Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2022
(523)
-
▼
August
(47)
- रुद्रयामल तंत्र पटल १४
- जानकी अष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
- जानकी स्तोत्र
- पार्वती मंगल
- भगवच्छरण स्तोत्र
- परमेश्वरस्तुतिसारस्तोत्र
- नारायणाष्टक
- कमलापत्यष्टक
- दीनबन्ध्वष्टक
- दशावतार स्तोत्र
- गणपति स्तोत्र
- कंकालमालिनीतन्त्र पटल ५
- कंकालमालिनीतन्त्र पंचम पटल
- मीनाक्षी पञ्चरत्नम्
- नर्मदाष्टक
- ललितापञ्चकम्
- भवान्यष्टक
- कंकालमालिनीतन्त्र चतुर्थ पटल
- दुर्गा स्तुति
- कात्यायनी स्तुति
- नन्दकुमाराष्टकम्
- गोविन्दाष्टकम्
- रुद्रयामल तंत्र पटल १३
- कंकालमालिनीतन्त्र तृतीय पटल
- गुरु कवच
- मुण्डमालातन्त्र षष्ठ पटल
- श्रीकृष्णः शरणं मम स्तोत्र
- प्रपन्नगीतम्
- मुण्डमालातन्त्र पञ्चम पटल
- गोविन्दाष्टक
- कृष्णाष्टक
- रुद्रयामल तंत्र पटल १२
- श्रीहरिशरणाष्टकम्
- कंकालमालिनीतन्त्र द्वितीय पटल
- मुण्डमालातन्त्र चतुर्थ पटल
- योनि कवच
- परमेश्वर स्तोत्र
- न्यासदशकम्
- रुद्रयामल तंत्र पटल ११
- कंकालमालिनीतन्त्र प्रथम पटल
- मुण्डमालातन्त्र तृतीय पटल
- कुमारी सहस्रनाम स्तोत्र
- कुमारी कवच
- रुद्रयामल तंत्र पटल ८
- कुमारी स्तोत्र
- मुण्डमालातन्त्र द्वितीय पटल
- रुद्रयामल तंत्र पटल ७
-
▼
August
(47)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
कृष्णाष्टक
श्री कृष्णाष्टक का नियमित पाठ समस्त
पापों को नष्ट करने वाला, अपने भक्तों के चित्त को आनन्द देने वाला, शोक हरने वाला,
स्वस्थ,
धन धान्य से परिपूर्ण और समृद्ध देने वाला तथा सभी प्रकार के भयों
का नाश करने वाला है।
श्रीकृष्णाष्टकम्
श्रीकृष्ण अष्टकम्
श्रियाऽऽश्लिष्टो विष्णुः
स्थिरचरगुरुर्वेदविषयो
धियां साक्षी शुद्धो हरिरसुरहन्ताब्जनयनः ।
गदी शङ्खी चक्री विमलवनमाली
स्थिररुचिः
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
१॥
जो श्रीलक्ष्मीजी द्वारा
आलिङ्गित हैं, व्यापक हैं, सम्पूर्ण चराचर जिनका शरीर है, श्रुति-संवेद्य हैं,
समस्त बुद्धियों के साक्षी हैं, शुद्ध हैं,
हरि हैं, दैत्यदलन
हैं, कमलनयन हैं, शङ्ख, चक्र, गदा और विमल वनमाला धारण किये हाए हैं और
स्थिरकान्तिमय हैं, वे शरणागतवत्सल, निखिल
भुवनेश्वर । श्रीकृष्णचन्द्र मेरे नेत्रों के विषय हों॥१॥
यतः सर्वं जातं वियदनिलमुख्यं
जगदिदम्
स्थितौ निःशेषं योऽवति निजसुखांशेन मधुहा ।
लये सर्वं स्वस्मिन्हरति कलया यस्तु
स विभुः
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
२॥
(सष्टिकाल में) आकाश और पवनादि से लेकर यह सम्पूर्ण जगत् जिनसे उत्पन्न हुआ है, स्थिति के समय भी जो मधुसूदन अपने आनन्दांश से उसकी सर्वथा रक्षा करते हैं तथा लय के समय जो लीलामात्र से उसे अपने ही में लीन कर लेते हैं वे विभु, शरणागतवत्सल निखिल भुवनेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र मेरे नेत्रों के विषय हों॥२॥
असूनायम्यादौ
यमनियममुख्यैः सुकरणै-
र्निरुद्ध्येदं चित्तं हृदि विलयमानीय सकलम्
।
यमीड्यं पश्यन्ति प्रवरमतयो
मायिनमसौ
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
३॥
जिस स्तवनीय मायापति को बुधजन,
यम-नियमादि उपायों से पहले प्राणों को अपने अधीनकर फिर चित्तनिरोध द्वारा
इस सम्पूर्ण जगत्को लीन करके अपने अन्तःकरण में देखते हैं वे ही शरणागतवत्सल,
निखिल भुवनेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र मेरे नेत्रों के विषय हों ॥
३ ॥
पृथिव्यां तिष्ठन्यो यमयति महीं वेद
