गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र 2

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र 2

नक्षत्रों की अधिक जानकारी के लिए नक्षत्र ज्ञान आपने पूर्व में पढ़ा । अब इस अंक में आप गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र 2 को पढ़ेंगे।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र 2

गण्ड मूल नक्षत्र- पंचांग नक्षत्र २ गण्ड-मूल नक्षत्र दोष परिचय

स्कन्द पुराण के काँशी खण्ड में- सुलक्षणा नाम की कन्या का वर्णन है,जिनका जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ था। उनके जन्म से कुछ समयोपरांत उनकी माता-पिता की मृत्यु हो गई ।

नारद पुराण के अनुसार- मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण को छोड़कर शेष चरणों में तथा ज्येष्ठा के अंतिम चरण में उत्पन्न पुत्र संतान विवाहोपरांत अपने ससुर के लिए घातक होता है तथा कन्या संतान अपने जेठ के लिए और विशाखा में उत्पन्न कन्या अपने देवर के लिए अशुभफल का संकेत देती है । दिन में गडांत नक्षत्र में उत्पन्न संतान पिता को,रात्रि में माता को व संध्या में स्वयं को कष्टकारक है । ज्येष्ठा नक्षत्र व मंगलवार के योग में उत्पन्न कन्या अपने भाई के लिए घातक है ।

जातका भरणं के अनुसार- जन्म के समय मूल नक्षत्र हो तथा कृष्ण पक्ष की ३ , १० या शुक्ल पक्ष १४ तिथि हो, मंगल,शनि या बुधवार हो तो सारे कुल के लिए अशुभ है।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र 2

सामान्य-तौर पर गण्डान्त(मूल)तीन प्रकार के कहे जाते हैं-

तिथि,लग्न और नक्षत्र ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ तिथि गण्डान्तम्

तिथि गण्डान्त :

नन्दा तिथेश्च नामादौ पूर्णायाश्च तथान्तिके ।

घटिकैका शुभे त्याज्या तिथिगण्डा घटि द्वयम् ॥

नन्दा तिथि के आदि की तथा पूर्णा के अन्त की एक घड़ी अशुभ होती है और तिथि गण्डान्त में २ घड़ी अशुभ है। अतः ये शुभकार्यों में त्याज्य हैं । अर्थात् नंदा तिथि (१,,११) के आदि (शुरुआत) की और पूर्णा तिथि (५,१०,१५,३०) के अंत की एक-एक घड़ी (१ घड़ी = २४ मिनट) तिथि गण्डान्त होता है ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ लग्न गण्डान्तम्

लग्न गण्डान्त :

मीन वृश्चिक कर्कान्ते घटिकार्द्धं परित्यजेत् ।

आदौ मेषस्य धनस्य सिंहस्य घटिकार्द्धकम् ॥

मीन, वृश्चिक और कर्क के अंत की तथा मेष, धनु और सिंह के आदि में आधी-आधी घड़ी (१/२ घड़ी= १२ मिनट) तक का समय लग्न गण्डान्त होता है।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ नक्षत्र गण्डान्तम्

नक्षत्र गण्डान्त:

ज्येष्ठा श्लेषा रेवतीनां नक्षत्रान्ते घटीद्वयम् ।

आदौ मूलमघाश्विन्याम् भगण्डे घटिकाद्वयम् ॥

ज्येष्ठा, अश्लेषा, रेवती  के अंत में और मूल, मघा, अश्विनी, के आदि में दो-दो घड़ी (२घड़ी=४८ मिनट) नक्षत्र गण्डान्त होता है । इन छ: नक्षत्रों को ही गंड या मूल की संज्ञा प्राप्त है ।

नक्षत्रों की शांति व प्रसन्नार्थ नक्षत्र सूक्तम् का नित्य पाठ  करें।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ अभुक्त मूल

ज्येष्ठान्ते घटिकायुग्मं मूलादौ घटिकाद्वयम् ।

अभुक्तमूलमेतत्स्यादित्येवं नारदोऽब्रवीत् ॥

वशिष्ठस्तु तयोरन्त्याद्ययोरेकद्विनाडिकम् ।

अंगिरा घटिकामेकामन्ये षट्चाष्टतत्रतु ॥

जातं शिशुं त्यजेत्तातो न पश्येद्वाष्टहायनम् ॥

ज्येष्ठा के अंत में और मूल के आदि में दो-दो घड़ी अभुक्त मूल होता है । यह नारदजी का वचन है ।

वशिष्ठजी कहते हैं कि ज्येष्ठा के अंत में एक घड़ी और मूल के आदि में दो घड़ी अभुक्त मूल है।

अंगिरा ऋषि का वचन है कि ज्येष्ठा के अंत में एक घड़ी और मूल के आदि में एक घड़ी अभुक्त मूल है ।

अन्य आचार्यो का मत है कि ज्येष्ठा के अंत में छः घड़ी और मूल के आदि में आठ घड़ी अभुक्त मूल है । ऐसे योग में जन्मे शिशु का त्याग कर दें या आठ वर्ष तक उसे न देखें ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ मूल का वास

माघाषाढाश्विनो भाद्रपदे मूलं वसेद्दिवि ।

कार्तिके श्रावणे चैत्रे पौषमासे तु भूतले ॥

वैशाखे फाल्गुने ज्येष्ठे मार्गे पातालवर्ति तत् ।

भूतले वर्तमाने तु ज्ञेयो दोषोऽन्यथा न हि ॥  

माघ, आषाढ़, भाद्रपद व आश्विन इन महीनों में मूल का वास आकाश में रहता है । श्रवण, कार्तिक, चैत्र व पौष मास में मूल का वास पृथ्वी पर होता है । ज्येष्ठ, वैशाख, मार्गशीर्ष व फाल्गुन  मास में पाताल में मूल का वास होता है ।  जन्म काल में  मूल का जिस लोक में वास होता है उसी लोक का अनिष्ट करता है अतः जब पृथ्वी पर मूल का वास होने की स्थिति में ही जातक के लिए अनिष्टकारी होगा,अन्यथा दोष नहीं है ।

आकाश

पृथ्वी

पाताल

मूल का वास

माघ,आषाढ़,भाद्रपद, आश्विन

श्रवण, कार्तिक, चैत्र, पौष

ज्येष्ठ,वैशाख, मार्गशीर्ष, फाल्गुन

माह

 

टीप- गण्डान्त तिथि,लग्न और नक्षत्र में शुभ कार्य यथा संभव न करें क्योंकि यह अशुभ है ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ गण्ड-मूलादि नक्षत्र तथा उनके विभिन्न चरणों का फल

चरण

प्रथम

द्वितीय

तृतीय

चतुर्थ

ज्येष्ठा

बड़े भाई-बहनों को कष्ट

छोटे भाईबहनों को कष्ट

माता को कष्ट

स्वयं को कष्ट

 

आश्लेषा

सुखप्रद

धननाश

माता को कष्ट

पिता को कष्ट

मूल

पिता को कष्ट

माता को कष्ट

धननाश

सुखप्रद

मघा

माता को कष्ट

पिता को कष्ट

सुखप्रद

शुभ

अश्विनी

पिता को कष्ट

सुखप्रद

सौभाग्य

सुखप्रद

रेवती

लाभ

सुखप्रद

उत्तमफल

कष्टप्रद

तिथिगण्डे भगण्डे च लग्नगण्डे च जातकः ।

न जीवति यदा जातो जीविते च धनी भवेत् ॥

तिथि, नक्षत्र, लग्न के गंडान्त में बालक का जन्म हो तो न जिये- जो जियो तो वह धनी हो । ये छः नक्षत्र गण्ड हैं- मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा, अश्विनी, रेवती और मघा । ज्येष्ठा, मूल और आश्लेषा- इन तीन का प्रधान विचार होता है । अश्विनी, रेवती तथा मघा इन तीन का नहीं ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ ज्येष्ठा नक्षत्र फलम्

ज्येष्ठादौ मातरं हन्ति द्वितीये पितरं तथा ।

तृतीये भ्रातरं चैव मातरं च चतुर्थके ॥

आत्मानं पंचमे हन्ति षष्ठे गोत्रक्षयो भवेत् ।

सप्तमे चोभयकुलं ज्येष्ठं भ्रातरमष्टमे॥

नवमे श्वसुरं हन्ति सर्व हन्ति दशांशके ।

६० घड़ी के दस भाग करे, फिर ६-६ घड़ी का फल कहे । यदि ज्येष्ठा नक्षत्र की पहली ६ घड़ी में बालक का जन्म हो तो नानी को अशुभ । दूसरी ६ घड़ी में जन्मा हो तो नाना को कष्ट । तीसरी ६ घड़ी में जन्मा हो तो मामा को कष्ट । चौथी ६ घड़ी में जन्मा हो तो माता को कष्ट । पांचवीं ६ घड़ी में जन्मा हो तो बालक को कष्ट । छठी ६ घड़ी में जन्मा हो तो गोत्र वालों को कष्ट । सातवीं ६ घड़ी में नाना के परिवार को और अपने कुटुम्ब को कष्ट आठवीं ६ घड़ी में भाई को कष्ट । नवीं ६ घड़ी में ससुर को कष्ट तथा दसवीं ६ घड़ी में सब कुटुम्ब को कष्ट कहे ।

वार- सेवन फल

रवि ताम्बूल, सोम को दर्पण । मंगल को गुड़ खाकर अर्पण। बुध को धनिया, गुरु को जौ । शुक्र को दही की पीड़ा कहे । शनिश्चर को अदरक खावे । सुख सम्पत्ति घर को आवे ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ मूल नक्षत्र फलम्

मूलेष्टौ मूलवृक्षस्य घटिकाः परिकीर्तिता ।

स्तम्भेषु षष्ठं घटिका त्वं चैकादश स्मृताः ॥

शाखायां च नव प्रोक्ताः पत्रे प्रोक्ताश्चतुर्दश ।

पुष्पे पंच फले वेदाः शिखायां च त्रयः स्मृताः ॥

मूले नाशो हि मूलस्य स्तम्भे हानिर्धनक्षयः ।

त्वक् भ्रातुर्विनाशश्च शाखायां मातृपीड़नम् ॥

परिवारक्षयः पत्रे पुष्पे मंत्री च भूपतेः ।

फले राज्यं शिखायां स्यादल्पजीवी च बालकः ॥

अब मूल संज्ञक नक्षत्र के विचारने की रीति मूलवृक्ष बना कर कहते हैं। मूल वृक्ष बनाकर ८ घड़ी जड़ में रखे, ६ स्तम्भ में, ११ छाल में, ९ शाखा में, १४ पत्र में, ५ पुष्प में, ४ फल में, ३ शिखा में- इस प्रकार ६० घड़ी रखे। फिर उसका फल कहे । यदि मूल की ८ घड़ी में बालक का जन्म हो तो मूल नाश हो । स्तम्भ की ६ घड़ी में हो तो धन की हानि । छाल की ११ घड़ी में हो तो भाई का नाश । शाखा की ९ घड़ी में हो तो माता को पीड़ा । पत्तों की १४ घड़ी में हो तो परिवार का नाश । फल की ४ घड़ी में जन्म हो तो राजा का मंत्री हो अथवा वंश में या देश में श्रेष्ठ हो। और शिखा की ३ घड़ी में जन्म हो तो आयु अल्प पावे अर्थात् उमर थोड़ी हो ।

