नवग्रह स्तोत्रं
ग्रहों की बुरी दशा चलने पर ये
जरूरी होता है कि आप इन ग्रहों को शांत रखने के लिए उपाय करें। शास्त्रों में
प्रत्येक ग्रह को शांत करने के कई तरह के उपाय और पूजा बताई गई हैं। हालांकि कई
बार कुंडली में एक से अधिक ग्रह अशांत रहते हैं और ऐसा होने पर आप श्री नवग्रह स्तोत्रं का पाठ करें। इस स्तोत्र का पाठ करने से नौ ग्रह हमेशा शांत रहते हैं और
इन ग्रहों के प्रकोप से जातक की रक्षा होती है। इसलिए जब भी आपके ग्रह अशांत हों
तो आप इस स्तोत्र का पाठ कर लें। इस स्तोत्र में हर ग्रहों के लिए मंत्र दिया गया
है। ये एक प्रकार की नौ ग्रहों से जुड़ी प्रार्थना है। इस स्तोत्र का पाठ करने से
ये ग्रह हमारे अनुकूल चलते हैं और जीवन की हर तरह की तकलीफ को दूर कर देते हैं।
कोई भी इंसान इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है और ये जरूरी नहीं है कि ग्रहों की खराब
दशा चलने पर ही नवग्रह स्तोत्र का पाठ किया जाए। इस स्तोत्र को रोज पढ़ने से
कुंडली में ग्रह शांत बनें रहते हैं और आपके जीवन में किसी भी तरह की दिक्कते पैदा
नहीं करते हैं। इस स्तोत्र को आप अपने घर में आसानी से बैठकर पढ़ सकते हैं। ये
स्तोत्र बेहद ही सरल है और इसमें नौ मंत्र बताए गए हैं। जो कि हर एक ग्रह से जुड़
हुए हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से ग्रह सदा शांत रहते हैं और इनके प्रकोप से
आपकी रक्षा होती है। रोजाना इस स्तोत्र को करने से रोग दूर हो जाते हैं और आपको
सेहतमंद शरीर मिलता है। ग्रह शांत रहने से घर में कलह नहीं होती है और दिमाग शांत
रहता है।
नवग्रह स्तोत्रम्
Navagrah stotram
श्री नवग्रह स्तोत्रम्
॥ नवग्रह स्तोत्र ॥
ज्योतिर्मण्डलमध्यगं गदहरं
लोकैक-भास्वन्मणिं
मेषोच्चं प्रणतिप्रियं द्विजनुतं
छायपतिं वृष्टिदम् ।
कर्मप्रेरकमभ्रगं शनिरिपुं
प्रत्यक्षदेवं रविं
ब्रह्मेशान-हरिस्वरूपमनग़्हं
सिंहेश-सूर्यं भजे ॥ १॥
जो रोगों को हरने वाला,
संसार के एकमात्र प्रकाशमान मणि और वर्षा करने में समर्थ, ज्योतिमण्डल
(ग्रहमण्डल) के मध्य में स्थित, मेष राशि में जो उच्च का
होता है, जो कर्म के कारक, आकाश में विचरण करने वाले,
शनि के शत्रु है, ऐसे छायापति, सिंहराशि स्वामी, ब्रह्मा, ईश (शिव) और हरि (विष्णु) के स्वरूप जिनका ब्राह्मणों द्वारा सदैव स्तुति व
नमन किया जाता है और जो साक्षात ईश्वर हैं, उन सूर्यदेव को मैं भजता हूँ।
चन्द्रं शङ्कर-भूषणं मृगधरं
जैवातृकं रञ्जकं
पद्मासोदरमोषधीशममृतं
