोहिनी ।

घोरनेत्रा घनरुचा घोरभैरव कन्यका ॥३८॥

घाताघातकहा घात्या घ्राणाघ्राणेशवायवी ।

घोरान्धकारसंस्था च घसना घस्वरा घरा ॥३९॥

घोटकेस्था घोटका च घोटकेश्वरवाहना ।

घननीलमणिश्यामा घर्घरेश्वरकामिनी ॥४०॥

घोरनादा, घोरमुखी, घोरा, घर्मनिवारिणी , घनदा , घनवर्णा , घनवाहनवाहना , घर्घरध्वनिचपला, घटाघटपटाघटा, घटिता , घटना , घोना , घनरुप , घनेश्वरी , घुण्यातीता , घर्घरा , घोराननविमोहिनी , घोरनेत्रा, घनरुचा, घोरभैरवकन्यका, घाताघातकहा, घात्या, घ्राणाघ्राणेश्वायवी, घोरान्धकारसंस्था, घसना, घस्वरा, घरा, घोटकेस्था, घोटका, घोटकेश्वरवाहना, घननीलमणिश्यामा, घर्घरेश्वरकामिनी (३३) ॥३६ - ४०॥

ङकारकूटसम्पन्ना ङकारचक्रगामिनी ।

ङकारी ङ्संशा ङीपनीता ङकारिणी ॥४१॥

ङकारकूटसम्पन्ना , ङकारचक्रगामिनी , ङकारी , ङसंशा , ङीपनीत , ङकारिणी ( ६ ) ॥४१॥

चन्द्रमण्डलमध्यस्था चतुरा चारुहासिनी ।

चारुचन्द्रमुखी चैव चलङुमगतिप्रिया ॥४२॥

चञ्चला चपला चण्डी चेकिताना चरुस्थिता ।

चलिता चानना चार्व्वो चारुभ्रमरनादिनी ॥४३॥

चौरहा चन्द्रनिलया चैन्द्री चन्द्रपुरस्थिता ।

चक्रकौला चक्ररुपा चक्रस्था चक्रसिद्धिदा ॥४४॥

चक्रिणी चक्रहस्ता च चक्रनाथकुलप्रिया ।

चक्राभेद्या चक्रककुला चक्रमण्डलशोभिता ॥४५॥

चक्रेश्वरप्रिया चेला चेलाजिनकुशोत्तरा ।

चतुर्वेदस्थिता चण्डा चन्द्रकोटिसुशीतला ॥४६॥

चतुर्गुणा चन्द्रवर्णा चातुरी चतुरप्रिया ।

चक्षुःस्था चक्षुवसतिश्चणका चणकप्रिया ॥४७॥

चार्व्वङी चन्द्रलिया चलदम्बुजलोचना ।

चर्व्वरीशा चारुमुखी चारुदन्ता चरस्थिता ॥४८॥

चसकस्थासवा चेता चेतःस्था चैत्रपूजिता ।

चाक्षुषी चन्द्रमलिनी चन्द्रहासमणिप्रभा ॥४९॥

चन्द्रमण्डलमध्यस्था , चतुरा , चारुहासिनी , चारुचन्द्रमुखी , चैव , चलङ्रमगतिप्रिया , चञ्चला , चपला, चण्डी, चेकिताना, चरुस्थिता, चलिता, चलिता, चानना, चार्व्वो, चारूभ्रमरनादिनी, चौरहा, चन्द्रनिलया, चैन्द्रीचन्द्रपुरस्थिता, चक्रकौला , चक्ररूपा , चक्रस्था , चक्रसिद्धिदा , चक्रिणी , चक्र- हस्ता, चक्रनाथकुलप्रिया, चक्राभेद्या , चक्रकुला , चक्रमण्डलशोभिता, चक्रेश्वरप्रिया , चेला , चेलाजिनकुशोत्तरा , चतुर्वेदस्थिता , चण्डा , चन्द्रकोटिसुशीतला, चतुर्गुणा, चन्द्रवर्णा , चातुरी , चतुरप्रिया , चक्षुस्था , चक्षुवसति , चणका , चणकप्रिया , चार्व्वङ्की , चन्द्रनिलया , चलदम्बुजलोचना , चर्व्वरीशा , चारुमुखी , चारुदान्ता , चरस्थिता , चसकस्थासवा , चेता , चेतस्था , चैत्रपूजिता , चाक्षुषी , चन्द्र्मलिनी , चन्द्रहासमणिप्रभा ( ५६ ) ॥४२ - ४९॥

छलस्था छुद्ररुपा च छत्रच्छायाछलस्थिता ।

छलज्ञा छरेश्वराछाया छाया छिन्नशिवा छला ॥५०॥

छत्राचामरशोभाढ्या छत्रिणां छत्रधारिणी ।

छिन्नातीत छिन्नमस्ता छिन्नकेशा छलोद्भवा ॥५१॥

छलहा छलदा छाया छन्ना छन्नजनप्रिया ।

छलछिन्ना छद्मवती छद्‍मसद्मनिवासिनी ॥५२॥

छद्मगन्धा छदाछन्ना छद्मवेशी छकारिका ।

छगला रक्तभक्षा च छगलामोदरक्तपा ॥५३॥

छगलण्डेशकन्या च छगलण्डकुमारिका ।

छुरिका छुरिककरा छुरिकारिनिवाशिनी ॥५४॥

छिन्ननाशा छिन्नहस्ता छोणलोला छलोदरी ।

छलोद्वेगा छाङ्गबीजमाला छाङ्गवरप्रदा ॥५५॥

छलस्था, छुद्ररुपा, छत्रच्छाया, छलस्थिता , छलज्ञा , छेश्वराछाया , छाया , छिन्नशिवा , छला, छत्राचामरशोभाढया, छत्रिणं, छत्रधारिणी, छिन्नातीता , छिन्नमस्ता , छिन्नकेशा , छलोद‍भवा , छलहा , छलदा , छन्ना, छन्नजनप्रिया, छल, छिन्ना , छद्‍मवती , छद्‍मसद्‍मनिवासिनी , छद्यगन्धा , छदा , छन्ना , छद‍मवेशी , छकारिका , छगला , रक्तभक्षा , छगलामोदरक्तपा , छगलण्डेशकन्या , छगलण्डकुमारिका, छुरिका, छुरिककरा , छुरिकारिनिवाशिनी , छिन्ननाशा , छिन्नहस्ता , छोणलोला , छलोदरी , छलोद्वेगा , छाङ्गबीजमाला , छाङ्गवरप्रदा ( ४२ ) ॥५० - ५५॥

