राहुमङ्गलस्तोत्रम्
राहुमङ्गलस्तोत्रम् – राहु और केतु
की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है। यद्यपि यह सूर्य चन्द्र मंगल आदि की
भांति कोई धरातल वाला ग्रह नही है,इसलिये
राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है,राहु के सम्बन्ध में
अनेक पौराणिक आख्यान है,शनि की भांति राहु से भी लोग भयभीत
रहते है,दक्षिण भारत में तो लोग राहु काल में कोई कार्य भी
नही करते हैं।राहु के सम्बन्ध में समुद्र मंथन वाली कथा से प्राय: सभी परिचित है,एक पौराणिक आख्यान के अनुसार दैत्यराज हिरण्य कशिपु की पुत्री सिंहिका का
पुत्र था,उसके पिता का नाम विप्रचित था। विप्रचित के सहसवास
से सिंहिका ने सौ पुत्रों को जन्म दिया उनमें सबसे बडा पुत्र राहु था। देवासुर
संग्राम में राहु भी भाग लिया तो वह भी उसमें सम्मिलित हुआ। समुद्र मंथन के
फ़लस्वरूप प्राप्त चौदह रत्नों में अमृत भी था,जब विष्णु
सुन्दरी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान करा रहे थे,तब
राहु उनका वास्तविक परिचय और वास्तविक हेतु जान गया। वह तत्काल माया से रूप धारण
कर एक पात्र ले आया,और अन्य देवतागणों के बीच जा बैठा,सुन्दरी का रूप धरे विष्णु ने उसे अमृत पान करवा दिया,तभी सूर्य और चन्द्र ने उसकी वास्तविकता प्रकट कर दी,विष्णु ने अपने चक्र से राहु का सिर काट दिया,अमृत
पान करने के कारण राहु का सिर अमर हो गया,उसका शरीर कांपता
हुआ गौतमी नदी के तट पर गिरा,अमृतपान करने के कारण राहु का
धड भी अमरत्व पा चुका था।इस तथ्य से देवता भयभीत हो गये,और
शंकरजी से उसके विनास की प्रार्थना की,शिवजी ने राहु के
संहार के लिये अपनी श्रेष्ठ चंडिका को मातृकाओं के साथ भेजा,सिर
देवताओं ने अपने पास रोके रखा,लेकिन बिना सिर की देह भी
मातृकाओं के साथ युद्ध करती रही।अपनी देह को परास्त होता न देख राहु का विवेक
जागृत हुआ,और उसने देवताओं को परामर्श दिया कि इस विजित देह
के नाश लिये उसे पहले आप फ़ाड दें,ताकि उसका व्ह उत्तम रस
निवृत हो जाये,इसके उपरांत शरीर क्षण मात्र में भस्म हो
जायेगा,राहु के परामर्श से देवता प्रसन्न हो गये,उन्होने उसका अभिषेक किया,और ग्रहों के मध्य एक ग्रह
बन जाने का ग्रहत्व प्रदान किया,बाद में देवताओं द्वारा राहु
के शरीर की विनास की युक्ति जान लेने पर देवी ने उसका शरीर फ़ाड दिया,और अम्रुत रस को निकालकर उसका पान कर लिया।ग्रहत्व प्राप्त कर लेने के बाद
भी राहु सूर्य और चन्द्र को अपनी वास्तविकता के उद्घाटन के लिये क्षमा नही कर पाया,और पूर्णिमा और अमावस्या के समय चन्द्र और सूर्य के ग्रसने का प्रयत्न
करने लगा।राहु के एक पुत्र मेघदास का भी उल्लेख मिलता है,उसने
अपने पिता के बैर का बदला चुकाने के लिये घोर तप किया,पुराणो
में राहु के सम्बन्ध में अनेक आख्यान भी प्राप्त होते है।
राहुमङ्गलस्तोत्रम्
राहु का वैदिक मंत्र
राहु ग्रह सम्बन्धित पाठ पूजा आदि के स्तोत्र मंत्र तथा राहु गायत्री है,
वैदिक मंत्र अपने आप में अमूल्य है,इनका कोई
मूल्य नही होता है,किसी दुखी व्यक्ति को प्रयोग करने से
फ़ायदा मिलता है ।
विनियोग
ऊँ कया निश्चत्रेति मंत्रस्य वामदेव ऋषि: गायत्री छन्द: राहुर्देवता: राहुप्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:॥
दाहिने
हाथ में जाप करते वक्त पानी या चावल ले लें,और
यह मंत्र जपते हुये वे चावल या पानी राहुदेव की प्रतिमा या यंत्र पर छोड दें।
देहागंन्यास
कया शिरसि। न: ललाटे। चित्र मुखे। आ कंठे । भुव ह्रदये।
दूती नाभौ। सदा कट्याम। वृध: मेढ्रे सखा ऊर्वौ:।
कया जान्वो:। शचिष्ठ्या गुल्फ़यो:। वृता पादयो:।
क्रम से सिर माथा मुंह कंठ ह्रदय नाभि कमर छाती जांघे गुदा और पैरों को उपरोक्त मंत्र बोलते हुये दाहिने हाथ से छुये।
करान्यास
कया न: अंगुष्ठाभ्यां नम:। चित्र आ तर्ज्जनीभ्यां नम:।
भुवदूती मध्यमाभ्यां नम:। सदावृध: सखा अनामिकाभ्यां नम:।
कया कनिष्ठकाभ्यां नम:। शचिष्ट्या वृता करतलपृष्ठाभ्यां नम:॥
ह्रदयान्यास
कयान: ह्रदयाय नम:। चित्र आ शिर्षे स्वाहा। भुवदूती शिखायै वषट।
सदावृध:
सखा कवचाय: हुँ। कया नेत्रत्रयाय वौषट। शचिष्ठ्या वृता अस्त्राय फ़ट।
ध्यान
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली।
चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु:
सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥
राहुगायत्री
नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि
तन्नो राहु: प्रचोदयात ।
वैदिकबीजमंत्र
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ
भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा।
कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव:
भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥
जापमंत्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥
राहू
के स्तोत्रों व मन्त्र जप आदि का नित्य पाठ करने से राहु प्रदत्त समस्त प्रकार की
कालिमा भयंकर क्रोध अकारण मस्तिष्क की गर्मी अनिद्रा अनिर्णय शक्ति ग्रहण योग पति
पत्नी विवाद तथा काल सर्प योग सदा के लिये समाप्त हो जाते हैं,स्तोत्र पाठ करने के फ़लस्वरूप अखंड शांति योग की परिपक्वता पूर्ण निर्णय
शक्ति तथा राहु प्रदत्त समस्त प्रकार के कष्टों से निवृत्ति हो जाती है। पूजन आदि
पर राहुमङ्गलस्तोत्रम् का पाठ करें।
राहुमङ्गलस्तोत्रम्
राहुः सिंहलदेशजश्च निरृतिः
कृष्णाङ्गशूर्पासनो ।
यः
पैठीनसिगोत्रसम्भवसमिद्दूर्वामुखो दक्षिणः ॥ १॥
यः सर्पाद्यधिदैवते च निरृतिः
प्रत्याधिदेवः सदा ।
षट्त्रिस्थः शुभकृच्च सिंहिकसुतः
कुर्यात्सदा मङ्गलम् ॥ २॥
प्रार्थना
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्
।
पूजां नैव हि जानामि क्षमस्व
परमेश्वर ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं
सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु
मे ॥
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो
महाबलः ।
मुण्डकायोर्ध्वकेशी च पीडां हरतु मे
तमः ॥
अनया पूजया राहुः प्रीयताम् ।
ॐ राहवे नमः ॐ तमाय नमः ॐ सैंहिकाय
नमः ।
ॐशान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ ॥
इति श्रीराहुमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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