न धरा
यमित्यादौ वेदो वदति जगतामीशममलम् ।
नियन्तारं ध्येयं मुनिसुरनृणां
मोक्षदमसौ
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
४॥
पृथ्वी
में रहकर जो पृथ्वी का नियमन करते हैं परन्तु पृथ्वी जिन्हें नहीं जानती (यः
पृथिव्यां तिष्ठन् पृथिवीं यमयति यं पृथिवी न वेद) आदि श्रुतियों से वेद जिन
अमलस्वरूप को जगत्का स्वामी, नियामक,
ध्येय और देवता, मनुष्य तथा मुनिजनों को मोक्ष
देनेवाला बतलाता है, वे शरणागतपालक, निखिल
भुवनेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र मेरे नेत्रों के विषय हों॥४॥
महेन्द्रादिर्देवो जयति
दितिजान्यस्य बलतो
न कस्य स्वातन्त्र्यं क्वचिदपि कृतौ
यत्कृतिमृते ।
बलारातेर्गर्वं परिहरति योऽसौ
विजयिनः
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
५॥
जिनके बल से इन्द्रादि देवगण दैत्यों
को जीतते हैं, जिनकी कृति के बिना किसी कार्य में
कोई भी स्वतन्त्र नहीं है तथा जो कवियों के कवित्वाभिमान को और विजयियों के
विजयाभिमान को हर लेते हैं, वे शरणागतवत्सल निखिल भुवनेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र
मेरे नेत्रों के विषय हों ।। ५॥
विना यस्य ध्यानं व्रजति पशुतां
सूकरमुखां
विना यस्य ज्ञानं जनिमृतिभयं याति जनता ।
विना यस्य स्मृत्या कृमिशतजनिं याति
स विभुः
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
६॥
जिनका ध्यान किये बिना मनुष्य
सूकरादि पशु-योनियों में पड़ते हैं, जिनके
ज्ञान बिना जनता जन्म-मरण के भय को प्राप्त होती है तथा जिनका स्मरण किये बिना
सैकड़ों कीट-पतङ्गादि योनियों में गिरना पड़ता है, वे शरणागतवत्सल,
निखिल भुवनेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र मेरे नेत्रों के विषय हो ॥
६॥
नरातङ्कोत्तङ्कः शरणशरणो
भ्रान्तिहरणो
घनश्यामो वामो व्रजशिशुवयस्योऽर्जुनसखः ।
स्वयम्भूर्भूतानां जनक
उचिताचारसुखदः
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
७॥
जो प्राणियों के भय को दूर करनेवाले
हैं,
शरणागतों को शरण देनेवाले तथा भ्रम को दूर करनेवाले हैं, मेघश्याम हैं, सुन्दर हैं, व्रजबालकों
के समवयस्क साथी और अर्जुन के सखा हैं, स्वयम्भू हैं,
समस्त प्राणियों के पिता हैं तथा उचित आचरणों द्वारा सुख देनेवाले
हैं, वे शरणागतवत्सल, निखिल भुवनेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र
मेरे नेत्रों के विषय हों ॥७॥
यदा धर्मग्लानिर्भवति जगतां
क्षोभकरणी
तदा लोकस्वामी प्रकटितवपुः सेतुधृदजः ।
सतां धाता स्वच्छो निगमगणगीतो
व्रजपतिः
शरण्यो लोकेशो मम भवतु कृष्णोऽक्षिविषयः ॥
८॥
जब संसार को क्षुब्ध कर देनेवाला
धर्म का ह्रास होता है, उस समय जो
लोक-मर्यादा की रक्षा करनेवाले लोकेश्वर, संत-प्रतिपालक,
वेद वर्णित शुद्ध एवं अजन्मा भगवान् उनकी रक्षा के लिये शरीर धारण
करते हैं, वे ही शरणागतवत्सल, निखिल
भुवनेश्वर व्रजराज श्रीकृष्णचन्द्र मेरे नेत्रों के विषय हो । ८ ॥
इति हरिरखिलात्माऽऽराधितः शङ्करेण
श्रुतिविशदगुणोऽसौ
मातृमोक्षार्थमाद्यः ।
यतिवरनिकटे श्रीयुक्त आविर्बभूव
स्वगुणवृत उदारः शङ्खचक्राञ्जहस्तः
॥ ९॥
इस प्रकार अपनी माता की मुक्ति के
लिये श्रीशङ्कराचार्यजी ने श्रुति कथित गुणोंवाले, निखिलात्मा आदि नारायण हरि की आराधना की तो अपने उदार गुणों से युक्त
श्रीभगवान् लक्ष्मीजी सहित उनके निकट शङ्ख, चक्र,
पद्मादि लिये प्रकट हो गये ॥ ९॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ कृष्णाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: