नवग्रह स्तोत्र
ऋषिवर वादिराजयति द्वारा रचित इस नवग्रह स्तोत्र का पाठ करने से ग्रहों की अनुकूलता, कृपा व सफलता प्राप्त होता है।
वादिराजयतिविरचित नवग्रह स्तोत्रं
Navagrah stotra
नवग्रह स्तोत्रम्
भास्वान्मे भासयेत् तत्त्वं
चन्द्रश्चाह्लादकृद्भवेत् ।
मङ्गलो मङ्गलं दद्यात् बुधश्च
बुधतां दिशेत् ॥ १॥
सूर्य मुझे सत्य का ज्ञान कराए,
चंद्रमा आनंद दे, मंगल कल्याण करे, और बुध मुझे बुद्धि प्रदान करे।
गुरुर्मे गुरुतां दद्यात् कविश्च
कवितां दिशेत् ।
शनिश्च शं प्रापयतु केतुः केतुं
जयेऽर्पयेत् ॥ २॥
गुरु मुझे गुरुता प्रदान करें,
शुक्र विनम्रता (कविता) दें, शनिदेव कल्याण प्रदान करें और केतु
विजय प्रदान करें।
राहुर्मे रहयेद्रोगं ग्रहाः सन्तु
करग्रहाः ।
नवं नवं ममैश्वर्यं दिशन्त्वेते
नवग्रहाः ॥ ३॥
राहु मुझे रोगों से बचाए,
मेरे जीवन में ग्रहों का प्रभाव सकारात्मक हो, सभी ग्रह मुझे हर क्षेत्र में नए-नए अवसर और समृद्धि प्रदान करें।
शने दिनमणेः सूनो ह्यनेकगुणसन्मणे ।
अरिष्टं हर मेऽभीष्टं कुरु मा कुरु
सङ्कटम् ॥ ४॥
हे सूर्यपुत्र,
अनेक गुणों वाले, मणि के समान शनिदेव, मेरी पीड़ा हरो, मेरी इच्छा पूरी करो और मुझे संकट से
मुक्ति प्रदान करो।
नवग्रहस्तोत्र महात्म्य
हरेरनुग्रहार्थाय शत्रुणां निग्रहाय
च ।
वादिराजयतिप्रोक्तं ग्रहस्तोत्रं
सदा पठेत् ॥ ५॥
वादिराजयति द्वारा रचित नवग्रह
स्तोत्र का नित्य पाठ करने से भगवान श्रीविष्णु की कृपा और शत्रुओं पर विजय
प्राप्त होता है।
॥ इति श्रीवादिराजयतिविरचितं नवग्रह स्तोत्रम् ॥

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