जटिला जठरश्रीदा जरा जज्ञाप्रिया जया ।

जन्त्रस्था जीवहा जीवा जयदा जीवयोगदा ॥५६॥

जयिनी जामलस्था च जामलोद्धवनायिका ।

जामलप्रियकन्या च जामलेशी जवाप्रिया ॥५७॥

जवाकोटिसमप्रख्या जवापुष्पप्रिया जना ।

जलस्था जगविषया जरातीता जलस्थिता ॥५८॥

जीवहा जीवकन्या च जनार्द्दनकुमारिका ।

जतुका जलपूज्या च जगन्नाथदिकामिनी ॥५९॥

जीर्णाङी जीर्णहीना च जीमूतात्त्यन्तशोभिता ।

जामदा जमदा जृम्भा जृम्भणास्त्रादिधारिणी ॥६०॥

जघन्या जारजा प्रीता जगदानन्दवर्द्धिनी ।

जमलार्जुनदर्पघ्नी जमलार्जुनभञ्जनी ॥६१॥

जयित्रीजगदानन्दा जामलोल्लाससिद्धिदा ।

जपमाला जाप्यसिद्धिर्जपयञप्रकाशिनी ॥६२॥

जाम्बुवती जाम्बवतः कन्यकाजनवाजपा ।

जवाहन्त्री जगद्बुद्धिर्ज्जगत्कर्तृ जगद्गतिः ॥६३॥

जननी जीवनी जाया जगन्माता जनेश्वरी ।

जटिला , जठरश्रीदा , जरा , जज्ञप्रिया , जया , जन्त्रस्था , जीवहा , जीवा , जयदा , जीवयोगदा , ययिनी , जामलस्था , जामलोद्‍भवनायिका , जामलप्रियकन्या , जामलेशी , जवाप्रिया , जवाकोटिसमप्रख्या, जवापुष्पप्रिया, जना, जलस्था, जगविषया , जरातीता , जलस्थिता , जीवहा , जीवकन्या, जनार्द्दनकुमारिका, जतुका, जलपूज्या, जगन्नाथादिकामिनी, जीर्णाङ्की , जीर्णहीना , जीमूतात्त्यन्तशोभिता , जामदा , जमदा, जृम्भा , जृम्भणास्त्रादिधारिणी , जघन्या , जारजा , प्रीता , जगदानन्दवर्द्धिनी , जमलार्जुनर्पघ्नी , जमलार्जुनभञ्जिनी , ययित्री , जगदानन्दा , जामलोल्लाससिद्धिदा , जपमाला , जाप्यसिद्धि , जपयज्ञप्रकाशिनी , जाम्बुवती , जाम्बवतकन्यका , जनवा , जपा , जवाहन्त्री , जगदबुद्धि , जगत्कर्तृ , जगद्‍गति , जननी , जीवनी , जाया , जगन्माता , जनेश्वरी ( ५७ ) ॥५६ - ६४॥

झङ्कला झङ्कमध्यस्था झणत्कारस्वरुपिणी ॥६४॥

झणत्झणद्वहिनरुपा झननाझन्दरीश्वरी ।

झटिताक्षा झरा झञ्झा झर्झरा झरकन्यका ॥६५॥

झणत्कारी झना झन्ना झकारमालयावृता ।

झङ्करी झर्झरी झल्ली झल्वेश्वरनिवासिनी ॥६६॥

झङ्कला , झङ्कमध्यस्था , झणत्कारस्वरुपिणी , झणत‍झणद्‍वहिनरूपा , झनना , झन्दरीश्वरी , झटिताक्षा , झरा , झञ्झा, झर्झरा, झरकन्यका, झणत्कारी, झना, झन्ना, झकारमालयावृता , झङ्करी , झर्झरी , झल्वेश्वरनिवासिनी (१८) ॥६४ - ६६॥

ञकारी ञकिराती च ञकारबीजमालिनी ।

ञनयोऽन्तां ञकारान्ता ञकारपरमेश्वरी ॥६७॥

ञान्तबीजपुटाकारा ञेकले ञैकगामिनी ।

ञैकनेला ञस्वरुपा ञहारा ञहरीतकी ॥६८॥

ञकारी , ञकिराती , ञकारबीजमालिनी , ञनयोऽन्ता , ञकारान्ता , ञकारपरमेश्वरी , ञान्तबीजपुटाकारा , ञेकले , ञैकगामिनी , ञैकनेला , ञस्वरुपा ञहारा , ञहरीतकी ( १३ ) ॥६७ - ६८॥

टुन्टुनी टङ्कहस्ता च टान्तवर्गा टलावती ।

टपला टापबालाख्या टङ्कारध्वनिरुपिणी ॥६९॥

टलाती टाक्षरातीता टित्कारादिकुमारिका ।

ट्ङ्कास्त्रधारिणी टाना टमोटार्णलभाषिणी ॥७०॥

टङ्कारी विधना टाका टकाटकविमोहिनी ।

टङ्करधरनामाहा टिवीखेचरनादिनी ॥७१॥

टुन्टुनी , टङ्कहस्ता , टान्तवर्गा , टलावती , टपला , टापबालाख्या , टङ्कारध्वनिरुपिणी , टलाती , टाक्षरातीता , टित्कारादिकुमारिका , टङ्कास्त्रधारिणी , टाना , टमोटार्णलभाषिणी , टङ्कारी , विधना , टाका , टकाटकविमोहिनी , टङ्कारधरनामाहा , टिवीखेचरनादिनी ( १९ ) ॥६९ - ७१॥

ठठङ्कारी ठाठरुपा ठकारबीजकारणा ।

ठठङ्कारी , ठाठरूपा , ठकारबीजकारणा ( ३ ) ॥७२॥

डमरुप्रियवाद्या च डामरस्था डाबीजिका ॥७२॥

डान्तवर्गा डमरुका डरस्था डोरडामरा ।

डगरार्द्धा डलातीता डदारुकेश्वरी डुता ॥७३॥

डमरुप्रियवाद्या , डामरस्था , डबीजिका , डान्तवर्गा , डमरुका , डरस्था , डोरडामरा , डगरार्द्धा , डलातीता , डदारुकेश्वरी , डुता ( ११ ) ॥७२ - ७३॥

ढार्द्धनारीश्वरा ढामा ढक्कारी ढलना ढला ।

ढकेस्था ढेश्वरसुता ढेमनाभावढोनना ॥७४॥

ढार्द्धनारीश्वरा , ढामा , ढक्कारी , ढलना , ढला , ढकेस्था , ढेश्वरसुता , ढेमनाभाव , ढोनना ( ९ ) ॥७४॥

णोमाकान्तेश्वरी णान्तवर्गस्था णतुनावती ।

णनो माणाङ्कक्ल्याणी णाक्षवीणाक्षबीजिका ॥७५॥

णोमाकान्तेश्वरी , णान्तवर्गस्था , णतुनावती , णनोमा , णाङ्कल्याणी , णाक्षवीणाक्षबीजिका ( ६ ) ॥७५॥

