राहुकवचम्
राहुकवचम् - राहु हिन्दू ज्योतिष के
अनुसार असुर स्वरभानु का कटा हुआ सिर है, जो
ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण करता है। इसे कलात्मक रूप में बिना धड़
वाले सर्प के रूप में दिखाया जाता है, जो रथ पर आरूढ़ है और
रथ आठ श्याम वर्णी कुत्तों द्वारा खींचा जा रहा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु
को नवग्रह में एक स्थान दिया गया है। दिन में राहुकाल नामक मुहूर्त (२४ मिनट) की
अवधि होती है जो अशुभ मानी जाती है।राहू की दशा चलने पर राहू द्वारा प्रदत्त पीड़ा
से मुक्ति के लिए राहुकवचम् का पाठ करें।
राहुकवचम्
ॐ अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमन्त्रस्य
चन्द्रमा ऋषिः,
अनुष्टुप्छन्दः,
रां बीजम्, नमः शक्तिः,
स्वाहा कीलकम्,
राहुकृत पीडानिवारणार्थे, धनधान्य,
आयुरारोग्य आदि समृद्धि
प्राप्तयर्थे जपे विनियोगः ॥
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं
किरीटिनम् ।
सैंहिकेयं करालास्यं
लोकानामभयप्रदम् ॥ १॥
नीलाम्बरः शिरः पातु ललाटं
लोकवन्दितः ।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे
त्वर्धशरीरवान् ॥ २॥
नासिकां मे धूम्रवर्णः
शूलपाणिर्मुखं मम ।
जिह्वां मे सिंहिकासूनुः कण्ठं मे
कठिनाङ्घ्रिकः ॥ ३॥
भुजङ्गेशो भुजौ पातु नीलमाल्याम्बरः
करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मन्त्री पातु
कुक्षिं विधुन्तुदः ॥ ४॥
कटिं मे विकटः पातु ऊरू मे
सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जङ्घे मे
पातु जाड्यहा ॥ ५॥
गुल्फौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे
भीषणाकृतिः ।
सर्वाण्यङ्गानि मे पातु
नीलचन्दनभूषणः ॥ ६॥
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो
भक्त्या पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः
सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां
श्रियमृद्धिमायु-
रारोग्यमात्मविजयं च हि
तत्प्रसादात् ॥ ७॥
॥ इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसञ्जयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं सम्पूर्णम् ॥
0 Comments