वैदिक गणेश स्तवन
गणेशजी रिद्धी-सिद्धी के दाता हैं।
गणेशजी के शरीर पर ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं। उनकी सूंड पर धर्म,
कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है। वैदिक
गणेश-स्तवन के पाठ से सभी विघ्न दूर होकर मनोरथ सिद्ध होता है।
वैदिक गणेश-स्तवन
* वैदिक गणेश-स्तवन *
गणानां त्वा गणपतिर्ठ० हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपतिर्ठ०
हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिर्ठ०
हवामहे वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥__[शु यजु० २३ । १९]
हे परमदेव गणेशजी! समस्त गणों के
अधिपति एवं प्रिय पदार्थों प्राणियों के पालक और समस्त सुखनिधियों के निधिपति!
आपका हम आवाहन करते हैं। आप सृष्टि को उत्पन्न करनेवाले हैं,
हिरण्यगर्भ को धारण करनेवाले अर्थात् संसार को अपने-आपमें धारण
करनेवाली प्रकृति के भी स्वामी हैं, आपको हम प्राप्त हों।
नि षु सीद गणपते गणेषु
त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् ।
न ऋते त्वत्क्रियते किं चनारे
महामर्कं मघवञ्चित्रमर्च ॥__ [ऋक्० १०।११२।९]
हे गणपते! आप स्तुति करनेवाले
हमलोगों के मध्य में भली प्रकार स्थित होइये। आपको क्रान्तदर्शी कवियों में अतिशय
बुद्धिमान्–सर्वज्ञ कहा जाता है। आपके बिना
कोई भी शुभाशुभ कार्य आरम्भ नहीं किया जाता। (इसलिये) हे भगवन् (मघवन्) !
ऋद्धि-सिद्धि के अधिष्ठाता देव! हमारी इस पूजनीय प्रार्थना को स्वीकार कीजिये।
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं
कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत
आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्॥-[ऋक्० २।२३।१]
हे अपने गणों में गणपति (देव),
क्रान्तदर्शियों (कवियों)-में श्रेष्ठ कवि शिवा-शिव के प्रिय
ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के दाता! हम आपका आवाहन
करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन
हों।
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो
वातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो
गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो
नमो
विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः॥
-[शुक्लयजु० १६।२५]
देवानुचर गण-विशेषों को,
विश्वनाथ महाकालेश्वर आदि की तरह पीठभेद से विभिन्न गणपतियों को,
संघों को, संघपतियों को, बुद्धिशालियों को, बुद्धिशालियों के परिपालन
करनेवाले उनके स्वामियों को, दिगम्बर-परमहंस-जटिलादि
चतुर्थाश्रमियों को तथा सकलात्मदर्शियों को नमस्कार है।
ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय
धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ - [कृ०
यजुर्वेदीय मैत्रायणी० २।९।१।६]
उन कराट (सूঁड को घुमानेवाले) भगवान् गणपति
को हम जानते हैं, गजवदन का हम ध्यान
करते हैं, वे दन्ती सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरित
करें।
नमो व्रातपतये नमो गणपतये नमः
प्रमथपतये
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय
विघ्ननाशिने
शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमः॥ -[कृ०
यजुर्वेदीय गणपत्यथर्वशीर्ष १० ]
व्रातपति को नमस्कार,
गणपति को नमस्कार, प्रमथपति को नमस्कार;
लम्बोदर, एकदन्त, विघ्ननाशक,
शिवतनय श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार है।
इति: वैदिक गणेश-स्तवन ॥
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