नवग्रह पूजन विधि

नवग्रह पूजन विधि

जब किसी भी जातक का जन्म होता है उस समय आकाशमंडल में ग्रह-नक्षत्रों का विशेष स्थिति(दशा) उदित, अस्त,मार्गी,वक्री आदि अवस्था रहता है। इन ग्रहों- नक्षत्रों का उस जातक पर प्रभाव अवश्य होता है। इनमें से कुछ जातक के लिए शुभकारी व कुछ अशुभकारी होता है। इनमें से नक्षत्रों के विषय में हमने पूर्व में चर्चा कर चुके हैं और मूल नक्षत्र की जानकारी तथा मूल नक्षत्र की शांति के लिए भी गंड-मूल दोष शांति भी पढ़ चुके है। अब यहाँ हम ग्रहों के विषय में जानेंगे कि जातक के जन्म के समय मौजुद् विशेषकर नवग्रह का असर जातक के पहली श्वांस से अंतिम श्वांस तक रहता है। नवग्रह की स्थिति को हम उस जातक के कुंडली से बड़ी आसानी से समझ सकते हैं कि कौन सा ग्रह जातक के लिए शुभ है और कौन सा ग्रह अशुभ। लग्न कुंडली की यह स्थिति जातक की कुंडली में जीवन पर्यंत बना रहता है और दैनिक गोचर ग्रह में यह बदलती रही है। जिसके कारण से जातक को जीवन के अलग-अलग समय में सुख-दुःख,लाभ-हानि होते रहता है। जो ग्रह शुभ कारक है उस ग्रह का पूजा, पाठ, जप, यज्ञ, हवन, अनुष्ठान या दान आदि कर उसकी शुभता को और अधिक बढ़ा सकते हैं। तो अशुभ ग्रह को शांत भी कर सकते हैं । अतः यहाँ इन मूलभूत आवश्यकताओं को समझते हुए पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् श्री नवग्रह पूजन विधि दिया जा रहा है। आशा है की इससे कर्मकांडीयों को पूजन करवाने में अति आसानी होगी तो दूसरी और सामान्य पाठकों को लाभ- पं॰डी॰पी॰दुबे

टीप- योगकारक ग्रहों का शांति व दान नहीं किया जाता, अपितु उनका पूजन व पूजन की सम्पूर्णता के लिए उस ग्रह से सम्बंधित दान दिया जाता है, और मारक ग्रहों का शांति व दान किया जाता है। उनका पूजन व रत्न धारण नहीं किया जाता है। कुंडली में इष्ट देखकर ही रत्न धारण किया जाता है। इसके लिए अपने ज्योतिष आचार्य  का सलाह ग्रहण करें।

नवग्रह पूजन विधि

नवग्रह पूजन विधि

   श्री गणेशाय नम: ॥

॥ श्री नवग्रह पूजन विधि ॥

पूजन प्रारम्भ

सर्वप्रथम यजमान या यजमान दंपत्ति को पूर्वा या उत्तराभिमुख बैठाकर सामने चौक बनाकर उसके ऊपर पीढ़ा(पाटा)या पत्तल  रखवाकर उस पर गौरी-गणेश, कलश स्थापित करे । गौरी-गणेश गोबर या हल्दी,सुपाड़ी से बनावें। पुनः अष्टदल कमल  बनाकर काँसे की लोटा में जल भरकर उसमें पञ्चपल्लव (पाँचपत्ता) रखें ,उस पर नाँदी(किसी पात्र) मे अन्न भरकर ऊपर दीप जला दें या नारियल रखें । अब पूजन प्रारम्भ करें ।

सबसे पहले  यजमान अपने ऊपर और सभी सामाग्री पर पवित्र जल छिढ़के आचार्य मंत्र पढ़े - 

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥                 

ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।

फिर आचार्य यजमान को तिलक व रक्षासूत्र निम्न मंत्र से करे -

तिलक -  ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः।

तिलकं ते प्रयच्छन्तु  कामधर्मार्थ सिद्धये॥                                                                                   

रक्षासूत्र-  ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। 

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

अब यजमान को अक्षत पुष्प देकर मंत्रो द्वारा सभी देवो का ध्यान करावे -                      

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः ।

अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो  विश्वे  नो देवा अवसागमन्निह ॥

भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ँ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।

पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः ।

विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । उमामहेश्वराभ्यां नमः।

वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः । शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः ।

इष्टदेवताभ्यो नमः ।  कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः ।

स्थानदेवताभ्यो नमः ।  सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो  ब्राह्मणेभ्यो नमः ।

ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।

सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।

लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजाननः ।

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥                                        

विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥                                   

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशांतये ॥                                     

अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः ।

सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥

सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममंगलम् ।

येषां ह्रदिस्थो भगवान् मंगलायतनं हरिः ॥

लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।

येषामिंदीवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दनः ।

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥                            

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।

तेषां नित्याभियुक्ताना योगक्षेमं वहाम्यहम् ।

स्मृतेः सकलकल्याणं भाजनं यत्र जायते ।

पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ॥                                       

सर्वेष्वारम्भकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः ।

देवा दिशंतु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ॥                                            

विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् ।

वन्देकाशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ॥

ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।                                                                                                            

इस प्रकार कह कर सामने वेदी (पाटा) पर चढ़ा दे-

नवग्रह पूजन विधि

॥ सङ्कल्पः ॥

पुन: यजमान अक्षत -जल लेकर मंत्र से पूजन का संकल्प ले-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे  श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जंबुद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे.... नगरे/ग्रामे .....मासे....शुक्ल/कृष्णपक्षे... तिथौ....वासरे....प्रातः/ सायंकाले .....गोत्र....नाम अहं ममोपात्तदुरितक्षयद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं ममसम्पूर्ण मनोकामना सिध्यर्थ आदित्यादि नवग्रह देवता प्रसाद सिद्ध्यर्तं आदित्यादि नवग्रह पूजनं/ नवग्रह शांति पूजनं करिष्ये ।

संकल्प का अक्षत -जल वेदी या जमीन पर छोड़े ।

नवग्रह पूजन विधि अब सबसे पहले यजमान अक्षत-पुष्प लेकर निम्न मंत्र द्वारा गौरी-गणेश (गणेशजी की दाहिनी ओर गौरीजी का) ध्यान व आवाहन करे-                                                                                                                                    

भगवान गणेश का ध्यान- 

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्भूफलचारुभक्षणम् ।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥                                                                                

भगवती गौरी का ध्यान                                                       

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥

श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।

भगवान गणेश का आवाहन-                                                                  

ॐ एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष ।                                                             

माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि ।

भगवती गौरी का आवाहन- 

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।

ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥

हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शङ्करप्रियाम् ।

लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गौर्यै नमः, गौरिमावाहयामि, स्थापयामि ।                                                                         

हाथ का अक्षत-पुष्प गौरी-गणेश पर चढ़ा दे ।                                                                                               

अब यजमान अक्षत-पुष्प लेकर निम्न मंत्र द्वारा कलश में वरुण आदि देवताओं का ध्यान व आवाहन करें-                                                                                                               

कलश में देवी-देवताओं का ध्यान व आवाहन -                                                                                                   

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुदः समाश्रितः । मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥

कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा । ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥

अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः । अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ॥

आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः ।

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥

सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः । आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण आदि आवाहित  देवताभ्यो नमः, ध्यानं आवाहनं, स्थापनं समर्पयामि ।

अक्षत-पुष्प कलश में चढ़ा दें ।                                                                                                              

यदि तोरण रखा हो तो  तोरण का पूजन अक्षत-पुष्प से इसी प्रकार करे

ॐ तोरण मातृकाभ्यो नमः,  आवाहयामि, स्थापयामि।                                                                                 

हाथ में अक्षत -पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से वेदी मण्डल के सभी देवताओं का  प्रतिष्ठा करे-  

प्रतिष्ठा-  ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।

विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ ॥

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च । 

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥               

ॐ सर्व आवाहितदेवेभ्यो ! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् ॥

यह कहकर अक्षत-पुष्प वेदी के पास समर्पित करे ।                                                                                         

नवग्रह पूजन विधि अब यजमान से वेदी स्थित (गौरी-गणेश सहित) सभी देवों का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करावे-               

ध्यान - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि । (पुष्प समर्पित करे।) 

आसन - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत रखे ।)

पाद्य - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि । (जल चढ़ाये।)

अर्घ्य - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि । (जल चढ़ाये ।)

पञ्चामृतस्नान - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।(पञ्चामृत से स्नान कराये।)

शुद्धोदक स्नान - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।(शुद्ध जल से स्नान कराये)

वस्त्र - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, वस्त्रं समर्पयामि । (वस्त्र या मौलीधागा चढ़ाये।)

यज्ञोपवीत - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि । (यज्ञोपवीत चढ़ाये।)

अक्षत - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत(पीला चाँवल) समर्पित करे।)

पुष्प - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, पुष्पं (पुष्पमालाम्) समर्पयामि । (पुष्प और पुष्पमाला चढ़ाये।)

गुलाल,बंदन,कुमकुम - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि । (नानापरिमल द्रव्य समर्पित करे।)                                                                                                             

धूप - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, धूपमाघ्रापयामि । (धूप /हुम(दशांग)दे ।)            

अगरबत्ती - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, दीपं दर्शयामि । (दीप दिखाये।)

नैवेद्य - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, सर्वविधं नैवेद्यं निवेदयामि । (नैवेद्य (प्रसाद) चढ़ाये।)

आचमन  - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन करे  ।)

नारियल या ऋतुफल - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, नारिकेलं समर्पयामि ।( नारियल चढ़ाये।)

ताम्बूल - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, ताम्बूलं समर्पयामि । (सुपारी, इलायची, लौंगसहित पान चढ़ाये।)

दक्षिणा - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि । (द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये ।)

आरती - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि । (आरती करे ।)                       

पुष्पाञ्जलि - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । (पुष्पाञ्जलि समर्पित करे ।)                               