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ मूल वृक्ष फलम्

शिखा

फल

फूल

पत्र

शाखा

छाल

स्तम्भ

मूल

१४

११

अल्पायु

राजा

राजा-मंत्रि

पर. क्षय

मा. कष्ट

भाई नाश

धनहीन

मू. नाश

गण्ड मूल नक्षत्र - पंचांग नक्षत्र २ आश्लेषा नक्षत्रं फलम्  

मूर्द्धास्यनेत्रगलकांशयुगञ्च बाहू ।

हृज्जानु गुह्यपदमित्यति. देह भागः ॥

बाणाद्रि नेत्रहुत भुक् श्रुतिनाग रुद्रं ।

षडनन्दपंचशिरसः क्रमशस्तु नाड्यः ॥ १ ॥

राज्यं पितृक्षयो मातृनाशः कामक्रियारतिः ।

पितृभक्तो बली स्वघ्नस्त्यागी भोगी धनी क्रमात् ॥

आश्लेषा नक्षत्र के जिस भाग में बालक का जन्म हो, उसका फल इस प्रकार कहना । आश्लेषा नक्षत्र की पहली ५ घड़ी मे बालक का जन्म हो तो राज्य प्राप्ति । दूसरे भाग की ७ घड़ी में पिता को कष्ट । तीसरे भाग की २ घड़ी में माता को कष्ट । चौथे भाग की ३ घड़ी में पर स्त्री रत । पांचवें भाग की ४ घड़ी में पिता का भक्त । छठे भाग की ८ घड़ी में बलवान् । सातवें भाग की ११ घड़ी में आत्मघाती । आठवें भाग की ६ घड़ी में त्यागी । नवें भाग की ९ घड़ी में भोगी तथा दसवें भाग की ५ घड़ी में धनवान् हो । इस प्रकार ६० घड़ी के १० भाग करके फल कहना चाहिए ।

मूल, ज्येष्ठा तथा आश्लेषा नक्षत्र का अलग-अलग विचार

यदि मूल, ज्येष्ठा व आश्लेषा- इन तीन नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र में बालक का जन्म हो तो इनका २८००० मन्त्रों का अथवा जितनी श्रद्धा हो, जाप कराये। और जब वह नक्षत्र २८ दिन में फिर आए, तो जिस मंत्र का जाप हो, उसका दसूठन करे । और जितना जाप हो, उसके दशांश का हवन करे । ७ या १४ या २१ या २८ ब्राह्मण जिमावे । ऐसा करने से मूल आदि नक्षत्रों का दोष दूर हो जाता है अन्यथा विघ्न होता है ।

अथ मूल नक्षत्र मन्त्र

ॐ मातेव पुत्रपृथिवीपुरीष्यमग्नि स्वेतो नावमारुषातां ।

विश्वेर्देवर्ऋतुभिः संविदानः प्रजापतिर्विश्वकर्मा विमुञ्चतु ॥

लघु लघु मन्त्र

ॐ एष ते निर्ऋते ! भागस्तं जुषस्व ॥ १

आश्लेषा नक्षत्र मन्त्र

ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु

ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः

ज्येष्ठा नक्षत्र मन्त्रः

ॐ स इषुहस्तैः सनिषंगिर्भिर्व्वशीस सृष्टा सयुधऽइन्द्रो गणेन ।

सं सृष्टजित्सोमपा बाहु शुद्धर्युग्र धन्वाप्रति हिताभिरस्ता ॥ ३॥

अश्विनी नक्षत्र मन्त्रः

ॐ अश्विनीतेजसाचक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यम् ।

वाचेन्द्रबलेन्द्रायदधुरिन्द्रियम् । ॐ अश्विनिभ्यां नमः ॥ ४

यदि अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में बालक का जन्म हो तो पिता को बाधा हो, दिन में जन्म हो तो पिता को कष्ट, रात्रि में जन्म हो तो माता को कष्ट, और संध्या में जन्म हो तो स्वयं को कष्ट होता है ।

मघा नक्षत्र मन्त्रः

ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः अक्षन्नपितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतपन्त पितरः मुन्धध्व‍म् ॥ ५ ॥

मघा के प्रथम चरण में जन्म हो तो मातृ पक्ष को कष्ट । द्वितीय चरण में हो तो पिता को कष्ट । तृतीय चरण में हो तो सुख-सम्पत्ति । चतुर्थ चरण में हो तो धन प्राप्ति हो ।

रेवती नक्षत्र मन्त्रः

ॐ पूषन् तव व्रते वयन्तरिष्येम कदाचनस्तोतारस्त इहस्मसि ॥ ६ ॥ ओं पूष्णे नमः ।

रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तो राजा हो, दूसरे चरण में मंत्री, तृतीय चरण में सुख-सम्पत्ति मिले और चतुर्थ चरण में हो तो स्वयं को कष्ट हो ।

अगले अंक में पढ़े........ ॥ गण्ड-मूल दोष शांति॥

Post a Comment

0 Comments