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पंचांग भाग २
पञ्चाङ्ग देखना सीखें के जातक प्रकरण प्रथम भाग में आपने माह, तिथि और तिथियों की संज्ञा, वार, पक्ष, नक्षत्र और नक्षत्रों के देवता, योग, ऋतु, दिशाओं के स्वामी को पढ़ा। अब भाग २ में राशि के नाम, अक्षर,दिनमान,चंद्रमा,लग्नभोग देखना का वर्णन है।
पञ्चाङ्ग भाग २ बारह राशियों के नाम
१. मेष,
२. वृष, ३. मिथुन, ४. कर्क, ५. सिंह, ६. कन्या, ७. तुला, ८. वृश्चिक, ९. धनु, १०. मकर, ११. कुम्भ और १२. मीन ।
पंचांग भाग २ दिनमान देखना
साठ घड़ी का
एक दिन होता है। कभी दिन बड़ा हो जाता है और कभी रात बड़ी हो जाती है। एक घड़ी के
६० पल होते हैं । ६० पल की एक घड़ी और एक पल के ६० विपल होते हैं । २ पल का १ मिनट
होता है । २४ मिनट की १ घड़ी होती है । २ घड़ी का एक घंटा और २४ घण्टों का एक
दिन-रात होता है । एक नक्षत्र के चार चरण होते हैं यानी चार अक्षर । जब किसी बालक
का जन्म हो, उस दिन देखना है कि कौन-सा चरण है तो उस नक्षत्र के चार भागं कर लें। जब वह
नक्षत्र आरंभ हुआ हो और जब तक रहे । जैसे - अश्विनी नक्षत्र में जन्म हुआ है तो
देखो कि यह नक्षत्र ६० घड़ी भोग करता है, तो पन्द्रह-पन्द्रह घड़ी के चार चरण हुए। जो नक्षत्र ६०
घड़ी से कम या अधिक हो तो उतनी ही घड़ियों को चार जगह बाँटें तो जितनी बाँट में
आये,
उतनी ही घड़ियों, पलों का एक नक्षत्र का एक चरण जानें। जिस चरण में जन्म हो,
उसी चरण का अक्षर नक्षत्र के नाम में पहले आता है । इसका
कुछ प्रमाण नहीं है कि एक नक्षत्र ६० ही घड़ी भोगे । जो पण्डित ६० घड़ी लगाते हैं,
उनके लगाने से राशि में अन्तर आ जाता है । देखिये कि
अश्विनी नक्षत्र में जन्म हुआ तो यह देखें कि कौन-से चरण में हुआ ?
उसी चरण के अक्षर पर नाम धरें । जैसे- चू,
चे, चो, ला- अश्विनी । पहले चरण का अक्षर चू है,
दूसरे का चे है, तीसरे का चो है, चौथे का ला है। जो चू पर लड़के का जन्म हो तो चुरामन ।
लड़की का जन्म हो तो चुन्नी । चे पर चेलाराम । चो पर चोबसिंह,
चोलावती । ला पर लालमणि या लाला । सब नक्षत्रों पर ऐसे ही
नाम रखें । ब्राह्मण के यहाँ 'शर्मा' लगाकर लिखें । क्षत्रियों के यहाँ 'वर्मा' । वैश्य के यहाँ गुप्त तथा शूद्र के यहाँ 'दास' व 'चौधरी' करके लिखना चाहिए। जिस नक्षत्र के चरण में लड़के. या लड़की
का जन्म होगा, उसका वही नक्षत्र होगा। जैसे-यह ४ अक्षरों का नक्षत्र है,
इसी प्रकार चार-चार अक्षरों के २८ नक्षत्र हैं। उन २८
नक्षत्रों के नाम तथा अक्षर आगे लिखे हैं ।
पञ्चाङ्ग भाग २ नक्षत्रों
के चार-चार अक्षर
नक्षत्र |
चरणाक्षर |
अश्विनी |
चू चे चो ला |
भरणी |
ली लू ले लो |
कृत्तिका |
आ
इ उ ए |
रोहिणी |
ओ
वा वी वु |
मृगशिरा |
वे
वो का की |
आर्द्रा |
कू
घ ङ छ |
पुनर्वसु |
के
को हा ही |
पुष्य |
हू
हे हो डा |
अश्लेषा |
डी
डू डे डो |
मघा |
मा मी मू मे |
पू. फा. |
मो
टा टी टू |
उ. फा. |
टे
टो पा पी |
हस्त |
पू
ष ण ठ |
चित्रा |
पे
पो रा री |
स्वाति |
रु
रे रो ता |
विशाखा |
