श्रीराम
'रम्' धातु
में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है। 'रम्'
धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से
सम्बद्ध है। वे प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास) करते हैं, इसलिए 'राम'
हैं तथा भक्तजन उनमें 'रमण' करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे 'राम' हैं - "रमते कणे कणे इति रामः"। राम
भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, और इन्हें श्रीराम और
श्रीरामचन्द्र के नामों से भी जाना जाता है। श्रीराम का जीवनकाल एवं पराक्रम
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी
तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य
रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी
रामायण की रचनाएँ हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। पुराणों
में श्री राम के जन्म के बारे में स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि श्री राम का जन्म
वर्तमान उत्तर प्रदेश का जिला अयोध्या नामक नगर में हुआ था। अयोध्या, जो कि भगवान राम के पूर्वजों की ही राजधानी थी। रामचन्द्र के पूर्वज रघु
थे। राम के कथा से सम्बद्ध सर्वाधिक प्रमाणभूत ग्रन्थ आदिकाव्य वाल्मीकीय रामायण
में रामजी के-जन्म के सम्बन्ध में निम्नलिखित वर्णन उपलब्ध है:
चैत्रे नावमिके तिथौ।।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु
पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने
वाक्पताविन्दुना सह।।
अर्थात् चैत्र मास की नवमी तिथि में
पुनर्वसु नक्षत्र में, पांच ग्रहों के
अपने उच्च स्थान में रहने पर तथा कर्क लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति के स्थित
होने पर (रामजी का जन्म हुआ)।
वें अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ
और देवी कौशल्या के पुत्र थे। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीरामजी
का प्राकट्य हुआ था। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। भगवान राम बचपन से
ही शान्त स्वभाव के वीर थे। श्री राम अत्यन्त पूजनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं, इन्हें
पुरुषोत्तम शब्द से भी अलंकृत किया जाता है। अतः मर्यादा-पुरुषोत्तम कहलाते हैं।
राम की पत्नी का नाम सीता था इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण,
भरत और शत्रुघ्न। हनुमान राम के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। इनके
दो पुत्र कुश व लव थे। राम ने लंका के राजा रावण (जिसने अधर्म का पथ अपना लिया था)
का वध किया। श्री राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र,
माता-पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा।
राम न्यायप्रिय थे। उनका राज्य न्यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत
में जब भी सुराज (अच्छे राज) की बात होती है तो रामराज या रामराज्य का उदाहरण दिया
जाता है। जब रामचन्द्र जी का जीवन पूर्ण हो गया, तब उन्होंने
यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में दैहिक त्याग कर पुनः बैकुंठ
धाम में विष्णु रूप में विराजमान हो गये।
श्रीराम
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