श्रीरोहिणीनायकम् ।
शुभ्राश्वं क्षयवृद्धिशीलमुडुपं
सद्बुद्धि-चित्तप्रदं
शर्वाणीप्रियमन्दिरं बुधनुतं तं
कर्कटेशं भजे ॥ २॥
जो शिव आभूषणरूप,
मृगधर, जैवातृक, रंजक,
पद्मासहोदर, ओषधीश, अमृत,
और श्रीरोहिणीनायक हैं। शुभ्र (सफेद) घोड़े वाले, क्षय और वृद्धि (कलाओं) वाले, सद्बुद्धि देनेवाले,
पार्वती के प्रिय, बुध पूजित, उस कर्कराशि के स्वामी चंद्रमा को मैं भजता हूँ।
भौमं शक्तिधरं त्रिकोणनिलयं
रक्ताङ्गमङ्गारकम् ।
भूदं मङ्गलवासरं ग्रहवरं
श्रीवैद्यनाथार्चकम् ।
क्रूरं षण्मुखदैवतं मृगगृहोच्चं
रक्तधात्वीश्वरं
नित्यं वृश्चिकमेषराशिपतिमर्केन्दुप्रियं
भावये ॥ ३॥
जो 'भौम', 'शक्तिधर', 'त्रिकोणनिलय',
'रक्तांग', 'अंगारक', 'भूद',
'मंगलवार', 'ग्रहवर' और 'श्रीवैद्यनाथार्चक' नाम से जाना जाता है। जो स्वभाव
से क्रूर, मृगशिरा नक्षत्र में उच्च (उच्च राशि)का, रक्त धातु (लोहा), वृश्चिक और मेष राशियों के स्वामी, सूर्य और चंद्रमा को सदा प्रिय, षण्मुख
(छह मुख वाले) भगवान कार्तिकेय जिनके देवता हैं, ऐसे मंगलदेव को मैं भजता हूँ।
सौम्यं सिंहरथं बुधं कुजरिपुं
श्रीचन्द्र-तारासुतं
कन्योच्चं मगधोद्भवं सुरनुतं
पीतांबरं राज्यदम् ।
कन्यायुग्म-पतिं कवित्व-फलदं
मुद्गप्रियं बुद्धिदं
वन्दे तं गदिनं च पुस्तककरं विद्याप्रदं सर्वदा
॥ ४॥
जो सौम्य,
सिंह रथ पर सवार, कुज (मंगल) के शत्रु,
श्री चंद्र और तारा के पुत्र, कन्या राशि में
उच्च, मगध में उत्पन्न, देवताओं द्वारा
पूजित, पीतांबर (पीले वस्त्र) पहने हुए, और राज्य देने वाले हैं। जो मिथुन और कन्या राशि के स्वामी, कविता का फल देने वाले, मूंग प्रिय, बुद्धि देने वाले, गदा धारण करने वाले, पुस्तक हाथ में लिए हुए और हमेशा विद्या देने वाले हैं। उन बुधदेव को मैं
भजता हूँ।
देवेन्द्र-प्रमुखार्च्यमान-चरणं
पद्मासने संस्थितं
सूर्यारिं गजवाहनं सुरगुरुं
वाचस्पतिं वज्रिणम् ।
स्वर्णाङ्गं धनुमीनपं कटकगेहोच्चं
तनूजप्रदं
वन्दे दैत्यरिपुं च भौमसुहृदं
ज्ञानस्वरूपं गुरुम् ॥ ५॥
जो पद्मासन में स्थित,
सूर्य के शत्रु, हाथी पर सवार, देवताओं के गुरु, वाक् पति, वज्रधारी, स्वर्ण के
समान शरीर वाले, धनु और मीन राशि के स्वामी, कर्क राशि में उच्च का, संतान देने वाले, राहु के
शत्रु, मंगल के मित्र, ज्ञान स्वरूप हैं और जिनके चरणों को देवताओं
के राजा इंद्र द्वारा पूजे जाते हैं। ऐसे गुरु (बृहस्पति) को मैं भजता हूँ।
शुभ्राङ्गं नयशास्त्रकर्तृजयिनं
संपत्प्रदं भोगदं
मीनोच्चं गरुडस्थितं वृष-तुलानाथं