ती तू ते तो |
अनुराधा |
ना नी नू ने |
ज्येष्ठा |
नो या
यी यू |
मूल |
ये यो भा भी |
पूर्वाषाढा |
भू ध फा ढा |
उत्तराषाढा |
भे भो जा जी |
अभिजित् |
जु जे जो खा |
श्रवण |
खी खू खे खो |
धनिष्ठा |
गा गी गू गे |
शतभिषा |
गो सा सी सू |
पू० भाद्रपद |
से सो दा दी |
उ० भाद्रपद |
दू थ झ ञ |
रेवती |
दे दो च ची |
नौ अक्षरों की
एक राशि होती है। जैसे चू + चे + चो+ ला + ली + लू + ले + लो + आ - इन नौ अक्षरों
की मेष राशि हुई। इन अक्षरों में से जो नाम का पहला अक्षर होगा उसकी मेष राशि होगी
। ऐसे ही ये बारह राशि हैं। बारह राशियों के नाम आगे लिखे जाते हैं-
पंचांग भाग २ नौ
अक्षरों का राशि
चू चे चो ला
ली लू ले लो आ - मेष राशि
इ उ ए ओ वा वी
वू वे वो – वृष राशि
का की कू घ ङ
छ के को हा – मिथुन राशि
ही हू हे हो
डा डी डू डे डो – कर्क राशि
मा मी मू मे
मो टा टी टू टे – सिंह राशि
टो पा पी पू ष
ण ठ पे पो – कन्या राशि
रा री रु रे
रो ता ती तू ते – तुला राशि
तो ना नी नू
ने नो या यी यू – वृश्चिक राशि
ये यो भा भी
भू ध फ़ा ढा भे – धनु राशि
भो जा जी खी
खू खे खो गा गी –मकर राशि
गू गे गो सा
सी सू से सो द – कुम्भ राशि
दी दू थ झ ञ
दे दो चा ची – मीन राशि
पञ्चाङ्ग भाग २ दो
अक्षरों की राशि
आ ला- मेष
राशि
ओ वा– वृष राशि
का छा– मिथुन
राशि
डा हा– कर्क
राशि
मो टा– सिंह
राशि
पा टा– कन्या
राशि
रा ता– तुला
राशि
नो या– वृश्चिक
राशि
भू धा– धनु
राशि
खा गा–मकर राशि
गो सा– कुम्भ
राशि
दा चा– मीन
राशि
सवा दो
नक्षत्रों का एक चन्द्रमा होता है- जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका के एक चरण तक 'मेष' का चन्द्रमा होता है । जिस जातक का अश्विनी नक्षत्र में
जन्म होगा, अथवा भरणी का होगा या कृत्तिका के पहले चरण तक का होगा,
उसकी मेष राशि होगी ।
पंचांग भाग २ चन्द्रमा देखना
अश्विनीभरणी
कृत्तिकापादे मेषः । कृत्तिकानां त्रयः पादा रोहिणी मृगशिरार्द्धं वृषः ।
मृगशिरार्द्ध आर्द्रा पुनर्वसुपादत्रयं मिथुनः । पुनर्वसुपादमेकं पुष्यश्लेषान्ते
कर्कः । मघांच पूर्वाफाल्गुनी उत्तरापादे सिंहः । उत्तराणां त्रयो पादा
हस्तचित्रार्द्धकन्या । चित्रार्द्धं स्वातिः विशाखापादत्रये तुला । विशाखापादमेकं
अनुराधा ज्येष्ठान्तें वृश्चिकः । मूलं च पूर्वाषाढा : उत्तरापादे धनुः ।
उत्तराणां त्रयो पादाः श्रवण धनिष्ठार्द्धं मकरः । धनिष्ठार्द्ध शतभिषा
पूर्वाभाद्रपदा पादत्रयं कुम्भ: पूर्वाभाद्रपदापादमेकं उत्तरा भाद्रपदा रेवती मीनः
॥
अश्विनी के ४
चरण,
भरणी के ४ चरण तथा कृत्तिका के १ चरण तक मेष का चन्द्रमा
रहता है । कृत्तिका ३, रोहिणी ४ तथा मृगशिरा के २ तक वृष का चन्द्रमा रहता है ।
मृगशिरा २, आर्द्रा ४, पुनर्वसु ३ तक मिथुन का चन्द्रमा । पुनर्वसु १, पुष्य ४, श्लेषा ४ तक कर्क का चन्द्रमा । मघा ४,
पूर्वा फाल्गुनी ४, उत्तरा फाल्गुनी के १ तक सिंह का चन्द्रमा । उत्तरा फाल्गुनी
३,
हस्त ४, चित्रा २ तक कन्या का चन्द्रमा । चित्रा २,
स्वाति ४ तथा विशाखा के ३ तक तुला का चन्द्रमा । विशाखा १,
