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काली मन्त्र
हमारे धर्मग्रंथों में माता काली के
मन्त्र व ध्यान के अनेक-नेक क्रम बताये गये हैं, किन्तु मन्त्रों के आधार पर ही ध्यान के क्रमों का वर्गीकरण किया गया है।
उनके नाम क्रमश:इस प्रकार से हैं-
(१) कादि क्रम (२) हादिक्रम (३) क्रोधादि
क्रम (४) वागादि क्रम (५) नादि क्रम (६) दादि क्रम (७) प्रणवादि क्रम
काली मन्त्र
काली ध्यान के विविध क्रम
१.कादि क्रम- जिन मन्त्रों का
आद्यक्षर ककार है एवं जो ‘क्रीं' से आरम्भ होता हो, उन्हें कादि क्रम कहते हैं।
'कादि' क्रम
का ध्यान
करालवदनां घौरां मुक्तकेशी
चतुर्भुजाम् ।
कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमाला
विभूषिताम् ।।
सद्यः छिन्नशिर: खड्गवामाधोर्ध्व
कराम्बुजाम् ।
अभयं वरदश्चैव
दक्षिणोध्वधिःपाणिकाम् ॥
महामेघ प्रभां श्यामां तथा चैव
दिगम्बरीम् ।
कण्ठावसक्तमुण्डाली
गलद्रुधिरचर्चिताम् ।
कर्णावतंसतानीत शवयुग्म भयानकां।
घोरदंष्ट्रा करालास्यां पीनोन्नत
पयोधराम् ॥
शवानां कर संघांतैः कृतकाञ्ची
हसन्मुखीम्।
सृक्कद्वयगलद्रक्तधारां
विस्फुरिताननाम् ॥
घोररावां महारौद्रीं
श्मशानालयवासिनीम्।
बालर्क्कमण्डलाकार
लोचनत्रितयान्विताम् ॥
दन्तुरां दक्षिण व्यापि
मुक्तालम्बिकचोच्चयाम् ।
शवरूप महादेव हृदयोपरि संस्थिताम् ॥
शिवाभिर्घोरं राजाभिश्चतुर्दिक्षु
समन्विताम् ।
महाकालेन च समं विपरीतरतातुराम् ॥
सुख प्रसन्नावदनां स्मेरानन
सरोरुहाम्।
एवं सञ्चियन्तयेत् काली सर्वकाम
समृद्धिदाम् ॥
२. हादिक्रम -जिन मन्त्रों में
प्रथम वर्ण 'हकार' है
तथा जो 'ह्रीं' से प्रारम्भ होता है,
उन्हें हादिक्रम कहते हैं।
'हादि' क्रम
का ध्यान
देव्याध्यानमयो वक्ष्ये
सर्वदेवोऽपशोभितम् ।
अज्जनाद्रिनिभां देवीं करालवदनां
शिवाम् ॥
मुण्डमालावलीकीर्णां मुक्तकेशी
स्मिताननाम् ।
महाकालहृदम्भोज स्थितां पीन
पयोधराम् ॥
विपरीतरतासक्तां घोर दंष्ट्रां
शिवेन वै।
नागयज्ञोपवीताञ्च चन्द्रार्द्धकृत
शेखराम् ॥
सर्वालङ्कार संयुक्तां मुक्तामणि
विभूषिताम् ।
मृतहस्तसहस्त्रैस्तु बद्धकाञ्चीं
दिगम्बराम् ॥
शिवाकोटि सहस्त्रैस्तु
योगिनीभिर्विराजिताम् ।
रक्तपूर्ण मुखाम्बोजां मद्यपान प्रमत्तिकाम्
॥
सद्यश्छिन्नं शिरः खड्गवामोर्ध्वाध:
कराम्बुजाम् ।
अभयोवरदक्षीर्ध्वाध: करां
परमेश्वरीम् ॥
वहन्यर्क शशि नेत्रांच रक्त
विस्फुरिताननाम् ।
विगतासु किशोराभ्यां कृत कर्णावतंसिनीम्
॥
कण्ठावसक्तं मुण्डाली गलद्रुधिर
चर्चिताम् ।
श्मशानवह्निमध्यस्थां ब्रह्म केशव
वन्दिताम् ॥
३. क्रोधादि क्रम -जिन मन्त्रों का
प्रथम अक्षर क्रोध बीज 'हूं' से प्रारम्भ हो, उन्हें क्रोधादि क्रम कहते हैं।
'क्रोधादि' क्रम
का ध्यान
दीपं त्रिकोणं विपुलं सर्वतः
सुमनोहरम् ।
कूजत् कोकिल नादाठ्यं मन्दमारुत सेवितम्
॥
भुंगपुष्पलताकीर्णमुद्यच्चन्द्र -
दिवाकरम् ।
स्मृत्वा सुधाब्धि मध्यस्थं
तस्मिनमाणिक्यमण्डपे ॥
रत्नसिंहासने पद्ये
त्रिकोणोज्ज्वलकर्णिके ।
पीठे सञ्चिन्तयेत देवीं साक्षात्
त्रैलोक्यसुन्दरीम् ॥
नीलनीरजसंकाशा प्रत्यालीढपद
स्थिताम् ।
चतुर्भुजां त्रिनयनां खण्डेन्दुकृत
शेखराम्॥
लम्बोदरी विशालाक्षीं श्वेत
प्रेतासन स्थिताम् ।
दक्षिणोर्ध्वेन निस्तृंशं
वामोर्ध्वनीलनीरजम् ॥
कपालंदधतीञ्चैव दक्षिणाधश्चकर्तृकाम्
।
नागाष्टकेन सम्बद्ध जटाजूटां
सुरार्चिताम् ॥
रक्तवर्तुल नेत्रांश्च प्रव्यक्त
दशनोज्ज्वलाम्।
व्याघ्रचर्मपरीधानां गन्धाष्टक
प्रलेपिताम्॥
ताम्बूलपूर्ण वदनां सुरासुर
नमस्कृताम् ।
एवं सञ्चितयेत् कालीं
सर्वाभीष्टप्रदां शिवाम् ॥
४. वागादि क्रम -जिन मन्त्रों का
पहला अक्षर वाग्-बीज 'श्री' से प्रारम्भ होता हो,उन्हें वागादि क्रम कहते हैं।
'वागादि' क्रम
का ध्यान
चतुर्भुजां कृष्णवर्णां मुण्डमाला
विभूषिताम्।
खड्गश्च दक्षिणे पाणौ विभ्रतीं सशरं
धनुः॥
मुण्डश्च खर्परञ्चैव क्रमाद्वामेन
विभ्रतीम्।
द्यो लिखन्ती जटामे कां विभ्रती
शिरसा स्वयं ॥
मुण्डमाला धरा शीर्षे ग्रीवायामपि
सर्वदा।
वक्षसा नागहारं तु विभ्रतीं
रक्तलोचनाम्॥
कृष्ण वस्त्र धरां कट्यां व्याघ्राजिनसमन्विताम्।
वामपादं शवहृदि संस्थाप्य
दक्षिणपदम्॥
विन्यस्य सिंह पृष्ठेच लेलिहानां
शवं स्वयं
सादृहासां महाघोररावयुक्ता
सुभीषणाम् ॥
५. नादि क्रम -जिन मन्त्रों के
प्रारम्भ में 'नमः' शब्द
हो, उन्हें 'नादि' क्रम कहते हैं।
'नादि' क्रम
का ध्यान
खड्गश्च दक्षिणे पाणौ
विभ्रतीन्दीवरद्वयम्।
कर्तृकां खर्परञ्चैव क्रमाद वामेन
विभ्रतीं ॥
(इसके आगे का ध्यान वागादि क्रम के
अनुसार करें)
६. दादि क्रम -जिन मन्त्रों के
प्रथम अक्षर 'द' से
प्रारम्भ हो, जैसे- दक्षिणे कालिके । उन्हें 'दादि' क्रम वाला कहते हैं।
'दादि' क्रम
का ध्यान
सद्यः कृन्तशिर: खड्गमूर्ध्वद्वय
कराम्बुजाम्।
अभयं वरदं चैव तयोद्वय करान्विताम्
॥
(इसके आगे का ध्यान कादि क्रम के
अनुसार करें)
७. प्रणवादि क्रम -जिन मन्त्रों में
पहले प्रणव या 'ॐ' बीज हो,
उन्हें 'प्रणवादि' क्रम नाम
से सम्बोधित करते हैं।
'प्रणवादि' क्रम
का ध्यान
इसका भी कादि क्रम के अनुसार ही
ध्यान करे । इस क्रम का ध्यान 'कादिक्रम'