श्री नवग्रह पूजन विधि

श्री नवग्रह पूजन विधि
नवग्रह के लिए  चित्रानुसार सूर्य(लाल), चंद्र (श्वेत), मंगल( लाल), बुध(हरा), बृहस्पति(पीला), शुक्र( श्वेत) शनि(काला या नीला),राहू(काला)व केतु(धूमिल) रंग चाँवल की कुड़ी रख उसके ऊपर हल्दी,सुपाड़ी रखें ।

नवग्रह-पूजन विधि के लिए पहले ग्रहों का आह्वान करके उनकी स्थापना की जाती है। बाएँ हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएँ हाथ से अक्षत अर्पित करते हुए ग्रहों का आह्वान करे ।

आवाहन-

सूर्य : सबसे पहले सूर्य का आह्वान किया जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। रोली से रंगे हुए लाल अक्षत और लाल रंग के पुष्प लेकर निम्न मंत्र से सूर्य का आह्वान करें -

ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।

हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्‌ ॥

जपा कुसमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्‌ ।

तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः कलिंगदेशोद्भव कश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य !

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ सूर्याय नमः, श्री सूर्यमावाहयामि स्थापयामि च ।

चंद्र : श्वेत अक्षत और श्वेत पुष्प बाएँ हाथ में लेकर दाएँ हाथ से अक्षत और पुष्प छोड़ते हुए निम्न मंत्र से चंद्र का आह्वान करें-

ॐ इमं देवा असनप्न(गुँ) सुवध्वं महते क्षत्राय

महते ज्येष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येंद्रियाय ।

इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी

राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना(गुँ); राजा ॥

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्‌ ।

ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्धव आत्रेय गोत्र शुक्लवर्ण भो सोम!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ सोमाय नमः, सोममावाहयामि, स्थापयामि च ।

मंगल : लाल पुष्प और लाल अक्षत दाएँ हाथ में लेकर बाएँ हाथ से छोड़ते हुए निम्न मंत्र से मंगल देवता का आह्वान करें-

ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः कुकुत्पतिः पृथिव्या अयम्‌।

अपा(गुँ)श्रेता(गुँ)सि जिन्वति ॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्तेजस्समप्रभम्‌ ।

कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ भौमाय नमः, भौममावाहयामि स्थापयामि च ।

बुध : पीले व हरे रंग के अक्षत और पुष्प अर्पित करते हुए निम्न मंत्र से बुध देवता का आह्वान करें-

ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स(गुँ)जेथामयं च ।

अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्‌ विश्वे देवा जयमानश्च सीदत ॥

प्रियंगकलिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम ।

सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ बुधाय नमः, बुधमावाहयामि, स्थापयामि च ।

बृहस्पति : अष्टदल से अंकित बृहस्पति का आह्वान पीले रंग से रंगे अक्षत और पुष्प अर्पित कर करें-

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।

यद्दीदयच्छवसः ऋतप्रजात्‌ तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्‌ ॥

उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनि बृहस्पतये त्व ।

देवानां च मनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्‌ ।

वंदनीयं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यंहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुशोद्धव आडिगंरसगोत्र पीतवर्ण भी गुरो!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि च ।

शुक्र : शुक्र भगवान का आह्वान करने के लिए श्वेत फूल और अक्षत देवता को अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :

ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।

ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान(गुँ) शुक्रमन्धस इंद्रस्येद्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥

हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्‌ ।

सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवमावाहयाम्यमहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः भोजकटदेशोद्धव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शुक्राय नमः, शुक्रमावाहयामि स्थापयामि च ।

शनि : सूर्य पुत्र शनि का आह्वान करने के लिए काले या नीले रंग से रंगे अक्षत और काले या नीले रंग फूल समर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।

शंयोरपि स्रवन्तु नः ।

नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌ ।

छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्धव कश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि च ।

राहु : नवग्रह में काले मगर की आकृति के रूप में राहु की पूजा की जाती है। काले रंगे अक्षत और फूलों को बाएँ हाथ में लेकर दाएँ हाथ से अर्पित करते हुए निम्न मंत्र बोलते हुए राहु का आह्वान करें -

ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावधः सखा ।

कया शचिष्ठया वृता ॥

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्यविमर्दनम्‌ ।

सिंहिकागर्भसम्भूतं राहुमावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्धव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ राहवे नमः, राहुमावाहयामि स्थापयामि च ।

केतु : केतु का आह्वान करने के लिए धूमिल अक्षत और फूल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें -

ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे ।

समुषद्धिरजायथाः ॥

पलाशधूम्रसगांश तारकाग्रहमस्तकम्‌ ।

रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतु मावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अंतवेदिसमुद्धव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भी केतो!

इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ केतवे नमः, केतुमावाहयामि स्थापयामि च ।

नवग्रह पूजन विधि

प्रतिष्ठा नवग्रह : नवग्रहों के आह्वान और स्थापना के बाद हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करते हुए नवग्रह मंडल में प्रतिष्ठा के लिए अर्पित करें।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या अमुकदेवप्रतिमायाः प्राणा इह प्राणाः ।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या अमुकदेवप्रतिमायाः जीव इह स्थितः ।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या अमुकदेवप्रतिमायाः सर्वेन्द्रियाणि

वाङ्मन्स्त्वक्चक्षुः श्रोत्राजिह्वाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ।

पुनः यजमान हाथ में फूल को लेकर निम्न मंत्र द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठापित करे-         

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।

विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ ॥ 

एष वै प्रतिष्ठानाम यज्ञो यत्रौतेन यज्ञेन यजन्ते सर्व मे प्रतिष्ठितम्भवति ।।

इस प्रकार फूल समर्पित करें ।

निम्न मंत्र से नवग्रहों का आह्वान करके उनकी पूजा करें :

अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।

इस प्रकार नवग्रहों को शुभ कार्य की सफलता हेतु आव्हान एवं प्रतिष्ठा करने के पश्चात्‌ पूजन प्रारंभ करे-                 नवग्रह पूजन विधि इस प्रकार प्राणप्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करे। हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर नवग्रहों के प्रत्येक ग्रह पर ध्यानपूर्वक चढ़ाते जाएँ ।                 

ध्यान -  अथ सूर्यस्य ध्यानं -

प्रत्यक्षदेवं विशदं सहस्रमरीचिभिः शोभितभूमिदेशम् ।

सप्ताश्वगं सद्ध्वजहस्तमाद्यं देवं भजेऽहं मिहिरं हृदब्जे ॥

अथ चन्द्रस्य ध्यानं

शङ्खप्रभमेणप्रियं शशाङ्कमीशानमौलिस्थितमीड्यवृत्तम् ।

तमीपतिं नीरजयुग्महस्तं ध्याये हृदब्जे शशिनं ग्रहेशम् ॥

अथ भौमस्य ध्यानं -

प्रतप्तगाङ्गेयनिभं ग्रहेशं सिंहासनस्थं कमलासिहस्तम् ।

सुरासुरैः पूजितपादपद्मं भौमं दयालुं हृदये स्मरामि ॥

अथ बुधस्य ध्यानं -

सोमात्मजं हंसगतं द्विबाहुं शङ्खेन्दुरूपं ह्यसिपाशहस्तम् ।

दयानिधिं भूषणभूषिताङ्गं बुधं स्मरे मानसपङ्कजेऽहम् ॥

अथ गुरुस्य ध्यानं -

तेजोमयं शक्तित्रिशूलहस्तं सुरेन्द्रज्येष्ठैः स्तुतपादपद्मम् ।

मेधानिधिं हस्तिगतं द्विबाहुं गुरुं स्मरे मानसपङ्कजेऽहम् ॥

अथ शुक्रस्य ध्यानं -

सन्तप्तकाञ्चननिभं द्विभुजं दयालुं

पीताम्बरं धृतसरोरुहद्वन्द्वशूलम् ।

क्रौञ्चासनं ह्यसुरसेवितपादपद्मं

शुक्रं स्मरे द्विनयनं हृदि पङ्कजेऽहम् ॥

अथ शनिस्य ध्यानं -

नीलाञ्जनाभं मिहिरेष्टपुत्रं ग्रहेश्वरं पाशभुजङ्गपाणिम् ।

सुरासुराणां भयदं द्विबाहुं शनिं स्मरे मानसपङ्कजेऽहम् ॥

अथ राहुस्य ध्यानं -

शीतांशुमित्रान्तकमीड्यरूपं घोरं च वैडुर्यनिभं विबाहुम् ।

त्रैलोक्यरक्षाप्रदंमिष्टदं च राहुं ग्रहेन्द्रं हृदये स्मरामि ॥

अथ केतुश्च ध्यानं -

लाङ्गुलयुक्तं भयदं जनानां कृष्णाम्बुभृत्सन्निभमेकवीरम् ।

कृष्णाम्बरं शक्तित्रिशूलहस्तं केतुं भजे मानसपङ्कजेऽहम् ॥

नवग्रह पूजन विधि अब पुनः यजमान हाथ मे पुष्प लेकर नवग्रहों को बैठने के लिए आसन दें । 

आसन- ॐ पुरुष ऽएवेदर्ठ० सर्व्वं यद् भूतं वच्च भाव्यम् ।

उतामृतत्त्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥

रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वसौख्यकरं शुभय ।

आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नम: आसनं समर्पयामि ।( पुष्प चढ़ायें )

अब हाथ में जल लेकर नवग्रहो का पैर धुलावें -  

पाद्य - ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुष: ।

पादोऽस्य व्विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥

उष्णोदकं निर्मलं च सर्वसौगन्ध्यसंयुतम् ।

पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नम: पादयो: पाद्यं जलं समर्पयामि । (जल चढ़ाये )

आचमन - ॐ सर्वतीर्थाहृतं तोयं सुवासितं सुवस्तुभिः ।

आचमनं च तेनैव कुरूष्व नवग्रहादेवाः ॥

पाद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े )

अब हाथ में अष्टगंध युक्त जल लेकर नवग्रहो को अर्घ्य देवें -   

अर्घ्य ॐ त्रिपादूर्ध्व ऽउदैत्पुरुष: पादोऽस्येहा भवत्पुन: ।

ततो व्विष्वङ व्यक्क्रा मत्साशनानशने ऽअभि ॥

अध्य गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतै: सह ।

करुणाकर  मे देव गृहाणार्ध्यं नमोऽस्तु ते ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नम: हस्तयोरर्घ समर्पयामि । (जल चढ़ाये )                      

