एकश्लोकि रामायणम्
जिनके पास समयाभाव हो और वह श्री
रामायण का पाठ नहीं कर पा रहा हो तो एकश्लोकि रामायणम् का हनुमान सहित राम परिवार
का ध्यान कर पाठ करें। इससे आपको पूरी रामायण पाठ का फल प्राप्त होगा। यहाँ पाठकों
के लाभार्थ तीन प्रकार के एक श्लोकि रामायण दिया जा रहा है।
एकश्लोकि रामायण
Ek shloki Ramayan
एकश्लोकि रामायणम् १
आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं
कांचनम् ।
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसंभाषणम्
।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्
।
पश्चाद् रावण कुंभकर्ण हननम् एतद्धि
रामायणम् ॥
एक श्लोकी रामायण का भावार्थ- सबसे पहले राम वन में गए, वहां उन्होंने सोने के मृग का पीछा किया और उसे मार डाला, इसके बाद सीता का अपहरण और जटायु (पक्षी) की मृत्यु हो गई। राम ने सुग्रीव से मित्रता व वार्ता की, श्रीराम ने बाली को मारा और समुद्र पार किया, फिर हनुमानजी ने लंका को जला दिया। अंत में रामजी ने रावण और कुंभकर्ण को मार डाला । इस प्रकार यह एक श्लोकी रामायण का सार है।
इति एकश्लोकि रामायणं (१)
सम्पूर्णम् ॥
एक श्लोकी रामायण
एकश्लोकि रामायणम् २
रामादौ जननं कुमारगमनं
यज्ञप्रतीपालनं
शापादुद्धरणं धनुर्विदलनं
सीताङ्गनोद्वाहनम् ।
लङ्काया दहनं समुद्रतरणं
सौमित्रिसम्मोहनं
रक्षः संहरणं स्वराज्यभवनं चैतद्धि
रामायणम् ॥
एक श्लोकी रामायण का अर्थ- रामजी का
जन्म,
राम का कुमार रूप में गमन, यज्ञ का रक्षा करना,
अहिल्या को शाप से उद्धार, धनुष का तोड़ना,
सीता का विवाह, लंका का दहन, समुद्र पार करना, लक्ष्मण का सम्मोहन, राक्षसों का संहार, और अपने राज्य में वापसी । यह एक
श्लोक में रामायण की कथा का संक्षेप में वर्णन है।
इति एकश्लोकि रामायणं (२)
सम्पूर्णम् ॥
एकश्लोकीरामायण
एकश्लोकि रामायणम् ३
जन्मादौ क्रतुरक्षणं मुनिपतेः
स्थाणोर्धनुर्भञ्जनं
वैदेहीग्रहणं पितुश्च
वचनाद्घोराटवीगाहनम् ।
कोदण्डग्रहणं खरादिमथनं
मायामृगच्छेदनं
बद्धाब्धिक्रमणं दशास्यनिधनं
चैतद्धि रामायणम् ॥
एकश्लोकी रामायण संस्कृत श्लोक का
हिंदी अनुवाद- जन्म के समय यज्ञ की रक्षा करना, मुनि
(विश्वामित्र) के स्वामी द्वारा शिव के धनुष को तोड़ना, सीता
का अपहरण, पिता की आज्ञा से भयानक वन में जाना, धनुष को उठाना, खर आदि राक्षसों का वध करना, मायावी मृग का पीछा करना, समुद्र पर पुल बनाना,
और रावण का वध करना । यह एक श्लोक में राम के जन्म से लेकर रावण के
वध तक की घटनाओं को संक्षिप्त में रामायण की कथा का वर्णन है।
इति एकश्लोकि रामायणं (३) सम्पूर्णम् ॥

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