नवग्रहस्तोत्रम्
ज्योतिष के
अनुसार हमारे अंतरिक्ष में फैले सौर मण्डल के 9 ग्रहों का धरती पर स्थित सभी
प्राणियों, यहां तक कि जल और पेड़-पौधों पर भी प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष गणना के मुताबिक
प्रत्येक जातक पर जन्म लग्न, दशा-महादशा, अंतरदशा तथा प्रत्यंतरों का प्रभाव निश्चित पड़ता है। लग्न,
जन्मराशि तथा नाम राशि से चौथे,
आठवें, बारहवें स्थान की स्थिति का प्रभाव सभी पर पड़ता है। नवग्रहों
के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए भी कई उपाय ज्योतिष में बताए गए हैं जिनका
विधि-विधान से पालन करें तो अवश्य लाभ मिलता है। नवग्रहों के दुष्प्रभाव को शांत
करने के लिए यहाँ नवग्रहस्तोत्रम् दिया जा रहा है। इससे पूर्व भी नवग्रहस्तोत्रम्
भाग-१ व २ के रूप में दिया गया है। अब यहाँ एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्रम् और नवग्रह
करावलम्बस्तोत्रम् दिया जा रहा है।
एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्रम्
आधारे प्रथमे
सहस्रकिरणं ताराधवं स्वाश्रये
माहेयं
मणिपूरके हृदि बुधं कण्ठे च वाचस्पतिम् ।
भ्रूमध्ये
भृगुनन्दनं दिनमणेः पुत्रं त्रिकूटस्थले
नाडीमर्मसु
राहु-केतु-गुलिकान्नित्यं नमाम्यायुषे ॥
इति
एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
नवग्रह करावलम्बस्तोत्रम्
ज्योतीश देव
भुवनत्रय मूलशक्ते
गोनाथ भासुर
सुरादिभिरीद्यमान ।
नॄणांश्च
वीर्य वर दायक आदिदेव
आदित्य वेद्य
मम देहि करावलम्बम् ॥ १॥
नक्षत्रनाथ
सुमनोहर शीतलांशो
श्री भार्गवी
प्रिय सहोदर श्वेतमूर्ते ।
क्षीराब्धिजात
रजनीकर चारुशील
श्रीमच्छशांक
मम देहि करावलम्बम् ॥ २॥
रुद्रात्मजात
बुधपूजित रौद्रमूर्ते
ब्रह्मण्य
मंगल धरात्मज बुद्धिशालिन् ।
रोगार्तिहार
ऋणमोचक बुद्धिदायिन्
श्री भूमिजात
मम देहि करावलम्बम् ॥ ३॥
सोमात्मजात
सुरसेवित सौम्यमूर्ते
नारायणप्रिय
मनोहर दिव्यकीर्ते ।
धीपाटवप्रद सुपंडित
चारुभाषिन्
श्री सौम्यदेव
मम देहि करावलम्बम् ॥ ४॥
वेदान्तज्ञान
श्रुतिवाच्य विभासितात्मन्
ब्रह्मादि
वन्दित गुरो सुर सेवितांघ्रे ।
योगीश ब्रह्म
गुण भूषित विश्व योने
वागीश देव मम
देहि करावलम्बम् ॥ ५॥
उल्हास दायक
कवे भृगुवंशजात
लक्ष्मी सहोदर
कलात्मक भाग्यदायिन् ।
कामादिरागकर
दैत्यगुरो सुशील
श्री शुक्रदेव
मम देहि करावलम्बम् ॥ ६॥
शुद्धात्म
ज्ञान परिशोभित कालरूप
छायासुनन्दन
यमाग्रज क्रूरचेष्ट ।
कष्टाद्यनिष्ठकर
धीवर मन्दगामिन्
मार्तंडजात मम
देहि करावलम्बम् ॥ ७॥
मार्तंड पूर्ण
शशि मर्दक रौद्रवेश
सर्पाधिनाथ
सुरभीकर दैत्यजन्म ।
गोमेधिकाभरण
भासित भक्तिदायिन्
श्री राहुदेव
मम देहि करावलम्बम् ॥ ८॥
आदित्य सोम
परिपीडक चित्रवर्ण
हे सिंहिकातनय
वीर भुजंग नाथ ।
मन्दस्य मुख्य
सख धीवर मुक्तिदायिन्
श्री केतु देव
मम देहि करावलम्बम् ॥ ९॥
मार्तंड
चन्द्र कुज सौम्य बृहस्पतीनाम्
शुक्रस्य
भास्कर सुतस्य च राहु मूर्तेः ।
केतोश्च यः
पठति भूरि करावलम्ब
स्तोत्रम् स
यातु सकलांश्च मनोरथारान् ॥ १०॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
नवग्रहस्तोत्रम् सम्पूर्ण:
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