अग्निपुराण अध्याय २०७
अग्निपुराण अध्याय २०७ में कौमुद-व्रत
का वर्णन है।
अग्निपुराणम् सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 207
अग्निपुराण दो सौ सातवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः २०७
अग्निपुराणम् अध्यायः २०७ – कौमुदव्रतं
अथ सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः
अग्निरुवाच
कौमुदाख्यं मयोक्तञ्च चरेदाश्वयुजे
सिते ।
हरिं यजेत्मासमेकमेकादश्यामुपोषितः
॥०१॥
अग्निदेव कहते हैं—
वसिष्ठ! अब मैं 'कौमुद'- व्रत के विषय में कहता हूँ। इसे आश्विन के शुक्लपक्ष में आरम्भ करना
चाहिये। व्रत करनेवाला एकादशी को उपवास करके एक मास पर्यन्त भगवान् श्रीहरि का
पूजन करे ॥ १ ॥
व्रती निम्नलिखित मन्त्र से संकल्प करे—
आश्विने शुक्लपक्षेहमेकाहारी हरिं
जपन् ।
मासमेकं भुक्तिमुक्त्यै करिष्ये
कौमुदं व्रतं ॥०२॥
मैं आश्विन शुक्ल पक्ष में एक समय
भोजन करके भगवान् श्रीहरि के मन्त्र का जप करता हुआ भोग और मोक्ष की प्राप्ति के
लिये एक मासपर्यन्त कौमुद-व्रत का अनुष्ठान करूँगा ॥ २ ॥
उपोष्य विष्णुं द्वादश्यां
यजेद्देवं विलिप्य च ।
चन्दनागुरुकाश्मीरैः
कमलोत्पलपुष्पकैः ॥०३॥
कल्हारैर्वाथ मालत्या दीपं तैलेन
वाग्यतः ।
अहोरात्रं च नैवेद्यं
पायसापूपमोदकैः ॥०४॥
ओं नमो वासुदेवाय विज्ञाप्याथ
क्षमापयेत् ।
भोजनादि द्विजे दद्याद्यावद्देवः
प्रबुद्ध्यते ॥०५॥
तावन्मासोपवासः स्यादधिकं फलमप्यतः
॥०६॥
तदनन्तर व्रत के समाप्त होने पर
एकादशी को उपवास करे और द्वादशी को भगवान् श्रीविष्णु का पूजन करे। उनके
श्रीविग्रह में चन्दन, अगर और केसर का
अनुलेपन करके कमल, उत्पल, कहार एवं
मालती पुष्पों से विष्णु की पूजा करे। व्रत करनेवाला वाणी को संयम में रखकर
तैलपूर्ण दीपक प्रज्वलित करे और दोनों समय खीर, मालपूए तथा
लड्डुओं का नैवेद्य समर्पित करे। व्रती पुरुष 'ॐ नमो
भगवते वासुदेवाय' - इस द्वादशाक्षर मन्त्र का निरन्तर जप
करे। अन्त में ब्राह्मण भोजन कराके क्षमाप्रार्थनापूर्वक व्रत का विसर्जन करे। 'देवजागरणी' या 'हरिप्रबोधिनी'
एकादशी तक एक मासपर्यन्त उपवास करने से 'कौमुद-व्रत'
पूर्ण होता है। इतने ही दिनों का पूर्वोक्त मासोपवास भी होता है।
किंतु इस कौमुद-व्रत से उसकी अपेक्षा अधिक फल भी प्राप्त होता है ॥ ३-६ ॥
इत्याग्नेये महापुराणे कौमुदव्रतं
नाम सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'कौमुद-व्रत का वर्णन' नामक दो सौ सातवाँ अध्याय पूरा
हुआ ॥२०७॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 208
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