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कर्मकाण्ड

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काली पटलम्

काली पटलम्

काली पटलम् के पाठ करने से साधक की वाणी सिद्ध हो जाती है अर्थात् साधक जो कुछ भी बोलता है वह बात सत्य हो जाता है तथा जो साधक सदैव इस पटल का पाठ करते हुए माता काली का पूजन करता है उन्हें सभी देवताओं का पूजन का फल मिल जाता है ।

काली पटलम्

काली-पटलम्

अथ कालीमनून् वक्ष्ये सद्यो वाक्-सिद्धदायकाम् ।

आराधितैर्यै: सर्वेष्टं प्राप्नुवन्ति जना भुवि॥ १ ॥

ब्रह्म-रेफौ वामनेत्र-चंद्रारूढौ मनुर्मत: ।

एकाक्षरो महाकाल्याः सर्वसिद्धि-प्रदायक: ॥ २ ॥

सदाशिव ने कहा-हे भैरव! क्षण मात्र में वाणी को सिद्ध करनेवाला काली मनु का मैं वर्णन करता हूँ। इस मृत्युलोक में जिन साधकों ने दक्षिण कालिका (देवी) की आराधना की है। उन्होंने अपने सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण किया है । तन्त्रकारों के मतानुसार (कालिका) देवी के चन्द्रमा रूप बायें नेत्र में स्थित ब्रह्म एवं रेफ को मनु संज्ञक माना। महाकाली का एकाक्षरमंत्र समस्त मनोवांछित सिद्धि को प्रदत्त करनेवाला है।॥१-२॥

बीजं दीर्घयुतश्चक्री पिनाकी नेत्र-संयुतः।

क्रोधीशो भगवान् स्वाहा खण्डार्णो मंत्र ईरित: ॥ ३ ॥ 

काली कूर्चं तथा लज्जा त्रिवर्णो मनरीरितः।

हुँफट् ततश्च-पंचार्ण:स्वाहान्तः सप्तवर्णकः ॥ ४ ॥

कूर्चद्वयं त्रयं काल्या मायायुग्मं च दक्षिणे।

कालिके पूर्वबीजानि स्वाहामंत्रो वशीकृतः॥ ५ ॥

दक्षिणकाली मन्त्र का बीज (भगवान) शिव का तीसरा नेत्र और (भगवान्)विष्णु का सुदर्शन चक्र है। और 'क्रोधीशो भगवान स्वाहा' इस मन्त्र को खण्डार्ण मन्त्र कहा गया है। काली कूर्च और लज्जा ये तीन मनु कहे गये हैं। 'हूफट् पंचार्ण: स्वाहा' ये सात अक्षरवाले मनु हैं। कूर्चद्वय काली के तीन और दक्षिण कालिका के माया युग्म बीज हैं । एवं 'पूर्वबीजानि स्वाहा' यह दक्षिण कालिका का वशीकरण करनेवाला मन्त्र है॥३-५॥

मंत्रराजः पुनः प्रोक्तं बीजसप्तकमुत्सृजेत्।

तिथिवर्णो महामंत्र उपास्तिः पूर्ववन् मता॥ ६॥

न चाऽत्र सिद्धि-साध्यादि-शोधनं मनसाऽपि वा।

न यत्नातिशयः कश्चित् पुरश्चर्यानिमित्तकः॥ ७ ॥

सात बीज से युक्त दक्षिण कालिका का मंत्र, मंत्रराज संज्ञक कहा गया है। तथा पन्द्र अक्षर वाले महामंत्र को उपास्ति मंत्र कहा गया है। इस दक्षिण कालिका के उपास्ति मन्त्र के विषय में सिद्धि एवं साध्य का शोधन और  पुरश्चरण के निमित्त किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं करना चाहिए। इस विषय में मन में कल्पना भी नहीं करनी चाहिए ॥६-७॥

विद्याराज्ञीस्मृतेरेव सिद्धयष्टकमवाप्नुयात्।

भैरवोऽस्य ऋषिश्चन्दो उष्णिक्-काली तु देवता॥ ८ ॥

बीजं माया दीर्घवर्मशक्तिरुक्ता मनीषिभिः।

षड्दीर्घाढयाद्यबीजेन विद्याया अंगमीरितम्॥६॥

मातृकान् पंचधा भक्त्वा वर्णान् दश-दशक्रमात्।

हृदये भुजयोः पादद्वये मन्त्री प्रविन्यसेत्॥

व्यापकं मनुना कृत्वा ध्यायेच्चेतसि कालिकाकम्॥१०॥

(इसकी) साधना करनेवाले विद्याराज्ञी के स्मृति से ही अणिमादि आठ सिद्धियों को प्राप्त करते हैं । इस दक्षिण कालिका मन्त्र के भैरव ऋषि, उष्णिक् छन्द एवं काली देवता मायाबीज, दीर्घवर्म शक्ति है एवं श्रेष्ठ षड्दीर्घ बीज विद्या का अंग, तन्त्र के विद्वानों ने कहा है। मन्त्र की सिद्धि करनेवाले साधक को चाहिये, कि वह दस-दस वर्णों के क्रम से मात्रिका को पाँच बार भेदकर, हृदय, दोनों भुजा और दोनों पैरों में न्यास करे और मनु से व्यापक कर (अपने) हृदय में काली का ध्यान करे ॥ ८-१०॥

ध्यानम्

सद्यश्छिन्नशिरः कृपाणमभयं हस्तैर्वरं बिभ्रतीं,

घोरास्यां शिरसा स्रजा सुरुचिरामुन्मत्तकेशावलीम्।

सुक्का-ऽसृक्-प्रवहां श्मशान-निलयां श्रुत्योःशवालिङ्कृतीं,

श्यामाङ्गी कृतमेखलां शवकरैर्देवीं भजेत् कालिकाम्॥११॥

तत्क्षण छिन्न मस्तकवाली, अपने (दोनों) हाथों में अभय और कृपाण धारण की हुई, भयंकर मुखवाली (नर) मुण्डों की सुंदर माला (गले में) धारण की हुई, (चारों ओर)जिनके केश बिखरे हुए हैं, जिनका सम्पूर्ण शरीर रक्त से सना हुआ है, संसार में रहनेवाली, अपने दोनों कानों में मुण्ड की माला धारण करनेवाली, जिनका रंग श्यामवर्ण का है।  जो मेखला धारण की हुई हैं। जिनका हाथ शव पर रक्खा हुआ है, ऐसी महाकाली का (साधक) ध्यान करे॥११॥

एवं ध्यात्वा जपेल्लक्षं जुहुयात्तद्-दशांशतः।

प्रसूनैः करवीरोत्थैः पूजायन्त्रमथोच्यते॥१२॥

आदौ षट्कोणमारच्य त्रिकोण-त्रितयं ततः।

पद्ममष्टदलं बाह्ये भूपुरं तत्र पूजयेत्॥१३॥

इस प्रकार महाकाली का ध्यान कर कालिका के मन्त्र का एक लाख जप एवं उसका दस हजार हवन करे। हवन के पश्चात कनैल के फूल से पूजन कर यंत्र का निर्माण करें।  यन्त्र निर्माण का क्रम इस प्रकार से है-सर्वप्रथम षट्कोण बनावें-उसके बीच में तीन त्रिकोण का निर्माण करें। उस त्रिकोण के बाहर अष्टदल कमल का निर्माण कर उसमें भूपूर की पूजा करें ॥१२-१३॥

जयाख्या विजया पश्चादजिता चापराजिता।

नित्या विलासिनी चाऽपि दोग्धा घोरा च मंगला॥१४॥ 

पीठशक्तय एताः स्युः कालिकायोगपीठतः।

आत्मनो हृदयान्तोऽयं मयादिपीठमंत्रकः॥१५॥

अस्मिन् पीठे यजेद्देवीं शवरूप-शिवस्थिताम्।

महाकालरताशक्तां शिवाभिर्दिक्षु वेष्टिताम्॥१६॥

जया, विजया, अजिता, अपराजिता, नित्या, विलासिनी, दोग्धा, घोरा एवं मंगला ये सब देवियाँ कालिका योग पीठ से पीठशक्ति के रूप में बताई गई हैं। अपने पैर से लेकर हृदय तक मायादि पीठ मन्त्र है। इस पीठ में-शवरूप शिवपर स्थित, महाकाल से क्रीड़ा करने में आसक्त, सभी दिशाओं में शिवा आदि योगिनियों से घिरी हुई महाकाली की पूजा (साधक) करें॥१४-१६॥

अंगानि पूर्वमाराध्य षट्पत्रेषु समर्चयेत्।

कालीं कपालिनीं कुल्वां कुरुकुल्वां विरोधिनीम्॥१७॥

विप्रचित्तां तु संपूज्य नवकोणैषु पूजयेत्।

उग्रामुग्रप्रभ दीप्तां नीलां घनां बलाकिकाम्॥१८॥

मात्रां मुद्रां तथाऽमित्रां पूज्याः पत्रेषु मातरः।

पद्मस्याऽष्टसु नेत्रेषु ब्राह्मीं नारायणी तथा॥१९॥

माहेश्वरी च चामुण्डा कौमारी चाऽपराजिता।

वाराही नारसिंही च पुनरेताश्च भूपुरे॥२०॥

सर्वप्रथम काली के (सम्पूर्ण) अंगों की पूजा कर कमल में छह पत्रों में काली, कपालिनी, कुल्वा, कुरुकुल्वा, विरोधिनी, विप्रचित्ता इन छ: देवियों का पूजा कर तीनों त्रिकोणों के नौ कोण में उग्रा, उग्रप्रभा, दीप्ता, नीला, बलाकिका, मात्रा, मुद्रा एवं अमित्रा देवी की पूजा करे। कमल के आठ दलों में (क्रमशः) ब्राह्मी, नारायणी, माहेश्वरी, चामुण्डा, कौमारी, अपराजिता, वाराही और नारसिंही इन देवियों की पूजा करें॥१७-२०॥

