Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2023
(355)
-
▼
November
(25)
- सूर्य अष्टक
- गजानन स्तोत्र
- त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच
- गणेश स्तवन
- गणेश पंचरत्न स्तोत्र
- गणाधीश स्तोत्र
- एकदन्तशरणागति स्तोत्र
- कालिका पुराण अध्याय ६८
- कालिका पुराण अध्याय ६७
- अम्बा अष्टक
- शिव कामा सुंदरी अष्टक
- गुरु अष्टक
- विन्ध्येश्वरी स्तोत्र
- कालिका पुराण अध्याय ६६
- कालिका पुराण अध्याय ६५
- कालिका पुराण अध्याय ६४
- तारा कवच
- तारा उपनिषद
- ताराष्टक
- कालिका पुराण अध्याय ६३
- विश्वकर्मा सूक्त
- नीम
- निर्गुण्डी
- नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र
- गीतगोविन्द सर्ग ६ धृष्ट वैकुण्ठ
-
▼
November
(25)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
गजानन स्तोत्र
यह गजानन स्तोत्र
देवताओं द्वारा श्रीगणेश का अभिनन्दन में की गई स्तुति है ।
गजाननस्तोत्रं शंकरादिकृतम्
Gajanan
stotra
श्री गणेशाय
नमः ।
गजानन स्तोत्रम्
देवा ऊचुः ।
गजाननाय
पूर्णाय सांख्यरूपमयाय ते ।
विदेहेन च
सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥ १॥
'देवता बोले- गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करनेवाले,
पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं। आप निराकार-रूप से
सर्वत्र विद्यमान हैं; आपको बारंबार नमस्कार है ।
अमेयाय च
हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषकवाहनायैव
विश्वेशाय नमो नमः ॥ २॥
हेरम्ब ! आपको
किन्हीं प्रमाण द्वारा मापा नहीं जा सकता । आप परशु धारण करनेवाले हैं । आपका वाहन
मूषक है;
आप विश्वेश्वर को बारंबार नमस्कार है।
अनन्तविभवायैव
परेशां पररूपिणे ।
शिवपुत्राय
देवाय गुहाग्रजाय ते नमः ॥ ३॥
आपका वैभव
अनन्त है;
आप परात्पर हैं; भगवान् शिव के पुत्र तथा स्कन्द के बड़े भाई हैं;
देव ! आपको नमस्कार है।
पार्वतीनन्दनायैव
देवानां पालकाय ते ।
सर्वेषां
पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥ ४॥
जो पार्वती को
आनन्दित करनेवाले उनके लाड़ले लाल हैं, देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्रीविग्रह सबके लिये पूजनीय
है,
उन आप गणेश को बार-बार नमस्कार है।
स्वानन्दवासिने
तुभ्यं शिवस्य कुलदैवत ।
विष्ण्वादीनां
विशेषेण कुलदेवाय ते नमः ॥ ५॥
भगवान् शिव के
कुलदेवता आप अपने स्वरूपभूत स्वानन्द-धाम में निवास करनेवाले हैं। विष्णु आदि
देवताओं के तो आप विशेषरूप से कुलदेवता हैं; आपको नमस्कार है ।
योगाकाराय
सर्वेषां योगशान्तिप्रदाय च ।
ब्रह्मेशाय
नमस्तुभ्यं ब्रह्मभूतप्रदाय ते ॥ ६॥
आप योगस्वरूप
एवं सबको योगजनित शान्ति प्रदान करनेवाले हैं; ब्रह्मभाव की प्राप्ति करानेवाले आप ब्रह्मेश्वर को नमस्कार
है।
सिद्धि-बुद्धिपते
नाथ! सिद्धि-बुद्धिप्रदायिने ।
मायिने
मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः ॥ ७॥
नाथ ! आप
सिद्धि और बुद्धि के प्राणपति तथा सिद्धि और बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं;
आप माया के अधिपति तथा मायावियों को मोह में डालनेवाले हैं;
आपको बार-बार नमस्कार है ।
लम्बोदराय वै
तुभ्यं सर्वोदरगताय च ।
अमायिने च
मायाया आधाराय नमो नमः ॥ ८॥
आप लम्बोदर
हैं;
जठरानल रूप से सबके उदर में निवास करते हैं;
आप पर किसी की माया नहीं चलती;
आप ही माया के आधार हैं; आपको बारंबार नमस्कार है ।
गजः सर्वस्य
बीजं यत्तेन चिह्नेन विघ्नप!।
योगिनस्त्वां
प्रजानन्ति तदाकारा भवन्ति ते ॥ ९॥
विघ्नराज ! गज
सबका बीज है। उस बीजरूप चिह्न से ही योगीजन आपको पहचानते तथा आपका सारूप्य प्राप्त
कर लेते हैं। गजानन ! उस बीजस्वरूप गजचिह्न के कारण ही आप 'गजमुख' कहलाते हैं ।
तेन त्वं
गजवक्त्रश्च किं स्तुमस्तवां गजानन ।
वेदादयो
विकुण्ठाश्च शंकराद्याश्च देवपाः ॥ १०॥
हम आपकी क्या
स्तुति कर सकते हैं ? आपकी स्तुति करने में तो वेदादि शास्त्र तथा शंकर आदि
देवेश्वर भी कुण्ठित हो जाते हैं।
शुक्रादयश्च
शेषाद्याः स्तोतुं शक्ता भवन्ति नः ।
तथापि
संस्तुतोऽसि त्वं स्फूर्त्या त्वद्दर्शनात्मना ॥ ११॥
शुक्र आदि
विद्वान् और शेष आदि नाग भी आपके स्तवन में समर्थ नहीं हैं;
तथापि आपके दर्शनरूप स्फूर्ति से हमने आपका स्तवन कर लिया
है।
इति मौद्गलोक्तं गजाननस्तोत्रं समाप्तम् ॥
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: