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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
जनमोहन तारा स्तोत्र
इस सर्वविघ्नहर एवं सर्वशान्तिकारक जनमोहन तारा स्तवराज स्तोत्र के पाठ करने से वह तत्क्षण ही देव, दानव, मानव एवं त्रैलोक्य को अपने वश में कर सकता है ।
जनमोहन तारा स्तवराज स्तोत्र
श्री पार्वत्युवाच -
वद नाथ ! जगत्-स्वामिन् ! प्रभो !
शङ्कर ! भो हर !।
मोहनं कवचं नाथ स्तोत्रं कवच मेव हि
॥१ ॥
सर्वविघ्नहरं देव! सर्वशान्ति-करं
तथा ।
देवानामपि दुर्जेयं वद नाथ !
जगत्-गुरो ! ॥२ ॥
श्री पार्वती ने कहा - हे नाथ ! हे
जगत् स्वामिन ! हे प्रभो ! हे शङ्कर ! | हे
हर ! आनन्ददायक कवच को बतावें । हे नाथ ! हे देव ! स्तोत्र एवं कवच सर्वविघ्नहर
एवं सर्वशान्तिकारक है। वह देवगणों के लिए भी दुर्जेय है। हे नाथ ! हे जगद्गुरो !
आप (इसे) बतावें ।
श्री शङ्कर उवाच -
नमस्ते जगदीशान-दयिते ! हरवल्लभे !
।
विश्वेश्वरि ! जगद्धात्रि! त्रैलोक्य-मोहनं
कुरु।
मन्त्रोद्धारं प्रवक्ष्यामि
सावधानात् सुरेश्वरि ! ॥३ ॥
श्री शङ्कर ने कहा - हे
जगदीश्वर-दयिते ! हे हर वल्लभे ! आपको नमस्कार ! हे विश्वेश्वरि ! हे जगद्धात्रि !
आप त्रैलोक्य को मुग्ध कर देती हैं। हे सुरेश्वरि ! मन्त्रोद्धार को बता रहा हूँ। सावधान
होकर श्रवण करें ।
इत्येवं मन्त्र-राजञ्च यो जपेत्
जगदम्बिके !।
त्रैलोक्य-मोहनं कृत्वा
सर्वसम्पल्लभेत् तु सः॥४ ॥
हे जगदम्बिके ! जो इस प्रकार इस
मन्त्रराज का जप करता है, वह त्रैलोक्य को
मोहित कर समस्त सम्पत्ति का लाभ करता है ।
वारुणं युगलं कान्तं भान्तं
बिन्दु-द्वितीयकम् ।
वाग्वादिन्यमुकं मे वै वशमानय वैफटी
॥५ ॥
दो वारुण ('व' एवं 'व'), कान्त (ख) एवं भान्त (ब) को बिन्दुयुक्त करें । उसके बाद “वाग्वादिनी अमुकं मे वै वशमानय वै फट्' योग करने पर
जो मन्त्र बनता है, वह मनुष्यों को वशीभूत कर देता है ।
मन्त्रञ्चायुतमेवञ्च सहस्रं वाऽयुतं
निशि।
तदैव देवी देवं वा नरं वा वशमानयेत्
॥६ ॥
संयत होकर रात्रिकाल में जो व्यक्ति
इस मन्त्र का पाठ हजार या दस हजार जप करता है, वह
तत्क्षण ही देव, देवी एवं मनुष्यों को अपने वश में कर सकता
है ।
इयं वशकरी विद्या सर्वतन्त्रेषु
गोपिता।
पूजयेद् भक्ति भावेन प्रणमेद्
राजमोहिनीम् ॥७ ॥
यह वशकरी विद्या समस्त तन्त्रों में
गुप्त रूप में है । राजमोहिनी देवी की, भक्ति
भाव से पूजा करें एवं उन्हें प्रणाम करें ।
स्मृत्वा च मनसा देवीं जपेन्मन्त्रं
कुजे दिने ।
शनैश्चर-दिने वापि रात्रौ स्तोत्रं
पठेद् यदि।
अचिरेणैव कालेन स भवेद्राज-वल्लभः ॥८
।।
मंगलवार को या शनिवार को मन ही मन
देवी(तारा) का स्मरण करके मन्त्र जप करें। यदि रात्रि में स्तोत्र का पाठ करते हैं
तो वह अति शीघ्र ही राजा का अधिपति बन जाते हैं ।
जनमोहन तारा स्तोत्र
घोरदंष्ट्रे ! करालास्ये !