कलत्रप्रदम् ।
केन्द्रे मङ्गलकारिणं शुभगुणं
लक्ष्मी-सपर्याप्रियं
दैत्यार्च्यं भृगुनन्दनं कविवरं
शुक्रं भजेऽहं सदा ॥ ६॥
जो शुभ्र वर्ण वाले,
न्यायशास्त्र के ज्ञाता, विजयी, धन और भोग देने वाले, मीन राशि में उच्च, गरुड़ पर स्थित, वृष और तुला राशि के स्वामी,
और [पत्नी] प्रदान करने वाले, केंद्र में मंगलकारी, शुभ गुणों वाला,
धन-सम्पदा देनेवाला, दानवों द्वारा पूजित, भृगु
का पुत्र और महान कवि है। मैं उस शुक्र (शुक्र ग्रह) को सदा भजता हूँ।
आयुर्दायकमाजिनैषधनुतं भीमं
तुलोच्चं शनिं
छाया-सूर्यसुतं शरासनकरं दीपप्रियं
काश्यपम् ।
मन्दं माष-तिलान्न-भोजनरुचिं
नीलांशुकं वामनं
शैवप्रीति-शनैश्चरं शुभकरं
गृध्राधिरूढं भजे ॥ ७॥
जो आयु देने वाले,
बकरी के चर्म से बने धनुष को धारण करनेवाले, भयंकर,
तुला राशि में उच्च (बलवान) का, छाया और सूर्य के पुत्र,
धनुष-बाण धारण करनेवाले, प्रकाशवान और काश्यप
गोत्र के, मंद गति वाले, उड़द और तिल से बने भोजन प्रिय,
नीले वस्त्र पहनने वाले, वामन (छोटे कद के),
शैव (शिव) के भक्त, शुभ फल देने वाले और कौवे
पर सवार हैं, मैं उन शनिदेव को सदा भजता हूँ।
वन्दे रोगहरं करालवदनं शूर्पासने
भासुरं
स्वर्भानुं विषसर्पभीति-शमनं
शूलायुधं भीषणम् ।
सूर्येन्दु-ग्रहणोन्मुखं बलमदं
दत्याधिराजं तमं
राहुं तं भृगुपुत्रशत्रुमनिशं
छायाग्रहं भावये ॥ ८॥
जो रोगों को हरने वाले, भयानक चेहरे
वाले, शूर्प (सूप) के आसन वाले, प्रकाशमान, स्वर्भानु
(राहुग्रह) की पीड़ा और सर्प के भय को शांत करने वाले, त्रिशूल
धारण करने वाले, भयंकर, सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगाने वाले,
बल और मद (अहंकार) देनेवाले, दानवों के राजा,
अंधकार के प्रतीक, देवों के शत्रु और छाया
ग्रह हैं, उन राहुदेव (राहुग्रह) को मैं भजता हूँ।
गौरीशप्रियमच्छकाव्यरसिकं
धूम्रध्वजं मोक्षदं
केन्द्रे मङ्गलदं कपोतरथिनं
दारिद्र्य-विध्वंसकम् ।
चित्राङ्गं नर-पीठगं गदहरं दान्तं
कुलुत्थ-प्रियं
केतुं ज्ञानकरं कुलोन्नतिकरं
छायाग्रहं भावये ॥ ९॥
जो शिवजी के प्रिय,
मत्स्य (मछली) सदृश, काव्य (कविता) रसिक, धूम्रध्वजवाले
(धुएं का झंडा), मोक्ष (मुक्ति) देनेवाले, केंद्र में शुभ, कबूतर के रथ पर सवार, दरिद्रता को नष्ट करनेवाले, विभिन्न रंगोंवाले,
नरपीठ (मनुष्य के आसन पर) पर रहनेवाले, रोगनाशक,
शांत, कुलथी (एक प्रकार का अनाज) का प्रेमी,
ज्ञान देनेवाले, कुल (वंश) की उन्नति करनेवाले,
