भुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र
भुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र का पाठ सिद्धि
देने वाले और सभी कामनाओं को पूरा करनेवाला है।
श्रीभुवनेश्वरीशतनामस्तोत्रम्
कैलासशिखरे रम्ये नानारत्नोपशोभिते
।
नरनारीहितार्थाय शिवं पप्रच्छ
पार्वती ॥ १॥
नाना रत्नों से सुशोभित रम्य कैलास शिखर
पर बैठे शिव से नर-नारी के कल्याण के लिए श्री पार्वती ने पूछा।
देव्युवाच -
भुवनेशीमहाविद्यानाम्नामष्टोत्तरं
शतम् ।
कथयस्व महादेव यद्यहं तव वल्लभा ॥
२॥
देवी बोली: हे महादेव! यदि मैं आप
की प्रिया हूं तो आप मुझे भुवनेश्वरी मह्मविद्या का अष्टोत्तरशतनाम बतायें ।
ईश्वर उवाच -
श्रृणु देवि महाभागे स्तवराजमिदं
शुभम् ।
सहस्रनाम्नामधिकं सिद्धिदं
मोक्षहेतुकम् ॥ ३॥
शुचिभिः प्रातरुत्थाय पठितव्यं
समाहितैः ।
त्रिकालं श्रद्धया युक्तैः
सर्वकामफलप्रदम् ॥ ४॥
ईश्वर बोले : हे महाभागे देवि ! तुम
सहस्त्रनाम से भी अधिक सिद्धि देने वाले और मोक्ष के कारण इस स्तवराज को सुनों।
प्रातः उठकर पवित्र और शान्तचित होकर इसका पाठ करना चाहिए श्रद्धायुक्त होकर तीनों
कालों में इसका पाठ करने से यह सभी कामनाओं को पूरा करनेवाला है।
श्रीभुवनेश्वरीशतनामस्तोत्रम्
अस्य श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य
शक्तिऋषिः गायत्री छन्दःभुवनेश्वरी देवता चतुर्वर्गसाधने जपे विनियोगः ।
भुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र
ॐ महामाया महाविद्या महाभोगा
महोत्कटा ।
माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी
ब्रह्मरूपिणी ॥ ५॥
वागीश्वरी योगरूपा योगिनीकोटिसेविता
।
जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला
॥ ६॥
हिङ्गुला च विलासी च ज्वालिनी
ज्वालरूपिणी ।
ईश्वरी क्रूरसंहारी
कुलमार्गप्रदायिनी ॥ ७॥
वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या
कुलपूजिता ।
वामाङ्गा वामचारा च वामदेवप्रिया
तथा ॥ ८॥
डाकिनी योगिनीरूपा भूतेशी भूतनायिका
।
पद्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च
सरस्वती ॥ ९॥
भूचरी खेचरी माया मातङ्गी
भुवनेश्वरी ।
कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः
कुण्डवासिनी ॥ १०॥
उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी
पद्मरागिणी ।
इन्द्राणी ब्रह्म चाण्डाली चण्डिका
वायुवल्लभा ॥ ११॥
सर्वधातुमयीमूर्तिर्जलरूपा जलोदरी ।
आकाशी रणगा चैव नृकपालविभूषणा ॥ १२॥
नर्मदा मोक्षदा चैव
धर्मकामार्थदायिनी ।
गायत्री चाथ सावित्री त्रिसन्ध्या
तीर्थगामिनी ॥ १३॥
अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा ।
पौर्णमासी कुहूरूपा
तिथिमूर्तिस्वरूपिणी ॥ १४॥
सुरारिनाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला
।
अनला अर्धमात्रा च अरुणा पीतलोचना ॥
१५॥
लज्जा सरस्वती विद्या भवानी
पापनाशिनी ।
नागपाशधरा मूर्तिरगाधा धृतकुण्डला ॥
१६॥
क्षत्ररूपा क्षयकरी तेजस्विनी
शुचिस्मिता ।
अव्यक्ता व्यक्तलोका च शम्भुरूपा
मनस्विनी ॥ १७॥
मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेवप्रिया
सदा ।
दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी
शुभा ॥ १८॥
श्रीभुवनेश्वरीशतनामस्तोत्रम् फलश्रुति
य इदं पठते भक्त्या श्रृणुयाद्वा
समाहितः ।
अपुत्रो लभते पुत्रं निर्धनो धनवान्
भवेत् ॥ १९॥
मूर्खोऽपि लभते शास्त्रं चोरोऽपि
लभते गतिम् ।
वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो
विजयी भवेत् ॥ २०॥
वैश्यस्तु धनवान्भूयाच्छूद्रस्तु सुखमेधते
।
जो इसे श्रद्धा तथा भक्ति से
शान्तचित होकर सुनता या पढ़ता है वह पुत्रहीन भी पुत्र प्राप्त करता है। निर्धन
धनवान होता है। मूर्ख शास्त्र को पाता है। चोर भी सदगति को पाता है । ब्राह्मण
वेदों का पाठक होता है तथा क्षत्रिय विजयी होता है । वैश्य धनवान होता है तथा शुद्र
सुख से वृद्धि को पाता है ।
अष्टम्याञ्च चतुर्दश्यां नवम्यां
चैकचेतसः ॥ २१॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या न ते वै
दुःखभागिनः ।
जो लोग अष्टमी, चतुर्दशी तथा नवमी
को एकाग्रमन होकर भक्ति से इसका पाठ करते हैं, वे
निश्चितरूप से दुःखभागी नहीं होते।
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा
चतुर्थकम् ॥ २२॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्गलोके च
पूजिताः ।
रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवाः पन्नगा
गरुडं यथा ॥
शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य
वक्त्रविलोकनात् ॥ २३॥
एक काल,
दो काल या तीनों काल या चौथे काल में जो भक्ति से सदा इसका पाठ करते
हैं, वे स्वर्ग में भी पूजित होते हैं।
इति श्रीरुद्रयामले देवीशङ्करसंवादे भुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥
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