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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
नवग्रह कवच
ज्योतिष
शास्त्र में नवग्रह का विशेष महत्व होता है। नवग्रहों के आधार पर व्यक्ति के जीवन
में होने वाली घटनाओं के बारे में भविष्यवाणियां संभव हो पाती हैं। नवग्रहों की
कुंडली में अच्छी और खराब स्थिति के कारण ही व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के
उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। ग्रहों के दोषों को दूर करने के लिए कई
उपाय जाते हैं, जिसमें नवग्रहों के मंत्र
जप अनुष्ठान, स्तोत्र, चालीसा, नवग्रह कवच आदि
हैं। यहाँ हम नवग्रह कवच पढेंगे। यह आपके लिए बेहद ही चामत्कारिक लाभ वाला मंत्र हो सकता
है।
नवग्रह कवच का
वर्णन यामल तंत्र में किया गया है। इस नवग्रह कवच का पाठ प्रत्येक दिन
श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति को रोग, कष्ट, ग्रहों के दोष, अशुभ प्रभाव, शत्रु बाधा आदि से मुक्ति मिल सकती है। मंत्रों के जाप में
सदैव उसके उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखा जाता है, अन्यथा आपको उस मंत्र का सही फल प्राप्त नहीं होगा। मान्यता
है कि कुंडली में अगर ग्रहों का अशुभ प्रभाव या ग्रहदोष हो तो यामल तंत्र में दिया
गया 'नवग्रह-कवच' का पाठ बहुत असरदार सिद्ध होता है। इसके पाठ करने से हर
प्रकार की समस्या खत्म हो जाती है।
नवग्रह कवच
नवग्रह कवचम्
ॐ शिरो मे
पातु मार्तण्ड: कपालं रोहिणीपति:।
मुखमङ्गारक:
पातु कण्ठं च शशिनन्दन:।।
बुद्धिं जीव:
सदा पातु हृदयं भृगुनन्दन:।
जठरं च शनि:
पातु जिह्वां मे दितिनन्दन:।।
पादौ केतु:
सदा पातु वारा: सर्वाङ्गमेव च।
तिथयोऽष्टौ
दिश: पान्तु नक्षत्राणि वपु: सदा।।
अंसौ राशि:
सदा पातु योगश्च स्थैर्यमेव च।
सुचिरायु:
सुखी पुत्री युद्धे च विजयी भवेत्।।
रोगात्प्रमुच्यते
रोगी बन्धो मुच्येत बन्धनात्।
श्रियं च लभते
नित्यं रिष्टिस्तस्य न जायते।।
य: करे
धारयेन्नित्यं तस्य रिष्टिर्न जायते।।
पठनात्
कवचस्यास्य सर्वपापात् प्रमुच्यते।
मृतवत्सा च या
नारी काकवन्ध्या च या भवेत्।
जीववत्सा
पुत्रवती भवत्येव न संशय:।।
एतां रक्षां
पठेद् यस्तु अङ्ग स्पृष्ट्वापि वा पठेत्।।
इति ग्रहयामले उत्तरखण्डे नवग्रह कवचं समाप्तम् ।
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