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कर्मकाण्ड

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नवग्रह चालीसा

नवग्रह चालीसा

कहते हैं कि स्वयं परम पिता परमात्मा ने ही नवग्रहों का स्वरूप धारण किया है और वही प्राणियों को उनके पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों का फल प्रदान करते हैं। श्रद्धा सहित नवग्रहों की नित्य प्रति उपासना करके उनका अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं। नवग्रह चालीसा के नित्य पाठ से पाठकर्ता को हर प्रकार की ग्रह-बाधाओं से मुक्ति  मिलता है और उसका जीवन सुखमय व्यतीत होने लगता है। मनोवांछित फलों की प्राप्ति में भी इसका पाठ लाभप्रद है।

नवग्रह चालीसा

                                                      नवग्रह चालीसा

नवग्रह चालीसा

दोहा

श्री गणपति गुरुपद कमल प्रेम सहित शिर नाय ।

नवग्रह चालीसा कहत शारद होहुं सहाय ।।

जय जय रवि शशि भौम बुद्ध जय गुरु भृगु शनि राज ।

जयति राहु अरु केतु ग्रह करहु अनुग्रह आज ।।

सूर्य

प्रथमहिं रवि कहं नावौ माथा ।

करहु कृपा जन जानि अनाथा ।।

हे आदित्य! दिवाकर भानू ।

मैं मति मन्द महा अज्ञानू ।।

अब निज जन कहं हरहु कलेशा ।

दिनकर द्वादश रूप दिनेशा ।।

नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर ।

अर्क मित्र अघ ओघ क्षमाकर ।।

चन्द्र

शशि मयङ्क रजनीपति स्वामी ।

चन्द्र कलानिधि नमो नमामी ।।

राकापति हिमांशु राकेशा ।

प्रणवत जन नित हरहुं कलेशा ।।

सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर ।

शीत रश्मि औषधी निशाकर ।।

तुमहीं शोभित भाल महेशा ।

शरण-शरण जन हरहुं कलेशा ।।

मंगल

जय जय जय मङ्गल सुखदाता ।

लोहित भौमादित विख्याता ।।

अंगारक कुज रुज ऋणहारी ।

दया करहुं यहि विनय हमारी ।।

हे महिसुत! छितिसुत सुखरासी ।

लोहितांग जग जन अघनासी ।।

अगम अमंगल मम हर लीजै ।

सकल मनोरथ पूरण कीजै ।।

बुध

जय शशिनन्दन बुध महराजा ।

करहुं सकल जन कहं शुभ काजा ।।

दीजै बुद्धि सुमति बल ज्ञाना ।

कठिन कष्ट हरि हरि कल्याना ।।

हे तारासुत! रोहिणी नन्दन ।

चन्द्र सुवन दु:ख दूरि निकन्दन ।।

पूजहिं आस दास कहं स्वामी ।

प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी ।।

बृहस्पति

जयति जयति जय श्री गुरु देवा ।

करौं सदा तुम्हारो प्रभु सेवा ।।

देवाचार्य देव गुरु ज्ञानी ।

इन्द्र पुरोहित विद्या दानी ।।

वाचस्पति वागीस उदारा ।

जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा ।।

विद्या सिन्धु अंगिरा नामा ।

करहुं सकल विधि पूरण कामा ।।

शुक्र

शुक्रदेव तव पद जल जाता ।

दास निरन्तर ध्यान लगाता ।।

हे उशना! भार्गव भृगुनन्दन ।

दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन ।।

भृगुकुल भूषण दूषण हारी ।

हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी ।।

तुहिं पण्डित जोशी द्विजराजा ।

तुम्हारे रहत सहत सब काजा ।।

शनि

जय श्री शनि देव रवि नन्दन ।

जय कृष्णे सौरि जगवन्दन ।।

पिङ्गल मन्द रौद्र यम नामा ।

बभ्रु आदि कोणस्थल लामा ।।

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा ।

क्षण महं करत रंक क्षण राजा ।।

ललत स्वर्ण पद करत निहाला ।

करहु विजय छाया के लाला ।।

राहु

जय जय राहु गगन प्रविसइया ।

तुम ही चन्द्रादित्य ग्रसइया ।।

रवि शशि अरि स्वर्भानू धरा ।

शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा ।।

सैंहिकेय निशाचर राजा ।

अर्धकाय तुम राखहु लाजा ।।

यदि ग्रह समय पाय कहुं आवहु ।

सदा शान्ति रहि सुख उपजावहु ।।

केतु

जय जय केतु कठिन दुखहारी ।

निज जन हेतु सुमंगलकारी ।।

ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला ।

घोर रौद्रतन अधमन काला ।।

शिखी तारिका ग्रह बलवान ।

महा प्रताप न तेज ठिकाना ।।

वाहन मीन महा शुभकारी ।

दीजै शान्ति दया उर धारी ।।

।। नवग्रह चालीसा शांति फल ।।

तीरथराज प्रयाग सुपासा ।

बसै राम के सुन्दर दासा ।।

ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी ।

दुर्वासाश्रम जन दुख हारी ।।

नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु ।

जन तन कष्ट उतारण सेतू ।।

जो नित पाठ करै चित लावै ।

सब सुख भोगि परम पद पावै ।।

।। दोहा ।।

धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार ।

चित नव मंगल मोद गृह जगत जनन सुखद्वार ।।

यह चालीसा नवोग्रह, विरचित सुन्दरदास ।

पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास ।।

नवग्रह चालीसा समाप्त।।

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