मत्स्य-मांस-बलिप्रिये !।
नमस्ते विश्वजननि ! नमस्ते
विश्व-भाविनि ! ॥१ ॥
हे घोरदंष्ट्रे ! हे करालास्ये ! हे
मत्स्य-मांस-बलिप्रिये ! आपको नमस्कार । हे विश्वजननि ! हेविश्वभाविनि ! आपको
नमस्कार ।
नमस्ते जगदीशानदयिते ! भक्तवत्सले ।
नमस्ते परमानन्द-दायिनि राजमोहिनि
!॥२ ॥
हे जदीश्वर-दयिते ! हे भक्तवत्सले !
आपको नमस्कार । हे परमानन्ददायिनि ! हे राजमोहिनि ! आपको नमस्कार।
नमस्तेऽस्तु सदानन्दे ! नमस्ते
शङ्कर-प्रिये !।
नमस्ते मङ्गले ! तुभ्यं
सर्वमङ्गल-मङ्गले ! ॥३ ॥
हे सदानन्दे ! आपको नमस्कार । हे
शङ्करप्रिये ! आपको नमस्कार । हे मङ्गले ! आपको नमस्कार । हे सर्वमङ्गल-मङ्गले !
आपको नमस्कार ।
विश्वमातर्जगद्धात्रि ! नमस्ते
त्रिपुरेश्वरि ! ।
नमस्ते ब्रह्म-नमिते ! नमस्ते वरदे
! शिवे ! ॥४ ॥
हे विश्वमातः ! हे जगद्धात्रि ! हे
त्रिपुरेश्वरि ! आपको नमस्कार । हे ब्रह्मनमिते ! आपको नमस्कार । हे वरदे ! हे
शिवे ! आपको नमस्कार ।
मेघश्यामे ! जगद्धात्रि ! कराले !
विकटे! शिवे!।
हरभार्ये! हराराध्ये ! नमस्ते
हरिपूजिते ! ॥५ ॥
हे मेघश्यामे ! हे जगद्धात्रि ! हे कराले ! हे विकटे ! हे शिवे । हे हरभार्ये ! हे हराराध्ये ! हे हरिपूजिते ! आपको नमस्कार ।
हरीन्द्र-ब्रह्म-चन्द्रादि-पञ्चानन-सुपूजिते।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे! महाघोरे !
महोत्सवे ! ॥६ ॥
हे हरपूजिते ! हे इन्द्रपूजिते ! हे
ब्रह्मपूजिते ! हे चन्द्रादिपूजिते ! हे पञ्चाननपूजिते ! हे महारौद्री ! हे
महाघोरे ! हे महोत्सवे ! आपको नमस्कार ।
महानन्दे ! महाकालि !
महाकाल-प्रपूजिते ।
विश्वेश्वरि नमस्ते तु नमस्ते
भुवनेश्वरि !।।७ ॥
हे महानन्दे ! हे महाकालि ! हे
महाकाल-प्रपूजिते ! हे विश्वेश्वरि ! आपको नमस्कार । हे भुवनेश्वरि ! आपको नमस्कार
।
कामरूपे ! च कामाख्ये !
कामपुष्प-विभूषिते !।
सर्वकाम-प्रिये देवि!
काम-मन्दिर-नन्दिते ! ॥८ ॥
हे कामरूपे ! हे कामाख्ये ! हे
कामपुष्प-विभूषिते ! हे सर्वकामप्रदे ! हे देवि ! हे काममन्दिर-नन्दिते ! आपको
नमस्कार ।
सर्वकाम-स्वरूपे ! च
कामदेव-प्रपूजिते !।
कामेश्वरि! कलानाथ-वदने ! कामवल्लभे
! ॥९ ॥
हे सर्वकाम-स्वरूपे ! हे
कामदेव-प्रपूजिते ! हे कामेश्वरि ! हे कला-नाथवदने ! हे कामवल्लभे ! आपको नमस्कार
।
क्रिया-मार्गरते ! कामे ! निष्कामे
! कमलात्मिके ! ।
नमस्ते ! चण्डिके ! चण्डे !