तुलसीतन्तुसूक्ष्माख्या तारल्या तैलगन्धिका ।

तपस्या तापससुता तारिणी तरुणी तला ॥७६॥

तन्त्रस्था तारकब्रह्मस्वरुपा तन्तुमध्यगा ।

तालभक्षत्रिधामूर्तिस्तारका तैलभक्षिका ॥७७॥

तारोग्रा तालमला च तकरा तिन्तिडीप्रिया ।

तपसः तालसन्दर्भा तर्जयन्ती कुमारिका ॥७८॥

तोकाचारा तलोद्वेगा तक्षका तक्षकप्रिया ।

तक्षकालङ्‌कृता तोषा तावद्रूपा तलप्रिया ॥७९॥

तलास्त्रधारिणी तापा तपसां फलदायिनी ।

तल्वल्वप्रहरालीता तलारिगणनाशिनी ॥८०॥

तूला तौली तोलका च तलस्था तलपालिका ।

तरुणा तप्तबुद्धिस्थास्तप्ता प्रधारिणी तपा ॥८१॥

तन्त्रप्रकाशकरणी तन्त्रार्थदायिनी तथा ।

तुषारकिरणाङि च चतुर्धा वा समप्रभा ॥८२॥

तैलमार्गाभिसूता च तन्त्रसिद्धिफलप्रदा ।

ताम्रपर्णा ताम्रकेशा ताम्रपात्रप्रियातमा ॥८३॥

तमोगुणप्रिया तोला तक्षकारिनिवारिणी ।

तोषयुक्ता तमायाची तमषोढेश्वप्रिया ॥८४॥

तुलना तुल्यरुचिरा तुल्यबुद्धिस्त्रिधा मतिः ।

तक्रभक्षा तालसिद्धिः तत्रस्थास्तत्र गामिनी ॥८५॥

तलया तैलभा ताली तन्त्रगोपनतत्परा ।

तन्त्रमन्त्रप्रकाशा च त्रिशरेणुस्वरुपिणी ॥८६॥

त्रिंशदर्थप्रिया तुष्टा तुष्टिस्तुष्टजनप्रिया ।

तुलसी , तन्तुसूक्ष्माख्या , तारल्या , तैलगन्धिका , तपस्या , तापससुता , तारिणी , तरुणी , तला , तन्त्रस्था , तारकब्रह्मस्वरुपा , तन्तुमध्यगा , तालभक्ष , त्रिधामूत्ति , तारका , तैलभक्षिका , तारोग्रा , तालमाला , तकरा , तिन्तिडीप्रिया , तपस , तालसन्दर्भा , तर्जयन्ती , कुमारिका , तोकाचारा , तलोद्वेगा , तक्षका , तक्षकप्रिया , तक्षकालङ्‍कृता , तोषा , तावद्रूपा , तलप्रिया , तलास्त्रधारिणी , तापा, तपसां, फलदायिनी, तल्वल्वप्रहरालीता, तलारिगणनाशिनी , तूला तौली , तोलका , तलस्था , तलपालिका , तरुणा , तप्तबुद्धिस्था , तप्ता , प्रधारिणी , तपा , तन्त्रप्रकाशकरणी , तन्त्रार्थदायिनी , तुषारकिरणाङ्की , चतुर्धा , समप्रभा , तैलमार्गाभिसूता , तन्त्रसिद्धिफलप्रदा , ताम्रपर्णा , ताम्रकेशा , ताम्रपात्रप्रियातमा , तमोगुणप्रिया , तोला , तक्षकारिनिवारिणी , तोषयुक्ता , तमायाची , तमषोढेश्वरप्रिया , तुलना , तुल्यरुचिरा , तुल्यबुद्धिस्त्रिधा , मति, तक्रभक्षा, तालसिद्धि, तत्रस्था , तमषोढेश्वरप्रिया , तुलना , तुल्यरुचिरा , तुल्यबुद्धिस्त्रिधा , मति , तक्रभक्षा , तालसिद्धि , तत्रस्था , तत्रगामिनी , तलया , तैलभा , ताली , तन्त्रगोपनतत्परा, तन्त्रमन्त्रप्रकाशा, त्रिशेरणुस्वरूपिणी, त्रिंशदर्थप्रिया, तुष्टा, तुष्टि, तुष्टजनप्रिया (८२) ॥७६ - ८७॥

थकारकूटदण्डीशा थदण्डीशप्रियाऽथवा ॥८७॥

थकाराक्षररुढाङी थान्तवर्गांथ कारिका ।

थान्ता थमीश्वरी थाका थकारबीजमालिनी ॥८८॥

थकारकूटदण्डीशा , थदण्डीशप्रियाऽथवा , थकाराक्षररूढाङ्गी, थान्तवर्गा , थकारिका , थान्ता , थमीश्वरी , थाका थकारबीजमालिनी ( ९ ) ॥८७ - ८८॥

दक्षतामप्रिया दोषा दोषजालवनाश्रिता ।

दशा दशनघोरा च देवीदासप्रिया दया ॥८९॥

दैत्यहन्त्रीपरा दैत्या दैत्यानां मर्द्दिनी दिशा ।

दान्ता दान्तप्रिया दासा दामना दीर्घकेशिका ॥९०॥

दशना रक्तवर्णा च दरीग्रहनिवासिनी ।

देवमाता च दुर्लभा च दीर्घाङ्गा दासकन्यका ॥९१॥

दशनश्री दीर्घनेत्रा दीर्घनासा च दोषहा ।

दमयन्ती दलस्था च द्वेषहन्त्री दशस्तिता ॥९२॥

दैशेषिका दिशिगता दशनास्त्रविनाशिनी ।

दारिद्रयहा दरिद्रस्था दरिद्रधनदायिनी ॥९३॥

दन्तुरा देशभाषा च देशस्था देशनायिका ।

द्वेषरुपा द्वेषहन्त्री द्वेषारिगणमोहिनी ॥९४॥

दामोदरस्थाननादा दलानां बलदायिनी ।

दिग्दर्शना दर्शनस्था दर्शनप्रियवादिनी ॥९५॥

दामोदरप्रिया दान्ता दामोदरकलेवरा ।

द्राविणी द्रविणी दक्षा दक्षकन्या दलदृढा ॥९६॥

दृढसनादासशक्तिर्द्वन्द्वयुद्धप्रकाशिनी ।

दधिप्रिया दधिस्था च दधिमङ्गलकारिणी ॥९७॥

दर्पहा दर्पदा दृप्ता दर्भपुण्यप्रिया दधिः ।

दर्भस्था द्रुपदसुता द्रौपदी द्रुपदप्रिया ॥९८॥

दक्षदामप्रिया , दोषा , दोषजालवनाश्रिता , द्शा , दशनघोरा , देवीदासप्रिया , दया , दैत्यहन्त्रीपरा , दैत्या , दैत्यानां मर्द्धिनी , दिशा , दान्ता , दान्तप्रिया , दासा , दामना , दीर्घकेशिका , दशना , रक्तवर्णा , दरीग्रहनिवासिनी , देवमाता , दुर्लभा दीर्घाङ्गा, दासकन्यका, दशनश्री, दीर्घनेत्रा , दीर्घनासा , दोषहा , दमयन्ती , दलस्था , द्वेष्यहन्त्री, दशस्थिता, दैशेषिका , दिशिगता , दशनास्त्रविनाशिनी , दोषहा, दमयन्ती, दलस्था, द्वेष्यहन्त्री, द्शस्थिता, दैशेषिका, दिशिगता, दशनास्त्रविनाशिनी , दारिद्र्याहा , दरिद्रस्था , दरिद्र्धनदायिनी , दन्तुरा , देशभाषा , देशस्था , देशनायिका , द्वेषरूपा , द्वेषहन्त्री , द्वेषारिगणमोहिनी , दामोदरस्थाननादा , दलानां , बलदायिनी , दिग्दर्शना , दर्शनस्था , दर्शनप्रियवादिनी , दामोदरप्रिया , दान्ता , दामोदरकलेवरा , द्राविणी , द्रविणी , दक्षा , द्क्षकन्या , दलदृढा , दृढासना , दासशक्ति , द्वन्द्वयुद्धप्रकाशिनी , दधिप्रिया , दधिस्था , दधिमङ्गलकारिणी , दर्पहा , दर्पदा , दृप्ता , दर्भपुण्यप्रिया , दधि , दर्भस्था , द्रुपदसुता , द्रौपदी , द्रुपदप्रिया ( ७२ ) ॥८९ - ९८॥

