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कर्मकाण्ड

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गणेश स्तवन

गणेश स्तवन

आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित इस श्रीगणेश का स्तवन जिसे गणेश अष्टक भी कहते हैं,का पाठ करने से पाठक को काव्य रचना करने की शक्ति प्राप्त हो जाता है। 

गणेश स्तवन

वाल्मीकिकृतं श्रीगणेशस्तवनम् अथवा गणेशाष्टकम्

Ganesh stavan

चतुःषष्टिकोट्याख्यविद्याप्रदं त्वां सुराचार्यविद्याप्रदानापदानम् ।

कठाभीष्टविद्यार्पकं दन्तयुग्मं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ १॥

गणेश्वर ! आप चौसठ कोटि विद्याओं के दाता तथा देवताओं के आचार्य बृहस्पति को भी विद्या प्रदान का कार्य पूर्ण करने-वाले हैं । कठ को अभीष्ट विद्या देनेवाले भी आप ही हैं । (अथवा आप कठोपनिषद्रूपा अभीष्ट विद्या के दाता हैं। ) आप द्विरद हैं, कवि हैं और कवियों की बुद्धि के स्वामी हैं; मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।

स्वनाथं प्रधानं महाविघ्ननाथं निजेच्छाविसृष्टाण्डवृन्देशनाथम् ।

प्रभु दक्षिणास्यस्य विद्याप्रदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ २॥

आप ही अपने स्वामी एवं प्रधान हैं। बड़े-बड़े विघ्नों के नाथ हैं । स्वेच्छा से रचित ब्रह्माण्ड समूह के स्वामी और रक्षक भी आप ही हैं। आप दक्षिणास्य के प्रभु एवं विद्यादाता हैं। आप कवि हैं एवं कवियों के लिये बुद्धिनाथ हैं; मैं आपको प्रणाम करता हूँ।

विभो व्यासशिष्यादिविद्याविशिष्टप्रियानेकविद्याप्रदातारमाद्यम् ।

महाशाक्तदीक्षागुरुं श्रेष्ठदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ३॥

विभो ! आप व्यास-शिष्य आदि विद्या विशिष्ट प्रियजनों को अनेक विद्या प्रदान करनेवाले और सबके आदि पुरुष हैं । महाशाक्त-मन्त्र की दीक्षा के गुरु एवं श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करनेवाले आप कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ ।

विधात्रे त्रयीमुख्यवेदांश्च योगं महाविष्णवे चागमाञ् शङ्कराय ।

दिशन्तं च सूर्याय विद्यारहस्यं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ४॥

जो विधाता (ब्रह्माजी) को 'वेदत्रयी के नाम से प्रसिद्ध मुख्य वेद का महाविष्णु को योग का, शंकर को आगमों का और सूर्यदेव को विद्या के रहस्य का उपदेश देते हैं, उन कवियों के बुद्धिनाथ एवं कवि गणेशजी को मैं नमस्कार करता हूँ ।

महाबुद्धिपुत्राय चैकं पुराणं दिशन्तं गजास्यस्य माहात्म्ययुक्तम् ।

निजज्ञानशक्त्या समेतं पुराणं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ५॥

महाबुद्धि-देवी के पुत्र के प्रति गजानन के माहात्म्य से युक्त तथा निज ज्ञानशक्ति से सम्पन्न एक पुराण का उपदेश देनेवाले गणेश को, जो कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ हैं, मैं प्रणाम करता हूँ ।

त्रयीशीर्षसारं रुचानेकमारं रमाबुद्धिदारं परं ब्रह्मपारम् ।

सुरस्तोमकायं गणौघाधिनाथं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ६॥

जो वेदान्त के सारतत्त्व, अपने तेज से अनेक असुरों का संहार करनेवाले, सिद्धि-लक्ष्मी एवं बुद्धि को दारा के रूप में अङ्गीकार करनेवाले और परात्पर ब्रह्मस्वरूप हैं; देवताओं का समुदाय जिनका शरीर है तथा जो गण- समुदाय के अधीश्वर हैं उन कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।

चिदानन्दरूपं मुनिध्येयरूपं गुणातीतमीशं सुरेशं गणेशम् ।

धरानन्दलोकादिवासप्रियं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ७॥

जो ज्ञानानन्दस्वरूप, मुनियों के ध्येय तथा गुणातीत हैं; धरा एवं स्वानन्दलोक आदि का निवास जिन्हें प्रिय है; उन ईश्वर, सुरेश्वर, कवि तथा कवियों के बुद्धिनाथ गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

अनेकप्रतारं सुरक्ताब्जहारं परं निर्गुणं विश्वसद्ब्रह्मरूपम् ।

महावाक्यसन्दोहतात्पर्यमूर्तिं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ८॥

जो अनेकानेक भक्तजनों को भव-सागर से पार करनेवाले हैं; लाल कमल के फूलों का हार धारण करते हैं; परम निर्गुण हैं; विश्वात्मक सद्ब्रह्म जिनका रूप है; 'तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के समूह का तात्पर्य जिनका श्रीविग्रह है, उन कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।

गणेशस्तवन अथवा गणेश अष्टक फलश्रुति

इदं ये तु कव्यष्टकं भक्तियुक्तात्रिसन्ध्यं पठन्ते गजास्यं स्मरन्तः ।

कवित्वं सुवाक्यार्थमत्यद्भुतं ते लभन्ते प्रसादाद् गणेशस्य मुक्तिम् ॥ ९॥

जो भक्ति-भाव से युक्त हो तीनों संध्याओं के समय गजानन का स्मरण करते हुए इस कव्यष्टक का पाठ करते हैं, वे गणेशजी के कृपा-प्रसाद से कवित्व, सुन्दर एवं अद्भुत वाक्यार्थ तथा मानव-जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं।

इति वाल्मीकिकृतं गणेशस्तवनं समाप्तम् ।

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