भैरवीं महदाद्यन्तां सिंहाद्यां धूम्रपूर्विकाम्।

भीमोन्मत्तादिकां चाऽपि वशीकरणभैरवीम्॥२१॥

मोहनाद्यां समाराध्य शक्रादीन्यायुधान्यपि।

एवमाराधिता काली सिद्धा भवति मंत्रिणाम्॥२२॥

उसी कमलदल में महादाद्यन्त, सिंहाद्या, धूमावती, भीमा, उन्मत्ता,वशीकरण भैरवीरूप, मोहन और इन्द्रादि के शस्त्रों की आराधना एवं पूजा करने से साधकों को काली की सिद्धि प्राप्त होती है ॥ २१-२२॥

ततःप्रयोगान् कुर्वीत महाभैरवभाषितान्।

आत्मनोऽर्थं परस्यार्थं क्षिप्रसिद्धि-प्रदायकान्॥२३॥

स्त्रीणां प्रहारं निन्दां च कौटिल्यं चाऽप्रियं वच।

आत्मनो हितमन्विच्छन् कालीभक्तो विवर्जयेत्॥२४॥

इसके पश्चात् महाभैरव के द्वारा बताये गये प्रयोगों को करना चाहिये । उक्त प्रयोग अपने एवं अन्य लोगों के लिये अतिशीघ्र सिद्धि प्रदत्त करने वाले होते हैं। अपने शुभ का इच्छा करनेवाले काली के सेवकगण, स्त्रियों पर प्रहार, निन्दा, कुटिलता और अप्रिय वचन बोलना छोड़ दें ॥ २३-२४॥

सुदृशो मदनावासं तस्या यः प्रजपेन् मनुम्।

अयुतं सोऽचिरादेव वाक्पतेः समतामियात्॥२५॥

दिगम्बरो मुक्तकेशः श्मशानस्थो जितेन्द्रियः।

जपेदयुतमेतस्य भवेयुः सर्वकामनाः॥२६॥

जो साधना करनेवाला मनुष्य इस काली मन्त्र का एक लाख जप करता है, वह मदन अर्थात् कामदेव के तुल्य हो जाता है तथा यथाशीघ्र वह साधक बृहस्पति देवता के तुल्य हो जाता है। जो साधक नग्न होकर, बालों को बिखेरकर, संसार में निवास करते हुए जितेन्द्रिय होकर इस काली मन्त्र का एक लाख बार जप करता है तो ऐसे साधक की सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण होती हैं । २५-२६ ॥

शवहृदयमारुह्य निर्वासाः प्रेतभूगतः।

अर्क-पुष्पसहस्त्रेणाभ्यक्तेन स्वीयरेतसा॥२७॥

देवीं यः पूजयेद् भक्त्या जपन्नेकैकशो मनुम्।

सोऽचिरेणैव कालेन धरणी-प्रभुतां व्रजेत्॥२८॥

शव अर्थात् मुर्दे के हृदय पर बैठकर श्मशान में रहनेवाला नंगा होकर अपने वीर्य के द्वारा मदार के हजार पुष्पों को सिंचन करनेवाला, कालीमंत्र की साधना करनेवाला, श्रद्धा एवं भक्ति से युक्त एक-एक मनु का जाप करता हुआ, यदि कालीदेवी की पूजा करता है, तो वह अल्प समय में ही राजा बन जाता है ॥२७-२८॥

रज:कीर्णं भगं नार्या ध्यायन् योऽयुतमाजपेत्।

स कवित्वेन रम्येण जनान् मोहयति ध्रुवम्॥२९॥

जो साधक रजस्वला स्त्री की योनि का ध्यान करता हुआ काली मंत्र का एक लाख जाप करता है, वह निःसन्देह ही सुन्दर कविताओं द्वारा मनुष्यों के मन को मोहित कर लेता है ॥ २९॥