और छायाग्रह (छाया ग्रह) के रूप में है।उन केतुदेव को मैं भजता हूँ।
सर्वोपास्य-नवग्रहाः! जडजनो जाने न
युष्मद्गुणान्
शक्तिं वा महिमानमप्यभिमतां पूजां च
दिष्टं मम ।
प्रार्थ्यं किन्नु कियत् कदा बत कथं
किं साधु वाऽसाधु किं
जाने नैव यथोचितं दिशत मे सौख्यं
यथेष्टं सदा ॥ १०॥
हे सभी द्वारा पूजनीय नवग्रह,
मैं अज्ञानी मनुष्य, आपके गुणों, शक्ति, महिमा और पूजादि को नहीं जानता। मैं नहीं
जानता कि क्या, कितना, कब, कैसे, और किस प्रकार की प्रार्थना, शुभ या अशुभ, आपके लिए उचित है। कृपया मुझे मेरी
इच्छा के अनुसार सुख प्रदान करें।
नवग्रह स्तोत्रं फलश्रुति:
नित्यं नवग्रह-स्तुतिमिमां देवालये
वा गृहे
श्रद्धा-भक्ति-समन्वितः पठति चेत्
प्राप्नोति नूनं जनः ।
दीर्घं चायुररोगतां शुभमतिं कीर्तिं
च संपच्चयं
सत्सन्तानमभीष्ट-सौख्यनिवहं
सर्व-ग्रहानुग्रहात् ॥ ११॥
जो कोई भी श्रद्धा और भक्ति के साथ
इस नवग्रह स्तोत्र को मंदिर में या घर पर नित्य पढ़ता है,
वह निश्चित रूप से दीर्घायु, आरोग्यता,
सद्बुद्धि, यश, धन और मनचाहा सद्गुणी संतान
सुख लाभ प्राप्त करता है तथा उसे सभी ग्रहों की कृपा प्राप्त होता है।
॥ इति श्री नवग्रह स्तोत्रं
संपूर्णम्॥
नवग्रह स्तोत्रं
ग्रहों की बुरी दशा चलने पर ये
जरूरी होता है कि आप इन ग्रहों को शांत रखने के लिए उपाय करें। शास्त्रों में
प्रत्येक ग्रह को शांत करने के कई तरह के उपाय और पूजा बताई गई हैं। हालांकि कई
बार कुंडली में एक से अधिक ग्रह अशांत रहते हैं और ऐसा होने पर आप श्री नवग्रह स्तोत्रं का पाठ करें। इस स्तोत्र का पाठ करने से नौ ग्रह हमेशा शांत रहते हैं और
इन ग्रहों के प्रकोप से जातक की रक्षा होती है। इसलिए जब भी आपके ग्रह अशांत हों
तो आप इस स्तोत्र का पाठ कर लें। इस स्तोत्र में हर ग्रहों के लिए मंत्र दिया गया
है। ये एक प्रकार की नौ ग्रहों से जुड़ी प्रार्थना है। इस स्तोत्र का पाठ करने से
ये ग्रह हमारे अनुकूल चलते हैं और जीवन की हर तरह की तकलीफ को दूर कर देते हैं।
कोई भी इंसान इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है और ये जरूरी नहीं है कि ग्रहों की खराब
दशा चलने पर ही नवग्रह स्तोत्र का पाठ किया जाए। इस स्तोत्र को रोज पढ़ने से
कुंडली में ग्रह शांत बनें रहते हैं और आपके जीवन में किसी भी तरह की दिक्कते पैदा
नहीं करते हैं। इस स्तोत्र को आप अपने घर में आसानी से बैठकर पढ़ सकते हैं। ये
स्तोत्र बेहद ही सरल है और इसमें नौ मंत्र बताए गए हैं। जो कि हर एक ग्रह से जुड़