जल से नवग्रहो को स्नान करावे  -  

स्नानीय जल - ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्व्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम् ।

पशूँस्ताँश्चक्क्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च वे ॥

गङ्गासरस्वतीरेवापयोष्णी नर्मदाजलै: ।

स्नांपितोऽसि मया देव तथा शान्तिं कुरुष्व मे ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नम: स्नानार्थं जलं समर्पयामि । (स्नान हेतु जल चढ़ाये)

आचमन - स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।(आचमनीय जल चढ़ाये )   

नवग्रह पूजन विधि अब नवग्रहो को दूध,दही,घी,शहद,शक्कर और फिर पञ्चामृत से क्रमशः स्नान कराये तथा हर स्नान के बाद जल से  स्नान कराते जावे ।

दूध- ॐ पयः पृथ्वियां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥

कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परमं ।

पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, दुग्ध स्नानं समर्पयामि ।( दूध से स्नान करावें )

दुग्ध स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े) 

दही-  ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।

सुरभि नो मुखाकरत्प्राण आयू ँ षि तारिषत् ॥

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।

दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, दधि स्नानं समर्पयामि।(दही  से स्नान करावें) 

दधि स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े )

घी- ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम ।

अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, घृत स्नानं समर्पयामि ।(घी से स्नान करावें )

घृत स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े )                                                      

शहद- ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।

माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥                                                        

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ँ रजः ।

मधु द्यौरस्तु नः पिता ।

पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,मधु स्नानं समर्पयामि ।(शहद से स्नान करावें )

मधु स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े )                                                      

शक्कर-  ॐ अपा ँ रसमुद्वयस ँ  सूर्यै सन्त ँ समाहितम् ।

अपा ँ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय

त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् ।

मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, शर्करा स्नानं समर्पयामि ।(शक्कर से स्नान करावें )

शर्करा स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े) 

पञ्चामृतस्नान - ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।

सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेभवत्सरित् ॥

पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु ।

शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।(पञ्चामृत से स्नान कराये )

पञ्चामृत स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए  जल छोड़े) 

शुद्धोदक स्नान - ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः ।

श्येतः श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा

यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः ॥

गङ्गा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।

नर्मदा सिन्धु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।(शुद्ध जल से स्नान कराये )

आचमन - शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिये जल चढ़ाये)

वस्त्र - ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः ।

तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो३मनसा देवयन्तः ।

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् ।

देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,वस्त्रं समर्पयामि ।(वस्त्र के लिए ध्वजा चढ़ाये)

आचमन - वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिये जल चढ़ाये )

यज्ञोपवीत - ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् ।

यज्ञोपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ 

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि । (यज्ञोपवीत चढ़ाये )

आचमन - यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिये जल चढ़ाये)

अक्षत - ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत ।

अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी ॥

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुम्युक्ताः सुशोभिताः ।

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥                                            

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत समर्पित करे) 

पुष्प (पुष्पमाला) - ॐ औषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः ।

अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्णवः ॥

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

मयाह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

पुष्पं (पुष्पमालाम्) समर्पयामि । (पुष्प और पुष्पमाला चढ़ाये )  

दूब- ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि ।

एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च ॥

दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् ।

आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः

दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि। (दूर्वाङ्कुर चढाये ।)                 

नानापरिमल द्रव्य - ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।

हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परिपातु विश्वतः ॥

अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् ।

नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि।(विविध परिमल द्रव्य (गुलाल,बंदन,कुमकुम,हल्दी)समर्पितकरे)

सुगन्धित द्रव्य - ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।

हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परिपातु विश्वतः ॥

दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमलाद्भुतम् ।

गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परिगह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, 

सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि ।   (सुगन्धित द्रव्य (इत्र आदि) चढ़ाये)

धूप - ॐ धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वामः ।

देवानामसि वह्नितम ँ सस्नितमं पप्रितं जुष्टतमं देवहूतमम् ॥

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः ।

आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ।

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, धूपमाघ्रापयामि । (धूप आघ्रापित कराये )

दीप - ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा ।

अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ॥

ज्योति सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥                            

साज्यं चं वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥                                   

भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।

त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, दीपं दर्शयामि । (दीप दिखाये)

हस्तप्रक्षालन - दीप दिखाकर हाथ धो ले ।             

नैवेद्य - ॐनाभ्या आसीदन्तरिक्ष ँ शीर्ष्णो द्यौःसमवर्तत ।

पद्भयां भूमिर्दिशःश्रोत्रात्तथो लोकाँ२अकल्पयन् ॥

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।

आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

सर्वविधं नैवेद्यं निवेदयामि ।(भोग,प्रसाद,मिठाई आदि खाद्य पदार्थ चढ़ाये)