धर्मचिन्ता धनाध्यक्षा धश्वेश्वरवरप्रदा ।

धनहा धनदा धन्वी धनुर्हस्ता धनुःप्रिया ॥९९॥

धरणी धैर्यरुपा च धनस्था धनमोहिनी ।

धोरा धीरप्रियाधारा धराधारनतत्परा ॥१००॥

धान्यदा धान्यबीजा च धर्माधर्मस्वरुपिणी ।

धाराधरस्था धन्या च धर्मपुञ्चनिवासिनी ॥१०१॥

धनाढ्यप्रियकन्या च धन्यलोकैश्च सेविता ।

धर्मार्थकाममोक्षाङी धर्मार्थकाममोक्षदा ॥१०२॥

धराधरा धुरोणा च धवला धवलामुखी ।

धरा च धामरुपा च ध्रुवा ध्रौव्या ध्रुवप्रिया ॥१०३॥

धनेशी धारणाख्या च धर्मनिन्दाविनाशिनी ।

धर्मतेजोमयी धर्म्म्या धैर्याग्रभर्गमोहिनी ॥१०४॥

धारणा धौतवसना धत्तूरफलभोगिनी ।

धर्मचिन्ता , धनाध्यक्षा , धश्वेश्वरवरप्रदा , धनहा , धनदा , धन्वी , धनुर्हस्ता , धनुप्रिया , धरणी , धैर्यरूपा , धनस्था , धनमोहिनी , धोरा , धीरप्रियाधारा , धराधारणतत्परा , धान्यदा , धान्यबीजा , धर्माधर्मस्वरूपिणी , धारा , धरस्था , धन्या , धर्मपुञ्जनिवासिनी , धनाढयाप्रियकन्या , धन्यलोकैश्चसेविता , धर्मर्थकाममोक्षाङ्री धर्मर्थकाममोक्षदा , धराधरा , धुरोणा , धवला , धवलामुखी , धरा , धामरुपा , ध्रुवा , ध्रौव्या , ध्रुवप्रिया, धनेशी, धारणाख्या, धर्मनिन्दाविनाशिनी, धर्मतेजोमयी , धर्म्म्या , धैर्याग्रभर्गमोहिनी , धारणा , धौतवसना , धत्तूरफलभोगिनी ( ४४ ) ॥९९ - १०५॥

नारायणी नरेन्द्रस्था नारायणकलेवरा ॥१०५॥

नरनारायणप्रीता धर्मनिन्दा नमोहिता ।

नित्या नापिकन्या च नयनस्था नरप्रिया ॥१०६॥

नाम्नी नामप्रिया नारा नारायणसुता नरा ।

नवीननायकप्रीता नव्या नवफलप्रिया ॥१०७॥

नवीनकुसुमप्रीता नवीनानां ध्वजानुता ।

नारी निम्बस्थितानन्दानन्दिनी नन्दकारिका ॥१०८॥

नवपुष्पमहाप्रीता नवपुष्पसुगन्धिका ।

नन्दस्था नन्दकन्या नन्दमोक्षप्रदायिनी ॥१०९॥

नमिता नामभेदा च नाम्नार्त्तवनमोहिनी ।

नवबुद्धिप्रियानेका नाकस्था नामकन्यका ॥११०॥

निन्दाहीना नवोल्लासा नाकस्थानप्रदायिनी ।

निम्बवृक्षस्थिता निम्बा नानावृक्षनिवासिनी ॥१११॥

नाश्यातीता नीलवर्णा नीलवर्णा सरस्वती ।

नभःस्था नायकप्रीता नायकप्रियकामिनी ॥११२॥

नैववर्णा निराहारा निवीहाणां रजःप्रिया ।

निम्ननाभिप्रियाकारा नरेन्द्रहस्तपूजिता ॥११३॥

नलस्थिता नलप्रीता नलराजकुमारिका ।

नारायणी , नरेन्द्रस्था , नारायणकलेवरा , नरनारायणप्रीता , धर्मनिन्दा , नमोहिता , नित्या, नापितकन्या, नयनस्था, नरप्रिया , नाम्नी , नामप्रिया , नारा नारायणसुता , नरा , नवीननायकप्रीता , नव्या , नवफलप्रिया , नवीनकुसुमप्रीता , नवीनानां ध्वजानुता , नारी , निम्बस्थितानन्दानन्दिनी , नन्दकारिका , नवपुष्पमहाप्रीता , नवपुष्पसुगन्धिका , नन्दनस्था , नन्दकन्या , नन्दमोक्षप्रदायिनी , नमिता , नामभेदा , नाम्नार्त्तवनमोहिनी , नवबुद्दिप्रियानेका , नाकस्था , नामकन्यका , निन्दाहीना , नवोल्लासा , नाकस्थानप्रदायिनी , निम्बवृक्षस्थिता , निम्बा , नानावृक्षनिवासिनी , नाश्यातीता , नीलवर्णा , नीलवर्णा सरस्वती , नभस्था , नायकप्रीता , नायकप्रियकामिनी , नैववर्णा , निराहारा , निवीहाणां , रजप्रिया , निम्ननाभिप्रियाकारा , नरेन्द्रहस्तपूजिता , नलस्थिता , नलप्रीता , नलराजकुमारिका ( ५६ ) ॥१०५ - ११४॥

परेश्वरी परानन्दां परापरविभेदिका ॥११४॥

परमा परचक्रस्था पार्वती पर्वतप्रिया ।

पारमेशी पर्वनाना पुष्पमाल्यप्रिया परा ॥११५॥

परा प्रिया प्रीतिदात्री प्रीतिः प्रथमकामिनी ।

प्रथमा प्रथमा प्रीता पुष्पगन्धप्रिया परा ॥११६॥

पौष्यी पानरता पीना पीनस्तनसुशोभना ।

परमानरता पुंसां पाशहस्ता पशुप्रिया ॥११७॥

पललानन्दरसिका पलालधूमरुपिणी ।

पलाशपुष्पसङ्काशा पलाशपुष्पमालिनी ॥११८॥

प्रेमभूता पद्ममुखी पद्मरागसुमालिनी ।

पद्ममाला पापहरा पतिप्रेमविलासिनी ॥११९॥

पञ्चाननमनोहारी पञ्चवक्त्रप्रकाशिनी ।

परेश्वरी , परानन्दा , परापरविभेदिका , परमा , परचक्रस्था , पार्वती , पर्वतप्रिया , पारमेशी , पर्वनाना , पुष्पमाल्यप्रिया , परापरा , प्रिया , प्रीतिदात्री , प्रीति , प्रथमकामिनी , प्रथमा , प्रथमा , प्रीता , पुष्पगन्धप्रिया , परा, पौष्यी, पानरता, पीना, पीनस्तनसुशोभना, परमानरता, पुंसां पाशहस्ता, पशुप्रिया, पललानन्दरसिका, पलालधूमरुपिणी, पलाशपुष्पसङ्काशा, पलाशपुष्पमालिनी, प्रेमभूता, पद्यमुखी, पद्‍मरागसुमालिनी, पद्‍ममाला , पापहरा , पतिप्रेमविलासिनी , पञ्चाननमनोहारी , पञ्चवक्त्रप्रकाशिनी ( ३९ ) ॥११४ - १२०॥