अनुराधा ४, ज्येष्ठा ४ तक वृश्चिक का चन्द्रमा । मूल ४, पूर्वाषाढा ४,
उत्तराषाढा १ तक धनु का चन्द्रमा । उत्तराषाढा ३,
श्रवण ४, धनिष्ठा २ तक मॅकर का चन्द्रमा । धनिष्ठा २,
शतभिषा ४ तथा पूर्वाभाद्रपदा ३ तक कुम्भ का चन्द्रमा एवं
पूर्वभाद्रपदा १, उत्तरा भाद्रपदा ४ तथा रेवती ४ तक मीन का चन्द्रमा रहेगा ।
इस क्रम से सब को जान लें । जब किसी लड़के का जन्म हो उस वक्त लग्न देखना कि इस
वक्त क्या लग्न है । पहिले यह देखें कि इस महीने में सूर्य किस राशि का है । जिस
राशि का सूर्य हो, उससे सातवीं राशि पर सूर्य छिप जाता है । जिस राशि पर सूर्य
हो,
उसको संक्रांति कहते हैं । उस राशि का २६ अंश तक एक अंश रोज
घटता है। ३० अंश पर सूर्य दूसरी राशि पर होता है। वही संक्रांति है । एक महीना
सूर्य एक राशि पर रहता है । १२ राशियों पर इसी प्रकार घूमता रहता है । अब लग्न
देखना चाहिए कि चैत्र के महीने में किसी के बालक हुआ तो चैत्र में मीन की
संक्रांति होगी । उसी रोज से मीन का सूर्य होता है । जिस वक्त सूर्य उदय होता है,
उस वक्त मीन लग्न रहती है और तीन घड़ी चौंतीस पल भोगता है,
यानी तीन घड़ी के चौंतीस पल चढ़े तक रहता है। फिर मेष लग्न
आ जाता है । ऐसे ही दिन-रात में १२ लग्न भोग करते हैं । संक्रांति के जितने अंश
बीतते जायेंगे, वह लग्न उतना ही रात में बीतता जाएंगा । देखिए, मीन की संक्रांति के दस दिन गये,
जब किसी के बालक हुआ, तो संक्रांति के दस अंश गये तो वह मीन लग्न तिहाई रात में
बीत जाता है, क्योंकि दस तिया तीस । अब मीन ३ घड़ी ३४ पल का है,
१ घडी १२ पल रात में बीता और २ घड़ी २२ पल दिन चढ़े तक रहा
। फिर मेष आ गया, जो १० घड़ी १५ पल दिन चढ़े तक रहा किसी के किसी वक्त बालक
हुआ,
वही उसका इष्ट होता है । २ घडी २२ पल मीन लग्न बाकी रहा और
३।३४ मेष और ४।७ वृष इनको जोड़ो तो १० । ३ आया, अब देखो इष्ट १०।१५ का है तो जानें मिथुन लग्न रहा । एक
कायदा और हैं, इष्ट की घड़ी-पल यानी जितना दिन चढ़ा हो या जितनी रात गई हो अर्थात् जितना
इष्ट हो,
यह देखें कि संक्रांति के कितने अंश शेष हैं । पत्रे में
देखें । जितने अंश सूर्य राशि के गये हों, उतने अंश के कोष्टक लग्न-सारिणी में देखें । उसी खाने की
घड़ी-पल इष्ट में जोड़ दें। फिर उसमें सात का भाग दें । जो अंक बचे,
उसे लग्नसारिणी में देखें कि इन अंकों पर क्या लग्न है ?
जहाँ अंक मिलें, वही लग्न जानना ।
पञ्चाङ्ग भाग २ लग्न भोग
देखना
मीने मेषे ३ ।
३४ कृत भू नेत्रे वृषे कुम्भे ४ । ७ मुनि वेदभुजा । मकरे मिथुने ५ । ०१ शशिख वह्नि:
कर्के धने शराकृतरामा ५ । ४५ वृश्चिके सिंहे ५।४१ रूप शराग्निः कन्या तुल ५।४२
भुजवेदगुणाः।
पंचांग भाग २ लग्न भोग
चक्रम्
३ |
४ |
५ |
५ |
५ |
५ |
५ |
५ |
५ |
५ |
४ |
३ |
घड़ी |
३४ |
७ |
१ |
४५ |
५१ |
४२ |
४२ |
५१ |
४५ |
१ |
७ |
३४ |
पल |
मेष |
वृष |
मि॰ |
कर्क |
सिंह |
क॰ |
तुला |
वृ॰ |
धनु |
मकर |
कुंभ |
मीन |
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