हुए हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से ग्रह सदा शांत रहते हैं और इनके प्रकोप से
आपकी रक्षा होती है। रोजाना इस स्तोत्र को करने से रोग दूर हो जाते हैं और आपको
सेहतमंद शरीर मिलता है। ग्रह शांत रहने से घर में कलह नहीं होती है और दिमाग शांत
रहता है।
नवग्रह स्तोत्रम्
Navagrah stotram
श्री नवग्रह स्तोत्रम्
॥ नवग्रह स्तोत्र ॥
ज्योतिर्मण्डलमध्यगं गदहरं
लोकैक-भास्वन्मणिं
मेषोच्चं प्रणतिप्रियं द्विजनुतं
छायपतिं वृष्टिदम् ।
कर्मप्रेरकमभ्रगं शनिरिपुं
प्रत्यक्षदेवं रविं
ब्रह्मेशान-हरिस्वरूपमनग़्हं
सिंहेश-सूर्यं भजे ॥ १॥
जो रोगों को हरने वाला,
संसार के एकमात्र प्रकाशमान मणि और वर्षा करने में समर्थ, ज्योतिमण्डल
(ग्रहमण्डल) के मध्य में स्थित, मेष राशि में जो उच्च का
होता है, जो कर्म के कारक, आकाश में विचरण करने वाले,
शनि के शत्रु है, ऐसे छायापति, सिंहराशि स्वामी, ब्रह्मा, ईश (शिव) और हरि (विष्णु) के स्वरूप जिनका ब्राह्मणों द्वारा सदैव स्तुति व
नमन किया जाता है और जो साक्षात ईश्वर हैं, उन सूर्यदेव को मैं भजता हूँ।
चन्द्रं शङ्कर-भूषणं मृगधरं
जैवातृकं रञ्जकं
पद्मासोदरमोषधीशममृतं
श्रीरोहिणीनायकम् ।
शुभ्राश्वं क्षयवृद्धिशीलमुडुपं
सद्बुद्धि-चित्तप्रदं
शर्वाणीप्रियमन्दिरं बुधनुतं तं
कर्कटेशं भजे ॥ २॥
जो शिव आभूषणरूप,
मृगधर, जैवातृक, रंजक,
पद्मासहोदर, ओषधीश, अमृत,
और श्रीरोहिणीनायक हैं। शुभ्र (सफेद) घोड़े वाले, क्षय और वृद्धि (कलाओं) वाले, सद्बुद्धि देनेवाले,
पार्वती के प्रिय, बुध पूजित, उस कर्कराशि के स्वामी चंद्रमा को मैं भजता हूँ।
भौमं शक्तिधरं त्रिकोणनिलयं
रक्ताङ्गमङ्गारकम् ।
भूदं मङ्गलवासरं ग्रहवरं
श्रीवैद्यनाथार्चकम् ।
क्रूरं षण्मुखदैवतं मृगगृहोच्चं
रक्तधात्वीश्वरं
नित्यं वृश्चिकमेषराशिपतिमर्केन्दुप्रियं
भावये ॥ ३॥
जो 'भौम', 'शक्तिधर', 'त्रिकोणनिलय',
'रक्तांग', 'अंगारक', 'भूद',
'मंगलवार', 'ग्रहवर' और 'श्रीवैद्यनाथार्चक' नाम से जाना जाता है। जो स्वभाव
से क्रूर, मृगशिरा नक्षत्र में उच्च (उच्च राशि)का, रक्त धातु (लोहा), वृश्चिक और मेष राशियों के स्वामी, सूर्य और चंद्रमा को सदा प्रिय, षण्मुख
(छह मुख वाले) भगवान कार्तिकेय जिनके देवता हैं, ऐसे मंगलदेव को मैं भजता हूँ।
सौम्यं सिंहरथं बुधं कुजरिपुं
श्रीचन्द्र-तारासुतं
कन्योच्चं मगधोद्भवं सुरनुतं
पीतांबरं राज्यदम् ।
कन्यायुग्म-पतिं कवित्व-फलदं
मुद्गप्रियं बुद्धिदं
वन्दे तं गदिनं च पुस्तककरं विद्याप्रदं सर्वदा