फलमूलाशना फाली फलदा फाल्गुनप्रिया ॥१२०॥

फलनाथप्रिया फल्ली फल्गुकन्या फलोन्मुखी ।

फेत्कारीतन्त्रमुख्या च फेत्कारगणपूजिता ॥१२१॥

फेरवी फेरवसुता फलभोगोद्भवा फला ।

फलप्रिया फलाशक्ता फाल्गुनानन्ददायिनी ॥१२२॥

फाल भोगोत्तरा फेला फुलाम्भोजनिवासिनी ।

फलमूलाशना , फाली , फलदा , फाल्गुनप्रिया , फलनाथप्रिया , फल्ली , फल्गुकन्या , फलोन्मुखी , फेत्कारीतन्त्रमुख्या , फेत्कारगणपूजिता , फेरवी , फेरवसुता , फलभोगोद्‍भता , फला , फलप्रिया , फलाशक्ता , फाल्गुनानन्ददायिनी , फलभोगोत्तरा , फेला , फुलाम्भोजनिवासिनी ( २० ) ॥१२० - १२३॥

वसुदेवगृहस्था च वासवी वीरपूजिता ॥१२३॥

विषभक्षा बुधसुता ब्लुङ्कारी ब्लूवरप्रदा ।

ब्राह्मी बृहस्पतिसुता वाचस्पतिवरप्रदा ॥१२४॥

वेदाचारा वेद्यपरा व्यासवक्त्रस्थिता विभा ।

बोधज्ञा वौषडाख्या च वंशीवंदनपूजिता ॥१२५॥

वज्रकान्ता वज्रगतिर्बदरीवंशाविवर्द्धिनी ।

वसुदेवगृहस्था , वासवी , वीरपूजिता , विषभक्षा , बुधसुता , ब्लुङ्कारी , ब्लूवरप्रदा , ब्राह्मी , बृहस्पतिसुता , वाचस्पतिवरप्रदा , वेदाचारा , वेद्यपरा , व्यासवक्त्रस्थिता , विभा , बोधज्ञा , वौषडाख्या , वंशीवंदनपूजिता , वज्रकान्ता , वज्रगति , बदरी , वंशविवर्द्धिनी ( २९ ) ॥१२३ - १२६॥

भारती भवरश्रीदा भवपत्नी भवात्मजा ॥१२६॥

भवानी भाविनी भीमा भिषग्भार्या तुरिस्थिता ।

भूर्भुवःस्वःस्वरुपा च भृशार्त्ता भेकनादिनी ॥१२७॥

भौती भङ्गप्रिया भङ्गभङ्गहा भङ्गहारिणी ।

भर्ता भगवती भाग्या भगीरथनमस्कृता ॥१२८॥

भगमाला भूतनाथेश्वरी भार्गवपूजिता ।

भृगुवंशा भीतिहरा भूमिर्भुजगहारिणी ॥१२९॥

भालचन्द्राभभल्वबाला भवभूतिर्विभूतिदा ।

भारती , भवरश्रीदा , भवपत्नी , भवात्मजा , भवानी , भाविनी , भीमा , भिषग्भार्या , तुरिस्थिता , भूर्भूवस्वस्वरुपा , भृशार्त्ता , भेकनादिनी , भौती , भङ्गप्रिया , भङ्गभङ्गहा , भङ्गहारिणी , भर्ता, भगवती , भाग्य , भगीरथनमस्कृता , भगमाला , भूतनाथेश्वरी , भार्गवपूजिता , भृगुवंशा , भीतिहरा, भूमिर्भूजगहारिणी, भालचन्द्राभ , भल्वबाला , विभूतिदा , ( ३० ) ॥१२६ - १३०॥

मकरस्था मत्तगतिर्मदमत्ता मदप्रिया ॥१३०॥

मदिराष्टाशभुजा मदिरा मत्तगामिनी ।

मदिरासिद्धिदा मध्या मदान्तर्गतिसिद्धिदा ॥१३१॥

मीनभक्षा मीनरुपा मुद्रामुद्गप्रिया गतिः ।

मुषला मुक्तिदा मूर्त्ता मूकीकरनतत्परा ॥१३२॥

मृषार्त्ता मृगतृष्णा च मेषभक्षणतत्परा ।

मैथुनानन्दसिद्धिश्च मैथुनानलसिद्धिदा ॥१३३॥

महालक्ष्मीर्भैरवी च महेन्द्रपीठनायिका ।

मनःस्था माधवीमुख्या महादेवमनोरमा ॥१३४॥

मकरस्था , मत्तगति , मदमत्ता , मदप्रिया , मदिराष्टादशभुजा , मदिरा , मत्तगामिनी , मदिरासिद्धिदा , मध्या , मदान्तर्गतिसिद्धिदा , मीनभक्षा , मीनरुपा , मुद्रा , मुद‍गप्रियागति , मुषला , मुक्तिदा , मूर्त्ता, मूकीकरणतत्परा, मृषार्त्ता , मृगतृष्णा , मेषभक्षणतत्परा , मैथुनानन्दसिद्धि , मैथुनानलसिद्धिदा , महालक्ष्मीभैरवी , महेन्द्रपीठनायिका , मनस्था , माधवीमुख्या , महादेवमनोरमा ( २८ ) ॥१३० - १३४॥

यशोदा याचना यास्या यास्या यमराजप्रिया यमा ।

यशोरशिविभूषाङ्गी यतिप्रेमकलावती ॥१३५॥

यशोदा , याचना , यास्या , यमराजप्रिया , यमा , यशोराशिविभूषाङ्गी, यतिप्रेमकलावती (७)  ॥१३५॥

रमनी रामपत्नी च रिपुहा रितिमध्यगा ।

रुद्रानी रुपदा रुपा रुपसुन्दरधारिणी ॥१३६॥

रेतःस्था रेतसः प्रीता रेतःस्थाननिवासिनी ।

रेन्द्रादेवसुतारेदा रिपुवर्गान्तकप्रिया ॥१३७॥

रोमावलीन्द्रजननी रोमकूपजगत्पतिः ।

रौप्यवर्णा रौद्रवर्णा रौप्यालङ्कारभूषणा ॥१३८॥

रङ्गिणा रङ्गस्था रणवहिनकुलेश्वरी ।

रमणी , रामपत्नी , रिपुहा , रीतिमध्यगा , रुद्राणी , रुपडा , रुपा , रुपसुन्दरधारिणी , रेतस्था , रेतसप्रीता , रेतस्थाननिवासिनी , रेन्द्रादेवसुतारेदा , रिपुवर्गान्तकप्रिया , रोमावलीन्द्रजननी , रोमकूपजगत्पति , रौप्यवर्णा , रौद्रवर्णा , रौप्यालङ्कारभूषणा , रङ्गिणा , रङ्गरागस्था , रणवह्निकुलेश्वरी ( २१ ) ॥१३६ - १३९॥

