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कर्मकाण्ड

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नवग्रह कवच सार

नवग्रह कवच सार

इस नवग्रह कवच सार स्तोत्र का पाठ करने से नवग्रह से संबंभित दोष नष्ट होता और अक्षत पुण्य की प्राप्ति होता है।

नवग्रह कवच सार

नवग्रह कवच सार स्तोत्रम्

Navagrah kavach saar

नवग्रह कवच सार स्तोत्र

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सोः मे शिरः पातु श्री सूर्यग्रहपतिः ।।

ॐ घौं सौं औं मे मुखं पातु श्री चन्द्रोग्रहराजकः ।।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः करौ पातु ग्रहसेनापतिः कुजः पायादथ ।।

ॐ ह्रौं ह्रां सः पादौ ज्ञो नृपवाचकः।।

ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं क्लीं सः कटिं पातु पायादमर पूजितः ।।

ॐ ह्रौं ह्रीं सौः दैत्यगुरु पूज्यो हृदयं परिरक्षतु ।।

ॐ शौं शौं सः पातु नाभिं मे ग्रह प्रेष्यं शनैश्चरः ।।

ॐ छौं छां छौं सः कण्ठं-देशं श्री राहुर्देव-मर्दकः ।।

ॐ फौं फां फौं सः शिखी पातु सर्वांगभितोऽभतु ।।

नवग्रह कवच सार स्तोत्र महात्म्य

ग्रहाश्चैतै भोगदेहा नित्यास्तु स्फुटित ग्रहाः ।

एतदशांश सम्भूताः पान्तु नित्यं तु दर्जनात् ।

अक्षतं कवचं पुण्यं सूर्यादि ग्रह दैवतम् ।।

इति: नवग्रह कवच सार स्तोत्रम्।।

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