॥ ४॥
जो सौम्य,
सिंह रथ पर सवार, कुज (मंगल) के शत्रु,
श्री चंद्र और तारा के पुत्र, कन्या राशि में
उच्च, मगध में उत्पन्न, देवताओं द्वारा
पूजित, पीतांबर (पीले वस्त्र) पहने हुए, और राज्य देने वाले हैं। जो मिथुन और कन्या राशि के स्वामी, कविता का फल देने वाले, मूंग प्रिय, बुद्धि देने वाले, गदा धारण करने वाले, पुस्तक हाथ में लिए हुए और हमेशा विद्या देने वाले हैं। उन बुधदेव को मैं
भजता हूँ।
देवेन्द्र-प्रमुखार्च्यमान-चरणं
पद्मासने संस्थितं
सूर्यारिं गजवाहनं सुरगुरुं
वाचस्पतिं वज्रिणम् ।
स्वर्णाङ्गं धनुमीनपं कटकगेहोच्चं
तनूजप्रदं
वन्दे दैत्यरिपुं च भौमसुहृदं
ज्ञानस्वरूपं गुरुम् ॥ ५॥
जो पद्मासन में स्थित,
सूर्य के शत्रु, हाथी पर सवार, देवताओं के गुरु, वाक् पति, वज्रधारी, स्वर्ण के
समान शरीर वाले, धनु और मीन राशि के स्वामी, कर्क राशि में उच्च का, संतान देने वाले, राहु के
शत्रु, मंगल के मित्र, ज्ञान स्वरूप हैं और जिनके चरणों को देवताओं
के राजा इंद्र द्वारा पूजे जाते हैं। ऐसे गुरु (बृहस्पति) को मैं भजता हूँ।
शुभ्राङ्गं नयशास्त्रकर्तृजयिनं
संपत्प्रदं भोगदं
मीनोच्चं गरुडस्थितं वृष-तुलानाथं
कलत्रप्रदम् ।
केन्द्रे मङ्गलकारिणं शुभगुणं
लक्ष्मी-सपर्याप्रियं
दैत्यार्च्यं भृगुनन्दनं कविवरं
शुक्रं भजेऽहं सदा ॥ ६॥
जो शुभ्र वर्ण वाले,
न्यायशास्त्र के ज्ञाता, विजयी, धन और भोग देने वाले, मीन राशि में उच्च, गरुड़ पर स्थित, वृष और तुला राशि के स्वामी,
और [पत्नी] प्रदान करने वाले, केंद्र में मंगलकारी, शुभ गुणों वाला,
धन-सम्पदा देनेवाला, दानवों द्वारा पूजित, भृगु
का पुत्र और महान कवि है। मैं उस शुक्र (शुक्र ग्रह) को सदा भजता हूँ।
आयुर्दायकमाजिनैषधनुतं भीमं
तुलोच्चं शनिं
छाया-सूर्यसुतं शरासनकरं दीपप्रियं
काश्यपम् ।
मन्दं माष-तिलान्न-भोजनरुचिं
नीलांशुकं वामनं
शैवप्रीति-शनैश्चरं शुभकरं
गृध्राधिरूढं भजे ॥ ७॥
जो आयु देने वाले,
बकरी के चर्म से बने धनुष को धारण करनेवाले, भयंकर,
तुला राशि में उच्च (बलवान) का, छाया और सूर्य के पुत्र,
धनुष-बाण धारण करनेवाले, प्रकाशवान और काश्यप
गोत्र के, मंद गति वाले, उड़द और तिल से बने भोजन प्रिय,
नीले वस्त्र पहनने वाले, वामन (छोटे कद के),
शैव (शिव) के भक्त, शुभ फल देने वाले और कौवे
पर सवार हैं, मैं उन शनिदेव को सदा भजता हूँ।
वन्दे रोगहरं करालवदनं शूर्पासने
भासुरं
स्वर्भानुं विषसर्पभीति-शमनं
शूलायुधं भीषणम् ।
सूर्येन्दु-ग्रहणोन्मुखं बलमदं