लक्ष्मीः लाङ्गलहस्ता च लाङ्गली कुलकामिनी ॥१३९॥

लिपिरुपा लीढपादा लतातन्तुस्वरुपिणी ।

लिम्पती लेलिहा लोला लोमशप्रियसिद्धिदा ॥१४०॥

लौकिकी लौकिकीसिद्धिर्लङ्कानाथकुमारिका ।

लक्ष्मणा लक्ष्मीहीना च लप्रिया लार्णमध्यगा ॥१४१॥

लक्ष्मी , लाङ्गलहस्ता , लाङ्गली कुलकामिनी , लिपिरुपा , लीढपादा , लतातन्तुस्वरुपिणी , लिम्पती, लेलिहा, लोला , लोमशप्रियसिद्धिदा , लौकिकी , लौकिकीसिद्धि , लङ्कानाथकुमारिका , लक्ष्मणा लक्ष्मीहीना , लप्रिया , लार्णमध्यगा ( १७ ) ॥१३९ - १४१॥

विवसा वसनावेशा विवस्यकुलकन्यका ।

वातस्था वातरुपा च वेलमध्यनिवासिनी ॥१४२॥

विवसा , वसनावेशा , विवस्यकुलकन्यका , वातस्था , वातरुपा , वेलमध्यनिवासिनी ( ६ ) ॥१४२॥

श्मशानभूमिमध्यस्था श्मशानसाधनप्रिया ।

शवस्था परसिद्धयर्थी शववक्षसि शोभिता ॥१४३॥

शरनागतपाल्या च शिवकन्या शिवप्रिया ।

षट्‌चक्रभेदिनी षोढा न्यासजालडृढानना ॥१४४॥

सन्ध्यासरस्वती सुन्द्या सूर्यगा शारदा सती ।

हरिप्रिया हरहालालावण्यस्था क्षमा क्षुधा ॥१४५॥

क्षेत्रज्ञा सिद्धिदात्री च अम्बिका चापराजिता ।

श्मशानभूमिमध्यस्था, श्मशानसाधनप्रिया, शवस्था, परसिद्धयार्थी, शववक्षसि, शोभिता, शरणागतपाल्या, शिवकन्या, शिवप्रिया, षट्‍चक्रभेदिनी, षोढान्यासजालदृढानना, सन्ध्यासरस्वती, सुन्द्या, सूर्यगा, शारदा, सती, हरिप्रिया, हरहालालावण्यस्था, क्षमा, क्षुधा, क्षेत्रज्ञा, सिद्धिदात्री, अम्बिका, अपराजिता (२३) ॥१४३ - १४६॥

आद्या इन्द्रप्रिया ईशा उमा ऊढा ऋतुप्रिया ॥१४६॥

सुतुण्डा स्वरबीजान्ता हरिवेशादिसिद्धिदा ।

एकादशीव्रतस्था च ऐन्द्री ओषधिसिद्धिदा ॥१४७॥

औपकारी अंशरुपा अस्त्रबीजप्रकाशिनी ।

आद्या , इन्द्रप्रिया , ईशा , उमा , ऊढा , ऋतुप्रिया , सुतुण्डा , स्वरबीजान्ता , हरिवेशादिसिद्धिदा , एकादशीव्रतस्था , ऐन्द्री , ओषधिसिद्धिदा , औपकारी , अंशरुपा , अस्त्रबीजप्रकाशिनी ( १५ ) ॥१४६ - १४८॥

इत्यतत् कामुकीनाथ कुमारीणां सुमङ्गलम् ॥१४८॥

हे कामुकीनाथ ! इस प्रकार कुमारी के कल्याण करने वाले, अष्टोत्तर सहस्त्रनाम का आख्यान मैंने किया ॥१४८॥

कुमारी अष्टोत्तरसहस्त्रनामकवचम् स्तोत्र फलश्रुति 

त्रैलोक्यफलदं नित्यमष्टोत्तरसहस्त्रकम् ।

महास्तोत्रं धर्मसारं धनधान्यसुतप्रदम् ॥१४९॥

सर्वविद्याफलोल्लासं भक्तिमान् यः पठेत् सुधीः ।

स सर्वदा दिवारात्रौ स भवेन्मुक्तिमार्गगः ॥१५०॥

यह महास्तोत्र, समस्त धर्मों का सार है । यह त्रिलोकी की प्राप्ति का फल प्रदान करने वाला तथा धन धान्य एवं पुत्र देने वाला है । जो विद्वान् ‍ भक्त भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, उसे समस्त विद्या का फल उल्लसित होता है वह सर्वदा एवं दिन और रात मुक्ति मार्ग का गामी बना रहता है ॥१४९ - १५०॥

सर्वत्र जयमाप्नोति वीराणां वल्लभो लभेत् ।

सर्वे देवा वश्म यान्ति वशीभूताश्च मानवाः ॥१५१॥

ब्रह्माण्डे ये च शंसन्ति ते तुष्टा नात्र संशयः ।

ये वशन्ति च भूर्लोके देवतुल्यपराक्रमाः ॥१५२॥

ते सर्वे भृत्यतुल्याश्च सत्यं सत्यं कुलेश्वर ।

अकस्मात् सिद्धिमाप्नोति होमेन यजनेन च ॥१५३॥

वह सर्वत्र विजय प्राप्त करता है, वीर मार्गगामियों का प्रिय पात्र होता है । किं बहुना, सभी देवता उसके वश में हो जाते हैं और समस्त मानव तो उसके वश में रहते ही हैं । ब्रह्माण्ड में रहने वाले सभी उससे संतुष्ट रहते हैं, इसमें संशय नहीं । किं बहुना, इस भूलोक में जो देवता के तुल्य पराक्रम वाले हैं, वे सभी उसके भृत्य के समान हो जाते हैं । हे कुलेश्वर ! यह सत्य है यह सत्य है । कुमारी के होम से यज्ञ करने से साधक को अनायास सिद्धि प्राप्त हो जाती है ॥१५१ - १५३॥

जाप्येन कवचाद्येन महास्तोत्रार्थपाठतः ।

विना यज्ञैर्विना दानैविना जाप्यैर्लभेत् फलम् ॥१५४॥

यः पठेत‍ स्तोत्रकं नाम चाष्टोत्तरसहस्त्रकम् ।

तस्य शान्तिर्भवेत् क्षिप्रं कन्यास्तोत्रं पठेत्ततः ॥१५५॥

कुमारी मन्त्र के जप से और कुमारी कवचादि तथा कुमारी स्तोत्रादि के पाठ मात्र से बिना यज्ञ के, बिना दान के तथा बिना जप के साधक को समस्त फल प्राप्त हो जाते हैं । जो कोई कुमारी के अष्टोत्तर सहस्त्र संख्यक नाम स्तोत्र का पाठ करता है, उसे बड़ी शीघ्रता से शान्ति प्राप्त हो जाती है । इसलिए इस कन्या ( के सहस्त्रनाम ) स्तोत्र का अवश्य पाठ करना चाहिए ॥१५४ - १५५॥

वारत्रयं प्रपाठेन राजानं वशमानयेत् ।

वारैकपठितो मन्त्री धर्मार्थकाममोक्षभाक् ॥१५६॥

त्रिदिनं प्रपठेद्विद्वान् यदि पुत्रं समिच्छति ।

वारत्रयक्रमेणैव वारैकक्रमतोऽपि वा ॥१५७॥

इस स्तोत्र के तीन बार पाठ करने से राजा भी वश में हो जाते हैं । मन्त्रवेत्ता साधक इसके एक बार भी पाठ करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अधिकारी हो जाता है । विद्वान् ‍ पुरुष को यदि पुत्र की इच्छा हो तो प्रतिदिन तीन बार के क्रम से अथवा प्रतिदिन एक बार के क्रम से इसका पाठ करना चाहिए ॥१५६ - १५७॥