के अनुसार बताया गया है।
माँ काली के विभन्न मन्त्र
श्री काली सहस्त्राक्षरी मन्त्र
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्री हूं
हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा शुचिजाया
महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीं कामेश्वरी वीं हं वाराहिके ह्रीं महामाये खं
खः क्रोधाधिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदयरञ्जनि वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिं
हसकहलह्रीं हस्त्रैं ॐ ह्रीं क्लीं मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीं ईं स्वाहा दक्षिण कालिके
क्रीं हूं ह्रीं स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरकुल्ले तारे ॐ ह्रीं नमः भयोन्मादिनी भयं
मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रें विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिंहवाहिनी
सिंहस्थे अश्वारूढे अश्वमुरिपु विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून् मां
हिंसितुमुद्यतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रें क्रीं क्रें कामे
संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगद्वशमानय वशमानय मातङ्गिनी
उच्छिष्टचाण्डालिनी मातङ्गिनी सर्वशङ्करी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे
घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रों रों रों रों ह्रीं श्रीं हसौं: सौं
वद वद क्लीं क्लीं क्लीं क्रीं क्रीं क्रीं कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके
शम्बरघातिनि कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीं स्वाहा हृदयालये ॐ ह्रीं क्रीं मे
स्वाहा ठः ठः ठः क्रीं ह्रं ह्रीं चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान्
अमून् शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नतस्तने विष्टंभकारिणि विद्याधिके श्मशानवासिनी
कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिंहे दक्षिणकालिके अनिरुद्धये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे
चमत्कारिणि हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने काने शत्रुपक्षे शरीरे
मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथानायै योगमार्ग गच्छ गच्छ
निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपून्दर्शने
दर्शय दर्शय सिंहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
फट् स्वाहा शक्तिरूपायै रों वा गणपायै रों रों रों व्यामोहिनि यन्त्रनिके
महाकायायै प्रकटवदनायै नीलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः
ब्रह्मरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी
तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनी कुल्ले कुरुकुल्ले
चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीं ह्रीं रक्ष रक्ष
ज्वालाप्रचण्डचण्डिकेयं शक्तिमार्तण्ड भैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय
पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो
नमः ब्राह्यं नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नम:
वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः
नारसिंहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुद्धके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि
ललाटं भल्लाटिनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविद्यां क्षोभय क्षोभय आकृष्य
आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिद्धिके कृष्णरूपिणी अजनसिद्धिके स्तम्भिनि मोहिनि
मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा।
श्री काली बीज सहस्त्राक्षरी मन्त्र
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐक्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं
क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं
क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं
हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं
हुं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं हुं
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हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं
हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं
हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं हसौं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं
ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं
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ह्रीं श्मशान कालिकायै घोररूपायै शवासनायै अभयखड्गमुण्डधारिण्यै दक्षिणकालिके मुण्डमालि
चतुर्भुजी नागयज्ञोपवीते क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं
क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं
क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं
क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं
क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं
क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं
प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं प्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं
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क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों
क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों
क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों
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क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों
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क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों क्रों तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं
तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं
तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं
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तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं तुं ग्लौं
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ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं
ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं
ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं
ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं फट् फट् फट् फट् फट् फट् फट् फट्
फट् फट् फट् फट् फट् फट् फट् फट् फट् स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा
।
भगवती दक्षिण काली के कुछ मन्त्र
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं
हूं हूं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा ॥१॥
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं
ह्रीं हूं हूं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा॥२॥
ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं
क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥३॥
ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं
क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥४॥
ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं
क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥५॥
ऐं नम: क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा
॥६॥
क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं
क्रीं स्वाहा ॥७॥
क्रीं हूं ह्रीं क्रीं हूं ह्रीं
स्वाहा ॥ ८॥
क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा ॥९॥
क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा ॥ १०॥
क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके
स्वाहा ॥११॥
क्रीं हूं ह्रीं दक्षिणकालिके फट् ॥
१२ ॥
ॐ नम: आं क्रों आं क्रों फट् स्वाहा
कालि कालिके हूं ॥ १३॥
क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं स्वाहा ॥
१४॥
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं
दक्षिणकालिके स्वाहा ॥ १५॥
नम: ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा
॥ १६॥
नम: आं आं क्रों क्रों फट् स्वाहा
कालिके हूं ॥ १७॥
गुह्यकाली के विविध मन्त्र
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं
ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥१॥
हूं हूं ह्रीं ह्रीं गुह्ये कालिके
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥२॥
क्रीं हूं ह्रीं गुह्ये कालिके
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥३॥
हूं ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं
क्रीं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥ ४॥
भद्रकाली के विविध मन्त्र
ॐ ह्रौं कालि महाकालि किलि किलि फट्
स्वाहा ॥१॥
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं
ह्रीं भद्रकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥२॥
भद्र कालि महाकालि किलि किलि फट्
स्वाहा ॥३॥
ॐ भं भद्रकलिकायै आगच्छ- आगच्छ भं ॐ
नमः ॥४॥
महाकाली के विविध मन्त्र
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
महाकालि क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥१॥
कें कें क्रों क्रों पशून् गृहाण
हुं हुं फट् स्वाहा ॥ २॥
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं
ह्रीं महाकालि क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥३॥
माँ काली के गायत्री मन्त्र
कालिका गायत्री-
१-कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै
धीमहि । तन्नोऽघोरा प्रचोदयात् ॥
२- कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै
धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
श्यामा गायत्री-
कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै
धीमहि । तन्नः कामकलाकाली प्रचोदयात् ॥
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