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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
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श्रीरामचालीसा
चौपाई
श्री रघुबीर
भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
निशि दिन
ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ॥
ध्यान धरे
शिवजी मन माहीं । ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥
जय जय जय
रघुनाथ कृपाला । सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥
दूत तुम्हार
वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥
तुव भुजदण्ड
प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥
तुम अनाथ के
नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥
ब्रह्मादिक तव
पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥
चारिउ वेद भरत
हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥
गुण गावत शारद
मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ॥
नाम तुम्हार
लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ॥
राम नाम है
अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥
गणपति नाम
तुम्हारो लीन्हों । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥
शेष रटत नित
नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ॥
फूल समान रहत
सो भारा । पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥
भरत नाम
तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुँ न रण में हारो ॥
नाम शत्रुहन
हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥
लषन तुम्हारे
आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ॥
ताते रण जीते
नहिं कोई । युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥
महा लक्श्मी
धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ॥
सीता राम
पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥
घट सों प्रकट
भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ॥
सो तुमरे नित
पांव पलोटत । नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥
सिद्धि अठारह
मंगल कारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ॥
औरहु जो अनेक
प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥
इच्छा ते
कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ॥
जो तुम्हरे
चरनन चित लावै । ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥
सुनहु राम तुम
तात हमारे । तुमहिं भरत कुल-पूज्य प्रचारे ॥
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कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥
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तुमहीं राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥
रामा आत्मा
पोषण हारे । जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥
जय जय जय
प्रभु ज्योति स्वरूपा । निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥
सत्य सत्य जय
सत्य-ब्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥
सत्य भजन
तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ॥
सत्य शपथ
गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥
ज्ञान हृदय दो
ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जापति भूपा ॥
धन्य धन्य तुम
धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ॥
सत्य शुद्ध
देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥
सत्य सत्य तुम
सत्य सनातन । तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥
याको पाठ करे
जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥
आवागमन मिटै
तिहि केरा । सत्य वचन माने शिव मेरा ॥
और आस मन में
जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥
साग पत्र सो
भोग लगावै । सो नर सकल सिद्धता पावै ॥
अन्त समय
रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
श्री हरि दास
कहै अरु गावै । सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥
दोहा
सात दिवस जो
नेम कर पाठ करे चित लाय ।
हरिदास
हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥
राम चालीसा जो
पढ़े रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन
में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥
श्रीरामचालीसा समाप्त ॥
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