चण्डमुण्ड-विनाशिनि ! ॥१० ॥
हे क्रियामार्गरते ! हे कामे ! हे
निष्कामे ! हे कमलात्मिके ! हे चण्डिके ! हे चण्डे ! हे चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि !
आपको नमस्कार ।
राजेश्वरि ! रमे राम-पूजिते !
राजवल्लभे!।
रामप्रिये ! रामरते !
बलराम-प्रपूजिते ! ॥११ ॥
हे राजेश्वरि ! हे रमे ! हे
राम-पूजिते ! हे राजवल्लभे ! हे राम-प्रिये ! हे रामरते ! हे बलराम-प्रपूजिते !
आपको नमस्कार ।
नमश्छिन्न-कपाले ! च बगले ! चण्डि !
पार्वति !।
नमस्ते सगुणे ! देवि ! निर्गुणे !
निर्गुणात्मिके ! ॥१२ ॥
हे छिन्नकपाले ! हे बगले ! हे चण्डि
! हे पार्वति ! हे सगुणे ! हे देवि ! हे निर्गुणे ! हे निर्गुणात्मिके ! आपको
नमस्कार ।
जगद्धात्रि ! जये ! देवि ! विजये !
हरवल्लभे!।
नमस्ते शङ्करानन्द-दायिके ! शङ्कर
प्रिये ! ॥१३ ॥
हे जगद्धात्रि ! हे जये ! हे देवि !
हे विजये ! हे हरवल्लभे ! हे शङ्करानन्ददायिके ! हे शङ्करप्रिये ! आपको नमस्कार ।
नमः कृष्णे ! पीतवर्णे!
शुक्लरक्त-स्वरूपिणि !।
महानीले ! नीलवर्णे! महानीलसरस्वति
! ॥१४ ॥
हे कृष्णे ! हे पीतवर्णे ! हे
शुक्ल-रक्त-स्वरूपिणि ! हे महानीले ! हे नीलवर्णे ! हे महानील-सरस्वति ! आपको
नमस्कार ।
वागीश्वरि ! नमस्तेऽस्तु पद्मे !
पद्मविलासिनि !।
इति ते कथितं देवि ! स्तोत्रञ्च
जनमोहनम् ॥१५ ॥
हे वागीश्वरि ! हे पद्मे ! हे
पद्म-विलासिनि ! आपको नमस्कार । हे देवि (इस प्रकार) यह जनमोहन स्तोत्र कहा गया ।
जनमोहन तारा स्तोत्र फलश्रुति
पठनात् स्तवराजस्य किं न सिद्ध्यति
भूतले।
मन्दे चन्द्रात्मजे जीवे निशाभागे
निशामुखे।
प्रपठेत् स्तवराजञ्च
सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥१६ ॥
इस भूतल पर,
इस स्तवराज के पाठ से क्या सिद्ध नहीं होता है अर्थात् समस्त ही
सिद्ध होता है । शनिवार, बुधवार या बृहस्पतिवार को रात्रि
में या रात्रि'मुख में (=प्रदोष में) इस स्वतराज का पाठ
करें। वैसा करने पर सिद्धि की अधिपति बन जाते हैं ।
ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः शूद्रो
वा वरवर्णिनि !।
स्तोत्र-प्रपठनाद् देवि ! जगद्वशमयो
भवेत् ।
वशीकरणमेतत्तु म स्तवराजं गा
मनोहरम् ॥१७ ॥
हे वरवर्णिनि ! हे देवि ! ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र – इस स्तोत्र के पाठ के द्वारा इस जगत् को उसके अपने वश में कर सकता है । यह
मनोहर स्तवराज (वस्तुतः) वशीकरण है ।
यं यं मन्त्रेण देवेशि!
परमाकर्षयत्यहो !।
स तत्र वशतां याति देवराजसमो यदि।
इत्येवं कथितं स्तोत्रमधुना कवचं
शृणु ॥१८ ॥
हे देवेशि ! जो जो मन्त्र के द्वारा
किसी को आकर्षित करता है, यदि वह देवराज के
समान भी हो, तो भी वह वश्य बन जाता है । इस प्रकार, यह स्तोत्र कहा गया । सम्प्रति कवच को सुनें ।
इति मुण्डमालातन्त्रे पार्वतीश्वर-संवादे षष्ठं पटलान्तर्गतं जनमोहन तारा स्तवराज स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥ ६॥
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