आचमन- आचमनीयं जलं,मध्ये पानीयं जलम,उत्तरापोऽशने,

मुखप्रक्षालनार्थे,हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि ।

(आचमनीयं एवं पानीय तथा मुख और हस्त प्रक्षालन के लिए जल चढ़ाये)                                                         

ऋतुफल- ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी ।

बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ँहसः ॥

इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव ।

तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

ऋतुफलानि समर्पयामि । (ऋतुफल या नारियल अर्पित करे ।)   

'फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनीय जल अर्पित करे।)

ताम्बूल - ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।

वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥

पुंगीफल महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।

एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः, 

मुखवासार्थम् एलालवंग पुंगीफलसहितं ताम्बूलं समर्पयामि ।

(लौंग, इलायची, सुपारी के साथ ताम्बूल (पान) अर्पित करे )

दक्षिणा - ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि। (द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये )                                                  

आरती - ॐ इदं ँहविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर ँ सर्वगण ँस्वस्तये ।

आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ।

अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो असमासु धत्त् ।

ॐ आ रात्रि पार्थिव ँ रजः पितुरप्रायि धामभिः ।

दिवः सदा ँ सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ।

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।

आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥

नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः नमः,

आरार्तिकं समर्पयामि । (आरती करे )

                         

नवग्रह पूजन विधि हवन प्रारम्भ 

सर्वप्रथम हवन सामाग्री (जंवा,तिल आदि)एकत्र कर शांकल्य बनावे। अब यजमान हवन पात्र को सामने रखकर उसमे " रं "बीज अंकित कर देवे और फिर  हवन पात्र मे अग्नि डालकर पहले अग्निदेव का स्थापन,आवाहन  उसके बाद पंचोपचार पूजन करे -

अग्नि स्थापन-  ॐ अग्नि दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ २॥ आसादयादिह ॥

अग्नि आवाहन ॐ रक्त माल्यम्बरधरं  रक्त पद्मासन स्थितम् ।

स्वाहा स्वधा वषट्कारै रङ्कितं मेष  वाहनम् ॥

शतं मंगलकं रौद्रं वह्रिमावाहयाम्यहम् ।

त्वं मुखं सर्व देवानां सप्तार्चिर मितद्युते ।

आगच्छ   भगवन्नग्ने वेद्यामस्मिन् सन्निधो भव ॥

अब अग्निदेव का पंचोपचार पूजन करे और अग्नि के रक्षार्थ लकड़ी डालकर हवन शुरू करे ।

नवग्रह पूजन विधि  हवन

ॐ गणपतये नमःस्वाहा। ॐ दुर्गायै नमःस्वाहा। ॐ प्रजापतये नमःस्वाहा।

ॐ अग्नये नमःस्वाहा । ओं सोमाय नमःस्वाहा। ॐ इन्द्राय नमःस्वाहा।

ॐ भूः नमःस्वाहा। ॐ भुवः नमःस्वाहा। ॐ स्वः नमःस्वाहा।

लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमःस्वाहा । उमामहेश्वराभ्यां नमःस्वाहा।

वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमःस्वाहा । शचीपुरन्दराभ्यां नमःस्वाहा ।

मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमःस्वाहा । इष्टदेवताभ्यो नमःस्वाहा । 

कुलदेवताभ्यो नमः स्वाहा। ग्रामदेवताभ्यो नमःस्वाहा ।

वास्तुदेवताभ्यो नमःस्वाहा । स्थानदेवताभ्यो नमःस्वाहा । 

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमःस्वाहा । सर्वेभ्यो  ब्राह्मणेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।

ॐ सर्वतोभद्र मंडल देवाताव्यो नमःस्वाहा।

नवग्रह पूजन विधि नवग्रह आहुति

ॐ ग्रहनायकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ लोकसंस्तुतेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ लोकसाक्षिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ अपरिमितस्वभावेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ दयामूर्तिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सुरोत्तमेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ उग्रदण्डेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ लोकपावनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ तेजोमूर्तिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ खेचरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ द्वादशराशिस्थितेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ज्योतिर्मयेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ राजीवलोचनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ नवरत्नालङ्कृतमकुटेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ माणिक्यभूषणेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ नक्षत्राधिपतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ नक्षत्रालङ्कृतविग्रहेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शक्त्याद्यायुधधारिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ चतुर्भुजान्वितेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सकलसृष्टिकर्तृभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सर्वकर्मपयोनिधिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ धनप्रदायकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सर्वपापहरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ कारुण्यसागरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सकलकार्यकण्ठकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ऋणहर्तृभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ धान्याधिपतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ भारतीप्रियेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ भक्तवत्सलेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शिवप्रदायकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शिवभक्तजनरक्षकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ पुण्यप्रदायकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सर्वशास्त्रविशारदेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सुकुमारतनुभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ कामितार्थफलप्रदायकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ अष्टैश्वर्यप्रदायकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ब्रह्मविद्भ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ महद्भ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सात्विकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सुराध्यक्षेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ कृत्तिकाप्रियेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ रेवतीपतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मङ्गलकरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मतिमतां वरिष्ठेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मायाविवर्जितेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सदाचारसम्पन्नेभ्यो नमःस्वाहा।

