केतुकवचम्

केतुकवचम्

केतुकवचम् - केतु (U+260B.svg) भारतीय ज्योतिष में उतरती लूनर नोड को दिया गया नाम है। केतु एक रूप में स्वरभानु नामक असुर के सिर का धड़ है। यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था। यह एक छाया ग्रह है। माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है। कुछ मनुष्यों के लिये ये ग्रह ख्याति पाने का अत्यंत सहायक रहता है। केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है। केतू को छाया ग्रह कहा जाता है, यह असुर श्रेणी से सम्बन्ध रखता है। इसके जीवनसाथी का नाम चित्रलेखा है तथा इनकी सवारी चील है। केतू ग्रह की शांति के लिए नित्य-प्रति केतुकवचम् का पाठ करें।

केतुकवचम्

केतुकवचम्

ॐ अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमहामन्त्रस्य त्र्यम्बक ॠषिः ।

अनुष्टुप्छन्दः । केतुर्देवता । कं बीजं । नमः शक्तिः ।

केतुरिति कीलकम् । केतुकृत पीडा निवारणार्थे,

सर्वरोगनिवारणार्थे, सर्वशत्रुविनाशनार्थे, सर्वकार्यसिद्ध्यर्थे,

केतुप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

केतुं करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् ।

प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ॥ १॥

चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः ।

पातु नेत्रे पिङ्गलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ॥ २॥

घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः ।

पातु कण्ठं च मे केतुः स्कन्धौ पातु ग्रहाधिपः ॥ ३॥

हस्तौ पातु सुरश्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः ।

सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ॥ ४॥

ऊरू पातु महाशीर्षो जानुनी मेऽतिकोपनः ।

पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिङ्गलः ॥ ५॥

य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् ।

सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयी भवेत् ॥ ६॥

॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे केतुकवचं सम्पूर्णम् ॥

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