पठित्त्वा धनरत्नानामधिपः सर्ववित्तगः ।

त्रिजगन्मोहयेन्मन्त्री वत्सरार्द्ध प्रपाठतः ॥१५८॥

वत्सरं वाप्य यदि वा भक्तिभावेन यः पठेत् ।

चिरजीवी खेचरत्त्वं प्राप्य योगी भवेन्नरः ॥१५९॥

मन्त्रवेत्ता साधक आधे वर्ष पर्यन्त पाठ करने से धन रत्नों का अधिपत्य तथा समस्त प्रकार के वित्तों का स्वामित्व प्राप्त कर लेता है । किं बहुना, वह सारे त्रिलोकी को भी मोहित कर लेता है । जो साधक भक्तिभावपूर्वक एक संवत्सर पर्यन्त कुमारी सहस्त्रनाम का पाठ करता है , वह चिरञ्जीवि तथा आकाशगामी बन कर योगी बन जाता है ॥१५८ - १५९॥

महादूरस्थितं वर्णं पश्यति स्थिरमानसः ।

महिलामण्डले स्थित्त्वा शक्तियुक्तः पठेत् सुधीः ॥१६०॥

स भवेत्साधनकश्रेष्ठः क्षीरी कल्पद्रुमो भवेत् ।

सर्वदा यः पठेन्नाथ भावोद्गतकलेवरः ॥१६१॥

दर्श्नात् स्तम्भनं कर्त्तु क्षमो भवति साधकः ।

जलादितस्तम्भने शक्तो वह्रिस्तम्भादिसिद्धिभाक् ॥१६२॥

उसका मन स्थिर हो जाता है और उसे दूर स्थित वस्तु का मानस साक्षात्कार होने लगता है । जो बुद्धिमान् ‍ साधक स्त्री मण्डल के मध्य में स्थित हो कर शक्ति से युक्त हो इसका पाठ करता है, वह श्रेष्ठ साधक बन जाता है। वह दुग्ध से सम्पन्न तथा कल्पवृक्ष के समान हो जाता है । हे नाथ ! जो कुमारी भाव से संयुक्त शरीर होकर सदैव इसका पाठ करता है, वह साधक अपने दर्शन मात्र से सबको स्तम्भित कर सकता है । वह जलादि का भी स्तम्भन करने में समर्थ हो जाता है । किं बहुना, अग्नि आदि को भी स्तम्भित करने की शक्ति उसमें आ जाती है ॥१६० - १६२॥

वायुवेगी महावाग्मी वेदज्ञो भवति ध्रुवम् ।

कविनाथो महाविद्यो वन्धकः पण्डितो भवेत् ॥१६३॥

सर्वदेशाधिपो भूत्त्वा देवीपुत्रः स्वयं भवेत् ।

कान्तिं श्रियं यशो वृद्धिं प्राप्नोति बलवान् यतिः ॥१६४॥

कुमारी सहस्त्रनामस्तोत्र का पाठ करने वाला वायु के समान वेगवान् ‍ हो जाता है । वह निश्चय ही महावाग्मी तथा वेदज्ञ हो जाता है, कविकुलशिरोमणि, महाविद्वान् तथा दूसरे के वेग को रोकने वाला और पण्डित हो जाता है। वह सारे देशों का अधिपत्य प्राप्त कर स्वयं देवीपुत्र (महाभैरव के समान) बन जाता है तथा कान्ति, यश, श्री सहित वृद्धि प्राप्त करता है। वह बलसम्पन्न तथा सबको नियन्त्रित करने वाला हो जाता है॥१६३- १६४॥

अष्टसिद्धियुतो नाथ यः पठेदर्थसिद्धये ।

उज्जटेऽरण्यमध्ये च पर्वते घोरकानने ॥१६५॥

वने वा प्रेतभूमौ च शवोपरि महारणे ।

ग्रामे भग्नगृहे वापि शून्यागारे नदीतटे ॥१६६॥

गङागर्भे महापीठे योनिपीठे गुरोर्गृहे ।

धान्यक्षेत्रे देवगृहे कन्यागारे कुलालये ॥१६७॥

प्रान्तरे गोष्ठामध्ये वा राजादिभयहीनके ।

निर्भयादिस्वदेशेषु शिलिङ्गलयेऽथवा ॥१६८॥

भूतगर्त्ते चैकलिङ्गै वा शून्यदेशे निराकुले ।

अश्वत्थमूले बिल्वे वा कुलवृक्षसमीपगे ॥१६९॥

अन्येषु सिद्धदेशेषु कुलरुपाश्च साधकः ।

दिव्ये वा वीरभावस्थो यष्ट्‌वा कन्यां कुलाकुलै ॥१७०॥

कुलद्रव्यैश्च विविधैः सिद्धिद्रव्यैश्च साधकः ।

मांसासवेन जुहुयान्मुक्तेन रसेन च ॥१७१॥

हुतशेषं कुलद्रव्यं ताभ्यो दद्यात् सुसिद्धये ।

तासामुच्छिष्टमानीय जुहुयाद् रक्तपङ्कजे ॥१७२॥

घृणालजाविनिर्मुक्तः साधकः स्थिरमानसः ।

पिबेन्मांसरसं मन्त्री सदानन्दो महाबली ॥१७३॥

हे नाथ ! जो अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए इसका पाठ करता है वह अष्टसिद्धियों से युक्त हो जाता है । उज्जट (कुटीर) ! अरण्य के मध्य में, पर्वत में, घोर वन में, साधारण वन में, प्रेतभूति (श्मशान) में, शव के ऊपर बैठकर, महारण्य मे, ग्राम में, उजाड़ घर में, शून्य घर में, नदी तट पर, गङ्गा के बीच किसी सिद्ध शाक्तपीठ में, योनि पीठ पर , गुरु - गृह में, धान्य से परिपूर्ण क्षेत्र में, देवालय में, कन्यागार में, कुलालय ( शाक्त स्थान) में, प्रान्तर (एकान्त) में, गोशाला में, राजादि के भय से मुक्त स्थान में निर्भय स्थान में, स्वदेश में, शिवलिङ्कालय में, भूतगर्त्त ( गुफा ) में, एकलिङ्ग में, शून्य स्थान में, बाधारहित कुल में, अश्वत्थमूल, बिल्ववृक्ष के नीचे, कुल (शाक्त ) वृक्ष में, तथा अन्य सिद्धिप्रदेश में, साधक अथवा शाक्तजन दिव्य अथवा वीरभाव में रह कर कुमारी मंत्र से कुलाकुल परम्परानुसार अनेक प्रकार के कुलद्रव्यों तथा सिद्धद्रव्यों से, मांस से, आसव से अथवा मुक्तक के रस से हवन करें । फिर हुतशेष, कुलद्रव्यों को कुमारियों को नैवेद्य रूप में प्रदान करें । तदनन्तर उनके नैवेद्योच्छिष्ट द्रव्य को लाकर लालवर्ण के कमल में हवन कर दें । फिर स्थिर चित्त हो घृणा और लज्जा का परित्याग कर उस मांस रस को स्वयं पी जाएं । ऐसा करने से मन्त्रज्ञ साधक सदैव आनन्दित रहता है और महा बलवान् ‍ हो जाता है ॥१६५ - १७३॥