दत्याधिराजं तमं
राहुं तं भृगुपुत्रशत्रुमनिशं
छायाग्रहं भावये ॥ ८॥
जो रोगों को हरने वाले, भयानक चेहरे
वाले, शूर्प (सूप) के आसन वाले, प्रकाशमान, स्वर्भानु
(राहुग्रह) की पीड़ा और सर्प के भय को शांत करने वाले, त्रिशूल
धारण करने वाले, भयंकर, सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगाने वाले,
बल और मद (अहंकार) देनेवाले, दानवों के राजा,
अंधकार के प्रतीक, देवों के शत्रु और छाया
ग्रह हैं, उन राहुदेव (राहुग्रह) को मैं भजता हूँ।
गौरीशप्रियमच्छकाव्यरसिकं
धूम्रध्वजं मोक्षदं
केन्द्रे मङ्गलदं कपोतरथिनं
दारिद्र्य-विध्वंसकम् ।
चित्राङ्गं नर-पीठगं गदहरं दान्तं
कुलुत्थ-प्रियं
केतुं ज्ञानकरं कुलोन्नतिकरं
छायाग्रहं भावये ॥ ९॥
जो शिवजी के प्रिय,
मत्स्य (मछली) सदृश, काव्य (कविता) रसिक, धूम्रध्वजवाले
(धुएं का झंडा), मोक्ष (मुक्ति) देनेवाले, केंद्र में शुभ, कबूतर के रथ पर सवार, दरिद्रता को नष्ट करनेवाले, विभिन्न रंगोंवाले,
नरपीठ (मनुष्य के आसन पर) पर रहनेवाले, रोगनाशक,
शांत, कुलथी (एक प्रकार का अनाज) का प्रेमी,
ज्ञान देनेवाले, कुल (वंश) की उन्नति करनेवाले,
और छायाग्रह (छाया ग्रह) के रूप में है।उन केतुदेव को मैं भजता हूँ।
सर्वोपास्य-नवग्रहाः! जडजनो जाने न
युष्मद्गुणान्
शक्तिं वा महिमानमप्यभिमतां पूजां च
दिष्टं मम ।
प्रार्थ्यं किन्नु कियत् कदा बत कथं
किं साधु वाऽसाधु किं
जाने नैव यथोचितं दिशत मे सौख्यं
यथेष्टं सदा ॥ १०॥
हे सभी द्वारा पूजनीय नवग्रह,
मैं अज्ञानी मनुष्य, आपके गुणों, शक्ति, महिमा और पूजादि को नहीं जानता। मैं नहीं
जानता कि क्या, कितना, कब, कैसे, और किस प्रकार की प्रार्थना, शुभ या अशुभ, आपके लिए उचित है। कृपया मुझे मेरी
इच्छा के अनुसार सुख प्रदान करें।
नवग्रह स्तोत्रं फलश्रुति:
नित्यं नवग्रह-स्तुतिमिमां देवालये
वा गृहे
श्रद्धा-भक्ति-समन्वितः पठति चेत्
प्राप्नोति नूनं जनः ।
दीर्घं चायुररोगतां शुभमतिं कीर्तिं
च संपच्चयं
सत्सन्तानमभीष्ट-सौख्यनिवहं
सर्व-ग्रहानुग्रहात् ॥ ११॥
जो कोई भी श्रद्धा और भक्ति के साथ
इस नवग्रह स्तोत्र को मंदिर में या घर पर नित्य पढ़ता है,
वह निश्चित रूप से दीर्घायु, आरोग्यता,
सद्बुद्धि, यश, धन और मनचाहा सद्गुणी संतान
सुख लाभ प्राप्त करता है तथा उसे सभी ग्रहों की कृपा प्राप्त होता है।
॥ इति श्री नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णम्॥

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