ॐ सत्यवचनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सर्वसम्मतेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मधुरभाषिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ब्रह्मपरायणेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सुनीतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ वचनाधिकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शिवपूजातत्परेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ भद्रप्रियेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ भाग्यकरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ गन्धर्वसेवितेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ गम्भीरवचनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ चतुरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ चारुभूषणेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ कामितार्थप्रदेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सकलज्ञानविद्भ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ अजातशत्रुभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ अमृताशनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ देवपूजितेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ तुष्टेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सर्वाभीष्टप्रदेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ घोरेभ्यो नमः स्वाहा।

ॐ अगोचरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ग्रहश्रेष्ठेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शाश्वतेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ भक्तरक्षकेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ भक्तप्रसन्नेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ पूज्येभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ धनिष्ठाधिपेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शतभिषक्पतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ आमूलालङ्कृतदेहेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ब्रह्मतेजोऽभिवर्धनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ चित्रवर्णेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ तीव्रकोपेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ लोकस्तुतेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ज्योतिष्मतां परेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ विविक्तनेत्रेभ्यो नमः स्वाहा।

ॐ तरणेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मित्रेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ दिवौकोभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ दयानिधिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मकुटोज्ज्वलेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ वासुदेवप्रियेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ शङ्करेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ योगीश्वरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ पाशाङ्कुशधारिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ परमसुखदेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ नभोमण्डलसंस्थितेभ्यो नमः स्वाहा।

ॐ अष्टसूत्रधारिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ ओषधीनां पतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ परमप्रीतिकरेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ कुण्डलधारिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ नागलोकस्थितेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ श्रवणाधिपेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ पूर्वाषाढाधिपेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ उत्तराषाढाधिपेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ पीतचन्दनलेपनेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ उडुगणपतिभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ मेषादिराशीनां पतिभ्यो नमः स्वाहा।

ॐ सुलभेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ नीतिकोविदेभ्यो नमःस्वाहा ।

ॐ सुमनसेभ्यो नमः स्वाहा।

ॐ आदित्यादिनवग्रहदेवताभ्यो नमःस्वाहा ।

नवग्रह पूजन विधि अब नवग्रह के प्रत्येक मन्त्र का ११-११ बार आहुति देवें-

सूर्य मन्त्रः

ॐ ह्सौः श्रीं आं ग्रहाधिराजाय आदित्याय नमः स्वाहा ॥

चन्द्र मन्त्रः

ॐ श्रीं क्रीं ह्रां चं चन्द्राय नमः स्वाहा ॥

भौम मन्त्रः

ऐं ह्सौः श्रीं द्रां कं ग्रहाधिपतये भौमाय स्वाहा ॥

बुध मन्त्रः

ॐ ह्रां क्रीं टं ग्रहनाथाय बुधाय स्वाहा ॥

गुरु मन्त्रः

ॐ ह्रीं श्रीं ख्रीं ऐं ग्लौं ग्रहाधिपतये

बृहस्पतये ब्रींठः ऐंठः श्रींठः स्वाहा ॥

शुक्र मन्त्रः

ॐ ऐं जं गं ग्रहेश्वराय शुक्राय नमः स्वाहा ॥

शनि मन्त्रः

ॐ ह्रीं श्रीं ग्रहचक्रवर्तिने शनैश्चराय क्लीं ऐंसः स्वाहा ॥

राहू मन्त्रः

ॐ क्रीं क्रीं हूँ हूँ टं टङ्कधारिणे

राहवे रं ह्रीं श्रीं भैं स्वाहा ॥

केतु मन्त्रः

ॐ ह्रीं क्रूं क्रूररूपिणे केतवे ऐं सौः स्वाहा॥

अब बचा हुआ समस्त शांकल्य का आहुति निम्न मन्त्र से दे-

ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा ।                                                        

अब यजमान अपने सामने चौमुखा दिया जलाकर किसी पात्र मे रखे व  उड़द, दही को मिलाकर क्षेत्रपाल के लिए बलिदान(पहले संकल्प,फिर बलिदान) देवे-

संकल्प- ॐ विष्णु...............क्षेत्रपालादिप्रीत्यर्थ भूतप्रेतपिशाचादिनिवृ्त्यर्थ क्षेत्रपाल बलिदानकर्म अहं करिष्ये।

(यजमान अक्षत,जल लेकर यह मंत्र बोलते हुए पात्र मे छोड़ दे)

बलिदान भो ! क्षेत्रपाल रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुंबस्य आयुःकर्ता,

क्षेमकर्ता, शांतिकर्ता, तुष्टि कर्ता, पुष्टि कर्ता, निर्विघ्न कर्ता वर्दोभव॥

( उड़द, दही को आमपत्र मे लेकर दशों दिशाओ मे रखे )                                  

अब यजमान अक्षत लेकर पूर्णाहुति(पहले संकल्प,फिर पूर्णाहुति)  करे।

संकल्प - ॐ विष्णु.................गणपतिपूजन सांगता सिद्धयर्थ पूर्णाहुति कर्म अहं करिष्ये ।                            

(यजमान अक्षत,जल लेकर यह मंत्र बोलते हुए पृथ्वी  मे छोड़ दे)