महामांसाष्टकं ताभ्यो मदिराकुम्भपूरितम् ।

तारो माया रमावह्रिजायामन्त्रं पठेत् सुधीः ॥१७४॥

उन्हें महामांसाष्टक तथा मदिरा से परिपूर्ण घट तार ( ॐ ) माया ( ह्रीं ) रमा ( श्रीं ) वह्निजाया ( स्वाहा ) मन्त्र पढ़कर निवेदित करे ॥१७४॥

निवेद्य विधिनानेन पठित्त्वा स्तोत्रमङ्गलम् ।

स्वयं प्रसादं भुक्त‌वा हि सर्वाविद्याधिपो भवेत् ॥१७५॥

इस प्रकार की विधि से नैवेद्य समर्पण कर कुमारी के स्तोत्र मङ्गल का पाठ कर स्वयं प्रसाद का भक्षण करें । ऐसा करने से साधक सभी महाविद्याओं का स्वामी बन जाता है ॥१७५॥

शूकरस्योष्ट्रमांसेन पीनमीनेन मुद्रया ।

महासवघटेनापि दत्त्वा पठति नरः ॥१७६॥

ध्रुवं स सर्वगामी स्याद् विना होमेन पूजया ।

रुद्ररुपो भवेन्नित्यं महाकालात्मको भवेत् ॥१७७॥

जो लोग शूकर के एवं उष्ट्र के मांस तथा मोटी - मोटी मछली , मुद्रा और महासव से परिपूर्ण घट निवेदन कर इस स्तोत्र का पाठ करते हैं , उन्हें निश्चय ही बिना होम जाप किए ही सर्वत्र अव्याह्त गति प्राप्त हो जाती है तथा वे महाकालात्मक रुद्र का स्वरुप बन जाते हैं ॥१७६ - १७७॥

सर्वपुण्यफलं नाथ क्षणात् प्राप्नोति साधकः ।

क्षीराब्धिरत्नकोषेशो वियद्व्यापी च योगिराट्‌ ॥१७८॥

हे नाथ ! ऐसा साधक क्षण मात्र में सभी पुण्यों का फल प्राप्त कर लेता है । वह क्षीर समुद्र में रहने वाले समस्त रत्नकोशों का स्वामी बन जाता है । इतना ही नहीं सारे आकाश मण्डल में व्याप्त होकर वह योगिराट् ‍ हो जाता है ॥१७८॥

भक्त्याह्रादं दयासिन्धुं निष्कामत्त्वं लभेद् ध्रुवम् ।

महाशत्रुपातने च महाशत्रुभयार्द्दिते ॥१७९॥

वारैकपाठमात्रेण शत्रूणां वधमानयेत् ।

समर्दयेत् शत्रून् क्षिप्रमन्धकारं यथा रविः ॥१८०॥

उच्चाटने मारणे च भये घोरतरे रिपौ ।

पठनाद्धारनान्मर्त्त्यो देवा वा राक्षसदयः ॥१८१॥

प्राप्नुवन्ति झटित् शान्तिं कुमारीनामपाठतः ।

पुरुषो दक्षिणे बाहौ नारी वामकरे तथा ॥१८२॥

धृत्वा पुत्रादिसम्पत्तिं लभते नात्र संशयः ॥१८३॥

वह भक्ति का आह्लाद, दया का समुद्र तथा निष्कामता को निश्चित रुप से प्राप्त करता है । महाशत्रु के द्वारा उत्पन्न विपत्ति में तथा महाशत्रु द्वारा भय से परिपीड़ित होने पर साधक एक बार के पाठ मात्र से अपने शत्रुओं का वध कर देता है । वह अपने समस्त शत्रुवर्गों का इस प्रकार विनाश कर देता है जिस प्रकार सूर्य अन्धकार समूहों को विनष्ट कर देते हैं । उच्चाटन में, मारण में, भय उपस्थित होने पर अथवा महाभयङ्कर शत्रु के द्वारा सताये जाने पर इसके पाठ से अथवा इसके धारण से मनुष्य विपत्ति से छूट जाता है । किं बहुना, देवता अथवा राक्षसादिक कुमारी सहस्त्रनाम के पाठ मात्र से बहुत शीघ्र शान्त हो जाते हैं । पुरुष अपने दाहिने हाथ में, स्त्री अपने बायें हाथ में, इस सहस्त्रनाम को धारण करने से पुत्रादि सम्पत्ति प्राप्त कर लेते हैं इसमें कोई संशय नहीं है ॥१७९ - १८३॥

ममाज्ञया मोक्षमुपैति साधको

गजान्तकं नाथ सहस्त्रनाम च ।

पठेन्मनुष्यो यहि भक्तिभावत-

स्तदा हि सर्वत्र फलोदयं लभेत् च ॥१८४॥

हे नाथ ! मेरी आज्ञा से इसका पाठ करने वाला साधक मोक्ष प्राप्त कर लेता है । यह सहस्त्रनाम गजान्तक है । यदि मनुष्य भक्ति भाव में तत्पर हो कर इसका पाठ करे तो उसका सर्वत्र फलोदय हो जाता है ॥१८४॥

मोक्षं सत्फलभोगिनां स्तववरं सारं परानान्ददं

ये नित्यं हि मुदा पठन्ति विफलं सार्थञ्च चिन्ताकुलाः ।

ते नित्याः प्रभवन्ति कीर्तिकमले श्रीरामतुल्यो जये

कन्दर्पायुततुल्यरुपगुणिनः क्रोधे च रुद्रोपमाः ॥१८५॥

यह सहस्त्रनाम सभी स्तवों में श्रेष्ठ है, सभी का स्थिर तत्त्व है, परानन्द देने वाला है, उत्तम फल का योग करने वालों को यह मोक्ष प्रदान करता है, जो चिन्तायुक्त एवं व्याकुलचित्त वाले जन इसके विशिष्ट फलयुक्त अर्थ का अनुसन्धान करते हुए आनन्दपूर्वक नित्य इसका पाठ करते हैं, वे सर्वदा कीर्तिकमल को प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं । वे विजय में श्रीराम के सदृशा हो जाते हैं । किं बहुना, रुपा एवं गुण में कामदेव के समान रुपवान् ‍ तथा गुणवान् ‍ बन जाते हैं और क्रोध में रुद्र के समान भयङ्कर हो जाते हैं ॥१८५॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे महातन्त्रोद्दीपने कुमार्युचर्याविन्यासे सिद्धमन्त्रप्रकरण दिव्यभावनिर्णय अष्टोत्तरसहस्त्रनामङ्गलोल्लासे दशमः पटलः ॥१०॥

इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के उत्तरतंत्र में महातंत्रोद्दीपन में कुमार्युपचर्याविलास में सिद्धमन्त्र प्रकरण में दिव्य भाव के निर्णय में दसवें पटल की कुमारी अष्टोत्तरसहस्त्रनाम मङ्गलोल्लास डॅा० सुधाकर मालवीय कृत हिन्दी व्याख्या पूर्णं हुई ॥१०॥

शेष जारी............रूद्रयामल तन्त्र पटल ११   

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