त्रिपञ्चारे महापीठे शवस्य हृदि सस्थिताम्।

महाकालेन देवेन नारयुद्धं प्रकुर्वतीम् ॥३०॥

तां ध्यायन् स्मेरवदनां विद्धत् सुरतं स्वयम्

जपेत् सहस्त्रमपि यः स शङ्करसमो भवेत् ॥३१॥

पन्द्रह कमलदल वाले महापीठ और शव के हृदय पर विराजित हुई, महाकालदेव अर्थात् शिव के साथ (काली) कामवासना से पीड़ित हो मानों युद्ध करती हुई, (कामदेव) के काम के वशीभूत हो शवरूप शिव के साथ सम्भोग करती हुई, ऐसी काली का ध्यान करता हुआ जो साधक काली मंत्र का एक हजार बार जप करता है, वह शिव के तुल्य बन जाता है॥ ३०-३१॥

अस्थि-लोम-त्वचायुक्तं मान्सं मार्जार-मेषयोः।

उष्ट्रस्य महिषस्यापि बलिं यस्तु समर्पयेत् ॥३२॥

भूताष्टभ्यो मध्यरात्रे वश्याः स्युः सर्वजन्तवः।

विद्या-लक्ष्मी-यश:-पुत्रै: सुचिरं सुखमेधते॥३३॥

जो साधना करनेवाला साधक बिल्ली, भेंड़, , भैसे की हड्डी, रोवा,चमड़ीयुक्त मांस की बली कालीदेवी को अर्पित करता है ऐसे साधक के सभी प्राणी और आठ भुत मध्य रात्रि में उसके दास हो जाते है और वह साधक सरस्वती,लक्ष्मी,यश और अपने पुत्रों के साथ बहुत काल तक पृथ्वीलोक का सुख प्राप्त करते हुए रहता है॥ ३२-३३॥

यो हविष्याशनरतो दिवा देवीं स्मरन् जपेत्।

नक्तं निधुवनासक्तो लक्षं स स्याद् धरापतिः॥३४॥

जो साधक मात्र हविष्यान्न का भक्षण कर दिन में काली देवी का स्मरण करता है एवं रात्रि के समय मदिरा का पान कर नशे में चूर होकर काली देवी के मन्त्र का एक लाख जाप करता है, ऐसा साधक राजा बन जाता है ॥३४॥

रक्तां भोजैर्भवेन् मैत्री धनैर्जयति वित्तपम्।

बिल्वपत्रैर्भवेद्रज्यं रक्त-पुष्पै-र्वशीकृतिः॥३५॥

असृजा महिषादीनां कालिकां यस्तु तर्पयेत्।

तस्य स्युरचिरादेव करस्थाः सर्वसिद्धयः॥ ३६॥

जो साधना करनेवाला साधक लाल कमल से कालिका देवी का पूजा करता है उसके शत्रु भी मित्र बन जाते हैं और वह अपने धन से (धन के स्वामी) कुबेर पर विजय प्राप्त कर लेता है, जो साधक बिल्वपत्र के द्वारा भगवती काली का पूजा करता है,वह राज्य सुख प्राप्त करता है। अड़हुल, कनैल आदि के पुष्पों से जो साधक भगवती काली का पूजन करता है, वह सम्पूर्ण संसार को अपने वशीभूत कर लेता है। जो साधक भेंड़, भैस आदि के खून से  काली का तर्पण करता है, उस साधक को समस्त सिद्धियाँ तत्काल प्राप्त होती हैं॥३५-३६॥

यो लक्षं प्रजपेन् मन्त्रं शवमारुह्य मन्त्रवित्।

तस्य सिद्धो मनुः सद्यः सर्वेप्सित-फलप्रदः॥३७॥

जो मन्त्रों के जानकार साधक हैं, यदि वह मुर्दे पर बैठकर काली के मंत्र का एक लाख बार जप करते हैं, तो उनके सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाले मनु उसी क्षण सिद्ध हो जाते हैं ॥ ३७॥

काली पटलम् फलश्रुति

तेनाऽश्वमेधप्रमुखैर्यागैरिष्टवा सुजन्मना।

दत्तं दानं तपस्तप्तं पूजेत् यस्तु कालिकाम्॥३८॥

ब्रह्मा विष्णुः शिवो गौरी लक्ष्मी-गणपती-रविः।

पूजिताः सकला देवा यः कालीं पूजयते सदा॥३९॥

फलश्रुति-जो साधक अपने पूर्व जन्म के अच्छे संस्कारों से एवं अश्वमेध यज्ञ आदि प्रमुख यज्ञों द्वारा कालिका का पूजन करते हैं, ऐसे साधक दान-प्रदान और सभी कठिन तपत्या आदि को पूर्ण कर लेते हैं । जिन साधकों ने सदैव माता काली का पूजन किया उन्होंने मानों ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अम्बा, लक्ष्मी, गणपति एवं आदित्य (सूर्य) आदि सभी देवताओं का पूजन कर लिया ।। ३८-३९॥

॥ कालीपटलम् सम्पूर्णम् ॥

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