अग्निपुराण अध्याय २१३

अग्निपुराण अध्याय २१३                        

अग्निपुराण अध्याय २१३ में पृथ्वीदान तथा गोदान की महिमा का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय २१३

अग्निपुराणम् त्रयोदशाधिकद्विशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 213                   

अग्निपुराण दो सौ तेरहवाँ अध्याय

अग्निपुराणम्/अध्यायः २१३                        

अग्निपुराणम् अध्यायः २१३ – पृथ्वीदानानि

अथ त्रयोदशाधिकद्विशततमोऽध्यायः

अग्निरुवाच

पृथ्वीदानं प्रवक्ष्यामि पृथिवी त्रिविधा मता ।

शतकोटिर्योजनानां सप्तद्वीपा ससागरा ॥०१॥

जम्बुद्वीपावधिः सा च उत्तमा मेदिनीरिता ।

उत्तमां पञ्चभिर्भारैः काञ्चनैश्च प्रकल्पयेत् ॥०२॥

तदर्धान्तरजं कूर्मं तथा पद्मं समादिशेत् ।

उत्तमा कथिता पृथ्वी द्व्यंशेनैव तु मध्यमा ॥०३॥

कन्यसा च त्रिभागेन त्रिहान्या कूर्मपङ्कजे ।

अग्निदेव कहते हैं - वसिष्ठ ! अब मैं 'पृथ्वीदान' के विषय में कहता हूँ। 'पृथ्वी' तीन प्रकार की मानी गयी है। सौ करोड़ योजन विस्तारवाली सप्तद्वीपवती समुद्रों सहित जम्बूद्वीप पर्यन्त पृथ्वी उत्तम मानी गयी है। उत्तम पृथ्वी की पाँच भार सुवर्ण से रचना करे। उसके आधे में कूर्म एवं कमल बनवाये। यह 'उत्तम पृथ्वी' बतलायी गयी है। इसके आधे में 'मध्यम पृथ्वी' मानी जाती है। इसके तीसरे भाग में निर्मित पृथ्वी 'कनिष्ठ' मानी गयी है। इसके साथ पृथ्वी के तीसरे भाग में कूर्म और कमल का निर्माण करना चाहिये ॥ १-३अ ॥

पलानान्तु सहस्रेण कल्पयेत्कल्पपादपं ॥०४॥

मूलदण्डं सपत्रञ्च फलपुष्पसमन्वितं ।

पञ्चस्कन्धन्तु सङ्कल्प्य पञ्चानान्दापयेत्सुधीः ॥०५॥

एतद्दाता ब्रह्मलोके पितृभिर्मोदते चिरं ।

विष्ण्वग्रे कामधेनुन्तु पलानां पञ्चभिः शतैः ॥०६॥

ब्रह्मविष्णुमहेशाद्या देवा धेनौ व्यवस्थिताः ।

धेनुदानं सर्वदानं सर्वद ब्रह्मलोकदं ॥०७॥

विष्ण्वग्रे कपिलां दत्त्वा तारयेत्सकलं कुलं ।

अलङ्कृत्य स्त्रियं दद्यादश्वमेधफलं लभेत् ॥०८॥

भूमिं दत्त्वा सर्वभाक्स्यात्सर्वशस्य प्ररोहिणीम् ।

ग्रामं वाथ पुरं वापि खेटकञ्च दद्त्सुखी ॥०९॥

कार्त्तिक्यादौ वृषोत्सर्गं कुर्वंस्तारयते कुलं ॥१०॥

एक हजार पल सुवर्ण से मूल, दण्ड, पत्ते, फल, पुष्प और पाँच स्कन्धों से युक्त कल्पवृक्ष की कल्पना करे। विद्वान् ब्राह्मण यजमान के द्वारा संकल्प कराके पाँच ब्राह्मणों को इसका दान करावे। इसका दान करनेवाला ब्रह्मलोक में पितृगणों के साथ चिरकाल तक आनन्द का उपभोग करता है। पाँच सौ पल सुवर्ण से कामधेनु का निर्माण कराके विष्णु के सम्मुख दान करे। ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव आदि समस्त देवता गौ में प्रतिष्ठित हैं। धेनुदान करने से अपने-आप समस्त दान हो जाते हैं। यह सम्पूर्ण अभीष्ट कामनाओं को सिद्ध करनेवाला एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति करानेवाला है। श्रीविष्णु के सम्मुख कपिला गौ का दान करनेवाला अपने सम्पूर्ण कुल का उद्धार कर देता है। कन्या को अलंकृत करके दान करने से अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। जिसमें सभी प्रकार के सस्य (अनाजों के पौधे) उपज सकें, ऐसी भूमि का दान देकर मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है। ग्राम, नगर अथवा खेटक (छोटे गाँव) का दान देनेवाला सुखी होता है। कार्तिक की पूर्णिमा आदि में वृषोत्सर्ग करनेवाला अपने कुल का उद्धार कर देता है ॥४-१०॥

इत्याग्नेये महापुराणे पृथ्वीदानानि नाम त्रयोदशाधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'पृथ्वीदान का वर्णन' नामक दो सौ तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २१३ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 214 

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