पूर्णाहुति- ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा  पुनरापत।

वस्नेव विक्र्कीणावहाऽइषमूर्ज ँ शतक्र्कतो स्वाहा॥ (नारियलगिरी ,घी हवन कुंड मे डाले)

भस्म धारण- ॐ त्रयायुषं  जमदग्नेरिति ललाटे ।(मस्तक)

कश्यपश्य  त्रयायुषमिति ग्रीवायाम्।(गला)

यद्देवेषु  त्रयायुषमिति  दक्षिणबाहु।(दाहिना भुजा)

तन्नोऽस्तु त्रयायुषमिति हृदि॥(छाती)                                              

नवग्रह पूजन विधि अब आरती सजावे व नवग्रह की आरती करे-

नवग्रह की पौराणिक आरती

आरती श्री नवग्रहों की कीजै । बाध, कष्ट, रोग, हर लीजै ।।

सूर्य तेज़ व्यापे जीवन भर । जाकी कृपा कबहुत नहिं छीजै ।।

रुप चंद्र शीतलता लायें । शांति स्नेह सरस रसु भीजै ।।

मंगल हरे अमंगल सारा । सौम्य सुधा रस अमृत पीजै ।।

बुध सदा वैभव यश लाए । सुख सम्पति लक्ष्मी पसीजै ।।

विद्या बुद्धि ज्ञान गुरु से ले लो । प्रगति सदा मानव पै रीझे।।

शुक्र तर्क विज्ञान बढावै । देश धर्म सेवा यश लीजे ।।

न्यायधीश शनि अति ज्यारे । जप तप श्रद्धा शनि को दीजै ।।

राहु मन का भरम हरावे । साथ न कबहु कुकर्म न दीजै ।।

स्वास्थ्य उत्तम केतु राखै । पराधीनता मनहित खीजै ।।

आरती के बाद प्रदक्षिणा करे-

प्रदक्षिणा- यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च ।

तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणे पदे पदे ॥

प्रदक्षिण त्रियं देव प्रयत्नेन मया कृतम् ।

तेन पापाणि सर्वाणि विनाशाय नमोऽस्तुते ॥

अब यजमान हाथों मे पुष्प लेकर पुष्पाञ्जलि व  क्षमा-प्रार्थना करे-

पुष्पाञ्जलि- क्षमा-प्रार्थना  ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षणकारकः ।

विषमस्थानसम्भूतां पीडां दहतु मे रविः ॥

रोहिणीशः सुधामूर्तिः सुधागात्रो सुधाशनः ।

विषमस्थानसम्भूतां पीडां दहतु मे विधुः ॥

भूमिपुत्रो महातेजा जगतोभयकृत्सदा ।

वृष्टिकृद्वृष्टिहर्ता च पीडां दहतु मे कुजः ॥     

उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युतिः

सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां दहतु मे बुधः ॥

देवमन्त्री विशालाक्षो सदा लोकहिते रतः ।

अनेकशिष्यसम्पूर्णः पीडां दहतु मे गुरुः ॥

दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्रणवश्च महाद्युतिः ।

प्रभुस्ताराग्रहाणां च पीडां दहतु मे भृगुः ॥

सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः ।

मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां दहतु मे शनिः ॥

महाशीर्षी महावक्त्रो महादंष्ट्रो महायशाः ।

अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां दहतु मे तमः ॥

अनेकरूपवर्णैश्च शतशोऽथ सहस्रशः ।

उत्पातरूपी घोरश्च पीडां दहतु मे शिखी ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।

यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

मन्त्रपुष्पाञ्जलिं सहित क्षमा-प्रार्थनापुर्वकम् नमस्कारान् समर्पयामि॥(पुष्प नवग्रह वेदी को  समर्पित करे)

अब यजमान को अक्षत-जल देकर ब्राह्मण दक्षिणा फिर भूयसी दक्षिणा लेवे-

ब्राह्मण दक्षिणा- ॐ विष्णु................. पूजन सांगता सिद्धयर्थ ब्राह्मण दक्षिणा अहं ददातु ।

(यजमान अक्षत,जल,दक्षिणा सहित ब्राह्मण को देवे)

भूयसी दक्षिणा- ॐ विष्णु................ पूजन न्यूनता दोष समनार्थ दानदक्षिणा कर्म अहं करिष्ये ।

(यजमान अक्षत,जल और जो भी दान दक्षिणा हो ,ब्राह्मण को देकर संतुष्ट करे)

अब समस्त वेदी व नवग्रह को अपने स्थान पर से विसर्जन के लिए हटावें-

विसर्जन- ॐआवाहनम् न जनामि न जनामि विसर्जनम्।

पुजाम् चैव न जनामि क्षमस्व परमेश्वर: ।

ॐ गच्छ- गच्छ  सुरश्रेष्ठ स्व स्थान परमेश्वर: ।

गच्छ देव हुतासने पुनरागमनम्  च॥

ॐ द्योः शान्तिरन्तरिक्ष ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।

वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे  देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ँ शान्तिः

शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥  (सुशान्तिर्भवतु )॥                                                                   

॥ इति: पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् नवग्रह पूजन विधि:॥

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